image courtesy : narnia movie
अक्सर शहर के जंगलों में ;
मुझे जानवर नज़र आतें है !
इंसान की शक्ल में ,
घूमते हुए ;
शिकार को ढूंढते हुए ;
और झपटते हुए..
फिर नोचते हुए..
और खाते हुए !
और फिर
एक और शिकार के तलाश में ,
भटकते हुए..!
और क्या कहूँ ,
जो जंगल के जानवर है ;
वो परेशान है !
हैरान है !!
इंसान की भूख को देखकर !!!
मुझसे कह रहे थे..
तुम इंसानों से तो हम जानवर अच्छे !!!
उन जानवरों के सामने ;
मैं निशब्द था ,
क्योंकि ;
मैं भी एक इंसान था !!!
मुझे जानवर नज़र आतें है !
इंसान की शक्ल में ,
घूमते हुए ;
शिकार को ढूंढते हुए ;
और झपटते हुए..
फिर नोचते हुए..
और खाते हुए !
और फिर
एक और शिकार के तलाश में ,
भटकते हुए..!
और क्या कहूँ ,
जो जंगल के जानवर है ;
वो परेशान है !
हैरान है !!
इंसान की भूख को देखकर !!!
मुझसे कह रहे थे..
तुम इंसानों से तो हम जानवर अच्छे !!!
उन जानवरों के सामने ;
मैं निशब्द था ,
क्योंकि ;
मैं भी एक इंसान था !!!
ham sab ke andar ka jaanwar, kab dam todega..:(
ReplyDeletebehtareen!
सच बोलती कविता...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कटाक्ष............
ReplyDeleteसार्थक रचना.
सादर.
एकदम सच्ची बात कही है सर!
ReplyDeleteसादर
वो परेशान है !
ReplyDeleteहैरान है !!
इंसान की भूख को देखकर !!!
सच कहती हुई ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ईमेल के द्वारा कमेन्ट : Sumita Keshwa
ReplyDeleteजानवर बहुत ही अच्छी रचना है ...आज के माहौल को सार्थक करती हुई झिंझोड़कर रख देने वाली कविता बहुत-बहुत बधाई विजय जी...ब्लाग में कमेंट नहीं जा पा रही है
सत्य को कहती अच्छी रचना
ReplyDeleteसही है।
ReplyDeleteईमेल के द्वारा कमेन्ट : Dr.M.C. Gupta
ReplyDeleteविजय जी,
कविता अच्छी है.
आप a poet , a musician , a singer, a photographer, a sculptor, a comic artist, a dancer, a writer, a painter, हैं, यह जान कर खुशी और आश्चर्य है.
-ख़लिश
श्री M.C.Gupta जी ,
Deleteबस ईश्वर का आशीर्वाद है जी कि मैं अपने छोटे से जीवन में इन सब को प्राप्त कर सका की मैं अपने आपको एक simple human ,a dreamer, a poet , a musician , a singer, a photographer, a sculptor, a comic artist, a dancer, a writer, a painter, a giver, a worshiper, a lover, a friend, a teacher, a mentor, a speaker, a thinker, a philosopher and a lifetime student learning from this world कह सकूँ,,,,,,,
और यात्रा तो अभी जारी है मित्र.
मुझसे कह रहे थे..
ReplyDeleteतुम इंसानों से तो हम जानवर अच्छे !!!
ये पंक्तियाँ आप एकदम सही लिखे हैं .... यही आज की हक़ीकत है .... !!
सही कहा आपने!..कई बार इंसान जानवरों से बदतर व्यवहार करते है!...अपना 'मनुष्यत्व' भूल जाते है!....बहुत सुन्दर रचना...आभार!
ReplyDeleteकृपया मेरे लिंक पर पधारें....http://arunakapoor.blogspot.in/2012/04/blog-post_09.html
अच्छी कविता है!
ReplyDeleteजो जंगल के जानवर है ;
वो परेशान है !
हैरान है !!
इंसान की भूख को देखकर !!!
मुझसे कह रहे थे..
तुम इंसानों से तो हम जानवर अच्छे !!!
यथार्थ को बड़ी बेबाकी से उधेड़ती एक बहुत ही सटीक रचना ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteजानवर का इंसान से संघर्ष जारी है,
ReplyDeleteएक अघोषित युद्ध की तैयारी है।
nirantar viksit hoti sabhyata ne manav ko asabhya banaya, uski bhook badha di..... bilkul sahi chitran kiya hai aapne apni rachna mein.
ReplyDeleteshubhkamnayen
अच्छी कविता पढ़ पढ़ के ऊब गए हैं... कुछ विवादित टाइप का लिखिए... जिससे लोग निंदा निंदा खेल सकें :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.विजय जी,
ReplyDeleteमुझे जानवर नज़र आतें है !
इंसान की शक्ल में ! JAI BHARAT !
कविता मन को छू गयी. जानवर कम सो कम अपनी जाति का शिकार नहीं करते. एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को कतनो में लगा है.
ReplyDeleteबधाई.
अर्चना पैन्यूली
बहुत बढिया रचना!!
ReplyDeleteईमेल के द्वारा कमेन्ट : Anita Bharti
ReplyDeleteविजय जी कविता बहुत अच्छी है। अच्छी कविता पढवाने के लिए धन्यवाद।
अनिता भारती
आपका कलाम शानदार है।
ReplyDeleteकम ब्लॉगर हैं जो हिंदी ब्लॉगिंग को अच्छे विचार दे पा रहे हैं।
वर्ना तो ...
हिंदी ब्लॉगिंग की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार दिल्ली के ब्लॉगर्स
VIJAY JI , BAHUT DINON KE BAAD EK ACHCHHEE KAVITA PADHNE KO
ReplyDeleteMILEE HAI . BADHAAEE AUR SHUBH KAMNAAYEN .
मेरे मन की गहराई में भी
ReplyDeleteएक जानवर छिपा हैं
जो मर जाना चाहता हैं ,
पर ये दुनिया उसे बार बार
जीवित कर देती हैं ,
वो जानवर जीवित रहते हुए
सच बोलना चाहता हैं ,
पर बार बार उसे झूठ बोलने पर
मजबूर किया जाता हैं
वो इंसानों से प्यार करना चाहता हैं
पर बार बार उसे नफरत के लिए
उकसाया जाता हैं
जो दोस्त हैं ,
वो पीठ के पीछे निंदा करते हैं
और मुहँ पर दोस्ती का दम भरते हैं
इसी बात से ये जानवर बार बार
कुछ कटु शब्दों की भाषा बोलता हैं
हां मेरे भीतर भी एक जानवर बसता हैं
जो सिर्फ अपनों के लिए सोचता हैं
सही कहाँ आपने ....हम इंसानों से
जानवर अच्छे हैं ....कम से कम
वो झूठ बोलके .निंदा करके
दिल को नहीं दुखाते ,
वो अपनी जात के बन कर ,तो रहते हैं
हम इंसान ही ...बार बार
अपने कहें से भी पलट जाते हैं
ठीक उस थाली के बेंगान कि तरह
जिसका कोई वजूद नहीं होता .....
हां हम सब जानवर ही तो हैं .............||
अनु
सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी .....
ReplyDeleteजानवर जंगलों के बजाय शहरों में ज्यादा हैं. जंगल में जानवर कम हो रहे हैं पर शहर में बढ़ रहे है दिन प्रतिदिन.
ReplyDeleteसुंदर रचना.
We are full of greed and dishonesty. No wonder animals feel better than us.
ReplyDeleteProfound work Sir.
सुंदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteईमेल के द्वारा कमेन्ट :lata_seth20@yahoo.co.in
ReplyDeleteएक नंगा सच
lata
ईमेल के द्वारा कमेन्ट : puneet pandey
ReplyDeletegood poem. sir !
आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.in/2012/04/847.html
चर्चा - 847:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :kavita Gupta
ReplyDeletebahut khub ati sundar
sach hai ab jaanwar garvaanwit honge apne jaanwar hone par, kyonki hum insaan jaanwar bhi na ban paaye. jaanwar kamse kam apni jaati par ghaat nahi lagaate. bahut achchhi rachna, badhai.
ReplyDeleteईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteप्रिय विजय कुमार जी ,
आपकी कविता बहुत अच्छी लगी. पढ़ते हुए मुझे " अज्ञेय " की " सांप " शीर्षक कविता की याद आ गई . दोनों कविताओं का मूल स्वर एक ही है. आज मनुष्य पशुओं से भी गया गुज़रा हो गया है. आपकी संवेदनशीलता के लिए आपका अभिनन्दन
सस्नेह - रवीन्द्र अग्निहोत्री
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteविजय जी
आपकी कविता अच्छी लगी इसी तरह लिखते रहेँ।
सादर
सँतोष श्रीवास्तव्
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeletebhai shri Vijayji,
Nmaskar,
sach kaha aapne sabhy kahlane wale shahar main janwaron
ki koi kami nahi. achi hai kavita.chitr ka chayan bhi...
'' saleeke se jeene ki hum umeed hi karte rah gaye,
tahzeeb odhe log bhi beadab nikle....
Regards,
Shilpa
बिल्कुल सच्ची बात...बधाई...।
ReplyDeleteachchhi rachna vijay ji....bhavotprerak.....sadhuwaad
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