Wednesday, May 1, 2013

अक्सर……………….!!!




अक्सर….
ज़िन्दगी की तन्हाईयो में जब पीछे मुड़कर देखता हूँ ;
तो धुंध पर चलते हुए दो अजनबी से साये नज़र आते है .. 
एक तुम्हारा और दूसरा मेरा.....!
पता नहीं क्यों एक अंधे मोड़ पर हम जुदा हो गए थे ;
और मैं अब तलक उन  गुमशुदा कदमो के निशान ढूंढ रहा हूँ. 
अपनी अजनबी ज़िन्दगी की जानी पहचानी राहो में !
कहीं अगर तुम्हे “ मैं “ मिला  ;
तो उसे जरुर गले लगा लेना ,
क्योंकि वो "मैं" अब तन्हा है ......!

अक्सर ...
बारिशो के मौसम में ;
यूँ ही पानी की तेज बरसाती बौछारों में ;
मैं अपना हाथ बढाता हूँ कि तुम थाम लो  ,
पर सिर्फ तुम्हारी यादो की बूंदे ही ;
मेरी हथेली पर तेरा नाम लिख जाती है .. !
और फिर गले में कुछ गीला सा अटक जाता है ;
जो पिछली बारिश की याद दिलाता है ,
जो बरसो पहले बरसी थी .
और ; तुमने अपने भीगे हुए हाथो से मेरा हाथ पकड़ा था;
और मुझमे आग लग गयी थी .
तुम फिर कब बरसोंगी जानां ....!

अक्सर ....
हिज्र की तनहा रातो में 
जब जागता हूँ मैं - तेरी यादो के उजाले में ;
तो तेरी खोयी हुई मुस्कराहट बिजली की तरह कौंध जाती है,
और मैं तेरी तस्वीर निकाल कर अपने गालो से लगा लेता हूँ .
इस ऐतबार में कि तुम शायद उस तस्वीर से बाहर आ जाओ .
पर ऐसा जादू सिर्फ एक ही बार हुआ था ,
जो कि पिछली बहार में था,
जब दहकते फ्लाश की डालियों के नीचे मैंने तुम्हे छुआ था.
तुम जो गयी , ज़िन्दगी का वसंत ही मुरझा गया ;
अब पता चला कि ;
ज़िन्दगी के मौसम भी तुम से ज़ेरेसाया है जानां !

अक्सर ...
मैं तुम्हे अपने आप में मौजूद पाता हूँ , 
और फिर तुम्हारी बची हुई हुई महक के साथ ;
बेवजह सी बाते करता हूँ ;
कभी कभी यूँ ही खामोश सडको और अजनबी गलियों में,
और पेड़ो के घने सायो में भी तुम्हे ढूंढता हूँ.
याद है तुम्हे - हम आँख मिचोली खेला करते थे
और तुम कभी कभी छुप जाती थी 
और अब जनम बीत गए ..
ढूंढें नहीं मिलती हो अब तुम ;
ये किस जगह तुम छुप गयी हो जानां !!!

अक्सर ..... 
उम्र के गांठे खोलता हूँ और फिर बुनता हूँ
बिना तुम्हारे वजूद के .
और फिर तन्हाईयाँ डसने लगती है .. 
सोचता हूँ कि तेरे गेसुओं में मेरा वजूद होता तो 
यूँ तन्हा नहीं होता पर ..
फिर सोचता हूँ कि ये तन्हाई भी तो तुमने ही दी है ..
ज़िन्दगी के किसी भी साहिल पर अब तुम नज़र नहीं आती हो ...
अक्सर मैं ये सोचता हूँ की तुम न मिली होती तो ज़िन्दगी कैसी होती .
अक्सर मैं ये सोचता हूँ कि तुम मिली ही क्यों ;
अक्सर मैं ये पूछता हूँ कि तुम क्यों जुदा हो गयी ?
अक्सर मैं बस अब उदास ही रहता हूँ 
अक्सर अब मैं जिंदा रहने के सबब ढूंढता हूँ  .... 
अक्सर........

कविता और फोटोग्राफी  © विजय कुमार 

111 comments:

  1. आपने लिखा....
    हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए शनिवार 04/05/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है .
    धन्यवाद!

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    Replies
    1. शुक्रिया यशोदा जी .

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    2. bahut sundar vijay ji . sundar abhivyakti

      mere blog par prem gajal bhi padhiye

      http://sapne-shashi.blogspot.com

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    3. शुक्रिया शशि जी ,. आभार

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  2. भीगे-भीगे नर्म अहसासों से सजी एक बहुत ही भावपूर्ण रचना ! अपने मन की टीस को बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी है ! हर लफ्ज़ खूबसूरत हर पंक्ति लाजवाब ! बहुत ही सुंदर !

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    1. धन्यवाद साधना जी . आपने बहुत ही प्यारा कमेंट किया है . दिल से धन्यवाद.
      विजय

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  3. याद है तुम्हे - हम आँख मिचोली खेला करते थे
    और तुम कभी कभी छुप जाती थी
    और अब जनम बीत गए ..
    ढूंढें नहीं मिलती हो अब तुम ;
    ये किस जगह तुम छुप गयी हो जानां !!!

    मेरी खोज की परछाइयाँ भी चुक गयी हैं अब तो …………उदासी के सबब यूँ ही नहीं हुआ करते ………जन्म बीतते रहे , बिछडते मिलते रहे ……अजनबी राहों पर अजनबी शख्स बन ………ये परछाइयों के शहरों के चेहरे क्यों नहीं होते ………जो आवाज़ लगाते ही रौशन हो जाते तेरे दीदार से …………उम्र की तलाश से बडी है मेरे इंतज़ार की पगड्ण्डी ………जिस पर दौडती मेरी आस की रेल अपने संगीत में सिर्फ़ तुम्हारा ही नाम पुकार रही है ………तुम हो , तुम हो , तुम हो …………यहीं कहीं , आस पास मेरे जानाँ ………यूँ ही नहीं यादों के पहलू अक्सर दस्तक दिया करते हैं ……सुनना कभी ध्यान से दस्तकों में इंतज़ार के ओंकार की ध्वनि!!!

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    1. धन्यवाद वंदना , तुम्हारा कमेंट मन को छु गया , एक तरह से ये मेरी कविता का extension ही है . शुक्रिया

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  4. " अक्सर " को पढ़कर दिल कहीं खो गया और मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि " यकीन न हो/ तो पूछिए दिल से /वह कौन था / खिल उठता था जो तुम्हें पास पाकर।" या फिर " तुम मिले तो /मैं सुधरता गया/ और मैं फिर / डूबता चला गया / प्रेम सरोवर में।"
    इतनी उम्दा रचना के लिए बधाई !
    --------------------
    - सुभाष लखेड़ा

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    1. शुक्रिया सुभाष जी
      बहुत सुन्दर शब्दो से निखारा आपने अपने प्रेम के भाव को. धन्यवाद

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  5. EK SASHAKT PREM KAVITA KE LIYE AAPKO DHERON BADHAAEEYAAN AUR SHUBH
    KAMNAAYEN , VIJAY JI .

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    1. आपका दिल से आभार प्राण जी , आपके निरतंर आशीर्वाद से मेरा लेखन को नए आयाम मिल रहे है . आपका आभार
      विजय

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  6. लाजवाब

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  7. आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें

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    1. धन्यवाद दिलबाग़ जी .

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  8. ज़िंदगी अक्सर और काश के बीच ऐसी अटकती है कि... बहुत भावुक कविता, बधाई.

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  9. कोमल भावों की हल्के हल्के यात्रा कराती कविता..

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    1. शुक्रिया प्रवीण जी .

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  10. comment by email :


    प्रेम की मधुर स्मृतियों की भावुक अभिव्यक्ति है।बच्चन जी की कविता याद आ गई-

    " क्या भूलूँ क्या याद करूँ मैं ? " पढ़ कर,मन मुग्ध हो गया।

    शकुन्तला बहादुर

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    1. शुक्रिया शकुंतला जी .
      आपके कमेंट ने मेरी कविता में प्राण फूंक दिए .
      प्रणाम स्वीकार करे.
      विजय

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  11. comment by email :

    Naari IndianWoman

    as always your poems carry depth and meaning both

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  12. comment by email :
    विजय जी,
    अपने परिचय में अपने बारे में जो भी आपने लिखा है उसके अनुसार तो आप poet ,thinker, lover , singer , philosopher , dancer और भी बहुत कुछ हैं . मैं तो केवल अनुमान लगा सकता हूँ . मुझे लगता है आप अवश्य कोई महर्षि होंगे .
    दूर किसी पाताल की गहराई से पुकार रहा हूँ . आपके विचार और अभिव्यक्ति अत्यंत सुन्दर है . इसमें चार चाँद लग जाते यदि आप blank verse के स्थान पर छंद -बद्ध कविता करते .
    शुभकामनाओं सहित,
    महेन्द्र दवेसर 'दीपक'

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    1. महेंद्र जी ,
      नमस्कार
      आपने जो कुछ भी कहा उसके लिए दिल से शुक्रिया .
      सर , मुझे छंद से लिखना नहीं आता है , मैं तो सिर्फ दिल से ही लिखता हूँ.. भाव को शब्द दे देता हूँ. आप का दिल से शुक्रिया . हां , आपने मुझे महिर्षि कहा , इसलिए प्रणाम. इसी बात से सम्बदित मैं कुछ लिंक दे रहा हूँ आप जरुर देखे .

      http://spiritualityofsoul.blogspot.in/
      http://hrudayam-theinnerjourney.blogspot.in/

      https://www.facebook.com/login.php?next=http%3A%2F%2Fwww.facebook.com%2Fgroups%2Fvijaysappatti%2F

      आप यहाँ देखे शायद मन को अच्छा लगे.
      आपका
      विजय

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  13. अक्सर .....
    उम्र के गांठे खोलता हूँ और फिर बुनता हूँ
    बिना तुम्हारे वजूद के .
    और फिर तन्हाईयाँ डसने लगती है ..

    ....अंतस को छूते भाव एक अनोखे संसार में ले गए जहाँ मन अक्सर अकेलेपन के अहसासों को ही ज़िंदगी बना लेता है..यादें आती हैं और अकेलेपन का दंश और भी तीक्ष्ण हो जाता है..लेकिन इस उदासी में ही मन 'जिंदा रहने के सबब ढूंढता'है...बहुत भावपूर्ण रचना...बधाई!

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    1. कैलाश जी , शुक्रिया, आपके भावपूर्ण कमेंट ने दिल जीत लिया . और सबसे अंत में आपने बहुत महतवपूर्ण बात कही .... धन्यवाद.

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  14. खुबसूरत रचना..... दिल से निकली हुई रचना .

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    1. शुक्रिया रंजना जी . आभार.

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  15. विजय जी,
    नमस्कार,
    काफी दिन बाद आपकी रचना पढ़ सका.
    व्यस्तता के चलते अंतरजाल पर आना भी कम हो गया है,
    इस लम्बी रचना के सधे हुए शब्दों ने सच में जादू सा असर दिखाया है.
    आपकी हिंदी भी बड़ी प्यारी लगी , हमारी हार्दिक बधाई.
    - विजय तिवारी 'किसलय'
    जबलपुर म. प्र.

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    1. आदरणीय विजय जी , आपका आभार , आपने मेरे लिए समय निकाला , आपके कमेंट ने दिल जीत लिया है . शुक्रिया तारीफ़ के लिए.

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  16. bhinge huuye ehsaason ki kavita....aksar hi hota hai aisa..ki mausam se bahri ek baawadi me tamam tute patte gir jaate hain...hum us hare se batiyaate hain aur sukhane ke eksaas se chitak jaate hai bar bar....

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    1. शुक्रिया शैलजा जी. आपके कमेंट ने , कविता में ; जैसे नए भाव फूंक दिए हो . शुक्रिया

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  17. वाह लाजवाब अहसास और उनकी अभिव्यक्ति
    आप मिले हमारी खुशनसीबी

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    1. शुक्रिया सरिता जी . आपके कमेंट के लिए ,आपकी मित्रता के लिए .

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  18. kamal , bemisal likha hai apne......har line man ko chu gayi

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    1. शुक्रिया रीवा जी . पसंद करने के लिए धन्यवाद.

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  19. एहसास भरी कलम हों और सारे अहसास उमड़ चले हों तों कैसे न खूबसूरत बात हों

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    1. सखी जी , सच ही कहा आपने. भाव तो अपने आप ही शब्द ढूंढ लेते है . धन्यवाद.

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  20. comment on FB :

    Savita Mukhi जिंदगी की तन्हाइयों में,प्रियतमा के वियोग में लिखी खूबसूरत,मर्मस्पर्शी कविता .....पढ़ कर भावविभोर हो गई ......

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    1. शुक्रिया सविता जी . आपने पसंद किया , बहुत ख़ुशी हुई. धन्यवाद.

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  21. comment on FB :

    Anil Kumar कभी खुशी की आशा, कभी गम की निराशा,
    कभी खुशियों की धूप, कभी हक़ीक़त की छाया,
    कुछ खोकर कुछ पाने की आशा., शायद यही है ज़िंदगी की सही परिभाषा……..............अक्स

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    1. शुक्रिया अनिल जी ., आपकी छोटी सी कविता की पंक्तियों ने जादू किया है .
      धन्यवाद.

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  22. bahut hi achha likha hai,,,,, sunder, komal, judai ke dard ke ehsaas se bhara hua

    shubhkamnayen

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    1. शुक्रिया प्रीती जी . कविता में बसे भाव आपको पसंद आये , बड़ी ख़ुशी हुई.
      धन्यवाद.

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  23. मधुरिम प्रेम यादों का कवितामय सुन्दर प्रेममयी सफ़र...

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    1. शुक्रिया विश्वजीत जी .

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  24. comment on FB :

    Rickie Khosla

    Even to a poetry novice like me, it is clear that your poetry is profound and beautiful!

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  25. comment on FB :

    Arvind Passey

    यूँ ही पानी की तेज बरसाती बौछारों में ;
    मैं अपना हाथ बढाता हूँ कि तुम थाम लो ,
    पर सिर्फ तुम्हारी यादो की बूंदे ही ;
    मेरी हथेली पर तेरा नाम लिख जाती है .. !

    Poetry that reverberates in the subliminal world of my being... long after i have read it completely...

    Thanks for sharing your poem

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    1. thanks arvind ji for your soulful comment . thanks a lot.

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  26. comment on FB :

    Ghanshyam Kumar

    prem aatma ka ekant sangeet hi....jo samay ke sima se bhi pare chal jata hi...aisi hi kuch komal prem ki abhiwaykti hi ye kavitaye......

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    1. shukriya ghanshyam ji . aapne to dil ko choo liya

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  27. ..भाव-विभोर कर देने वाली प्रेम कथा!...एक सुन्दर कविता के रूप में सामने है...आभार!

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    1. अरुणा जी , धन्यवाद आपका

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  28. विजय जी,

    आपकी प्रेम कविताएँ दिल को बांधने वाली बन पड़ी हैं ! दिल से होती हुई रूह में पसरती चली जाती हैं !

    ढेर सराहना के साथ,
    दीप्ति

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    1. शुक्रिया दीप्ति जी . आपको इस कदर पसंद आई . दिल से शुक्रिया

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  29. कभी कभी यूँ ही खामोश सडको और अजनबी गलियों में,
    और पेड़ो के घने सायो में भी तुम्हे ढूंढता हूँ.
    याद है तुम्हे - हम आँख मिचोली खेला करते थे
    और तुम कभी कभी छुप जाती थी
    और अब जनम बीत गए ..
    ढूंढें नहीं मिलती हो अब तुम ;
    ये किस जगह तुम छुप गयी हो जानां !!!--भावों से भरी हर पंक्ति खुबसूरत है ,लेकिन मुझे ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    lateast post मैं कौन हूँ ?
    latest post परम्परा

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    Replies
    1. शुक्रिया कालीप्रसाद जी .

      विजय

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  30. बहुत -बहुत सुन्दर कविता , विजय जी

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    Replies
    1. शुक्रिया उपासना जी

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  31. Mann Ki pida ko Sunderta se shabdo me Ootar diya hai .... Badhai !!

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  32. comment by Email :

    Dear Sri Sappati Ji

    A very nice, original and heart touching expression.
    Thanks for forwarding. I am short of words in telling as to how effective this poetry is.

    Regards.
    narendra agrawal

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    Replies
    1. शुक्रिया नरेन्द्र जी . thanks for liking my poem so much .
      thanks & regards
      vijay

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  33. sapattji likhate samya na jaane kaise bhav aapke man mein aaye honge kyon ki padate samaya eak aise tasveer aankhon ke samne aa gai ki jaise yeh sab hamaari hi ankhon ke samksh ho rha hai --main to na jaane kis jhaan mein kho gai --padane ke baad kuchh palon ke liye to kuchh soch bhi na paai --wow kya baat hai man ko chhooo gai akasar yeh baaten naa jaane

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    Replies
    1. शुक्रिया शशि ...
      आपका कमेंट मन को छु गया .
      धन्यवाद.

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  34. comment on FB :

    Shobha Shami

    मैं तुम्हे अपने आप में मौजूद पाता हूँ ,
    और फिर तुम्हारी बची हुई हुई महक के साथ ;
    बेवजह सी बाते करता हूँ ;

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  35. अक्सर पीछे मुड कर देखने में
    हर रस्ते पर अँधेरा ही
    नज़र आता है
    जहाँ खुद की परछाई
    पूछती है
    हजारों-हजारों सवाल जिंदगी के ||


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    Replies
    1. बहुत सुन्दर अंजू . अक्सर एक कविता से ही दूसरी कविता जन्मती है .
      शुक्रिया बॉस.

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  36. Replies
    1. मुकेश भाई , बस अक्सर ऐसा ही होता है .... !

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  37. Replies
    1. उम्मीद जी , बहुत दिनों के बाद दर्शन हुए . शुक्रिया .

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  38. comment by email :

    विजय जी,


    आपकी कविता "अक्सर" अति सुन्दर है।

    मार्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति मन को छू जाती है।


    आपके लेखन का शिल्प वैसा ही है जैसा मेरा और पंकज त्रिवेदी जी का है,

    अत: मेरे लिए आपकी कविताएँ अधिक आत्मीय हैं, और आपसे संपर्क

    अच्छा लग रहा है।


    आपकी यह कविता आज अचानक ’नव्या’ में भी देखी तो याद आया कि

    अभी आपकी कल की निम्न इ-मेल का उत्तर देना है।


    अपना संक्षिप्त परिचय दे सकें तो अच्छा है।


    सादर,

    विजय निकोर

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    Replies
    1. विजय जी आभार और धन्यवाद.
      आपके कमेंट ने दिल को छु लिया . यूँ ही आशीर्वाद दे.
      परिचय - बस एक सीधा सादा इंसान हूँ. ज़िन्दगी को देखता हूँ और शब्द निखर जाते है.
      धन्यवाद.

      Delete
  39. comment on FB :

    Dagny Sol

    विरह की पीड़ा की अभ्व्यक्ति सुंदर की है आपने विजयजी..

    ReplyDelete
  40. प्रेम की गहन अनुभूति ,बहुत सुंदर रचना
    बधाई


    आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करें
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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    Replies
    1. ज्योति जी , कमेंट के लिए आपका धन्यवाद.
      जरुर आऊंगा आपके ब्लॉग पर सर .

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  41. भावनाओं की प्रखर अभिव्यक्ति

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  42. अक्सर मैं ये पूछता हूँ कि तुम क्यों जुदा हो गयी ?
    अक्सर मैं बस अब उदास ही रहता हूँ
    अक्सर अब मैं जिंदा रहने के सबब ढूंढता हूँ ....
    विरह की वेदना भी कितना व्याकुल बना देती है,कि इंसान और कुछ सोच ही नहीं पाता
    विजयजी अच्छी रचना हेतु बधाई स्वीकार करें

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    Replies
    1. महेंद्र जी. शुक्रिया सर . वेदनाये ऐसी ही होती है ..

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  43. यादों में घुमती हर पंक्ति...
    किसी के चले जाने पर बस यादों की एक किताब ही तो साथ घुमती है ज़िन्दगी के हर मोड़ पर ...
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...

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    Replies
    1. शुक्रिया तनुज जी . आपने बिलकुल सच कहा है ,.

      धन्यवाद.

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  44. comment by email :

    प्रिय बन्धु! आपकी कविता पढ़ी। अच्छी लगी। मुक्त छन्द कविता के अक्सर गुण कविता में विद्यमान है। आज के तनावपूर्ण समय में प्रेम-कविता की रचना अपने आप में एक बड़ा काम है। ये भी कहा जा सकता है कि आजकल 'प्रेम' की खोज कविता में ही संभव है वरना वास्तविक जीवन में तो 'प्रेम' प्रसाद की चीज बनकर रह गई है। आपकी कविता की अंतिम पंक्तियां खुद इसका प्रमाण है। कुल मिलाकर जुगाड़ की नहीं, मन की बात है आपकी कविता। प्रयास जारी रखें। धन्यवाद,
    आपका,
    तेजपाल सिंह 'तेज'

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    Replies
    1. तेजपाल जी ,
      आपके मेल ने मुझमे प्राण फूंक दिए .. आप यूँ ही अपना आशीर्वाद बनाए रखे.
      प्रेम तो है ही जीवन में . बस हम सब उसे भुला देते है , ज़िन्दगी के rat-race में.
      शुक्रिया आपका फिर से.
      आपका
      विजय

      Delete
  45. comment by email :

    Vijay Ji,

    Aapki kavita padhi.. Badi sundar kavita hai.. Isi tarah likhte rahiya..

    Nilabh

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    Replies
    1. शुक्रिया नीलभ जी . आपका प्रोत्सहन ही मेरा प्रसाद है .
      धन्यवाद.
      विजय

      Delete
  46. आदरणीय विजय जी आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ बहुत ही मार्मिक दिल के करीब एक कविता पढने को मिली --अक्सर बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर फोलो भी कर लिया है अब आप मेरे ब्लॉग के एग्रीगेटर पर हैं बहुत बहुत बधाई आपको

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया राजेश कुमारी जी , आपके कमेंट ने मेरा उत्साह बढ़ाया ही है . शुक्रिया

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  47. comment by email :

    beautiful poetry
    Azeez Belgaumi

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  48. Comment on FB :

    Shahnaz Imrani अक्सर मैं ये सोचता हूँ की तुम न मिली होती तो ज़िन्दगी कैसी होती .
    अक्सर मैं ये सोचता हूँ कि तुम मिली ही क्यों ;
    अक्सर मैं ये पूछता हूँ कि तुम क्यों जुदा हो गयी ?
    अक्सर मैं बस अब उदास ही रहता हूँ
    अक्सर अब मैं जिंदा रहने के सबब ढूंढता हूँ ....
    अक्सर........Heart touching poetry ....Thanx for sharing

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    1. शुक्रिया शहनाज़ जी . आपको कविता अच्छी , लगी मुझे बड़ी ख़ुशी हुई . शुक्रिया जी

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  49. comment by email :

    आदरणीय सप्पत्ति जी
    जो आँखें कभी बरसात में भीगी थी फिर भीग जाती हैं आपकी कविता पढ़ कर
    हर बारिश की बूँद भी आँसू बन जाती हैं आपकी कविता पढ़ कर
    अच्छी कविता.
    भूपेन्द्र कुमार दवे
    Executive Director (Retd.)

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    Replies
    1. आदरणीय भूपेंद्र जी. आपके कमेंट ने मन को भिगो दिया !
      धन्यवाद. यूँ ही आशीर्वाद बनाए रखे .
      विजय

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  50. comment on FB :

    Khan Anwar वास्तविकता यह है कि अतीत के साथ यों लिपट कर जीवन को जीना ...जीना नहीं रेंगना है । आखिर कब तक इस तरह वीरान हो चुके भूत से चिपके रहेंगे । लेखन विवेचन एक पृथक अध्याय है परन्तु वर्तमान की प्रत्येक प्रसन्नता को अतीत की बोझिल अलगनियों पर लटका देना हमारी कापुरुषता किंवा आत्म विश्वास हीनता का प्रतीक तो नहीं ?

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    Replies
    1. Khan Anwar : खान साहेब, बात तो आपने खरी ही कही है पर दिल है की मानता नहीं ... पुरानी यादे जरुरी है जीने के लिए ... नहीं ..जीवन में यादो का और ख़ास तौर पर अच्छी यादो का होना बहुत जरुरी है . पर आपकी बात भी बिलकुल सही है .हम उदासियो के साथ तो नहीं जी सकते है . शुक्रिया

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  51. बहुत खूब जनाब,, आपकी कविता और तस्वीर दोनों बहोत खूबसूरत हैं..गुज़रे हुए लम्हे खट्टी मीठी यादों का जरोखा समान,,उसमे झाँकने से कभी मन खुश तो कभी उदास होता है..

    फिर से गुज़रे हुए सालों से मिला दिया उसने
    ----खुदगर्ज़ "नदीम"

    फिर से गुज़रे हुए सालों से मिला दिया उसने,,
    पल्बर की थी मुलाकात, मगर अहसास दिला दिया उसने,..
    क्या खोया मैंने और क्या पा लिया उसने,
    वोही जाने जिसका है ये खेल, बड़ी बेदर्दी से खेला मगर उसने,
    मैंने चाँद-तारों की तो नहीं की थी बातें कभी..
    मैं ज़मीं का था, सितारे ज़मीं पर दिखा दिया उसने..
    हकीकत “नदीम” तेरे फसाने की कोई जानता नहीं,
    पूछते हैं सभी मगर किसलिए, क्यूँ अर्श से फर्श पर ला दिया उसने....

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    1. शुक्रिया नदीम भाई .. !!

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  52. विजय साहेब आपकी कविता और तसवीर दोनो ही बहुत खुबसुरत हैं
    फिर से गुज़रे हुए सालों से मिला दिया उसने

    ----खुदगर्ज़ नदीम

    फिर से गुज़रे हुए सालों से मिला दिया उसने,,
    पल्बर की थी मुलाकात, मगर अहसास दिला दिया उसने,..
    क्या खोया मैंने और क्या पा लिया उसने,
    वोही जाने जिसका है ये खेल, बड़ी बेदर्दी से खेला मगर उसने,
    मैंने चाँद-तारों की तो नहीं की थी बातें कभी..
    मैं ज़मीं का था, सितारे ज़मीं पर दिखा दिया उसने..
    हकीकत “नदीम” तेरे फसाने की कोई जानता नहीं,
    पूछते हैं सभी मगर किसलिए, क्यूँ अर्श से फर्श पर ला दिया उसने....

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    1. नदीम भाई , ज़िन्दगी बीते हुए लम्हों में हि जिया करती है न ..

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  53. email commemt :

    Bhai Vijayji, aajkal bas jeene ke sabab hum sabhi dhundhte rahte hain....aksar udasi hi tanhai ke sath rahti hai...aur yadon ke hujoom....achi kavita ....bas man ko abhiwyakt karte rahe....padhna acha lagta hai....shesh samanya....

    Shilpa Sontakke

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    1. शुक्रिया शिल्पा जी .

      बस अभिव्यक्ति को शब्दों में ढाल देता हूँ.
      धन्यवाद.

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  54. आदरणीय आपकी यह उन्नत प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर 'रचनाशीलता की पहुंच कहाँ तक?' में लिंक किया गयी है।
    आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया http:/nirjar-times.blogspot.com पर सादर आमंत्रित है।
    सादर

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