Saturday, June 27, 2009
मैं तुमसे प्यार करता हूँ ......
अक्सर मैं सोचता हूँ कि,
मैं तुम्हारे संग बर्फीली वादियों में खो जाऊँ !
और तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम्हे देखूं ...
तुम्हारी मुस्कराहट ;
जो मेरे लिए होती है , बहुत सुख देती है मुझे.....
उस मुस्कराहट पर थोडी सी बर्फ लगा दूं .
यूँ ही तुम्हारे संग देवदार के लम्बे और घने सायो में
तुम्हारा हाथ पकड़ कर चलूँ......
और उनके सायो से छन कर आती हुई धुप से
तुम्हारे चेहरे पर आती किरणों को ,
अपने चेहरे से रोक लूं.....
यूँ ही किसी चांदनी रात में
समंदर के किनारे बैठ कर
तुम्हे देखते हुए ;
आती जाती लहरों से तेरा नाम पूछूँ ..
यूँ ही ,किसी घने जंगल के रास्तो पर
टेड़े मेडे राहो पर पढ़े सूखे पत्तो पर चलते हुए
तुम्हे प्यार से देखूं ..
और ; तुम्हारा हाथ पकड़ कर आसमान की ओर देखूं
और उस खुदा का शुक्रिया अदा करूँ .
और कहूँ कि
मैं तुमसे प्यार करता हूँ....
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
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prem की सुखद abhivyakti.............. samarpan की गहराइयों को छु रही है ये कविता....... गहरा एहसास छिपा है
ReplyDeletekya baat hai sir....aapne toh kamal kar diya..acchi rachna
ReplyDeleteप्यार की अद्भुत अभिव्यक्ति है, विजय जी.
ReplyDeleteयूं ही तुम्हारे संग देवदार के लम्बे और घने सायों में
तुम्हारा हाथ पकड़ कर चलूँ....
और उनके सायों से छनकर आती धूप से
तुम्हारे चेहरे पर आती किरणों को
अपने चेहरे से रोक दूँ.
इन पंक्तियों को पढ़कर गुलज़ार साहब की याद आ गई. अद्भुत लेखन है.
pyar ko abhivyakt karne ki sundar kalpana, achchi hai.
ReplyDeleteविजय भैया की जय हो। अरे कमाल की कविता लिखी आपने। कुछ देर के लिए तो मैं सचमुच देवदार के पेड़ के पास से गुज़रने लगा और फिर धूप से किसी का चेहरा छुपाने की कोशिश करने लगा। वास्तव में आप लोगों को चलाते हुए एक ऐसी दुनिया में ले जाते हैं, जहां आदमी आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में जाने के लिए न तो वक्त निकाल पाता है और न ही अब ऐसी पाकीज़गी बची है प्यार में। आजकल का प्यार तो पार्क में किसी कोने से शुरू होता है और किसी सस्ते से होटल के कमरे के भीतर खत्म हो जाता है। ऐसे दौर में आपकी ये कविता मेरे लिए कोरामिन का काम कर गयी है। खैर, कीप इट अप विजय भैया। पहले मैं आपका प्रशंसक था, लेकिन अब मैं आपका फॉलोअर हूं।
ReplyDeleteखुबसूरत अहसासों की सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteविजय जी बुरा ना मानें..."आपकी मुस्कराहट पर थोडी सी बर्फ लगा दूं"...वाली बात समझ नहीं पाया हूँ...पता नहीं क्यूँ मुझे लगता है जो आप कहना चाहते हैं वो बात स्पष्ट मुझ तक पहुंची नहीं है...इसमें आपका दोष नहीं बता रहा....सिर्फ जो है वो बता रहा हूँ....
ReplyDeleteआप उतरोतर अच्छा लिखें ये कामना करता हूँ....
नीरज
आदरणीय नीरज जी
ReplyDeleteकवि अपनी प्रेमिका की मुस्कराहट को हमेशा के लिए अपने साथ रखना चाहता है ....बर्फ का ख्याल मैंने इसी सिलसिले में इस्तेमाल किया है कविता में ..... this is a distant thought of freezing the emotion of her " monalisa "smile .... आपका आर्शीवाद यूँ ही बना रहे मुझ पर ...
आपका
विजय
प्यार की खूबसूरत मह्क लिए हुए,
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति।
और ; तुम्हारा हाथ पकड़ कर आसमान की ओर देखूं
ReplyDeleteऔर उस खुदा का शुक्रिया अदा करूँ .
और कहूँ कि
मैं तुमसे प्यार करता हूँ.... aap ki rachna bahtreen hai
प्यार जीवन का सबसे बडा अनुभव है, और सबसे शक्तिशाली भी. यह लोगों को आसमान छूने की ताकत प्रदान करता है. जिसने जाना है वही जानता है, बाकी सबके लिये तो सिर्फ अनुमान मात्र है.
ReplyDeleteइस विषय पर आपकी इस हृदयस्पर्शी रचना के लिये अनुमोदन स्वीकार करें!!
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
yun hi tumhara sandesh padhkar , tumhari/aapki kavita padhun, uspar tippni dun , ki kavita bahut achchi lagi, main aapki kavita pasand karta hun..............
ReplyDeletevakai sunder rachna, badhai.
क्या बात है , बहुत सुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद
अच्छी लगी आपकी यह कविता बिजय जी शुक्रिया
ReplyDeleteभाई हम भी आपसे बहुत प्यार करते हैं...
ReplyDeleteसुंदर जज्बात...
बहुत अच्छे लगे..
मीत
यूँ ही ,किसी घने जंगल के रास्तो पर
ReplyDeleteटेड़े मेडे राहो पर पढ़े सूखे पत्तो पर चलते हुए
तुम्हे प्यार से देखूं ..
vijay ji
kavita sachmuch bahut achchhi lagi.
इतनी सहजता से अपने प्यार के एहसास को व्यान कर दी है कि उस क्षण को सलाम क्योकि थोडी रुहानी पल बन गये है .................आजकल ऐसे इजहारे मोहब्बत कहाँ देखने को मिलती है..........आपकी रचना मे जादू है ......
ReplyDeleteइस कविता को पढ़कर... लग रहा है...
ReplyDeleteऔर एक बात नीरज जी के लिए नीरज जी यह दिल की बात है आप नहीं समझेंगे...
इसे समझने के लिए इसे दिल से पढना पढेगा..
मीत
aapki barfili muhabbat ka jawaab nahin
ReplyDeletevijay ji ..waah waah !
atyant maadhuryapoorna rachna..
badhaai !
kisi ki dhoop ko kyon rokna chate hain vijay ji, pyar me to log dusron ke jeevan me dhoop bikhrne ke sochte hain.
ReplyDeleteवाह, मदहोश कर दिया सर जी आपने तो...
ReplyDeleteलाजवाब अनुभूति
आलोक सिंह "साहिल"
चाहत से भरपूर कविता है. सुखद लगती हुई.
ReplyDeleteप्रेम की बात हो और वो किसी उम्मीद पर टिकी ना हो कैसे सम्भव हो सकता है.
ऐसा ही प्यार हो, शुभकामनये.
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना है बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteप्रेम के बहुत से सुकुमार क्षण चुरा कर उन्हें अपनी कविताओं में पिरो देते हैं आप ।
ReplyDeleteसुन्दर भावभरी रचना । धन्यवाद ।
वाह कितना सुन्दर खयाल। प्यार के जज्बात खूब लिखे आपने। कहीं पर बर्फ और कहीं पर किरणें। आनंद आ गया जी। वैसे आप अक्सर मत सोचा करें रोज ही सोचा करें:-) कम से कम हमें इतने प्यारे ख्याल पढने को मिल जाऐगे जी।
ReplyDeleteEither in teen ages or after 50, love creates such imaginations. Its a true 'prem kavita.' For others, you left none to write, even to imagine.
ReplyDeleteawesome poetry...
ReplyDeleteआपकी कविता की सादगी मुझे पसंद है।
ReplyDeleteकविता सहज और सुन्दर है…अब आप बेहतर लिख पा रहे हैं
ReplyDeleteपर वादा तो दूसरे विषय पर कविता का था! क्या हुआ तेरा वादा
just joking...जो अच्छा लगे लिखते रहिये॥शुभकामनायें
सुंदर मनमोहक कविता पढ़वाने के लिए आभार।
ReplyDelete( यहॉं दिल्ली में गर्मी इतनी पड़ रही है कि ये सारी बातें बादलों को कहने को जी चाहता है:)
अति सुंदर। भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteआप हिन्दी कविता के प्रति
ReplyDeleteनिष्ठा रखकर
यूं ही लिखते रहियेगा
विजय भाई
- लावण्या
एक कोमल प्यार भरा एहसास........बहुत अच्छा लगा
ReplyDeletebahut khoobsurat abhivyakti..
ReplyDeleteaccha laga pad kar..
badhai
prem ki lajawaab abhivyakti...
ReplyDeletebahut khoob likha aapne..
badhai
sir ji main aapse pyar karta huin......:)
ReplyDeleteaur aapki lekhni se bhi........:)
acche gehre ehsaas utare hain apne khyalon ke canvas par.....
सच में इस सदी गर्मी में यदि कोई मुह पर बर्फ लगाए तो किता मजा आये...
ReplyDeleteनहीं.........???????????
इतनी सहजता, इतना समर्पण, जैसे कि नारी का मन , बेहद सुखाता है. कम देखने को मिलता है.
ReplyDeleteसुबह सुबह अपनी जीवन संगिनी के साथ घूमने निकलता हूं तो उन्हे धूप की किरणों से बचाने के लिये अपने साये की आड में ले लेता हूं. आज उसका भावपूर्ण अर्थ मेहसूस कर रहा हूं.
बर्फ़ वाली बात ज़रूर अलग और विपरीत अर्थ में चौंका गयी क्योंकि अमूमन, प्यार की गर्माहटों और तपन की बातें होती है, और बर्फ़ को निर्लिप्तता के संग जोडा जाता है.
मगर जो न देखे रवि, वो देखे कवि!!
bahut gahare se dil me utarnaa padataa hai tab kahin jaa kar aisee rachana ban paatee hai
ReplyDeleteतुम्हारा हाथ पकड़ कर चलूँ....
और उनके सायों से छनकर आती धूप से
तुम्हारे चेहरे पर आती किरणों को
अपने चेहरे से रोक दूँ.
jab tak ham shabdoM ko khud jee kar naheeM dekhate apane me mahasoos naheeM karate tab tak racanaa me jaan naheeM aati bahut sundar bhav hain aabhaar
recd. by email from Mr.Arvind Pandey....
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर कविता है ...
धन्यवाद
अरविंद पाण्डेय
दिल की गहराईयों को छूती हुई इस सुन्दर...सरल और सच्ची कविता के लिए दिल से बधाई
ReplyDeleteमोहब्बत .....मोहब्बत....मोहब्बत
ReplyDeleteनमस्कार विजय जी आप की लेखिनी में जादू है आप जिस विषय को छू देते है खिल उठता है फिर प्रेम तो आप का विषय है बहुत ही अद्रुत और एक प्रेम की निष्कलंक और पाक अनुभूति हर लाइन में प्रेम की उत्क्रस्ट अनुभूति को निचोड़ कर भर दिया आप ने खाश कर इन लाइनो में
ReplyDeleteयूँ ही किसी चांदनी रात में
समंदर के किनारे बैठ कर
तुम्हे देखते हुए ;
आती जाती लहरों से तेरा नाम पूछूँ
विजय जी नत मस्तक हूँ आप के लेखन पर भावो की इतनी सुंदर अभिव्यक्ति शायद ही पढ़ी हो
विजय जी मेरे पास शब्द ही नहीं है आप के लेखन पर और कमेन्ट करने के लिए बस मेरा प्रणाम और बधाई स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
recd. by email from Mr. Harish Bhimani ....
ReplyDeleteI wrote a short comment.
"Wonder"
if it reached you.
Regards.
Harish.
Vijayaji....dil ko baag baag kar dene wali kriti hai aapki. Aur kalpana ke mor in vadio me nachne lage hai. Really mind bowing
ReplyDeletesundar kavita
ReplyDeleteprem kee pavitrata ko darshaati
achha laga padhkar
विजय जी आपके पांचो पैरा में प्यार की अलग अनुभूति के दर्शन हो रहे है बहोत बहोत बधाई...
ReplyDeleteअर्श
नीरज की बात सही है, बर्फ़लगाने का अर्थ मुस्कुराहट को रोक देने जैसा है,जो रिणात्मक भाव है , भावों को बिख्रराव देता है एवम कविता-कला में भाव दोष।--
ReplyDelete--बर्फ़ीले होंठ, या होठों की बर्फ़, या अन्य कुछ अधिक सही होगा।
कवि कुछ भी कहने के लिये स्वतन्त्र नहीं, युनीवर्सल-सत्य नहीं झुठ्लाये जा सकते ।
दिल की बात दिल में ही रहना चाहिये । यदि समष्टि के लिये प्रदर्षित होती है तो सामान्य नियम से होना चाहिये।
कविता तो सच्मुच ही बत्यन्त भाव्पूर्ण व सुन्दर है।
आप को स्वीकार करना ही पडेगा हमारा सत्कार, मेरे हृदय की अनंत गहराई के तल से बधाई,तकनीक और तजबीज की मीक्सी में घोटे गये मसाले से जो रस निकला वो हमने पीया तो संतप्त मन को शांति प्राप्त हुई ,हमारे एक नेत्रहीन बाबा ने ध्यान लगाकर मुह खोले लम्बे समय तक सुनने के बाद आपको आशीर्वाद भेजा है , मै आपके इन उन्मुक्त भावों की कद्र करता हूँ ओर बर्फ की आवश्यकता को पहचानते हुये शितल साथ की उम्मीद एवं मंगलकामना करता हूँ।
ReplyDeletebehad gehrayee se likhee ye rachna dil ko choo gayee
ReplyDeleteaisee shabd saras abhivyakti k liye dheron sadhuvaad is kavi hriday se
...Ehsaas
कविता के दो अंग हैं, मित्र भाव् और शिल्प.
ReplyDeleteबिना शिल्प कविता नहीं सरस, लगे वह गल्प.
भाव् प्रवणता सिद्ध कर , आगे बढिए आप.
छंद शिल्प को साधिये, कीर्ति सके जग-व्याप.
'सलिल' शिल्प से सृजन का नया निखरता रूप.
बिना शिल्प भिक्षुक लगे, चाहे कवि हो भूप.
bahot sundar!
ReplyDeletepyaar ke ras mai bheee hui vijay je kee pyaaree kavita.ship aur kathya per tippnikaaro ne charchaa chedee hai apnee jagah sahee bhee hai lekin jab ptaar itnaa ghahraa aur samvedansheel ho to kaun shilp pe dhyaan de. sunder rachnaa
ReplyDeleteReally Good expression.... about Romance and Love.... Your profile impressed me more ...
ReplyDeleteRanjit
सुन्दर रचना,
ReplyDeleteढेरों बधाई,
प्रेम की सुंदर अभिव्यंजना.. आभार
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeletevijay ji namaskar sir ji aapne hamesha ki tarah kamal ki kavita rachi hai bahut pasand aayee mujhe
ReplyDeleteHRIDAY SE NIKLEE SUNDAR PREM-
ReplyDeleteABHIVYAKTI HAI.MEREE BADHAAEE.
विजय जी, आपकी यह कविता भी अन्य प्रेम-कविताओं की तरह दिल पर छा गई. आप के ब्लॉग पर कुछ कहना चाहूँगा. "कविताओं के मन से" एक फूलों की माला है. यह माला हर बार अनेक इंसानों की आँखों से गुज़रती है लेकिन ताहाल इसकी ताज़गी, इसकी नफ़ासत, इसकी खुश्बू में कोई फ़र्क नहीं आया. इस फूल की माला में अजब खुश्बू है और इस खुश्बू में अजब तासीर जहाँ ख़ार फूल बन जाता है - दिल ओ दिमाग़ राहे-इश्क़े-हक़ीक़त पर पहुंचा देता है. दिल पर एक रूहानी सकून छा जाता है और छंद और शिल्प पर ध्यान ही नहीं जाता.
ReplyDeleteयूं ही तुम्हारे संग देवदार के लम्बे और घने सायों में
तुम्हारा हाथ पकड़ कर चलूं ..
और उनके सायों से छन कर आती हुई धूप से
तुम्हारे चेहरे पर आती किरणों को,
अपने चेहरे से रोक लूँ.
अति सुन्दर!
महावीर
recd.by mail from Mr.Ummed Sadhak.......
ReplyDeleteacharya salil kee tipanee par bhee gaur karanaa caahiye....
bhaav to kamaal ke haiM...
ummed. sadhak
recd. by email from Ms. Ranjana..........
ReplyDeleteआदरणीय विजय जी,
आपकी रचनाओं को पढ़कर लगता है की आपका मन बच्चों सा कोमल व सरल सरस भावनाओ से ओतप्रोत है....आपमें एक रचनाकार बैठा हुआ है जो प्रतिपल कलात्मक रचना के लिए उत्सुक रहता है....दक्षिण भारतीय होकर भी हिंदी के लिए आपका प्रेम वन्दनीय तथा गर्व का विषय है....किन्तु मैंने जो अनुभव किया है,मुझे लगता है पद्य के स्थान पर यदि भावाभिव्यक्ति के लिए आप गद्य को चुने तो बड़ा ही उत्तम होगा....आपकी रचना गंभीर रचना के तौर पर पढी और सहेजी जायेगी.
आपकी यह रचना भाव की दृष्टि से बहुत बहुत सुन्दर है,परन्तु जो बिम्ब आपने प्रयुक्त किये हैं,या कविता की जो शिल्प है,वह कुछ कमजोर है.जैसे आपने देखा ही की कईयों ने बर्फ की ओर आपका ध्यानाकर्षण कराया है....पद्य या कविता दिखने में जितनी छोटी और सरल लगती है ,उतनी होती नहीं....उसके लिए भाषा पर बहुत जबरदस्त पकड़ की आवश्यकता होती है....
सहज ही यह समझ सकती हूँ मैं,की आप जिस परिवेश में आप हैं,जहाँ हिंदी का उपयोग बड़ा ही न्यून है,वहां इतनी समझ रखना भी बहुत ही बड़ी बात है....किन्तु आप जब सार्वजनिक रूप से कोई कृति उपलब्ध करते हैं तो उसे पर्याप्त सम्मान मिले यह अपरिहार्य है.....ब्लॉग पर टिपण्णी में वाह वाह करने वाले की बातों पर न जाइये...आप बड़े ही सरल ह्रदय हैं....वाह की गहराई को न नाप पाएंगे..
रचना की शिल्प और गहराई को बेहतर बनाने के लिए आप जितना अधिक हो सके पद्य पढिये,व्याकरण के बारे में जानकारी जुटाइए....और तबतक के लिए गद्य शैली में रचनाये कीजिये....कहानी ,यात्रा वृत्तांत,संस्मरण या फिर गद्य में ही काव्यात्मक अभिव्यक्ति लिखते रहिये...इससे आपके मन को भी संतोष मिलेगा और आपकी रचनाशीलता भी मंजती रहेगी....
इन बातों को बिना कहे,वाह वाह कर मैं भी निकल सकती थी,परन्तु मुझे लगा ईमानदारी से एक कोमल भावुक ह्रदय व्यक्ति को यदि बेहतरी के लिए सुझाव न दे दूँ तो यह मेरा कर्तब्य निर्वहन न होगा.
आशा है आप मेरी बातों को सकारात्मक अर्थ में लेंगे...
सादर
रंजना.
Pyar ki bahut sunder abhivyakti....... shaayd aisa hi pyar har koi karna chahta hai......
ReplyDeleteShaayad .........main bhi...........!!!!!!!!!!
bahut achcha laga padh ke........
सुख की अनुभूति
ReplyDeletekalpna hi sahii sukhad hai
बहुत गहरे अहसास लिए हुए है सारे शब्द ,अति उत्तम दोस्त और मैं आगे क्या कहू कुछ समझ न आये . यूँ ही तुम्हारे संग देवदार के लम्बे और घने सायो में
ReplyDeleteतुम्हारा हाथ पकड़ कर चलूँ......
और उनके सायो से छन कर आती हुई धुप से
तुम्हारे चेहरे पर आती किरणों को ,
अपने चेहरे से रोक लूं..... .
hiii vijayji
ReplyDeleteme aapki kavitaye pratham bar padh rahu hi.
maine pichli sari kavitaye bhi padhi.bahot sunder abhivyakti aap kar sakte he.
jo bhi varnan ho lagta he nazar k samne he.
ahesaso ko itni ghahrayi se chuna to koi aap se sikhe.
dhanyavad aap ko
Its Really a Wonderful feelings for Love ones.
ReplyDeleteBahut hi Khoobsurati se Pyaar ka Izhaar!!