अक्सर….
ज़िन्दगी की तन्हाईयो में जब पीछे मुड़कर देखता हूँ ;
तो धुंध पर चलते हुए दो अजनबी से साये नज़र आते है ..
एक तुम्हारा और दूसरा मेरा.....!
पता नहीं क्यों एक अंधे मोड़
पर हम जुदा हो गए थे ;
और मैं अब तलक उन गुमशुदा कदमो के निशान ढूंढ रहा हूँ.
अपनी अजनबी ज़िन्दगी की जानी पहचानी राहो में !
कहीं अगर तुम्हे “ मैं “ मिला ;
तो उसे जरुर गले लगा लेना ,
क्योंकि वो "मैं" अब तन्हा है ......!
अक्सर ...
बारिशो के मौसम में ;
यूँ ही पानी की तेज बरसाती बौछारों में ;
मैं अपना हाथ बढाता हूँ कि तुम थाम लो ,
पर सिर्फ तुम्हारी यादो की बूंदे ही ;
मेरी हथेली पर तेरा नाम लिख जाती है .. !
और फिर गले में कुछ गीला सा अटक जाता है ;
जो पिछली बारिश की याद दिलाता है ,
जो बरसो पहले बरसी थी .
और ; तुमने अपने भीगे हुए हाथो से मेरा हाथ
पकड़ा था;
और मुझमे आग लग गयी थी .
तुम फिर कब बरसोंगी जानां ....!
अक्सर ....
हिज्र की तनहा रातो में
जब जागता हूँ मैं - तेरी यादो के उजाले में ;
तो तेरी खोयी हुई मुस्कराहट बिजली की तरह कौंध
जाती है,
और मैं तेरी तस्वीर निकाल कर अपने गालो से लगा
लेता हूँ .
इस ऐतबार में कि तुम शायद उस तस्वीर से बाहर आ जाओ
.
पर ऐसा जादू सिर्फ एक ही बार हुआ था ,
जो कि पिछली बहार में था,
जब दहकते फ्लाश की डालियों के नीचे मैंने तुम्हे
छुआ था.
तुम जो गयी , ज़िन्दगी का वसंत ही मुरझा गया ;
अब पता चला कि ;
ज़िन्दगी के मौसम भी तुम से ज़ेरेसाया है जानां !
अक्सर ...
मैं तुम्हे अपने आप में मौजूद पाता हूँ ,
और फिर तुम्हारी बची हुई हुई महक के साथ ;
बेवजह सी बाते करता हूँ ;
कभी कभी यूँ ही खामोश सडको और अजनबी गलियों में,
और पेड़ो के घने सायो में भी तुम्हे ढूंढता हूँ.
याद है तुम्हे - हम आँख मिचोली खेला करते थे
और तुम कभी कभी छुप जाती थी
और अब जनम बीत गए ..
ढूंढें नहीं मिलती हो अब तुम ;
ये किस जगह तुम छुप गयी हो जानां !!!
अक्सर .....
उम्र के गांठे खोलता हूँ और फिर बुनता हूँ
बिना तुम्हारे वजूद के .
और फिर तन्हाईयाँ डसने लगती है ..
सोचता हूँ कि तेरे गेसुओं में मेरा वजूद होता तो
यूँ तन्हा नहीं होता पर ..
फिर सोचता हूँ कि ये तन्हाई भी तो तुमने ही दी है
..
ज़िन्दगी के किसी भी साहिल पर अब तुम नज़र नहीं आती
हो ...
अक्सर मैं ये सोचता हूँ की तुम न मिली होती तो
ज़िन्दगी कैसी होती .
अक्सर मैं ये सोचता हूँ कि तुम मिली ही क्यों ;
अक्सर मैं ये पूछता हूँ कि तुम क्यों जुदा हो गयी ?
अक्सर मैं बस अब उदास ही रहता हूँ
अक्सर अब मैं जिंदा रहने के सबब ढूंढता हूँ
....
अक्सर........
कविता और
फोटोग्राफी © विजय कुमार
आपने लिखा....
ReplyDeleteहमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए शनिवार 04/05/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
शुक्रिया यशोदा जी .
Deletebahut sundar vijay ji . sundar abhivyakti
Deletemere blog par prem gajal bhi padhiye
http://sapne-shashi.blogspot.com
शुक्रिया शशि जी ,. आभार
Deleteभीगे-भीगे नर्म अहसासों से सजी एक बहुत ही भावपूर्ण रचना ! अपने मन की टीस को बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी है ! हर लफ्ज़ खूबसूरत हर पंक्ति लाजवाब ! बहुत ही सुंदर !
ReplyDeleteधन्यवाद साधना जी . आपने बहुत ही प्यारा कमेंट किया है . दिल से धन्यवाद.
Deleteविजय
याद है तुम्हे - हम आँख मिचोली खेला करते थे
ReplyDeleteऔर तुम कभी कभी छुप जाती थी
और अब जनम बीत गए ..
ढूंढें नहीं मिलती हो अब तुम ;
ये किस जगह तुम छुप गयी हो जानां !!!
मेरी खोज की परछाइयाँ भी चुक गयी हैं अब तो …………उदासी के सबब यूँ ही नहीं हुआ करते ………जन्म बीतते रहे , बिछडते मिलते रहे ……अजनबी राहों पर अजनबी शख्स बन ………ये परछाइयों के शहरों के चेहरे क्यों नहीं होते ………जो आवाज़ लगाते ही रौशन हो जाते तेरे दीदार से …………उम्र की तलाश से बडी है मेरे इंतज़ार की पगड्ण्डी ………जिस पर दौडती मेरी आस की रेल अपने संगीत में सिर्फ़ तुम्हारा ही नाम पुकार रही है ………तुम हो , तुम हो , तुम हो …………यहीं कहीं , आस पास मेरे जानाँ ………यूँ ही नहीं यादों के पहलू अक्सर दस्तक दिया करते हैं ……सुनना कभी ध्यान से दस्तकों में इंतज़ार के ओंकार की ध्वनि!!!
धन्यवाद वंदना , तुम्हारा कमेंट मन को छु गया , एक तरह से ये मेरी कविता का extension ही है . शुक्रिया
Delete" अक्सर " को पढ़कर दिल कहीं खो गया और मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि " यकीन न हो/ तो पूछिए दिल से /वह कौन था / खिल उठता था जो तुम्हें पास पाकर।" या फिर " तुम मिले तो /मैं सुधरता गया/ और मैं फिर / डूबता चला गया / प्रेम सरोवर में।"
ReplyDeleteइतनी उम्दा रचना के लिए बधाई !
--------------------
- सुभाष लखेड़ा
शुक्रिया सुभाष जी
Deleteबहुत सुन्दर शब्दो से निखारा आपने अपने प्रेम के भाव को. धन्यवाद
EK SASHAKT PREM KAVITA KE LIYE AAPKO DHERON BADHAAEEYAAN AUR SHUBH
ReplyDeleteKAMNAAYEN , VIJAY JI .
आपका दिल से आभार प्राण जी , आपके निरतंर आशीर्वाद से मेरा लेखन को नए आयाम मिल रहे है . आपका आभार
Deleteविजय
लाजवाब
ReplyDeleteशुक्रिया राकेश जी .
Deleteआपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
धन्यवाद दिलबाग़ जी .
Deleteज़िंदगी अक्सर और काश के बीच ऐसी अटकती है कि... बहुत भावुक कविता, बधाई.
ReplyDeleteशुक्रिया शबनम जी.
Deleteकोमल भावों की हल्के हल्के यात्रा कराती कविता..
ReplyDeleteशुक्रिया प्रवीण जी .
Deletecomment by email :
ReplyDeleteप्रेम की मधुर स्मृतियों की भावुक अभिव्यक्ति है।बच्चन जी की कविता याद आ गई-
" क्या भूलूँ क्या याद करूँ मैं ? " पढ़ कर,मन मुग्ध हो गया।
शकुन्तला बहादुर
शुक्रिया शकुंतला जी .
Deleteआपके कमेंट ने मेरी कविता में प्राण फूंक दिए .
प्रणाम स्वीकार करे.
विजय
comment by email :
ReplyDeleteNaari IndianWoman
as always your poems carry depth and meaning both
शुक्रिया रचना जी .
Deletecomment by email :
ReplyDeleteविजय जी,
अपने परिचय में अपने बारे में जो भी आपने लिखा है उसके अनुसार तो आप poet ,thinker, lover , singer , philosopher , dancer और भी बहुत कुछ हैं . मैं तो केवल अनुमान लगा सकता हूँ . मुझे लगता है आप अवश्य कोई महर्षि होंगे .
दूर किसी पाताल की गहराई से पुकार रहा हूँ . आपके विचार और अभिव्यक्ति अत्यंत सुन्दर है . इसमें चार चाँद लग जाते यदि आप blank verse के स्थान पर छंद -बद्ध कविता करते .
शुभकामनाओं सहित,
महेन्द्र दवेसर 'दीपक'
महेंद्र जी ,
Deleteनमस्कार
आपने जो कुछ भी कहा उसके लिए दिल से शुक्रिया .
सर , मुझे छंद से लिखना नहीं आता है , मैं तो सिर्फ दिल से ही लिखता हूँ.. भाव को शब्द दे देता हूँ. आप का दिल से शुक्रिया . हां , आपने मुझे महिर्षि कहा , इसलिए प्रणाम. इसी बात से सम्बदित मैं कुछ लिंक दे रहा हूँ आप जरुर देखे .
http://spiritualityofsoul.blogspot.in/
http://hrudayam-theinnerjourney.blogspot.in/
https://www.facebook.com/login.php?next=http%3A%2F%2Fwww.facebook.com%2Fgroups%2Fvijaysappatti%2F
आप यहाँ देखे शायद मन को अच्छा लगे.
आपका
विजय
अक्सर .....
ReplyDeleteउम्र के गांठे खोलता हूँ और फिर बुनता हूँ
बिना तुम्हारे वजूद के .
और फिर तन्हाईयाँ डसने लगती है ..
....अंतस को छूते भाव एक अनोखे संसार में ले गए जहाँ मन अक्सर अकेलेपन के अहसासों को ही ज़िंदगी बना लेता है..यादें आती हैं और अकेलेपन का दंश और भी तीक्ष्ण हो जाता है..लेकिन इस उदासी में ही मन 'जिंदा रहने के सबब ढूंढता'है...बहुत भावपूर्ण रचना...बधाई!
कैलाश जी , शुक्रिया, आपके भावपूर्ण कमेंट ने दिल जीत लिया . और सबसे अंत में आपने बहुत महतवपूर्ण बात कही .... धन्यवाद.
Deleteखुबसूरत रचना..... दिल से निकली हुई रचना .
ReplyDeleteशुक्रिया रंजना जी . आभार.
Deleteविजय जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
काफी दिन बाद आपकी रचना पढ़ सका.
व्यस्तता के चलते अंतरजाल पर आना भी कम हो गया है,
इस लम्बी रचना के सधे हुए शब्दों ने सच में जादू सा असर दिखाया है.
आपकी हिंदी भी बड़ी प्यारी लगी , हमारी हार्दिक बधाई.
- विजय तिवारी 'किसलय'
जबलपुर म. प्र.
आदरणीय विजय जी , आपका आभार , आपने मेरे लिए समय निकाला , आपके कमेंट ने दिल जीत लिया है . शुक्रिया तारीफ़ के लिए.
Deletebhinge huuye ehsaason ki kavita....aksar hi hota hai aisa..ki mausam se bahri ek baawadi me tamam tute patte gir jaate hain...hum us hare se batiyaate hain aur sukhane ke eksaas se chitak jaate hai bar bar....
ReplyDeleteशुक्रिया शैलजा जी. आपके कमेंट ने , कविता में ; जैसे नए भाव फूंक दिए हो . शुक्रिया
Deleteवाह लाजवाब अहसास और उनकी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआप मिले हमारी खुशनसीबी
शुक्रिया सरिता जी . आपके कमेंट के लिए ,आपकी मित्रता के लिए .
Deletekamal , bemisal likha hai apne......har line man ko chu gayi
ReplyDeleteशुक्रिया रीवा जी . पसंद करने के लिए धन्यवाद.
Deleteएहसास भरी कलम हों और सारे अहसास उमड़ चले हों तों कैसे न खूबसूरत बात हों
ReplyDeleteसखी जी , सच ही कहा आपने. भाव तो अपने आप ही शब्द ढूंढ लेते है . धन्यवाद.
Deletecomment on FB :
ReplyDeleteSavita Mukhi जिंदगी की तन्हाइयों में,प्रियतमा के वियोग में लिखी खूबसूरत,मर्मस्पर्शी कविता .....पढ़ कर भावविभोर हो गई ......
शुक्रिया सविता जी . आपने पसंद किया , बहुत ख़ुशी हुई. धन्यवाद.
Deletecomment on FB :
ReplyDeleteAnil Kumar कभी खुशी की आशा, कभी गम की निराशा,
कभी खुशियों की धूप, कभी हक़ीक़त की छाया,
कुछ खोकर कुछ पाने की आशा., शायद यही है ज़िंदगी की सही परिभाषा……..............अक्स
शुक्रिया अनिल जी ., आपकी छोटी सी कविता की पंक्तियों ने जादू किया है .
Deleteधन्यवाद.
bahut hi achha likha hai,,,,, sunder, komal, judai ke dard ke ehsaas se bhara hua
ReplyDeleteshubhkamnayen
शुक्रिया प्रीती जी . कविता में बसे भाव आपको पसंद आये , बड़ी ख़ुशी हुई.
Deleteधन्यवाद.
मधुरिम प्रेम यादों का कवितामय सुन्दर प्रेममयी सफ़र...
ReplyDeleteशुक्रिया विश्वजीत जी .
Deletecomment on FB :
ReplyDeleteRickie Khosla
Even to a poetry novice like me, it is clear that your poetry is profound and beautiful!
thanks Rickie ji . thanks a lot.
Deletecomment on FB :
ReplyDeleteArvind Passey
यूँ ही पानी की तेज बरसाती बौछारों में ;
मैं अपना हाथ बढाता हूँ कि तुम थाम लो ,
पर सिर्फ तुम्हारी यादो की बूंदे ही ;
मेरी हथेली पर तेरा नाम लिख जाती है .. !
Poetry that reverberates in the subliminal world of my being... long after i have read it completely...
Thanks for sharing your poem
thanks arvind ji for your soulful comment . thanks a lot.
Deletecomment on FB :
ReplyDeleteGhanshyam Kumar
prem aatma ka ekant sangeet hi....jo samay ke sima se bhi pare chal jata hi...aisi hi kuch komal prem ki abhiwaykti hi ye kavitaye......
shukriya ghanshyam ji . aapne to dil ko choo liya
Delete..भाव-विभोर कर देने वाली प्रेम कथा!...एक सुन्दर कविता के रूप में सामने है...आभार!
ReplyDeleteअरुणा जी , धन्यवाद आपका
Deleteविजय जी,
ReplyDeleteआपकी प्रेम कविताएँ दिल को बांधने वाली बन पड़ी हैं ! दिल से होती हुई रूह में पसरती चली जाती हैं !
ढेर सराहना के साथ,
दीप्ति
शुक्रिया दीप्ति जी . आपको इस कदर पसंद आई . दिल से शुक्रिया
Deletevery touching....
ReplyDeleteथैंक्स निशा जी .
Deleteकभी कभी यूँ ही खामोश सडको और अजनबी गलियों में,
ReplyDeleteऔर पेड़ो के घने सायो में भी तुम्हे ढूंढता हूँ.
याद है तुम्हे - हम आँख मिचोली खेला करते थे
और तुम कभी कभी छुप जाती थी
और अब जनम बीत गए ..
ढूंढें नहीं मिलती हो अब तुम ;
ये किस जगह तुम छुप गयी हो जानां !!!--भावों से भरी हर पंक्ति खुबसूरत है ,लेकिन मुझे ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
latest post परम्परा
शुक्रिया कालीप्रसाद जी .
Deleteविजय
बहुत -बहुत सुन्दर कविता , विजय जी
ReplyDeleteशुक्रिया उपासना जी
DeleteMann Ki pida ko Sunderta se shabdo me Ootar diya hai .... Badhai !!
ReplyDeleteशुक्रिया पूनम जी.
Deletecomment by Email :
ReplyDeleteDear Sri Sappati Ji
A very nice, original and heart touching expression.
Thanks for forwarding. I am short of words in telling as to how effective this poetry is.
Regards.
narendra agrawal
शुक्रिया नरेन्द्र जी . thanks for liking my poem so much .
Deletethanks & regards
vijay
sapattji likhate samya na jaane kaise bhav aapke man mein aaye honge kyon ki padate samaya eak aise tasveer aankhon ke samne aa gai ki jaise yeh sab hamaari hi ankhon ke samksh ho rha hai --main to na jaane kis jhaan mein kho gai --padane ke baad kuchh palon ke liye to kuchh soch bhi na paai --wow kya baat hai man ko chhooo gai akasar yeh baaten naa jaane
ReplyDeleteशुक्रिया शशि ...
Deleteआपका कमेंट मन को छु गया .
धन्यवाद.
comment on FB :
ReplyDeleteShobha Shami
मैं तुम्हे अपने आप में मौजूद पाता हूँ ,
और फिर तुम्हारी बची हुई हुई महक के साथ ;
बेवजह सी बाते करता हूँ ;
शुक्रिया शोभा .
Deleteअक्सर पीछे मुड कर देखने में
ReplyDeleteहर रस्ते पर अँधेरा ही
नज़र आता है
जहाँ खुद की परछाई
पूछती है
हजारों-हजारों सवाल जिंदगी के ||
बहुत सुन्दर अंजू . अक्सर एक कविता से ही दूसरी कविता जन्मती है .
Deleteशुक्रिया बॉस.
aksar aisa kyon hota hai :)
ReplyDeleteमुकेश भाई , बस अक्सर ऐसा ही होता है .... !
Deleteaanand aa gayaa padhakar. badhaai sviikaaren.
ReplyDeleteउम्मीद जी , बहुत दिनों के बाद दर्शन हुए . शुक्रिया .
Deletecomment by email :
ReplyDeleteविजय जी,
आपकी कविता "अक्सर" अति सुन्दर है।
मार्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति मन को छू जाती है।
आपके लेखन का शिल्प वैसा ही है जैसा मेरा और पंकज त्रिवेदी जी का है,
अत: मेरे लिए आपकी कविताएँ अधिक आत्मीय हैं, और आपसे संपर्क
अच्छा लग रहा है।
आपकी यह कविता आज अचानक ’नव्या’ में भी देखी तो याद आया कि
अभी आपकी कल की निम्न इ-मेल का उत्तर देना है।
अपना संक्षिप्त परिचय दे सकें तो अच्छा है।
सादर,
विजय निकोर
विजय जी आभार और धन्यवाद.
Deleteआपके कमेंट ने दिल को छु लिया . यूँ ही आशीर्वाद दे.
परिचय - बस एक सीधा सादा इंसान हूँ. ज़िन्दगी को देखता हूँ और शब्द निखर जाते है.
धन्यवाद.
comment on FB :
ReplyDeleteDagny Sol
विरह की पीड़ा की अभ्व्यक्ति सुंदर की है आपने विजयजी..
शुक्रिया Dagny जी .
Deleteप्रेम की गहन अनुभूति ,बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करें
http://jyoti-khare.blogspot.in
ज्योति जी , कमेंट के लिए आपका धन्यवाद.
Deleteजरुर आऊंगा आपके ब्लॉग पर सर .
भावनाओं की प्रखर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशुक्रिया ओंकार जी
Deleteअक्सर मैं ये पूछता हूँ कि तुम क्यों जुदा हो गयी ?
ReplyDeleteअक्सर मैं बस अब उदास ही रहता हूँ
अक्सर अब मैं जिंदा रहने के सबब ढूंढता हूँ ....
विरह की वेदना भी कितना व्याकुल बना देती है,कि इंसान और कुछ सोच ही नहीं पाता
विजयजी अच्छी रचना हेतु बधाई स्वीकार करें
महेंद्र जी. शुक्रिया सर . वेदनाये ऐसी ही होती है ..
Deleteयादों में घुमती हर पंक्ति...
ReplyDeleteकिसी के चले जाने पर बस यादों की एक किताब ही तो साथ घुमती है ज़िन्दगी के हर मोड़ पर ...
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...
शुक्रिया तनुज जी . आपने बिलकुल सच कहा है ,.
Deleteधन्यवाद.
comment by email :
ReplyDeleteप्रिय बन्धु! आपकी कविता पढ़ी। अच्छी लगी। मुक्त छन्द कविता के अक्सर गुण कविता में विद्यमान है। आज के तनावपूर्ण समय में प्रेम-कविता की रचना अपने आप में एक बड़ा काम है। ये भी कहा जा सकता है कि आजकल 'प्रेम' की खोज कविता में ही संभव है वरना वास्तविक जीवन में तो 'प्रेम' प्रसाद की चीज बनकर रह गई है। आपकी कविता की अंतिम पंक्तियां खुद इसका प्रमाण है। कुल मिलाकर जुगाड़ की नहीं, मन की बात है आपकी कविता। प्रयास जारी रखें। धन्यवाद,
आपका,
तेजपाल सिंह 'तेज'
तेजपाल जी ,
Deleteआपके मेल ने मुझमे प्राण फूंक दिए .. आप यूँ ही अपना आशीर्वाद बनाए रखे.
प्रेम तो है ही जीवन में . बस हम सब उसे भुला देते है , ज़िन्दगी के rat-race में.
शुक्रिया आपका फिर से.
आपका
विजय
comment by email :
ReplyDeleteVijay Ji,
Aapki kavita padhi.. Badi sundar kavita hai.. Isi tarah likhte rahiya..
Nilabh
शुक्रिया नीलभ जी . आपका प्रोत्सहन ही मेरा प्रसाद है .
Deleteधन्यवाद.
विजय
आदरणीय विजय जी आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ बहुत ही मार्मिक दिल के करीब एक कविता पढने को मिली --अक्सर बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर फोलो भी कर लिया है अब आप मेरे ब्लॉग के एग्रीगेटर पर हैं बहुत बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteशुक्रिया राजेश कुमारी जी , आपके कमेंट ने मेरा उत्साह बढ़ाया ही है . शुक्रिया
Deletecomment by email :
ReplyDeletebeautiful poetry
Azeez Belgaumi
Thank you so much dear Azeez ji
DeleteComment on FB :
ReplyDeleteShahnaz Imrani अक्सर मैं ये सोचता हूँ की तुम न मिली होती तो ज़िन्दगी कैसी होती .
अक्सर मैं ये सोचता हूँ कि तुम मिली ही क्यों ;
अक्सर मैं ये पूछता हूँ कि तुम क्यों जुदा हो गयी ?
अक्सर मैं बस अब उदास ही रहता हूँ
अक्सर अब मैं जिंदा रहने के सबब ढूंढता हूँ ....
अक्सर........Heart touching poetry ....Thanx for sharing
शुक्रिया शहनाज़ जी . आपको कविता अच्छी , लगी मुझे बड़ी ख़ुशी हुई . शुक्रिया जी
Deletecomment by email :
ReplyDeleteआदरणीय सप्पत्ति जी
जो आँखें कभी बरसात में भीगी थी फिर भीग जाती हैं आपकी कविता पढ़ कर
हर बारिश की बूँद भी आँसू बन जाती हैं आपकी कविता पढ़ कर
अच्छी कविता.
भूपेन्द्र कुमार दवे
Executive Director (Retd.)
आदरणीय भूपेंद्र जी. आपके कमेंट ने मन को भिगो दिया !
Deleteधन्यवाद. यूँ ही आशीर्वाद बनाए रखे .
विजय
comment on FB :
ReplyDeleteKhan Anwar वास्तविकता यह है कि अतीत के साथ यों लिपट कर जीवन को जीना ...जीना नहीं रेंगना है । आखिर कब तक इस तरह वीरान हो चुके भूत से चिपके रहेंगे । लेखन विवेचन एक पृथक अध्याय है परन्तु वर्तमान की प्रत्येक प्रसन्नता को अतीत की बोझिल अलगनियों पर लटका देना हमारी कापुरुषता किंवा आत्म विश्वास हीनता का प्रतीक तो नहीं ?
Khan Anwar : खान साहेब, बात तो आपने खरी ही कही है पर दिल है की मानता नहीं ... पुरानी यादे जरुरी है जीने के लिए ... नहीं ..जीवन में यादो का और ख़ास तौर पर अच्छी यादो का होना बहुत जरुरी है . पर आपकी बात भी बिलकुल सही है .हम उदासियो के साथ तो नहीं जी सकते है . शुक्रिया
Deleteबहुत खूब जनाब,, आपकी कविता और तस्वीर दोनों बहोत खूबसूरत हैं..गुज़रे हुए लम्हे खट्टी मीठी यादों का जरोखा समान,,उसमे झाँकने से कभी मन खुश तो कभी उदास होता है..
ReplyDeleteफिर से गुज़रे हुए सालों से मिला दिया उसने
----खुदगर्ज़ "नदीम"
फिर से गुज़रे हुए सालों से मिला दिया उसने,,
पल्बर की थी मुलाकात, मगर अहसास दिला दिया उसने,..
क्या खोया मैंने और क्या पा लिया उसने,
वोही जाने जिसका है ये खेल, बड़ी बेदर्दी से खेला मगर उसने,
मैंने चाँद-तारों की तो नहीं की थी बातें कभी..
मैं ज़मीं का था, सितारे ज़मीं पर दिखा दिया उसने..
हकीकत “नदीम” तेरे फसाने की कोई जानता नहीं,
पूछते हैं सभी मगर किसलिए, क्यूँ अर्श से फर्श पर ला दिया उसने....
शुक्रिया नदीम भाई .. !!
Deleteविजय साहेब आपकी कविता और तसवीर दोनो ही बहुत खुबसुरत हैं
ReplyDeleteफिर से गुज़रे हुए सालों से मिला दिया उसने
----खुदगर्ज़ नदीम
फिर से गुज़रे हुए सालों से मिला दिया उसने,,
पल्बर की थी मुलाकात, मगर अहसास दिला दिया उसने,..
क्या खोया मैंने और क्या पा लिया उसने,
वोही जाने जिसका है ये खेल, बड़ी बेदर्दी से खेला मगर उसने,
मैंने चाँद-तारों की तो नहीं की थी बातें कभी..
मैं ज़मीं का था, सितारे ज़मीं पर दिखा दिया उसने..
हकीकत “नदीम” तेरे फसाने की कोई जानता नहीं,
पूछते हैं सभी मगर किसलिए, क्यूँ अर्श से फर्श पर ला दिया उसने....
नदीम भाई , ज़िन्दगी बीते हुए लम्हों में हि जिया करती है न ..
Deleteemail commemt :
ReplyDeleteBhai Vijayji, aajkal bas jeene ke sabab hum sabhi dhundhte rahte hain....aksar udasi hi tanhai ke sath rahti hai...aur yadon ke hujoom....achi kavita ....bas man ko abhiwyakt karte rahe....padhna acha lagta hai....shesh samanya....
Shilpa Sontakke
शुक्रिया शिल्पा जी .
Deleteबस अभिव्यक्ति को शब्दों में ढाल देता हूँ.
धन्यवाद.
आदरणीय आपकी यह उन्नत प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर 'रचनाशीलता की पहुंच कहाँ तक?' में लिंक किया गयी है।
ReplyDeleteआपकी अमूल्य प्रतिक्रिया http:/nirjar-times.blogspot.com पर सादर आमंत्रित है।
सादर