दोस्तों , मेरी नयी नज़्म " आओ सजन " आपके खिदमत में पेश है ....उम्मीद है की हमेशा की तरह आप सबका प्यार और आर्शीवाद इस कविता को मिलेंगा . ये नज़्म एक सूफियाना भक्ति गीत है . इस कविता का जन्म एक गुरूद्वारे में हुआ था ..मैं एक कीर्तन सुन रहा था ..उसमे ये शब्द थे " आओ सजन " . ये शब्द मन में बस गए और मुझे बहुत दिनों तक मुझे haunt करते रहे . और आज इसे आप सबको नज़र कर रहा हूँ .. दोस्तों ; मैं ये नज़्म ; आदरणीय प्राण शर्मा जी , आदरणीय महावीर जी , आदरणीय तेजेंद्र जी और मेरे मित्र मुफलिस जी और सुशील छोक्कर जी को समर्पित कर रहा हूँ ...ये सारे गुरु -उस्ताद और मेरे प्रिय मित्र है और देखा जाए तो उस्ताद और मित्र भी मेरे लिए सजन ही है.... दोस्तों ,जब मैंने इस नज़्म को complete किया तो एक रुहानी positive energetic aroma मेरे आस पास था .मुझे उम्मीद है की आप के साथ भी कुछ ऐसा experience हो ..... I am sure that this poem will take you to an inner journey of soul...........MAY GOD BLESS YOU ALL. आपके प्रेम के लिए ,आप सब का आभार !!!
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !
तेरे दर्शन को तरसे है ; मेरे भीगे नयन !
घर , दर सहित सजाया है ; अपने मन का आँगन !!
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!
तू नहीं तो जग , क्यों सूना सूना सा लगता है !
तू नहीं तो हर कोई , पराया सा नज़र आता है !
इतनी बड़ी दुनिया में कौन है यहाँ मेरा ; तेरे बिन !
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!
बहुत घूम चूका मैं ; मंदिर ,मस्जिद और गुरुद्वारे !
किसी अपने को न मिल पाया ; मैं किसी भी द्वारे...!
कहीं भी तू न मिला , भटके है हर जगह मेरा मन !!
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!
जीवन में छाये है उदासी के साये बहुत गहरे !
सबने छला है मुझको तेरे नाम से ; प्रभु मेरे !
अब तो तेरे मेहर की बरसात हो मेरे सूने आँगन !!
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!
बुल्ले शाह ने कहा था ' रमज सजन दी होर '
आज समझा हूँ कि , क्यों खींचे तू मुझे अपनी ओर !
तू ही मेरा सजन ,बस तू ही मेरा सजन !
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!
बहुत ही बेहतरीन रचना लिखी है आपने। इसकी लय पढते हुए कानों में रस सा घोल रही है। मजा आ गया विजय जी पढकर।
ReplyDeleteजीवन में छाये है उदासी के साये बहुत गहरे !
सबने छला है मुझको तेरे नाम से ; प्रभु मेरे !
अब तो तेरे मेहर की बरसात हो मेरे सूने आँगन !!
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!
वाह क्या बात है। अद्बुत।
सूफियाना अंदाज और कोमल सोच विजय जी की कविताओं की विशेषता हैं। बधाई।
ReplyDeleteaao sajan
ReplyDeleteye ek sufiyana andaz ki bahut hi sunder likhi gayi kavita haivijayjee ney bahut hi sunder shabo main iss ey likha hai
bilkul leen huey se jan padtey hain.
बहुत ही बेहतरीन नज्म है विजय जी आश्चर्य में हूँ की आप का ये पक्ष भी है बहुत खूब गुरु अब मेरे अंतरात्मा भी एक अजीब सी प्याश महशुश करने लगी है अपने महबूब से मिलने की जो निरंकार अविनाशी ब्रह्म है
ReplyDeleteएक छोटी सी मेरी कविता आप के सम्मान में
इस हरियाली के,,
पीछे का सत्य,,,
कुछ और है ,,,
जीवन के वहाव के विपरीत ,,
जो मद्धिम सा है संगीत ,,
उसका तथ्य ,,
कुछ और है ,,,
निश्चल बादल के नीचे,,,
जो बिजली की कड़क है ,,,
उसका कथ्य,,
कुछ और है,,
पर्वत की चोटी से गिरता झरना,,
झरने के अंतस की धरना ,,
उसका सत्य ,,
कुछ और है,,
इस पवनी का शीतल वहना,,
कानो में धीमा सर सर करना ,,
जीवन के सत से अबगत कराती ,,
उसके कहने का कथ्य ,,
कुछ और है ,,,
जब व्याकुल मन की उठती तरंग ,,
छाता मन में सत का रंग,,,
छिड़ती अंतस में धीमी जंग ,,,
होती मन की हार जीत ,,,
इस अंतर ध्वनि का सत्य ,,
कुछ और है ,,,
जब खिलता मन देख सुख ,,,
इस सुख के पीछे का क्रंदन ,,
जिसमे डूबा है कोई मन ,,
उस दुखिता मन का सत्य ,,
कुछ और है ,,,,,,,
bahut hi sunder rachna likhi hai blkul sufiyana rang main rangi
ReplyDeletepad kar ras a gaya.dhaneyvad vijay jee
Sunder rachnaa, badhai vijay Ji.
ReplyDeleteSufiyan andaz ki ek behatreen rachna laye hain aap is baar.Meri badhai sweekarein.
ReplyDeletesufiyana andaaj kaphi achchha laga....
ReplyDeleteजीवन में छाये है उदासी के साये बहुत गहरे !
सबने छला है मुझको तेरे नाम से ; प्रभु मेरे !
अब तो तेरे मेहर की बरसात हो मेरे सूने आँगन !!
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह! बहुत ही बढिया। भाव पूर्ण सूफी रचना लिखी है। बहुत अच्छी लगी।लगता है कहीं भीतर बहुत गहरे से निकली है आप की यह रचना।बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteजीवन में छाये है उदासी के साये बहुत गहरे !
सबने छला है मुझको तेरे नाम से ; प्रभु मेरे !
अब तो तेरे मेहर की बरसात हो मेरे सूने आँगन !!
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!
Vijay ji,
ReplyDeletemai kya kahoon aapke is poem ke bare me ..
bahut hi achcha, gungunane yogy
bas bhagwaan se prathana hai aise hi aapki lekhani din pratidin logo ka manorangan karata rahe,,
bahut bahut badhayi ho.
कविता ने मुझे ओंकारे के करीब ला दिया। मैं ओंकार बहुत ही तनमयता से सुना करता हूं। और ओंकारे की ही तरह आपकी कविता का भी असर हुआ है। कुछ-कुछ पंक्तियां तो बिल्कुल आध्यात्म की ओर ले जाती हैं।
ReplyDeleteसोचै सोचि न होवई जे सोची लखवार।
चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिवतार।
भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पुरीआ भार।
सहस सिआणपा लख होहि ट इक न चलै नालि।
किव सचिआरा होईऐ किव कूङै तुटै पालि।
हुकमि रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि॥
kavita ke bhav bahut gahre hain.........milan ki tadap drishtigochar ho rahi hai.....ek hi to param lakshya hai hum sab ka apne sajan ,apne priyatam se milkar poorna hona..........achchi rachna.........badhyai sweekarein.
ReplyDeleterecd. by email from Mr. Shyam Saka......
ReplyDeleteप्रिय भाई
अच्छए भाव हैं रचना में मगर यह नज्म न होकर नव-गीत ही कहला सकेगी।
बहुत ही सुंदर रचना । बधाई ।
ReplyDeleteतू नहीं तो जग , क्यों सूना सूना सा लगता है !
ReplyDeleteतू नहीं तो हर कोई , पराया सा नज़र आता है !
इतनी बड़ी दुनिया में कौन है यहाँ मेरा ; तेरे बिन !
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन
विजय जी.......... सजन प्रभू हो, प्रेमिक या सजनी उया मित्र या कोई और........... सजन के बिन ये जीवन सूना ही होता है......... कुछ उदासी लिए लगती है ये रचना..... पर बखूबी अपना रंग लिए हुवे है..... लाजवाब लिखा है
You write very well Vijay.
ReplyDeleteGreat lines.
बहुत ही सुन्दर ....मन भावन.......सकुन भरा......मन को शीतलता से भरता हुआ गीत
ReplyDeleteअब तो मेरे घर आओ सजन !!!
ReplyDeleteबेहतरीन कविता,
बधाई ।
जीवन में छाये है उदासी के साये बहुत गहरे !
ReplyDeleteसबने छला है मुझको तेरे नाम से ; प्रभु मेरे !
अब तो तेरे मेहर की बरसात हो मेरे सूने आँगन !!
बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति.......
its is really nice, very very very good...
ReplyDeleteविजय जी आपकी रचना पढ़कर इस्कोन की याद आ गयी जहाँ हरी धुन में खोकर इंसान एक अद्भुत शक्तिका अनुभव करता है ,वही आनंद आपकी कविता से मिला .उमदा .हरी आओ -हरी आओ ,हरी तुम हरो जनन की पीर .
ReplyDeleteभाई विजय कुमार जी
ReplyDeleteएक अच्छी सूफ़ियाना रचना के लिये बधाई। उम्मीद है कि आप ऐसे ही रचनात्मक ऊर्जा अपने आसपास वाले मित्रों की ओर भी प्रेषित करते रहेंगे।
आपने इसे तीन तीन प्रवासी शर्मा बंधुओं को समर्पित करके उनका मान भी बढ़ाया है।
लिखते रहिये।
तेजेन्द्र शर्मा
खूब तरन्नुम से लिखा है आपने । आभार ।
ReplyDeletebahut badhiya rachana hai vijay ji .jo mandir masjid aur gurudware men na mila wo kahi aapke bheetar hi to nahi hai...?pukar men vyakulta saf dikhai deti hai .bahur sundar rachana .badhai
ReplyDeleteहे हरि! तुम आनंद-घन,
ReplyDeleteमैं चातक हूँ नाथ.
प्यास मिटा दो दरश की,
तब हो 'सलिल' सनाथ.
दुनिया ने छल-कपट कर,
किया 'सलिल' को दूर.
नेह-लगन तुमसे लगी,
अब तक था मैं सूर.
आभारी हूँ सभी का,
तुम ही सबमें व्याप्त.
दस दिश में तुम दिख रहे,
शब्दाक्षर हरि आप्त.
मैं-तुम का अंतर मिटा,
छाया देव प्रकाश.
दिव्य-नर्मदा नाद सुन,
'सलिल' हुआ आकाश.
aao sajan ek sundar or anupam geet hai jo ek sadabahar geet hai .
ReplyDeletebhot hi umda..
umeed hai aapki rachnaye asse hi padne ko milti rahegi
namshkaar
Deepak"bedil"
तू नहीं तो जग , क्यों सूना सूना सा लगता है !
ReplyDeleteतू नहीं तो हर कोई , पराया सा नज़र आता है !
इतनी बड़ी दुनिया में कौन है यहाँ मेरा ; तेरे बिन !
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन
भई वाह्! विजय जी, बेहद उम्दा रचना....आपका ये सूफिआना अन्दाज तो कमाल है!
aap ki ek khas ada hai jo prabhavit karatii hai.
ReplyDeleteek salaah bhii dungaa agar anyathaa naa le...any vishhayon par bhii kikhane kaa prayaas karen.
shubhkaamnaaye
behatareen rachna hai satpathi ji, isi sandarbh men mere blog par "mere shyaam" dekhen. mujhe ummeed hai usmen aapko aisa hi ahsaas hoga.
ReplyDeletedhanyawaad.
www.swapnyogesh.blogspot.com
recd. by email from Mr. Rahul Kundra....
ReplyDeletebahut khub likh hai, aap bahut badiya lakhehak hai...
जीवन में छाये है उदासी के साये बहुत गहरे !
ReplyDeleteसबने छला है मुझको तेरे नाम से ; प्रभु मेरे !
अब तो तेरे मेहर की बरसात हो मेरे सूने आँगन !!
आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!!
बहुत सुन्दर अध्यात्म रस मे ले जाती कवित के लिये आभार्
recd. by email from Ms. Rachna Srivastava.....
ReplyDeleterespevted vijay ji;
aap bahut hi achchha likhte hai .ye aao sajan aap ka ekdam alag roop hai bahut hi khoob.
itna pyara khayal hai .padh ke achchha laga
saader
rachana
vijay ji kya hi behtarin line hain aapne to ik bar phir se hindi ke chayawad ke kavitaye yaad dila deen. sach men bohot hi sundar ban padi hain sajan ke intazar me aap ki linen yani shabad ke zariye aap ne kya hi behatrin kayanyat lagaya hai...
ReplyDeleteविजय भाई ,
ReplyDeleteईश्वर के परम तत्त्व की प्राप्ति के लिए जब् आत्मा अकुलाती है ,
खुदा से मिलने को जब् रूह तड़पती है तब ऐसी कविता जन्मती है
आप का मार्ग प्रशस्त हो ..
इस साद` आशा के साथ , शुभकामना ..
- लावण्या
बहुत ही अच्छी लगी आपकी रचना,,जैसे कोई मुसाफिर अपने अनुभव बाँट रहा हो ...!सरल सीधे शब्दों में आपने बहुत कुछ कह दिया है...!
ReplyDeleteविजय जी आपकी कविताओं की दीवानगी बढाती जा रही है .... ये मुखडा ही अपने आप में मुकम्मल है आवो सजन... कमाल की बात करी है आपने .. बहोत ही खुबसूरत भावः और उतने ही सुन्दर शब्दों का संयोजन है ....बहोत ही खूबसूरती से प्रस्तुति दी है आपने ...
ReplyDeleteढेरो बधाई आपको...और आपके ब्लॉग पे आते ही ये सोंग.... कैसे चल रहा है ... यार ये तो और भी मजेदार बात है और मस्ती सी छ गयी... वाह दिल वाह वाह कह उठा
बधाई
अर्श
VIJAY JEE
ReplyDeleteAAP TO SOOFEE RANG MEIN
RANG GAYE HAIN.BHAAON KEE SAATH
SAATH SHABD BHEE JHOOM RAHE HAIN.
MUN SE NIKLE HUE ITNE SUNDAR KEE
RACHNAA KABHEE-KABHEE HOTEE HAI.
MEREE BADHAAEE SWEEKAR KIJIYE.
vijay ji, bahut hi adbhut rachana hai ye......padhke mann khush ho gaya!!!!
ReplyDeletenice one..
ReplyDeletelast pare is gud..
dont knw much abt sufi things...
bt still its a nice try.. :)
... अंतरमन से निकली रचना है, बधाईंयाँ !!!
ReplyDeleteअद्भुत अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबेहतरीन भाव और सूफिआना अन्दाज़.
bheetree pyaas aur bheetreeprakaash ka adbhut aur anootha sangam kara diya hai aapne
ReplyDeleteye vahi kar sakta hai jo apne pyaare ka pyaasa ho aur bulle ki bhaanti poorna samarpit ho...
ye mamlaa kavita ka nahin aantrik anubhav ka hai isliye main aapki kavita ko nahin aapki pyaas ko zyaada mahatva dunga
kavita toh uttam hai hi.............
badhaai !
बहुत ही खूबसूरत और भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteजा मैं सबक़ इश्क़ दा पढिया
ReplyDeleteमस्जिद कोलों जिउड़ा डरिया
पूछ पूछ ठाकुर द्वारे वडिया
जित्थे वजदे नाद हज़ार
इश्क़ दी नवियों नवीं बहार
विजय भाई !
आज आप की इस अद्वितीय रचना को पढ़ कर
बरबस ही "बुल्ले शाह" की उपरोक्त पंक्तियाँ याद आ गईं.. जिसे प्रेम का रहस्य ज्ञात हो जाता है उसे परमेश्वर का प्रकाश अनुभव होने लगता है. अध्यात्म यात्रा की जटिलताओं से दो-चार
होते हुए मनुष्य सदगुरु से निवेदन करता है
कि हे प्यारे ! मुझे अपने आप में मिला ले, पूरन्तय अपने साथ .
आपकी इस रचना में ऐसे भाव , विचार और अनुभव पा कर असीम आनंद की अनुभूति हुई . दुनिया में रहते हुए अपनी सभी जिम्मेदारियों
इमानदारी से निभाते हुए परमार्थ के विषय में सोचते रहना अच्छा शगुन ही कहलाता है .
आपके मन में बसी पावन भावनाओं को सभी अछि तरह से पढ़ पा रहे हैं ...बधाई स्वीकारें .
---मुफलिस---
विजय जी मैं हैरान हूँ कल मैंने आपकी रचना पर जो टिपण्णी की थी वो आज कहीं नजर नहीं आ रही...अब जो कल लिखा उसे एक दम वैसे ही तो नहीं लिख सकता लेकिन कुछ ऐसा ही कहा था:
ReplyDelete"जब कोई रचना अपने गुरुओं और मित्रों को समर्पित की जाती है वो खुद -ब- खुद सूफियाना रंग अख्तियार कर लेती है...आप का ये सार्थक प्रयास बहुत अच्छा लगा...आप दिल से लिखते हैं इसलिए असरदार होती हैं आपकी रचनाएँ...लिखते रहिये..."
नीरज
पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ कि आपको मेरी शायरी पसंद आई! बस आपकी दुआओं का असर है जो मैं थोडी बहुत लिखने की कोशिश करती हूँ पर आपके मुकाबले कुछ भी नहीं! मैं पेंटिंग करती हूँ इसलिए सोचा की शायरी के साथ साथ अपनी बनाई हुई पेंटिंग अगर दूँ तो और अच्छा लगेगा!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने अपनी दिल की गहराई से! बेहद पसंद आया मुझे! आपकी कविता तो काबिले तारीफ है!
VIvJAY JI,
ReplyDeletenamaskar.Thanks for your kind comments.
I have no capacity to comment on a poet like you of such brilliance and stature...i could only express that it touched my heart.Beautiful.Regards.
Aakhri verse bahut khoobsoorat !
ReplyDeleteGod bless
RC
simple yet powerful words.mere reference of bulleshah has the capacity to take anyone to an altogether new world and the additional thrust of your words transports one to a new abode.
ReplyDeleteबुल्ले शाह ने कहा था ' रमज सजन दी होर '
ReplyDeleteआज समझा हूँ कि , क्यों खींचे तू मुझे अपनी ओर !
बुल्ले शाह के बहाने बहुत सुन्दर और दिल की कह दिया
बहुत ही सुन्दर निशब्द कर दिया आपकी इस रचना ने .बहुत सुन्दर लिखी है आपने यह सूफियाना रचना .शुक्रिया
ReplyDeleteBhakti me itni shakti to hotee hi hai ki wah prano ko aloukik rasanubhooti de jati hai...
ReplyDeleteIshwar ko samarpit aapki yah rachna bahut hi achchi lagi...
aap hindi me likhate hain wo hi badi baat hai..
ReplyDeleteitna khobb likhate hain..
mera naman aapko..
Thank you for a great poem Vijay, I can totally relate to it right now :)
ReplyDeleteसजन के भटके मन को
ReplyDeleteनमन बार बार नमन
सजन समा गया है मन में
नमन बार बार नमन
सजन बन रहा है सज्जन
इस सज्जन को नमन।
Hamesha ki tarah sundar rachna...mai bhee hamesha kee tarah derse aayee hun comment dene..naye alfaaz kahan se laaun?
ReplyDeletesnehsahit
shama
विजय जी,
ReplyDeleteवाकई बड़ी दार्शनिकता से लिखा है आपने.
बधाई , इतने अच्छे विओछारों के लिए .
- विजय
आपको मिली इतनी सारी बधाईयां इस बात का सबूत है, कि आपके द्वरा लिखी गयी कविता का अंदाज़ सबसे अलग है, और सीधे दिल को छू जाती है.
ReplyDeleteआपकी ये कविता भी उम्दा ही है. आपने अनुरोध किया है कि इसको तर्ज़ बनाकर गाऊं. यदि समय का तकाज़ा नही रहा तो अवश्य मुझे खुशी होगी.
यह सूफियाना अंदाज़ में लिखी हुई कविता पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे आपके ब्लॉग पर नहीं, स्वयं के दिल के मंदिर में सुन रहा हूँ. एक रूहानियत छा जाती है. चित्र को देख कर ऐसा लगा जैसे यही वह कल्पतरु है जिसके ऊपर एक दिव्य-ज्योति का सा भान हो रहा है. उस सजन से मिलन के लिए जो अकुलाहट बयान की है हृदय को विह्वल कर देती है.
ReplyDeleteविजय जी, कविता इतनी सुन्दर है कि कहने के लिए निशब्द हूँ.
बहुत ही सुंदर,ऎसा लगा जेसे कोई भजन सुन रहै हो. धन्यवाद
ReplyDeleteA perfect blend of sufi+feelings!!!!
ReplyDeleteएक वेहतरीन सूफियाना नवगीत है. प्रिय या सजन के रूप मैं प्रभू की कल्पना है और उनसे मिलन का सतत आग्रह.
ReplyDeleteआपने पहली बार कुछ ऐसा लिखा है..मतलब इस तरहां का......बहुत ही खुबसूरत.....आपको पता है मैंने आपकी ये नज्म कल शाम पड़ ली थी....लेकिन विचार अब रख रहा हूं.......ये शब्द रात भर मेरे जेहन मैं रहे और एक गीत समझ कई बार गुनगुनाता रहा .....
ReplyDeleteमन मैं आया अगर गीतकार होता तो....इस नज्म को अपने होठों से पूरी दुनिया को सुनाता......
दिल को छु लिया........:) :)
recd. by email from Mr. Subhashish chatopadhyaaya ....
ReplyDeleteread the poem.
Liked it
Thanks
Bilkul dil se nikali aawaz hai.Adbhut.
ReplyDeletebahut hi khobsoorati se
ReplyDeleteshbdon ko piroya hai
aapne.....
VIJAY JI
aapko dil se bdhai........
bhai vijayji,
ReplyDeleteprabhu charno me arpti jo bhi hota he vo prasaad ban jaataa he/ aapki rachna me kavitva vibhaag ki baat is baar me isliye nahi karunga kyoki prasaad me gun dosh nahi dekhe jaate, sirf use swikaar liya jaataa he/ so swikarya///
dhnyavaad/
वाह वाह... पढ़ के मन को बहुत आनंद और चैन आया..
ReplyDeleteसब लोग बहुत कुछ लिख चुके हैं..
मैं इतना ही कहूंगा...
चौथा खंड बहुत ही सुन्दर था...
अद्भुत!!!
जयंत
it is one of the best poem i came across it touched me
ReplyDeletevery well written
i loved it
thanks for dropping by..
do visit my other blog - You Never Know
Pallav
अरे वाह, टिप्पणियों की बरसात।
ReplyDeleteफिर मैं आपकी तारीफ न करूं,
क्या है मेरी इतनी औकात।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत ही अच्छी रचना है | काश "सजन" मेरे भी "घर" में आयें | भटक तो मैं भी बहुत लिया हूँ :-)
ReplyDeleteसाथ ही धन्यवाद मेरे ब्लॉग पर आने का; ख़ुशी हुई ये जानकार कि आपको ताओ ते चिंग पढ़ना अच्छा लगा |
Really nice peom...dont know hw to react...
ReplyDeleteReally amazing poem..fantastic expression of love..dont have word to comment..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना आभार
ReplyDeleteबेहतरीन रचना अद्बुत
ReplyDeleteअति सुन्दर!
ReplyDeletesir itna accha kaise likh lete ho...
ReplyDelete...kuch hint to do?
maza aa gaya !!!
ati sundar....
...adbhoot!!
mujhe to bulle shah se leker mira kabir sab yaad aa gaye....
...aisi kavitaien zayada likhenge to logon ko pagal kar denge aap....
...deweena bana denge !!
badhai...
सजन आएंगे...
ReplyDeleteइंतज़ार कीजिये..
पर ये पढने से ज्यादा अच्छी आपके लबों से सुन कर लगी थी...
सुंदर...
मीत
I read hindi with a little difficulty but its worth it.. awesome blog..
ReplyDeleteDark Waters.. www.downindark.blogspot.com
recd. by email from mr. yogendra Mudgil.....
ReplyDeleteSapatti ji,
अच्छी रचना के लिये बधाई . मेल-बाक्स कम ही खोलता हूं इसलिये आपकी रचना देर से पढ़ पाया उदारता बरतें आपकी रचनाऒं का कथ्य हमेशा ही प्रभावित करता रहा है एक समस्या जरूर है कि आपका ब्लाग एक्सप्लोरर पर ठी से नहीं खुल रहा बार-बार एरर आने के कारण वहां टिप्पणी नहीं कर पाया
--YM
kya bat hai SAJAN...
ReplyDeletekai din se milne nahi aaye.....
yeh padh ke to main apke soofiyana andaz ka kaayal ho gaya hoon........ isse behtareen rachna .........mujhe aisa kagta hai ki shayad hi maine kahin padhi ho.......
ReplyDelete10/10 A+++++++++++++++++++++++
recd. by email from Ms. Anushi .......
ReplyDeleteaapne idhar kuch nahiin likhaa ? kyon? naii kawitaaon ka
intzaar hai . bahut sunder likhte hain aap . hindii bhasha
par aapkii pakad kaabile tariif hai .
shubhkaamnayen .
anushi
"जीवन की सच्चाई
ReplyDeleteसमझ परे,
जिया जो जी-भर
पार लगे ." [सोऽहं]
उपरोक्त पंग्तियों को 'ओशो' नें एक शब्द दिया है 'शाक्षि-भाव'
आपने उस 'सजन' को बुलाने के लिए खूबसूरत प्रार्थना रच दी .
एसी खूबसूरती को नमन और बधाई. [राकेश 'सोऽहं']
विजय जी ,आपने बहुत ही सुंदर लिखा है , भक्ति और वो भी सुफिआना ढंग की का ये सुंदर उदाहरण है .....अति सुंदर ........
ReplyDeleteWhatever U have written in this NAZM is nothing but "Ek ehsaas hai apne pyare se waqt ki talash ka aur kahin na kahin dil ye chahta hai ki woh waqt, woh lamhe phir se paa jaayein to shayad bhatakte mann ko sukoon mil jaayega"
ReplyDeleteSomething which we always remember is nothing but THE LOVE.