Thursday, July 31, 2008

गाड़ी

This is one of my very best love poem.. this is unusally a long poem , i sugeest flow with the words , so that you can feel the emotions...

कल खलाओं से एक सदा आई कि ,
तुम आ रही हो...
सुबह उस समय , जब जहांवाले ,
नींद की आगोश में हो; और
सिर्फ़ मोहब्बत जाग रही हो..
मुझे बड़ी खुशी हुई ...
कई सदियाँ बीत चुकी थी ,तुम्हे देखे हुए !!!

मैंने आज सुबह जब घर से बाहर कदम रखा,
तो देखा ....
चारो ओर एक खुशबु थी ,
आसमां में चाँद सितारों की मोहब्बत थी ,
एक तन्हाई थी,
एक खामोशी थी,
एक अजीब सा समां था !!!
शायाद ये मोहब्बत का जादू था !!!

मैं स्टेशन पहुँचा , दिल में तेरी तस्वीर को याद करते हुए...
वहां चारो ओर सन्नाटा था.. कोई नही था..

अचानक बर्फ पड़ने लगी ,
यूँ लगा ,
जैसे खुदा ....
प्यार के सफ़ेद फूल बरसा रहा हो ...
चारो तरफ़ मोहब्बत का आलम था !!!

मैं आगे बढ़ा तो ,
एक दरवेश मिला ,
सफ़ेद कपड़े, सफ़ेद दाढ़ी , सब कुछ सफ़ेद था ...
उस बर्फ की तरह , जो आसमां से गिर रही थी ...
उसने मुझे कुछ निशिगंधा के फूल दिए ,
तुम्हे देने के लिए ,
और मेरी ओर देखकर मुस्करा दिया .....
एक अजीब सी मुस्कराहट जो फकीरों के पास नही होती ..
उसने मुझे उस प्लेटफोर्म पर छोडा ,
जहाँ वो गाड़ी आनेवाली थी ,
जिसमे तुम आ रही थी !!
पता नही उसे कैसे पता चला...

मैं बहुत खुश था
सारा समां खुश था
बर्फ अब रुई के फाहों की तरह पड़ रही थी
चारो तरफ़ उड़ रही थी
मैं बहुत खुश था

मैंने देखा तो , पूरा प्लेटफोर्म खाली था ,
सिर्फ़ मैं अकेला था ...
सन्नाटे का प्रेत बनकर !!!

गाड़ी अब तक नही आई थी ,
मुझे घबराहट होने लगी ..
चाँद सितोरों की मोहब्बत पर दाग लग चुका था
वो समां मेरी आँखों से ओझल हो चुके था
मैंने देखा तो ,पाया की दरवेश भी कहीं खो गया था
बर्फ की जगह अब आग गिर रही थी ,आसमां से...
मोहब्बत अब नज़र नही आ रही थी ...

फिर मैंने देखा !!
दूर से एक गाड़ी आ रही थी ..
पटरियों पर जैसे मेरा दिल धडक रहा हो..
गाड़ी धीरे धीरे , सिसकती सी ..
मेरे पास आकर रुक गई !!
मैंने हर डिब्बें में देखा ,
सारे के सारे डब्बे खाली थे..
मैं परेशान ,हैरान ढूंढते रहा !!
गाड़ी बड़ी लम्बी थी ..
कुछ मेरी उम्र की तरह ..
कुछ तेरी यादों की तरह ..

फिर सबसे आख़िर में एक डिब्बा दिखा ,
सुर्ख लाल रंग से रंगा था ..
मैंने उसमे झाँका तो,
तुम नज़र आई ......
तुम्हारे साथ एक अजनबी भी था .
वो तुम्हारा था !!!

मैंने तुम्हे देखा,
तुम्हारे होंठ पत्थर के बने हुए थे.
तुम मुझे देख कर न तो मुस्कराई
न ही तुमने अपनी बाहें फैलाई !!!
एक मरघट की उदासी तुम्हारे चेहरे पर थी !!!!!!

मैंने तुम्हे फूल देना चाहा,
पर देखा..
तो ,सारे फूल पिघल गए थे..
आसमां से गिरते हुए आग में
जल गए थे मेरे दिल की तरह ..

फिर ..
गाड़ी चली गई ..
मैं अकेला रह गया .
हमेशा के लिए !!!
फिर इंतजार करते हुए ...
अबकी बार
तेरा नही
मौत का इंतजार करते हुए.........

5 comments:

  1. vijay kumar ji sabse pehle iss anoopam sahityeek krati ke liye sadhuwaad.....aap kehte hain kavita lambi hai...mujhe to puri ek umr kuch sabdon main simtee lagi.....dil ki tadap ke aur bichhoh ke inn bedard lamho ka isse behtar varnan maine nahi padha....wakayee ye krati durlabh aur anoopam hai......behad bhaaw pooran!

    ....Ehsaas!

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  2. फिर सबसे आख़िर में एक डिब्बा दिखा ,
    सुर्ख लाल रंग से रंगा था ..
    मैंने उसमे झाँका तो,
    तुम नज़र आई ......
    तुम्हारे साथ एक अजनबी भी था .
    वो तुम्हारा था !!

    sir mujhe aapki ye panktiyan bahut pasand aayi hain ...........

    bahut hi umda hain ........

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  3. intzaar ki had hai aur pyar ki had hai............yeh kavita.
    jab kisi ki yaadon mein koi hota hai to shayad yahi hota hai...........intzaar sadiyon lamba
    janmon lamba intzaar ........milan ki chaah mein.

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