Friday, September 18, 2009
मृत्यु
ये कैसी अनजानी सी आहट आई है ;
मेरे आसपास .....
ये कौन नितांत अजनबी आया है मेरे द्वारे ...
मुझसे मिलने,
मेरे जीवन की , इस सूनी संध्या में ;
ये कौन आया है ….
अरे ..तुम हो मित्र ;
मैं तो तुम्हे भूल ही गया था,
जीवन की आपाधापी में !!!
आओ प्रिय ,
आओ !!!
मेरे ह्रदय के द्वार पधारो,
मेरी मृत्यु...
आओ स्वागत है तुम्हारा !!!
लेकिन ;
मैं तुम्हे बताना चाहूँगा कि,
मैंने कभी प्रतीक्षा नहीं की तुम्हारी ;
न ही कभी तुम्हे देखना चाहा है !
लेकिन सच तो ये है कि ,
तुम्हारे आलिंगन से मधुर कुछ नहीं
तुम्हारे आगोश के जेरे-साया ही ;
ये ज़िन्दगी तमाम होती है .....
मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ ,
कि ;
तुम मुझे बंधन मुक्त करने चले आये ;
यहाँ …. कौन अपना ,कौन पराया ,
इन्ही सच्चे-झूठे रिश्तो ,
की भीड़ में,
मैं हमेशा अपनी परछाई खोजता था !
साँसे कब जीवन निभाने में बीत गयी,
पता ही न चला ;
अब तुम सामने हो;
तो लगता है कि,
मैंने तो जीवन को जाना ही नहीं…..
पर हाँ , मैं शायद खुश हूँ ,
कि; मैंने अपने जीवन में सबको स्थान दिया !
सारे नाते ,रिश्ते, दोस्ती, प्रेम….
सब कुछ निभाया मैंने …..
यहाँ तक कि ;
कभी कभी ईश्वर को भी पूजा मैंने ;
पर तुम ही बताओ मित्र ,
क्या उन सबने भी मुझे स्थान दिया है !!!
पर ,
अब सब कुछ भूल जाओ प्रिये,
आओ मुझे गले लगाओ ;
मैं शांत होना चाहता हूँ !
ज़िन्दगी ने थका दिया है मुझे;
तुम्हारी गोद में अंतिम विश्राम तो कर लूं !
तुम तो सब से ही प्रेम करते हो,
मुझसे भी कर लो ;
हाँ……मेरी मृत्यु
मेरा आलिंगन कर लो !!!
बस एक बार तुझसे मिल जाऊं ...
फिर मैं भी इतिहास के पन्नो में ;
नाम और तारीख बन जाऊँगा !!
फिर
ज़माना , अक्सर कहा करेंगा कि
वो भला आदमी था ,
पर उसे जीना नहीं आया ..... !!!
कितने ही स्वपन अधूरे से रह गए है ;
कितने ही शब्दों को ,
मैंने कविता का रूप नहीं दिया है ;
कितने ही चित्रों में ,
मैंने रंग भरे ही नहीं ;
कितने ही दृश्य है ,
जिन्हें मैंने देखा ही नहीं ;
सच तो ये है कि ,
अब लग रहा है कि मैंने जीवन जिया ही नहीं
पर स्वप्न कभी भी तो पूरे नहीं हो पाते है
हाँ एक स्वपन ,
जो मैंने ज़िन्दगी भर जिया है ;
इंसानियत का ख्वाब ;
उसे मैं छोडे जा रहा हूँ ...
मैं अपना वो स्वप्न इस धरा को देता हूँ......
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
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घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
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मिलना मुझे तुम उस क्षितिझ पर जहाँ सूरज डूब रहा हो लाल रंग में जहाँ नीली नदी बह रही हो चुपचाप और मैं आऊँ निशिगंधा के सफ़ेद खुशबु के साथ और त...
bahut khub likha hai, jivan ki sacchi mritu hi hai shabd nahi hai tarif ke liye
ReplyDeletesatya aur sundar kavita..
ReplyDeletebadhayi..
Vijay Bhai
ReplyDeleteEk nayee zameen todti huyee, dil ko jhakjhorti huyee, sensitive kavita.
Today I feel proud to say that a Kavi has arrived. Dher see badhaiaaN.
Tejendra Sharma
हाँ एक स्वपन ,
ReplyDeleteजो मैंने ज़िन्दगी भर जिया है ;
इंसानियत का ख्वाब ;
उसे मैं छोडे जा रहा हूँ ...
बहुत सुन्दर कविता है।
काश् सभी लोग ऐसे ही सपने देखें।
टेम्प्लेट बदल दें भइया जी!
लाल रंग आँखों को कष्ट देता है।
mrityu satya hai.....atal hai..........chaho ya na chaho use to aana hi hai..........bas itna gahrayi se sochne ki jaroorat hai.........ki jeevan ho to kaisa ho aur mrityu ho to kaisi..........uska aalingan hum karein ya wo hamara varan kare.
ReplyDeleteबहुत दिनों के बाद लिखा विजय जी। पर लिखा हमेशा की तरह बेहतरीन और दिल को छूता हुआ। पर दिल उदास भी हुआ। खैर रचना लिखी गई बहुत सुन्दर है। हर एक शब्द बहुत कुछ कह रहा हूँ। आपने सबकुछ कह दिया इसमें।
ReplyDeleteकितने ही स्वपन अधूरे से रह गए है ;
कितने ही शब्दों को ,
मैंने कविता का रूप नहीं दिया है ;
कितने ही चित्रों में ,
मैंने रंग भरे ही नहीं ;
कितने ही दृश्य है ,
जिन्हें मैंने देखा ही नहीं ;
सच तो ये है कि ,
अब लग रहा है कि मैंने जीवन जिया ही नहीं
पर स्वप्न कभी भी तो पूरे नहीं हो पाते है
हाँ एक स्वपन ,
जो मैंने ज़िन्दगी भर जिया है ;
इंसानियत का ख्वाब ;
उसे मैं छोडे जा रहा हूँ ...
सुन्दर और प्यारे जज्बात।
मैं अपना वो स्वप्न धरा को देता हूँ...
ReplyDeleteकविता का यह समापन बेहतरीन लगा । आभार ।
आज आपने रुला दिया है...
ReplyDeleteमौन हूँ मैं...
मीत
ek sacchi dil ko chuti kavita
ReplyDeleteek sacchi dil ko chuti kavita
ReplyDeleteशाश्वत सच को बहुत खूबसूरती के साथ परोसा आपने.. हैपी ब्लॉगिंग
ReplyDeleteमैं अपना वो स्वप्न इस धरा को देता हूँ......
ReplyDeleteकाश यह स्वप्न पूरा हो
भाव-विह्वल हो गया कविता को पढ़कर विजय भाई। सचमुच जब सबका साथ छूट जाता है तो सिर्फ और सिर्फ मौत ही तो साथ देती है।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
मृत्यु एक परम सत्य । मृत्यु अंत नहीं , पूर्णता है जीवन की । मृत्यु पर एक सुन्दर कविता । आभार ।
ReplyDeletejab bhi mrityu ki baat hoti hai...paroksh men yah zindgi ke prati hamari lalak ko dikhati hai,isi jijivisha ke darshan aapki kavita men hue .... sundar !
ReplyDeleteracd. by email from Mrs. Nirmala kapila ....
ReplyDeleteवैराग्य रस मे डूबी हुई सुन्दर अभिव्यक्ति है तस्वीर देख कर ही लग रहा है कि आप उस पारब्रह्म के ध्यान मे हैं प्रकृति मे खोये हुये बहुत सुन्दर कविता बन पडी है
बधाई और शुभकामनायें
एक अच्छी रचना पर एक पुराना शेर याद आ गया :
ReplyDeleteज़िन्दगी को संभाल कर रखिये
ज़िन्दगी मौत की अमानत है
नीरज
विजय भैया को प्रणाम। मैं आपसे एक शिकायत करना चाहता हूं। आप अपनी कविताओं में इतनी गहराई कहां से ले आते हैं कि आदमी भाव विह्वल होने को मजबूर हो जाता है। मैं हमेशा आपकी कविताएं पढ़कर सोचने को मजबूर हो जाता हूं कि इस कदर गहराई से लिखने के लिए आदमी को क्या करना चाहिये। फिर सोचता हूं कि अगर सब के अंदर इतनी सलाहियत होती, तो आज हर ब्लॉगर विजय कुमार सापत्ति होता..., इसलिए संतोष कर लेता हूं। खैर, कविता बहुत ही जानदार है और जिस जीवंत तरीके से आपने मौत के इंतजार का वर्णन किया है, वह तारीफ की मोहताज नहीं। सूर्य को कितना भी बल्ब जला के दिखा दो, उसकी रोशनी कभी कम नहीं हो सकती।
ReplyDeleteइस रचना की कल्पना पर ही आपको १०० नंबर दिए जाते है.. इस प्रकार मैंने कभी सोचा नहीं मृत्यु के बारे में.. बहु८त ही उम्दा.. वाकई
ReplyDeleteबहुत सही और सुन्दर लिखा है आपने विजय जी ..
ReplyDeleteमृत्यु का स्मरण ही जीवन को सम्पूर्णता देता है.सुन्दर चिंतन भावुक विचार ...बधाई..
ReplyDeleteजीवन पर तो हर कोई लिख लेता है किन्तु मृत्यु पर लिखना?इस शाश्व्त सत्य पर रुला देने वाली रचना के लिये मै आपको प्रणाम करता हूं।
ReplyDeletebahu hi behtrin rachana hai ,bhavpoorn aur satya me lipti .
ReplyDeleteबन्धुवर विजय जी,
ReplyDeleteअक्षर अक्षर और शब्द शब्द ये कहने में समर्थ है कि विजयजी की काव्य प्रतिभा और शैली अनूठी है...........
अनजानी सी आहट को पंजीकृत करते हुए अधूरे स्वप्न जैसे जीवन को पूर्ण करने की तीव्र उत्कंठा कवि में कतई नहीं है लेकिन उसकी यह स्वीकारोक्ति कि उसने जीवन को जाना ही नहीं है ...सब कविताओं पर भारी है......
उसे प्रतीक्षा भी नहीं थी.........परन्तु वह स्वागत भी करता है..........
वाह वाह
बहुत खूब ...........
बधाई !
सानियत का ख्वाब ;
ReplyDeleteउसे मैं छोडे जा रहा हूँ ...
मै अपना वो स्वप्न इस धरा को सौंप जा रहा हूँ...
-काश, किसी का तो यय स्वप्न पूरा होता.
एक शास्वत सत्य के माध्यम से एक सशक्त बात कहती यह रचना-बहुत पसंद आई.
तस्वीर में पोज तो हमारा कॉपीराईट है. आप पर कॉपीराईट उलंघ्न का मामला बनता है..हा हा :)-बेहतरीन तस्वीर
ReplyDeleteविजय जी,
ReplyDeleteमृत्यू, स्मरण मात्र से सिहरन पैदा कर सकती है किसी को भी। लेकिन उसे साक्षी मानकर भावों से भरी कविता लिखना..... साहस का ही काम है और यह कोई सिद्धहस्त है कर सकता है।
कविता अपने उत्तरार्ध में अत्यंत ही संवेदनशील हो जाती है और गंभीर भी देखिये ....
साँसे कब जीवन निभाने में बीत गयी,
पता ही न चला ;
अब तुम सामने हो;
तो लगता है कि,
मैंने तो जीवन को जाना ही नहीं…..
बहुत ही अच्छी रचना के लिये बधाईयाँ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
भाई विजय जी,
ReplyDeleteअर्जुन भी इसी मोहपाश में फंस गए थे, अस्त्र-शास्त्र सब युद्ध क्षेत्र में रख दिया था, तभी कृष्ण को न केवल गीता ज्ञान अर्जुन को देना पड़ा, बल्कि उसे समझने और महसूस करने कि शक्ति भी देनी पड़ी, तब कही जा कर उन्हें यह ज्ञात हुआ कि अकेले आये हैं और अकेले जाना हैं, इस संसार में कोई भी हमेशा साथ नहीं रहेगा, जो पैदा हुआ वह मरेगा भी, फिर मोह कैसा, संताप कैसा, सत्य को स्वीकार करो, और अपना कर्म करो.............
आप ने तो अपना कर्म कर दिया, मौत का सुखद आलिंगन ऐसों कि ही भाता है., उनके सुख को अज्ञानी समझ ही नहीं सकता.
इस कविता के माध्यम से आप बहुत कुछ कह गए.
हार्दिक आभार आपका.
मेरे ब्लॉग पर आपका भी स्वागत है.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
recd. by email from Mr. Dilip Kawathekar.....
ReplyDeleteप्रिय विजयजी,
कविता पढने से पहले ही एक टिप्पंई करना चाहता हूं, जो मन में एक दम आयी:
आपने लिखा है, कि मन से इस कविता का जन्म हुआ है.
मैं शत प्रतिशत मानता हूं, और जानता हूं, कि आपकी कविता मन या अंतरमन की गहराई से निकलती है, और तभी उसमें निर्मलता और स्वच्छता का वास होता है. दिल से लिखा जाना भले ही मुख्तसर सा लिखा हो, दिमाग से लिखे गये महाकाव्य से ईक्कीस है.
पढकर फ़िर आऊंगा.
दिलीप
-----------
प्रिय विजयजी
आपकी कविता आंखें भिगो गयी.
अभी कुछ लिखने की स्थिती में नहीं छोडा है आपने. उबरते ही लिखना चाहूंगा.
तब तक आईना दिखाने के लिये धन्यवाद तो देता चलूं.
दिलीप
Recd.by email from Mr. Ashok Gupta......
ReplyDeleteप्रिय दोस्त विजय,
कविता पढ़ी और कविता अच्छी भी लगी लेकिन एक बात मन में अटक गयी. मेरा अनुभव है कि प्रेम में अगर मिलन नहीं भी हुआ तब भी प्रेम जीने की ताकत देता है क्योंकि प्रेम की अनुभूति भर सहते रहना जीने का कारण बन जाता है. इस नाते तुम्हारी पहले वाली कविता से इस कविता को जोड़ कर देखने पर मन में सवाल उठते हैं. सोचना.
अशोक
Recd.by email from Mr. Anil Pusadkar...
ReplyDeleteरुला दिया आपने तो।
jindgi ka yakin kaise karun
ReplyDeletebewafa bawafa nahin hoti
maut aayegi usko aana hai
wo wafadaar hai hamesha se
vijay ji, kitne hi swapn...........chhode jaa raha hun.
bahut khoob likha hai, itni himmat aur jeevat ke saath mratyu ka swagat kar saken , to baat hi kya hai!
uprokt shabd anubhavi vyakti hi likh sakta hai.
विजय जी क्या लिखा है. सच मानो एक बार दो बार तीन बार पढता ही रह गया. हमे सबको ये कविता बहुत पसन्द आयी. इसमे़ जीवन की मौत से मुलाकात भी है और उसका सामना करने का हौसला भी. बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteलेकिन सच तो ये है कि ,
ReplyDeleteतुम्हारे आलिंगन से मधुर कुछ नहीं
तुम्हारे आगोश के जेरे-साया ही ;
ये ज़िन्दगी तमाम होती है .....
बहुत खूब,
सच्चाई को बयाँ करती भावपूर्ण अभिव्यक्ती.
बधाई स्वीकार करें.
संवेदनशील रचना....
ReplyDeleteमैंने भी इस दोस्त में अपना कुछ देख लिया...इसे तो मैं अपनी प्रियतमा समझता हूँ.....इसे याद करवाने हेतु आपको हार्दिक धन्यवाद....!!
ReplyDeleteहर प्रारंभ के अंत और हर खुशी की क्षण्भंगुरता हो सहज स्वीकार करने की भावना ही जीवन को संपूर्णता देती है..बहुत प्रभावी, यथार्थपरक और आशावादी रचना...आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता सत्य की ओर जाती
ReplyDeleteधन्यवाद
कविता मे भाव इतने गम्भीर है कि कविता पढ्ते पढ्ते बार बार आप का न रहना दुखी कर रहा था फिर मन को समझाता कि ये तो उनकी कविता के भाव है मन से कविता में और कविताओं के मन से भावो के निकलने का शायद यही फर्क हो मुझ अज्ञानी को क्या मालूम इस सनातन सत्य पर कुछ शोध चल रहा था जिसमें आपने गति दी है धन्यवाद स्वीकारें !
ReplyDeleteमुझसे पहले सभी ने इतना कुछ कह दिया कि फिर से कहना शायद दोहराव ही होगा इसलिये सिर्फ़ इतना ही कहना चाहती हूं कि शब्दों से मन को छूने की कठिन कला में आपको महारत हासिल है.मन भीग गया.........
ReplyDeleteमृत्यु के बारे में लोग कम ही लिखते हैं. विषय ही ऐसा मार्मिक है कि इसके बारे में संतुलित तरीके से सोचना/लिखना आसान काम नहीं है.
ReplyDeleteइतना ही नहीं, इस विषय के विभिन्न पहलुओं के बारे में सोचने की तकलीफ कोई उठाता नहीं है, जबकि यह एक ऐसा विषय है जिसकी उपेक्षा कोई भी व्यक्ति नहीं कर सकता है.
इस संवेदनशील विषय को आप ने बहुत ही सोच समझ कर और जांच परख कर उसके विभिन्न आयामों को जिस तरह इस कविता में उकेरा है वह अपने आप में एक अनोखा प्रयोग है.
मेरा सुझाव है कि इसी तरह से मानव जीवन के अन्य पहलुओं पर भी जरूर रचना करें.
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
ek bahut hi sundar , maarmik , shaasvat aur anoothi rachnaa keh daali hai aapne
ReplyDeletezindgi ka sb se badaa aur sb se sachcha satya... jise shabdoN meiN baandhnaa lagbhag na-mumkin hai .. lekin aapke adamya saahas aur rachnaa sheelta ki kushalataa ne sb kar dikhaya ...
ek bahut achhee kavita par dheroN dheroN mubarakbaad
---MUFLIS---
Mujhe aapne meree khudkee rachna yaad dila dee.." too istarah aa.."
ReplyDeleteHaan, ham sabhee ko jana hai..jis aakhen kholete hain, usee din band honeka din tay hota hai..kewal ichha hotee hai ki, wo jana takleef de na ho!
Aapko jeevan kee anek shubhkamnayen!
मौत से आलिंगन !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भावः के साथ बहुत ही शानदार विषय पर बेहतरीन कविता
वाह !!
हां ये सच है
ReplyDeleteजीवन का अंतिम लक्ष्य ही मृत्यु है, या कहें मृत्यु ही तो लक्ष्य तक पहुंचाती है।
हम सभी तो इस की और रोज एक कदम बढ जाते है। जीवन की अकाट्य सच्चाई है यह। ये कविता बेमिसाल है, बधाई
हमने सुना है कि यूरोप में किसी कवि की मृत्यु संबंधित कविता से प्रेरित होकर सैकड़ों लोगों ने आत्महत्या कर ली थी उम्मीद है यहाँ ऐसा नहीं होगा !
ReplyDeleteya ak kadaya scha ha jo insahn bul jats yo ha maritayu......
ReplyDeletebahut sunder dhang se samaapan kiya hai apne kavitaa kaa.....
ReplyDeletesach me jab maut aati hai to kaisaa lagtaa hai na...?
jaise kuchh bhi nahi jiyaa ho abhi...
harivansh ray bachchan ki mdhushaala ki kuchh line yaad aa rahi hain.....
yum aaiyega saaki bankar, saath liye pawan hala,
ReplyDeletepe na hosh main phir aaiyega sura vishud wo matwala,
ye antim saaki, antim madira hai, pathik pyaar se peena isko....
...phir na milegi madhushala !!
अब सब कुछ भूल जाओ प्रिये,
ReplyDeleteआओ मुझे गले लगाओ ;
मैं शांत होना चाहता हूँ !
ज़िन्दगी ने थका दिया है मुझे;
तुम्हारी गोद में अंतिम विश्राम तो कर लूं !
bahut shai likha...
marityu ko meien ebhi likha tha apke shath share kar rahi hun...
yahi bata jo apne kahi meien bhi tab kahi thi...
baahein felaaye mujhe koi bulaa rahaa hai
kahtaa hai aa jao meri baahoin me
samaa jaao meri baahoin me kyunki…….
Tumhein chaahiye thodi si shaanti
Jo mein hi tumhein de sakta hun
Sab gam pal me door karne ko
Apne aagosh mein le sakta hun.
Tumhaari sab thakaan mit jaayegi
Meri baahoin me jab tum aaogee
Is jeevan se tumne kya paayaa hai
naa hi tum kuch ab yahaan paaogee.
Meri baahoin me tumhein mil jaayegi
Har tarah se shaanti kyunki….
Yahaan meri baahoin me naa koi dard hai
Naa koi thkaan hai,naa koi armaan hai
Tumjhe leke apni baahoin me
Tere gam sabhi mita dun mein
Tu aajaa meri baahoin mein
Tujhe sukh ki neend sulaa dun mein
acha laga padna
sakhi
बहुत बेहतरीन कविता विजय जी
ReplyDeleteBAHUT HEE SUNDAR RACHNA HAI. PADNE KE BAAD SEEDE DIL MEIN UTAR GAI.
ReplyDeleteविजय जी,आपको इस मन को छूती हुई कविता के लिए बधाई
ReplyDeleteबहुतों के पास मौत को आते देखा,
ReplyDeleteकईयों को वक्त बेवक्त , गले लगाते देखा,
आने वाले जाने वाले को, रोते गाते देखा,
मगर नहीं किसी को भी यूं बुलाते देखा...
बहुत ही अलग कल्पना और सोच...
एक मौन जो हम पर छा गया,
ReplyDeleteपर इसमें दुःख के बजाय एक मधुरता लिए खूबसूरत सी खामोशी है.
आप ई-मेल के जरिये हमें सूचित करते हैं. मैं पढ़कर धन्य हो जाता हूँ.
किसे !!
आपकी कविता और मेल दोनों को..... :-)
सत्पति जी, नमस्कार,
ReplyDeleteकविता के साथ आपकी फोटो अच्छी लग रही है. आपको आपके सर के चार बालों के द्वारा पहचाना है.
ढलता हुआ सूरज कविता के भाव से पूरी तरह से Match कर रहा है. आप अपनी पुराणी कविताओं में क्यों नहीं फोटो लगा देते. लोग उन्हें भी आज भी पढ़ते हैं और आजीवन पढ़ते रहेंगे.
पुनः आपके लेखन के लिए आपको बधाइयां.
mrutyu ko sundar kavita ke roop main bekhubi se apane pesh kiya hain...
ReplyDeleteBahut sundar rachna,bahut sundar abhivayakti or akk hakikat ko bayan kiya ha aapne aapni rachna men likhte yun hi rahiy...bahut-2 badhai..
ReplyDeleteHi Vijay,
ReplyDeleteThe way you presented death is very refreshing.Death as a friend is hardly pondered upon.
More of it is seen in a light of hatred and fear.You having it as a breeze of amiability was rich in thought.Humanity is one thing thats very much the need of the hour.I have always enjoyed the diversity of views and this idea satiated me.
I too once observed this subject,where I talked with the carrier of death,ofcourse after death:)
You will find mine here.
http://maglomaniacs-chaos.blogspot.com/2009/03/knock-knock-mr-gabriel.html
~Harsha
Recd.by emailfrom Mr.Ygendrer modgil......
ReplyDeleteवाकई बेहतरीन कविता लिखी है आपने
--YM
09896202929
kalamdanshpatrika.blogspot.com
recd. by email from Mr. Neelesh Jain...
ReplyDeleteDear Vijay Bhai
Aseem Sneh!
Aap ki kavita ise samay mere jeevan ka satya ban gayee hai kyonki 5 September ko mere pitaji ka dehant ho gaya ...aur janm dene wala mrityu ko prapt ho gaya...isi par aaj kuch blog par likh raha ...
Aapka Neelesh
Sir........... sabse pehle to maafi chahoonga................. deri se aane ke liye ........... main ghar chala gaya tha ........gorakhpur.............. aaj hiaaya hoon............. hope ki aap maaf kar denge................
ReplyDeleteapne is chote bhai ko.............
-------------------------
पर स्वप्न कभी भी तो पूरे नहीं हो पाते है
हाँ एक स्वपन ,
जो मैंने ज़िन्दगी भर जिया है ;
इंसानियत का ख्वाब ;
उसे मैं छोडे जा रहा हूँ ...
in lines ne to dil ko chhoo liya................
poori kavita apne aap mein sampoorna hai.........
A+_+++++++++++++++
Farach sunder pratyekachya jeewanach saty hech aahe. Jiwa sawe janme mrutyu .
ReplyDeleteदो कवितायें याद आती हैं यह पढ़ कर। पहली तो रॉबर्ट फ्रॉस्ट की - "अभी कहां आराम बदा, यह मूक निमन्त्रंण छलना है। अभी तो मीलों मुझको मीलों मुझको चलना है।" और दूसरी पंत जी की - "झरते हैं, झरने दो पत्ते, डरो न किंचित। रक्तपूर्ण मांसल होंगे फिर जीवन रंजित।"
ReplyDeleteऔर चूंकि यह दो महत्वपूर्ण कवितायें याद आ रही हैं, यह प्रमाण है कि आपने अपनी उत्कृष्टता उंडेली है इस कविता में!
Vijay ji . namashkaar
ReplyDeleteMout ko bahoot kareeb se lkha hai aapne ...... ek kavi ki kalpana mein mout bhi hasen ho jaati hai ....dil ko choote huve hai aapki rachna ... aapke yathaart rachna hai ... insaan sab kuch nahi kar paata jo karna chaahta hai .........
प्रेम की आहट से मृत्यु की आहट ....???
ReplyDeleteशायद आपकी इच्छा पूरी हो जाये ....सुना है दिसम्बर २१ २०१२ को कयामत का दिन होगा .....!!
yah merii aapki ab tak padhii kavitaaon me sabse achhii banii hai.
ReplyDeletemrityu sabkaa sach hai...par jiivan se badii nahii.
mrityu s abhay jiivan kaa bal deta hai.
badhaaii
recd. by email from Mr. Uday Dikshit .....
ReplyDeletevijayjee ,
aapkee kavita mratyu man ko choo gayee.bina aahat vah
aa dhamaktee hai ,hamen pata hi naheen chaltaa .kahte hain sukhad
hotee hai mratyu .
pyaree kavita ke liye sadhuvad .
kya kahun . socha tha bahut kuch lihkunga. shabd me bayan karun to aapki kavita ke saath nyyay nahi hoga. bus yun samajh len ki . dil se nikli or dil ko chu gayi.
ReplyDeletesatya
vijay ji sunder likha aapne ab taarif kaya karun.
ReplyDeleteDeath ..... a restful sleep , a friendly and fair presence , a solace. And we are afraid of it all through our life!! It's an amazing poem ...and very meaningful.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDelete