Thursday, September 10, 2009
प्रेम कथा
बहुत समय पहले की बात है
जब देवताओ ने सोचा की
एक प्रेम कथा बनाई जाए ;
उन्होंने तुम्हे बनाया ,
उन्होंने मुझे बनाया ,
और एक जन्म बनाया ;
पर शायद कुछ भूल हो गई ....
कुछ समय का रथ आगे निकल गया,
इस जन्म के लिए एक जन्म बीत गया !!!
जाने -अनजाने में जब हम बने तो
तुम किसी और की हो चुकी थी
मैं किसी और हो चुका था
तुम्हारा जीवन बन रहा था
किसी और के संग फेरे लेते हुए
मेरा जीवन बन रहा था
किसी और के संग मन्त्र पढ़ते हुए....
देवताओ ने हमें बनाया
और जुदा कर दिया
शायद देवता पत्थर के होतें है
शायद देवताओ को एक नए दर्द को जन्म देना था
शायद तुम्हारे मन से
शायद मेरे मन से
पता नही ,
पर देवताओ की बातें देवता ही जाने
हम बने ..
प्यार का जन्म हुआ...
पर हमारे बन्धनों ने उस जन्म को पहली साँस में ही
मृत्यु का आलिंगन दे दिया
और मैं अपनी बात कह न सका ...
समय बीता और जीवन बीता
हमारे बंधन पिघलने लगे
शायद नए बन्धनों के जन्म के लिए
या फिर एक मृत्यु के लिए
हमारी मृत्यु के लिए !
मैंने अब तुमसे अपनी बात की है
देवता शायद इसी दिन का इन्तजार कर रहे थे
वो बड़ी अनोखी रात थी
सारी दुनिया सोयी हुई थी
अचानक चाँद को बादलों ने
अपनी आगोश में ले लिया था
जुगुनू किसी विस्फोट के अंदेशे में कहीं छुप गए थे
आकाश को चूमते हुए पर्वत सिकुड़ गए थे
झींगूरो की कर्कश आवाज शांत थी
सब तरफ़ अजीब सी शान्ति थी
शायद मृत्यु की शान्ति थी
लगता था सब मर चुके है
चाँद ,तारे, पेड़ ,पर्वत और
सारे इंसान
हाँ !
सिर्फ़ हम जिंदा थे
तुम और मैं ......
हम दोनों जल रहे थे
जब कांपती हुई आवाज में ,
तुम्हारा हाथ; मैंने अपने धड़कते हुए दिल पर रखकर
तुमसे , मैंने अपनी बात कही
वो अनजानी सी पुरानी बात कही
उस बात को कहने में
सच कितना समय बीत गया था
यूँ लग रहा था की कई जन्म बीत गए थे
मैंने जब तुमसे वो बात कही
तो शायद समय रुक गया था
हवा ठहर गई थी
हमारी साँसे भी ठहर गई थी
मैंने तुमको तुमसे माँगा
इस जन्म के लिए
तुमने देवताओं को देखा
उन्हें देखकर आंसू बहाए
और प्रार्थना की
कि ;
समय को पीछे ले जाया जाएँ
पर देवता तो पत्थर के बने होतें है
उन्होंने मना कर दिया
न ही उन्होंने हमें ज़िन्दगी दी और न ही दी , हमें एक मौत
जो सब कुछ शांत कर दे
उन्होंने दिए हमें अपने अपने बंधन
जिनके साथ हमने जीना है
इस जन्म के लिए..... उस मृत्यु के लिए
उस मृत्यु के लिए ,जो हमें जुदा कर दे एक जन्म के लिए
जब हम एक हो
जो हमें मिला दे हमेशा के लिए
हम हार गए ..इस जन्म के लिए
और शायद जीत गए ,अगले जन्म के लिए
शायद ..पता नही ;
जन्म और मृत्यु को किसने समझा है
देवताओ कि बातें देवता ही जाने
हम तो इंसान है
मन कि बातें मन के शहर कि गलियों में भटकने दो
यही शायद वक्त का फ़ैसला है
पता नही ...पर शायद ,
प्रेमकथा
इसे ही कहते है
शायद देवता भी यही चाहते है .......
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सच कहा आपने प्रेम कथा इसे ही तो कहते हैं...
ReplyDeleteऑंखें नम हो गई हैं, विजय सर...
बेहद मार्मिक रचना लिखी है...
दिल को छू गई...
मीत
सुन्दर रचना श्री मान जी
ReplyDeleteबहुत खूब.. हैपी ब्लॉगिंग
ReplyDeleteBAHUT KHUB, SHABD NAHI HAI TARIF KE LIYE
ReplyDeleteपर शायद कुछ भूल हो गई ....
ReplyDeleteकुछ समय का रथ आगे निकल गया,
इस जन्म के लिए एक जन्म बीत गया !!!
हाँ!! शायद यही भूल हो गई।
एक अजीब अहेसास!!
"जन्म और मृत्यु को किसने समझा है
ReplyDeleteदेवताओ कि बातें देवता ही जाने
हम तो इंसान है
मन कि बातें मन के शहर कि गलियों में भटकने दो
यही शायद वक्त का फ़ैसला है
पता नही ...पर शायद ,
प्रेमकथा
इसे ही कहते है
शायद देवता भी यही चाहते है ......."
प्लाट और थीम के साथ आपने विवेचना भी अच्छी प्रस्तुत की है।
बधाई!
देवताओं को पत्थर का
ReplyDeleteइंसानों ने ही बनाया है।
यही शायद वक्त का फ़ैसला है
ReplyDeleteपता नही ...पर शायद ,
प्रेमकथा
इसे ही कहते है
शायद देवता भी यही चाहते है .......
"प्रेम कथा" में मैंने अपने जीवन की सच्चाई अनुभव की है......तारीफ करने के लिए शब्द नहीं मेरे पास.
BAHOOT HI BHAVOUK, MACHOO LENE WAALI RACHNA HAI VIJAY JI ........
ReplyDeletePYAAR KI DAASTAN LIKH DI HAI AAPNE .....BEHAD MAARMIK RACHNA ...
प्रेम एक पवित्र अनुभूति है। मगर सुख के साथ दुख को भी आत्मसात किये रहती है। मिलन की सुखद अनुभूति के बाद विरह की मार्मिक गाथा सदियों से प्रेम की गाथाओं मे रही है ।प्रेम किसी भी रूप मे हो उसे कभी कभी न कभी इस दर्द का अनुभव करना ही पडता है। आपने भी अपने अनुभव् को जिस तरह व्यक्त किया है आँखें नम कर देने के लिये काफी है। yये पंक्तियां विशेश रूप से बहुत सुन्दर हैं--- चाँद को बादलों ने ---------- झींगुरों की कर्कश आवाज़ शान्त थी । बहुत ही अच्छी लगीं बहुत सुन्दर रचना है बधाई और शायद प्रेम इसे ही कहते हैं
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteतसव्वुर में खुदा बुन, हकीकत में चल
ReplyDeleteफिर सनम क्या है, फरिश्ते क्या है?
कविता बेहद जानदार और लीक से हट कर है. बधाई. केवल एक 'आलोचना' कर रहा हूँ-- कविता कुछ लम्बी हो गयी है, अगर एडिटिंग करके इसे कॉम्पैक्ट कर दिया जाए तो इसकी धार, मेरे ख्याल से और भी तेज़ हो जायेगी.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है आपने सुन्दर बढ़िया अभियक्ति
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteसुन्दर और मार्मिक भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeletebhut hi sundar likha hai aap ne ......pad kar bhut achchha laga
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर... प्यार की अनुभूति से ओत-प्रोत रचना...
ReplyDeleteबधाई स्वीकार करें
हँसते रहो
विजय भैया, मैंने कहा था न मुझे आपकी सारी रचनाएं एक से बढ़कर एक लगती हैं। मैं इस रचना के बारे में क्या कहूं। बस इतना कह सकता हूं कि आज भी आपने मुझे रुला दिया। इतना मार्मिक चित्रण मैंने अपने जीवन में कभी किसी प्रेमकथा का नहीं पढ़ा है। बहुत ही अच्छा लगा। भाव ऐसे हैं कि पत्थर से भी आंसू बह जाये। ऐसे ही लिखते रहिये विजय भैया।
ReplyDeleteVijay bhai
ReplyDeleteBadhaai
Tejendra
बहुत ही भावुक और मार्मिक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteहम दोनों जल रहे थे
ReplyDeleteजब कांपती हुई आवाज में ,
तुम्हारा हाथ; मैंने अपने धड़कते हुए दिल पर रखकर
तुमसे , मैंने अपनी बात कही
वो अनजानी सी पुरानी बात कही
उस बात को कहने में
सच कितना समय बीत गया था
यूँ लग रहा था की कई जन्म बीत गए थे
मैंने जब तुमसे वो बात कही
तो शायद समय रुक गया था
हवा ठहर गई थी
हमारी साँसे भी ठहर गई थी
मैंने तुमको तुमसे माँगा
इस जन्म के लिए
सुन्दर प्रेमकथा!!!
बधाई!!!
अद्भुत.........
ReplyDeleteअनूठी.........
अनुपम कविता
__नितांत सरल सहज भाषा में सौम्य अभिव्यक्ति....
परन्तु प्रभाव पैना....
अतीव पैना .........
बधाई हो विजयजी......
अभिनन्दन आपका !
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeletevery good sir
ReplyDeleteहम दोनों जल रहे थे
ReplyDeleteजब कांपती हुई आवाज में ,
तुम्हारा हाथ; मैंने अपने धड़कते हुए दिल पर रखकर
तुमसे , मैंने अपनी बात कही
वो अनजानी सी पुरानी बात कही
उस बात को कहने में
सच कितना समय बीत गया था
यूँ लग रहा था की कई जन्म बीत गए थे
मैंने जब तुमसे वो बात कही
तो शायद समय रुक गया था
हवा ठहर गई थी
हमारी साँसे भी ठहर गई थी
मैंने तुमको तुमसे माँगा
इस जन्म के लिए
बहुत बहुत ही सुन्दर रचना .....मन और आत्मा को भिगो गई.................
एक जन्म बनाया, जो हमें हर जनम में कम पड़ा...!कभी दर्द देनेमे गुज़ारी ज़िंदगी, कभी शिकवों में गुज़री !
ReplyDeletehttp://shamasansmaran.blogspot.com
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अदभुत लेखन का उदाहरण है आपकी यह रचना । मार्मिकता की बुनावट खूबसूरत है । आभार ।
ReplyDeleteविजय जी,
ReplyDeleteप्रेम का सम्बन्ध आत्मा से होता है,एक ऐसा एहसास जो रिश्तों का मुहताज नहीं. आपकी कविता में प्रेम की पराकाष्ठा दिखाई दे रही है. बहुत ही पवित्र और निश्छल अभ्व्यक्ति.
इतनी सुन्दर रचना के लिए बधाई!
--किरण सिन्धु .
vijay ji , anupam rachna hai, khubsurat bhavabhivyakti ke saath. badhai.
ReplyDeleteइस नज़्म के बारे मे क्या कहूं …………पड़ते ही निःशब्द हो गयी।
ReplyDeleteवैसे प्रेम को कब किसी ने जाना है…………………………प्रेम और विरह एक दूसरे के पूरक है…………………………और विरह प्रेमियो की गति………………………विरह के बिन प्रेम कब हुआ है………………गहन कल्पनाशीलता को दर्शाती रचना है……………………………सभी तट्बन्धो को तोड़ कर प्रेम को अद्भुत ऊँचाइयों पर ले जाती रचना……………………बधायी।
बेहद मार्मिक चित्रण है जी...मुझे आपकी लिखी प्रेम कथा बेहद पसंद आई
ReplyDeleteनहीं जी, यह आत्म-कथा होसकती है ,शाश्वत प्रेम-कथा नहीं, प्रेम कथा सदैव विरह-कथा या करुण कथा नहीं होती । संयोग या वियोग कथा होती है,उसमें भी वस्तुतः प्रेम में वियोग तो कभी होता ही नहीं, प्रेमी जन अशरीरी या शरीरी रूप में सदैव साथ-साथ रहते हैं।
ReplyDeleteअस्पष्ट व भ्रमात्मक भाव हैं । भावनात्मक व वर्णनात्मक द्रष्टि से कविता सुन्दर है ।
बहुत दिनों के बाद पढने को मिली आपकी ये प्यारी सुन्दर रचना। प्रेम के जज्बातों को बहुत खूबसूरत शब्दों से संवारा है। एक लय में पढते ही चला गया। हर प्रेम कथा बेशक अलग हो पर अहसास एक सा ही होता है। दिल के पास से गुजर जाती है। हमेशा की तरह पसंद आई आपकी रचना।
ReplyDeleteEk achhi theme lagi. Shayad vartani ki shudhdhhta aur bhi chaand laggati par fir bhi bahut achhi bhangima banayi thi aapne.
ReplyDeleteप्यारी सुन्दर रचना.nice
ReplyDeleteआज आपकी कविता पढ़ कर दिल दहल गया...
ReplyDeleteसांस रोक के पढ़ी है ....
कुछ कहने की हालत में नहीं हूँ..
वाह क्या बात है बहुत ही सुंदर रचना,
ReplyDeleteधन्यवाद
very good ...
ReplyDeleteachchi rachna lagi,,,
aaaapki nayi rachna ke intejaar me..
Deepak "bedil"
http://ajaaj-a-bedil.blogspot.com
प्रेमकथा
ReplyDeleteइसे ही कहते है
शायद देवता भी यही चाहते है .......
और अगर देवताओ ने आपकी प्रार्थना सुन ली होती तो यह अमर प्रेमकथा बनती भी नही.
बहुत सुन्दर -- भावपूर्ण --
देवताओं की बाते तो देवता ही जाने पर यह प्रेमकथा मार्मिक और भावों से परिपूर्ण है ...!!
ReplyDeleteविजय जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना....
बधाई.
विजय भाई,
ReplyDeleteप्रेम की संपूर्णता जुदाई में ही है। अगर आपका प्रेम आपको इसी जनम में मिल जाता, तो इतनी सुंदर रचना का जन्म ही नहीं हो पाता। हम सब इतनी प्यारी अभिव्यक्ति को जानने से वंचित रह जाते। बधाई बहुत बहुत बधाई
डॉ महेश परिमल
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteपर शायद कुछ भूल हो गई ....
ReplyDeleteकुछ समय का रथ आगे निकल गया,
इस जन्म के लिए एक जन्म बीत गया !!!
हाँ!! शायद यही भूल हो गई।
अद्भुत, प्रेम कथा !!
प्रेम सर्वदा अमर होता है, जब उसमे वियोग-संयोंग होता है .
मार्मिक रचना....भावों की सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteमैंने तुमको तुमसे माँगा
ReplyDeleteइस जन्म के लिए
तुमने देवताओं को देखा
उन्हें देखकर आंसू बहाए
और प्रार्थना की
कि ;
समय को पीछे ले जाया जाएँ
पर देवता तो पत्थर के बने होतें है..is prem katha me aapke dil ke bhav kahi door bahaa le gye...shabad nahi hai mere pass kya tareef karu....
recd by email from Mr.Ashok Gupta........
ReplyDeleteप्रिय भाई विजय,
नमस्कार. पहले इस कविता की बात करें फिर प्रेम की. बात करने के लिए यह दोनों अलग अलग विषय हैं.
कविता अच्छी लगी क्यों कि यह आपके भीतर के संसार की समूची हलचल को हमारे सामने उलीच कर रख दे रही है. इस के लिए आपको बधाई दे सकता है.
अब प्रेम की बात. प्रेम की सबकी बात अपने अपने आईने में सच होती है, इसलिए मैं सिर्फ अपना सच कहूंगा...
मैं प्रेम में अपन दोनों के बीच इतनी जगह नहीं छोड़ते कि वहां देवता आ कर बैठ सकें. हमारे प्रेम के संसार में देवता तो क्या भगवान् की भी जगह नहीं है. रही बात यह कि, प्रेम की परिणति शादी में नहीं हो पा रही है, तो शादी प्रेम का अंतिम स्टेशन नहीं है, और अगर आपका दिल उसे ही अंतिम लक्ष्य मानता है तो उसके बीच किसी भी बाधा का ठहर पाना इस बात का संकेत है कि बाधा प्रेम से ज्यादा मजबूत हो गई.
तो फिर.... अगर आप प्रेम से ज्यादा किसी की भी मजबूती स्वीकारते हैं, तो बेहतर है कि उस प्रेम को भूल जाइए.
दुनियादारी की नाव में बैठे बैठे प्रेम का सपना नहीं देखा जा सकता. वह एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है.
आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा
अशोक गुप्ता
recd. by email from Mr. Neeraj pal......
ReplyDeletebehad sahaj bhaw se aapne apni baat kahi aur prem ke ek na bhoole jaane wale paksh ko ujagar kiya
dhnywaad iss rachna ko padwane ki liye
aur badhayee ho aapko
recd. by email from Ms. Sudha Bhargav....
ReplyDeleteविजय जी
कविता में प्रेम की अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर है ,जिसमें दर्द की लड़ियाँ पिरोई गई हैं ,हर लड़ी पर आध्यात्मिकता की छाया नज़र आती है !
सुधा भार्गव
विजय जी ,
ReplyDeleteक्या बात है आपके और आपके प्रेम के बीच में देवता क्यों आ जाते हैं .अशोक जी ने सही कहा है प्रेमियों के बीच इतनी जगह ही कहाँ होती है के कोई और समाये यहाँ दो भी नहीं रह जाते ----प्रेम गली अति संकरी ,जा में दो न समाहीं .जब मैं हूँ तू नहीं है ,जब तू है मैं नहीं .
दूसरी बात भी अशोक जी की सही है की दुनियादरी की नव में बैठ कर प्रेम के सागर का आनंद नहीं लिया जा सकता उसके लिए तो छलांग लगानी पड़ती है .
वैसे कविता बहुत अच्छी है बधाई
खराब कविता है
ReplyDeleteब्लॉग जगत में आने वाली बेहतरीन कविताओं में से एक इस कविता हेतु आपको साधुवाद.
ReplyDeleteहमारी संस्कृति में सात जन्मो के साथ की बातें तय हैं .... विजय जी , कविता बढ़िया है .
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