आज शाम सोचा ;
कि ,
तुम्हे एक झील दिखा लाऊं ...
पता नही तुमने उसे देखा है कि नही;
देवताओं ने उसे एक नाम दिया है….
उसे जिंदगी की झील कहते है...
बुजुर्ग ,अक्सर आलाव के पास बैठकर,
सर्द रातों में बतातें है कि,
वह दुनिया कि सबसे गहरी झील है
उसमे जो डूबा , फिर वह उभर कर नही आ पाया ...
उसे जिंदगी की झील कहते है...
आज शाम , जब मैं तुम्हे ,अपने संग ,
उस झील के पास लेकर गया ,
तो तुम काँप रही थी ,
डर रही थी ;
सहम कर सिसक रही थी..
क्योंकि ; तुम्हे डर था;
कहीं मैं तुम्हे उस झील में डुबो न दूँ ....
पर ऐसा नही हुआ ..
मैंने तुम्हे उस झील में ;
चाँद सितारों को दिखाया ;
मोहब्बत करने वालों को दिखाया;
उनकी पाक मोहब्बत को दिखाया ;
तुमने बहुत देर तक, उस झील में ,
अपना प्रतिबिम्ब तलाशती रही ,
तुम ढूंढ रही थी॥
कि शायद मैं भी दिखूं तुम्हारे संग,
पर ईश्वर ने मुझे छला…
मैं क्या, मेरी परछाई भी ,
झील में नही थी तुम्हारे संग !!!
तुम रोने लगी ....
तुम्हारे आंसू ,
बूँद बूँद खून बनकर झील में गिरते गए ,
फिर झील का गन्दा और जहरीला पानी साफ होते गया,
क्योंकि अक्सर जिंदगी की झीलें ,
गन्दी और जहरीली होती है ....
फिर, तुमने मुझे आँखे भर कर देखा...
मुझे अपनी बांहों में समेटा ...
मेरे माथे को चूमा..
और झील में छलांग लगा दी ...
तुम उसमें डूबकर मर गयी ....
और मैं...
मैं जिंदा रह गया ,
तुम्हारी यादों के अवशेष लेकर,
तुम्हारे न मिले शव की राख ;
अपने मन पर मलकर मैं जिंदा रह गया ...
मैं युगों तक जीवित
रहूंगा और तुम्हे आश्चर्य होंगा पर ,
मैं तुम्हे अब भी ;
अपनी आत्मा की झील में सदा देखते रहता हूँ..
और हमेशा देखते रहूंगा..
युग से अनंत तक ....
अनंत से आदि तक ....
आदि से अंत तक....
देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...
waah
ReplyDeleteमौन हूँ शब्द नही है ........
ReplyDeleteye to maine pahle bhi padhi thi aur shayad comment bhi kiya tha.
ReplyDeletejab naam hi jheel de diya to uski gahrayi kaise nhi hogi........na jaane kahan se itna dard ,itni gahrayi late hain.........aisa lagta hai jaise jheel mein hi doobkar ye kavita likhi ho.
zindagi ki talkh sachchiyon ko bayan karti.......lajawaab,amazing.
dil ko choone wali rachana
ReplyDeletebehad khoobsurt
bahut dino baad apko apne blog per dekhker khushi hui
bahut sundar rachanaa hai.
ReplyDeleteVijay ji, jheel ki khubsoorat gahrayian aachchhi lagien. jab (blog ki)is duniya mei aayi thi to andaaz nahi tha ki kitne khubsoorat aur bhavuk jazbaato se mulakat hogi liken jaise-jaise safar aage barh raha hai , khushnaseebi se bahut sundar saugaatein mil rahi hai . Shukriya khuda ko aur aap sabka, jo mujhe alfaazoin ke zariye jud rahe hai. aaj pahli baar aapki kavita ki duniya mei kadam rakha . sab kuchh bahut hi sundar laga. Apki BITIYA ne to mujhe rula diya. Sach kahu to Jheel se pahle uski tareef karna chahti hu.Poori ummeed hai, ab shabdo ke zariye ye judaav bana rahega...!
ReplyDeleteRegards...
Pratima Sinha from MERA AKASH
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही कलात्मक रचना.....सुन्दर अभिव्यक्ति. मेरे ब्लाग पर आने और टिप्पणियों द्वरा प्रोत्साहित करने की लिये बहुत बहुत आभार.
ReplyDeleteबहुत अधिक प्रभाव महसूस कर रहा हूँ इस कविता का मन पर । आपके रूपक का प्रभाव भी निरख रहा हूँ ।
ReplyDeleteकविता खूबसूरत है । आभार ।
झील सी गहरी बातें कहती यह सुन्दर रचना। झील और जिदंगी क्या बात है। ऐसे ही अपने अनुभव लिखते रहिए विजय जी।
ReplyDeleteमैं युगों तक जीवित
ReplyDeleteरहूंगा और तुम्हे आश्चर्य होंगा पर ,
मैं तुम्हे अब भी ;
अपनी आत्मा की झील में सदा देखते रहता हूँ..
और हमेशा देखते रहूंगा..
युग से अनंत तक ....
अनंत से आदि तक ....
आदि से अंत तक....
देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...
bahut sundar bhav .badhai!
Hello!
ReplyDeleteVery beautifully written!
Really liked the way you linked each episode with each other.
And last but not the least, thanks for your nice comments on my blog.
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
Sundar bhaav, shaandaar abhivyakti.
ReplyDelete{ Treasurer-T & S }
sir ji, it's too good
ReplyDelete---
विज्ञान पर पढ़िए: शैवाल ही भविष्य का ईंधन है!
ज़िन्दगी की झील....अच्छा प्रयोग है...अति भावुकता लिए हुए रचना है ये आपकी.
ReplyDeleteनीरज
achchhi samvednatmak rachna. badhai.
ReplyDeleteअच्छी संवेदनायें
ReplyDeleteशब्दों की अगर थोडी और किफ़ायत करें तो अभिव्यक्ति और बेहतर होगी
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteVijay Bhai
ReplyDeleteEk bhavuk kavita ke liye badhaai. Vaise proof reading kee zaroorat mehsoos huyee.
tejendra sharma
waah bahut hi gehre ,marmik bhav,zindagi ki jhilka ye drapnab hi bahut achha laga,badhai.
ReplyDeleteविजय भाई ,
ReplyDeleteजिंदगी और झील का साम्य अच्छा किया गया है इस कविता में -
प्रणय के भावावेश से ही कई कविताओं का जन्म होता है .....लिखते रहें,
शुभकामना
- लावण्या
Sir..............is kavita ke baare mein kya kahoon......... aapne to speechless kar diya hai mujhe............. Om Arya ji se main bilkul sahmat hoon....... pata nahi kyun mujhe aisa lagta hai ki OM ARYA ji wahi likhte hain..........jo main kahna chahta hoon..... chahe wo kavita ho, ya bhaavnayen ya phir comment......
ReplyDeleteAApne zindagi ko itne achche se define kiya hai ki ......... mujhe yeh lag raha ki yahi to main kahna chahta tha...........
aap pen se likhte hain ya phir dil ki syaahi se? mujhe bataiyega zaroor.........
Main aapke call ka wait kar raha hoon.......
Thanx for sharing........
बुजुर्ग ,अक्सर आलाव के पास बैठकर,
ReplyDeleteसर्द रातों में बतातें है कि,
वह दुनिया कि सबसे गहरी झील है
उसमे जो डूबा , फिर वह उभर कर नही आ पाया ...उसे जिंदगी की झील कहते है...
सुन्दर अभिव्यक्ति...
sach me bahut sundar kavita hai .kafi gaharai liye huye hai .
ReplyDeleteबेहतरीन सुन्दर रचना...
ReplyDeleteआप की कविताओं में ऐसा क्या है, जो मन बरबस फ़िसल जाता है. इसी झील में , जिसमें शायद स्वच्छ , निर्मल मन की भावनाओं के कमल खिलते हैं, जो इतनी गहरी है, मग्र डूब जाने को दिल करत है.
ReplyDeleteशायद आध्यात्म ही इसका कारण है.
bahut dil tak utri hai apki baat..
ReplyDeletebadhiya prayog hai zindagee ka jhil ke saath bahot achhi lage aapki ye kavita.... gahare jajbaat ko darshaya hai aapne .... alaw waali baat vishesh roop se sarahniya hai , dhero badhaayee
ReplyDeletearsh
aankhon me mere neend ka bojhh bharaa hai lekin jab baanchne laga toh yun laga maano..baanchtaa hi jaaun ...
ReplyDeleteaadarneey vijayji,
bhai main toh kaayal ho gaya aapki medhaa ka ..........waah...
kya baat hai ?
zindgi ki jheel me uthne wali har lahar aur har lahar ke antar me hone wali halchal ko aapne itnee kaarigari se varnit kiya hai ki
man abhibhoot ho gaya...
badhaai
badhaai
badhaai !
Jindagee kee zeel kee tarah hee gaharee kawita. hum me se adhik tar to is jindagee ke zeel me doobe hee hote hain. sunder bhawbheenee kwita ke liye badhaee.
ReplyDeleteमैने भी देखी है यह झील - अकेले। कूदने या तैरने का साहस बनाता हूं और फिर भहरा जाता है वह साहस।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बुनी है आपने यह कविता मित्र!
मैं तुम्हे अब भी ;
ReplyDeleteअपनी आत्मा की झील में सदा देखते रहता हूँ..
और हमेशा देखते रहूंगा..
युग से अनंत तक ....
अनंत से आदि तक ....
आदि से अंत तक....
देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...
बहुत गहरे विचार परोसे हैं आपने.. हैपी ब्लॉगिंग
bahut sunder rachna hai...
ReplyDeleteवाह!वाह!वाह! सुंदर रचना ज़िन्दगी कि झील के बारे में।
ReplyDeleteकविता का अंत बहोत ही भावनात्मक रहा।
आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
ReplyDeleteसचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। बहुत सुन्दरता पूर्ण ढंग से भावनाओं का सजीव चित्रण... आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे, बधाई स्वीकारें।
आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं। आप मेरे ब्लॉग पर आये और एक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया दिया…. शुक्रिया.
आशा है आप इसी तरह सदैव स्नेह बनाएं रखेगें….
आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
…Ravi Srivastava
jheel si gahri kavita ke liye babhai...
ReplyDeletewah.... उसे जिंदगी की झील कहते है... bahut umdaa kaavya ki rachna....
ReplyDeleteHam sabhee aisee kisi,jheel'ki talashme rahte hain shayad!
ReplyDeletehttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
LAJAWAAB.....JAWAAB NAHI HAI AAPKI KALPANA KAA..
ReplyDeletesir, maine kabhi is jheel ke bare main nahi suna , shayad ye apki kalpana ki jheel hai jisme aap ne jeevan ko jheel saman liya hai ?
ReplyDeletepar aap ki bhavna main main jaroor dub gai or laga ki shayad main bhi apni atma ki jheel main unhe dekti rahugi chahe vo saath ho ya na ho
bhut ki achchhi rachna
nazm ko padhnaa...jheel ki gehraaii mei utarne jaisa hi mehsoos hua.....badee hi bhaavuk aur maarmik rachna hai .
ReplyDeletebadhaaee .
---MUFLIS---
"JHEEL"........aapki kavita mai bahut GHERAEE hai.......bahut acha likha hai...must say very nice.....
ReplyDeleteआपने बहुत सुंदर कविता लिखी है।
ReplyDeleteधन्यवाद।
मैं युगों तक जीवित
ReplyDeleteरहूंगा और तुम्हे आश्चर्य होंगा पर ,
मैं तुम्हे अब भी ;
अपनी आत्मा की झील में सदा देखते रहता हूँ..
और हमेशा देखते रहूंगा..
युग से अनंत तक ....
अनंत से आदि तक ....
आदि से अंत तक....
देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...
वाह्! लाजवाब भाव्! अति सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें!!
नज़्म वाकई बहुत ख़ूबसूरत है. आपकी पुरानी नज़में भी पढीं. आपकी शैली बहुत असरदार है.
ReplyDeleteऔर मैं...
ReplyDeleteमैं जिंदा रह गया ,
तुम्हारी यादों के अवशेष लेकर,
तुम्हारे न मिले शव की राख ;
अपने मन पर मलकर मैं जिंदा रह गया ...
Bahut hee bhaavpurn rachna, bilkul antarman ko chhoti hui see. Badhai. Saath hee aapka "Yuva' par pahli baar aane ka swagat..
बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति है. साधुवाद.
ReplyDeleteshabdon mein jitnaa kaha gaya hai usse kahin adhik kehti hai yeh rachnaa... behad khoobsoorat...
ReplyDeleteअत्यन्त सुंदर और दिल को छू लेने वाली रचना लिखा है आपने! आपका हर एक ब्लॉग लाजवाब है! बस मैं तो यही कहूँगी कि आपकी लेखनी को सलाम!
ReplyDeleteJheel ki tarah gahre bhav hain is kavita me.Badhai.Haan ise thoda kasa ja sakta tha.
ReplyDeleteइस झील में आज हमें भी डुबो दिया आपने...
ReplyDeleteवाह विजय जी...
आपके शब्दों से आपकी सोच की गहराई का सहज ही अंदाजा होता है....
आपका अंदाज अपने आप में अनूठा है...
मीत
सुन्दर भावुक कविता है. झील और ज़िन्दगी का प्रयोग अनुपम है. झील की ही तरह भावों की गहराई भी है. साधुवाद.
ReplyDeleteBahut shaandaar.
ReplyDelete{ Treasurer-T & S }
वाह क्या कमाल की सोच ,और उससे भी सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteशब्द कुछ ज्यादा पर भावनाएं बहुत सुंदर हैं...
ReplyDeleteReally its very nice poem sir.
ReplyDeleteu r most welcome at my blog
बहुत खूब बढ़िया लगी आपकी यह अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteविजय भैया, पहले तो यह बता दूं कि आपने फिर एक शानदार रचना से मन मोह लिया। वैसे मन तो आप पहले ही मोह चुके हैं। काश मैं भी ऐसा ही लिख पाता, लेकिन क्या करूं, हर आदमी विजय भैया नहीं हो सकता है न...
ReplyDeleteखैर, क्षमा चाहूंगा कि मैं इतने दिनों के बाद आया ब्लॉग पर। सारी रचनाएं पढ़ डालीं मैंने, सभी एक से बढ़कर एक लगे। मैं असल में काम के सिलसिले में इधर-उधर गया हुआ था। इसलिए ब्लॉग देखने का साधन नहीं मिला। उम्मीद है कि आप इस मजबूरी को समझते हुए क्षमा करेंगे।
वाह आपकी कविता ने तो आत्मिक सुख देने वाली साबित हुई। सचमुच जिंदगी की गहराइयों का इतना सटीक विश्लेषण इतने कम शब्दों के माध्यम से कर पाना कठिन है। बहुत खूब। इसी तरह लिखते रहे।
ReplyDeleteगुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देव महेश्वरा ||
ReplyDeleteगरु साक्षात परम ब्रह्म तस्मे श्री गुरुवे नमः ||
नमस्कार विजय जी देरी के लिए माफ़ी चाहूँगा ,, कारण वही वयस्तता का बहाना सच कह रहा हूँ इस कविता को मै तीन बार पढ़ कर निकल गया एक बार कुछ लिखा भी पर सायद नेट प्रोव की बजह से पोस्ट नहीं हुआ माफ़ी चाहूँगा ,,
अब कविता के बारे में क्या कहूँ जिन्दगी के एक नए रंग को , जो होते हुए भी हम महसूस नहीं करते आप ने प्रदर्सित किया है और प्रेम की अनुपम अनुभूति कराई है मै तो नत मस्तक हूँ
मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
इतना दर्द कहा से लाते हो ...
ReplyDeleteयह तो वाही लिख सकता है जिसने इसका अनुभव किया हो.
amazing.
Umda prastuti...badhai.
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें. "शब्द सृजन की ओर" पर इस बार-"समग्र रूप में देखें स्वाधीनता को"
हिला कर रख दिया आपने, इतनी गहरी झील की तो कभी कल्पना भी न की थी............
ReplyDeleteसुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई.
Vijay ji,
ReplyDeleteKripaya aap anyatha na len to ek baat kahne ki dhrishtta karun.......
Hamare ek mitra hain,bahut bade ohde par hain,unhone ek baar kaha ki - ka batayen,ee sasur angreji se bade pareshaan hain...ab dekho na...sochne ki aadat hai,bhojpuri me...to pahle sochte bhojpuri me hain,fir uska roopantaran hindi me karte hain aur hindi me sochkar fir use angrejo me kahna padta hai to....itna roopantaran karte karte batwa me oo wajan nahi rah jata jo bhojpuri me kahte to rahta......
to mujhe lagta hai,aapki bhavnayen jitni sundar hoti hain,chunki aapka hindi bhasha gyaan utna gahra nahi ki aap abhivyakti ke liye shabd chanay me bahut suvidha mahsoos karte honge.....
maine aapki kavitayen angreji me padhi aur we mujhe hindi se bahut hi behtar lagin.....to mera aapko sujhaav hai ki abhi kuchh dino tak aap kavitayen angreji me likhen aur uska anuwaad kisi yogy hindi kavi se karwayen.....do chaar kavitaon ke anuwaad ke saath hi aap anubhoot karenge ki aapke bhavon me jo gahrai hai ,usi ke anuroop aapke shabd me bhi wah wajan aa gaya hai....
Aapke hindi prem ke aage main natmastak ho jaya karti hun aur isliye dil se main chahti hun ki aap jaisa komal hriday kavi khoob likhe aur khoob sundar likhe,taki kai ahindi lekhakon kaviyon ko isse prerna mile...
Aasah hai aap meri baton ko kinchit bhi anyatha na lenge.....mera uddeshy kewal ek hi hai ki aap jaise bhavuk kavi ke kriti ko paryapt samman mile....
बहुत भावुक और गहरी अभिव्यक्ती मन को स्पर्श करने वाली,बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteबेहतरीन बहुत बेहतरीन रचना ,मज़ा आगया।
ReplyDeleteआज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भार
तुमने बहुत देर तक, उस झील में ,
ReplyDeleteअपना प्रतिबिम्ब तलाशती रही ,
तुम ढूंढ रही थी॥
कि शायद मैं भी दिखूं तुम्हारे संग,
पर ईश्वर ने मुझे छला…
मैं क्या, मेरी परछाई भी ,
झील में नही थी तुम्हारे संग !!!
aapki zindagi ki jheel ne sab ko iskadar khud mein sameit liya hai
har aor sirf ghahrayi hi nazaar aati hai, har waqt ke ehsaas ko bakhubi neebhaya hai.
padhte huye aise laga yeh chal chitr ki tarha, samne chal rahi hai. bahut pasand aayi aapi jheel
apna khayal rakhain
nira
बिखरे सितारे ! ७) तानाशाह ज़माने !
ReplyDeleteपूजा की माँ, मासूमा भी, कैसी क़िस्मत लेके इस दुनियामे आयी थी? जब,जब उस औरत की बयानी सुनती हूँ, तो कराह उठती हूँ...
लाख ज़हमतें , हज़ार तोहमतें,
चलती रही,काँधों पे ढ़ोते हुए,
रातों की बारातें, दिनों के काफ़िले,
छत पर से गुज़रते रहे.....
वो अनारकली तो नही थी,
ना वो उसका सलीम ही,
तानाशाह रहे ज़माने,
रौशनी गुज़रती कहाँसे?
बंद झरोखे,बंद दरवाज़े,
क़िस्मत में लिखे थे तहखाने...
Aapke intezaar me hain,ye 'bikharte sitare'! Kitna simte-samete jaa sakte hain?
waah waah,atyant sundar rachna
ReplyDeleteनतमस्तक ! प्रणाम ,झील में कही खो गया हूँ
ReplyDeleteझील काफी खूबसूरत है।
ReplyDeleteaur main zinda reh gaya !!
ReplyDeletehum shayad choti choti si cheezein dekh kar hi zinda reh lete hain ...
Sundar Rachna hai
ReplyDeleteविजय जी झील में तो मैं पहले ही कही खो चूका हूँ .............
ReplyDeletehi... really a nice one... I cant even think of writing such a beautiful creation... I am grateful to you that you shared this with me .. Thanks
ReplyDeletevijay ji 75 log bahut kuchh kah chuke is rachna ke bare men main to bas ek hi shabd kah sakta hun.
ReplyDeleteANUPAM.
aapne to jindagi ki jheel ki baaten kar din Vijay ji...
ReplyDeleteise sundar rachana se bhi sundar kah sakte hain...
mohabbat to samandar hai n.. shayron se suna hai...to jindagi hamari vasundhara kyun nhi ban jati jo samandar ko bhi samet le...!!
dhanyawad..
apne blog ke shuruaat me hi aap jaise jindagi k geet gane wale kaviyon ke prashansha bol mile... prashann hun...
abhi to ma gaurayya hun... aapki munder par jab jab baithun kuch vicharon ka dana pani de diya kisie taki mai apne jindagi me naye geet bana sakun..
DHANYAWAD!
शानदार...
ReplyDeletevery beautiful poem. Bahut gehri hai ye jheel....
ReplyDeleteaapaki rachna ne dil choo liya sir...apane bahut achcha likha hai ...meri tarf se badhai ho ....
ReplyDeletebahut khoob, मैं क्या, मेरी परछाई भी ,
ReplyDeleteझील में नही थी तुम्हारे संग !!!
में अति सुन्दर - कथन में विश्वास नहीं रखता। कविता तो सुन्दर है, भावनात्मक भी; परन्तु भ्रामक तथ्य सहित--ज़िन्दगी अक्सर गन्दी व ज़हरीली नहीं होतीं--यदि वह देवताओं ने नाम दिया है तो??? " उसमें जो डूबा उभर कर नहीं आपाया" भी गलत बयानी है----ज़िन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ"
ReplyDeleteडूब-डूब कर ही मज़ा आता है. बिखरे भाव कविता में नहीं होने चाहिये।
Sir
ReplyDeleteyour poem really carried me to a jheel
, a jheel of life.
I'm speechless,floating and trying to dive deep inside it.
shabdo se hi apne charno par ik sparsh sweekar kar mujhe anugrahit karen.
विजय जी सच में बहुत ही गहरी है आपकी झील दिल को छू गई बहुत ही बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ......जिंदगी कि झील गहरी है ,पर डूबना भी पड़ता है ..सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletebahut sundar rachna hai.........
ReplyDeleteVIJAY SIR THIS POEM IS TOO GOOD! DIL,DIMAAG AUR AATMAA KO CHHO GAYEE! AANKHEN BHI NAM KAR GAYI AAPKI KAVITA!
ReplyDeletePLEASE KEEP IT UP!