Wednesday, December 29, 2010

आहट प्रेम की , मृत्यु की और ईश्वर की ..



दोस्तों,
नमस्कार. इस बार मैंने एक नया प्रयोग किया है . जीवन के एक संकेत " आहट " को तीन अलग अलग छायाओ के साथ दर्शाया है . पहली कविता है "आहट प्रेम की" , दूसरी कविता है "आहट मृत्यु की" और तीसरी कविता है "आहट  ईश्वर की"  . पहली कविता में मैंने अपनी ही एक पुरानी कविता " रात भर यूँ ही " को  re - edit  किया  है . दूसरी कविता में मैंने अपनी ही एक पुरानी कविता "मृत्यु" को re - edit किया है .तीसरी कविता की प्रेरणा मुझे गुरुदेव श्री रविंद्रनाथ टैगोर के गीतांजलि काव्य संग्रह में से एक कविता  " आमार मिलन लागि तुमि  " [আমার মিলন লাগি তুমি ]  को पढ़कर मिली . It is basically backward integration management. पहले ईश्वर की आहट पर लिखा और फिर उसे cushioning के लिए प्रेम और मृत्यु की आहट को डाला . तीनो कविताओ की opening lines और closing lines  एक जैसी रखी है. मेरी आप सभी से नए साल की शुभकामनाओ के साथ ये गुजारिश है कि आप इसे पढ़े  और पढ़कर प्रेम से मृत्यु और मृत्यु से प्रभु की बांहों में जाने की प्रेरणा पाये. आपके आशीर्वाद और प्रेम भरे शब्दों का स्वागत है . प्रणाम   !!!




आहट  प्रेम  की …….!!!

ये कैसी अजनबी आहट है ..
कौन है  यहाँ , किसकी आहट है ये ...
जो मन में नए भाव जगा रही  है .

ओह.. ये तुम हो प्रेम...

तुम्हारी ही तो तलाश थी मुझे ..
शायद तुम्हारी आहट की वजह से ही  ;
किसी अजनबी ने प्यार मुझसे जताया .
अपनी आँखों से मुझे किसी ने पुकारा.

चुपके से हवा ने कुछ कहा शायद
या आँचल ने की कुछ आवाज़..
पता नही पर तुम गीत सुनाते रहो...

ये कैसी सनसनाहट है मेरे आसपास ,
या तुमने छेडा है मेरी जुल्फों को ,
पता नही पर तुम भभकते रहो..

किसने की ये सरगोशी मेरे कानो में ,
या थी ये सरसराहट इन सूखे हुए पत्तों की,
पता नही ,पर तुम गुनगुनाते रहो ;

ये कैसी चमक उभरी मेरे आसपास ,
या तुमने ली है ,एक खामोश अंगडाई
पता नही पर तुम मुस्कराते रहो;

एक छोटी सी आहट ने कितने प्रेम गीत
सुना दिए है  मुझे ,
आओ प्रेम तुम्हारा स्वागत है ...

अहा... इस आहट से मधुर और क्या होंगा ... 



आहट  मृत्यु  की ....!!!
 
ये कैसी अजनबी आहट है ..
कौन है  यहाँ , किसकी आहट है ये ...
जो मन में नए भाव जगा रही  है .

मेरे जीवन की , इस सूनी संध्या में ;
ये कौन आया है ….मुझसे मिलने,
ये कौन नितांत अजनबी आया है मेरे द्वारे ...

अरे ..तुम हो मित्र ;मेरी मृत्यु...
आओ स्वागत है तुम्हारा !!!

लेकिन ;
मैं तुम्हे बताना चाहूँगा कि,
मैंने कभी प्रतीक्षा नहीं की तुम्हारी ;
न ही कभी तुम्हे देखना चाहा है !

लेकिन सच तो ये है कि ,
तुम्हारे आलिंगन से मधुर कुछ नहीं
तुम्हारे आगोश के जेरे-साया ही ;
ये ज़िन्दगी तमाम होती है .....

मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ ,
कि ; तुम मुझे बंधन मुक्त करने चले आये ;

यहाँ …. कौन अपना ,कौन पराया ,
इन्ही सच्चे-झूठे रिश्तो ,
की भीड़ में,
मैं हमेशा अपनी परछाई खोजता था !

साँसे कब जीवन निभाने में बीत गयी,
पता ही न चला ;
अब तुम सामने हो;
तो लगता है कि,
मैंने तो जीवन को जाना ही नहीं…..

पर ,
अब सब कुछ भूल जाओ प्रिये,
आओ मुझे गले लगाओ ;
मैं शांत होना चाहता हूँ !
ज़िन्दगी ने थका दिया है मुझे;
तुम्हारी गोद में अंतिम विश्राम तो कर लूं !

तुम तो सब से ही प्रेम करते हो,
मुझसे भी कर लो ;
हाँ……मेरी मृत्यु
मेरा आलिंगन कर लो !!!

बस एक बार तुझसे मिल जाऊं ...
फिर मैं भी इतिहास के पन्नो में ;
नाम और तारीख बन जाऊँगा !!

कितने ही स्वपन अधूरे से रह गए है ;
कितने ही शब्दों को ,
मैंने कविता का रूप नहीं दिया है ;
कितने ही चित्रों में ,
मैंने रंग भरे ही नहीं ;
कितने ही दृश्य है ,
जिन्हें मैंने देखा ही नहीं ;
सच तो ये है कि ,
अब लग रहा है कि मैंने जीवन जिया ही नहीं

पर स्वप्न कभी भी तो पूरे नहीं हो पाते है

हाँ एक स्वपन ,
जो मैंने ज़िन्दगी भर जिया है ;
इंसानियत का ख्वाब ;
उसे मैं छोडे जा रहा हूँ ...
मैं अपना वो स्वप्न इस धरा को देता हूँ......

मेरी मृत्यु...
आओ स्वागत है तुम्हारी आहट का ,
जो मेरे जीवन की अंतिम आहट है .

अहा... इस आहट से मधुर और क्या होंगा ... 




आहट ईश्वर की ......!!!

ये कैसी अजनबी आहट है ..
कौन है  यहाँ , किसकी आहट है ये ...
जो मन में नए भाव जगा रही  है .

ये तो तुम हो मेरे प्रभु....

हे मेरे मनमंदिर के देवता
कबसे तुझसे मिलने की प्यास थी मन में .
आज एक पहचानी सी आहट आई
तो देखा की तुम थे मेरे मन मंदिर के द्वार पर .
अहा ...कितना तृप्त हूँ मैं आज तुम्हे  देखकर .
बरसो से मैंने तुम्हे जानना चाहा ,
पर जान न पाया
बरसो से मैंने तुम्हे देखना चाहा
पर देख न पाया
तुम्हे देखने और जानने के लिए
मैंने इस धरती को पूरा ढूंढ डाला .

पर तुम कहीं न मिले ..

और देखो तो आज तुम हो

यहाँ मेरे मन मंदिर के द्वार पर ..
और तुम्हे यहाँ आने के लिए कोई भी न रोक पाया .
न तुम्हारे बनाये हुए सूरज और चन्द्रमा
और न ही मेरे बनाये हुए झूठे संसार की बस्ती.

अचानक  ही पहले  प्रेम की और फिर  मृत्यु की आहट हुई  ,
मैं  नादान ये जान नहीं  पाया की वो दोनों  तुम्हारे ही भेजे  हुए दूत  थे
जो की मुझसे  कहने  आये थे ,
कि अब तुम आ  रहे  हो ..आने वाले हो ...

आओ
  प्रभु ,
तुम्हारा स्वागत है ..
जीवन के इस अंतिम क्षण में तुम्हारे दर्शन  हुए..
अहा , मैं धन्य  हो गया  .
तुम्हारे आने से मेरी वो सारी व्यथा दूर हो जायेंगी ,
जब तुम मुझे अपनी बाहों में समेटकर  मुझे अपना  लोंगे ..

और न जाने क्यों , अब मुझे कोई भय नहीं रहा ,
तुम्हे जो देख लिया है
तुम्हारी आहट ने
मेरे मन में एक नयी उर्जा को भर दिया है
;
कि
मैं फिर नया जन्म लूं
और तुम्हारे बताये हुए रास्तो पर चलूँ

मेरा प्रणाम  स्वीकार करो प्रभु ....

अहा... इस आहट से मधुर और क्या होंगा ...






आप सभी को नए वर्ष कि शुभकामनाये !!!--- विजय कुमार

Monday, December 13, 2010

मुझे तेरा इन्तजार है .....जानां !!!



हमेशा की तरह ,
आज भी अजनबी शाम को ढलते हुए सूरज के संग ,
उदास रंगों को आसमान में बिखरते  हुए देख रहा था ;
और सोच रहा था ,
उन शामो के बारे में ,
जब तुम मेरे साथ थी ...!!

ऐसा लगता है कि
वो किसी और जनम की  बात थी ,
जब मैं इन्ही रंगों को तेरे चेहरे  पर
अपने प्यार  के साथ घुलते हुए देखता था ....

सच में वो किसी और जन्म की बात लगती है ,
जब हम हाथो में हाथ डाल कर ;
किसी पुराने शहर की गलियों में घुमते थे ;
जब मंदिर के सारे देवता ;
गर्भगृह  में हमारी ही  प्रतीक्षा करते  थे .
या , 
वो नदी के बहते पानी में अपने अक्स को देखना ..
और वो लम्बी लम्बी सडको पर ;
बिना किसी मंजिल के दूर तक बहते चले जाना
और वो अनजान जंगलो की ,
फूलो की झुकी हुई डालियों पर तेरे प्यार को ठहरा हुआ देखना ,
किसी तेरे शहर की झील में ;
सूरज, शाम और पानी के साथ तुम्हे  disk jockey जैसे mix करना
और ज़िन्दगी के रुके हुए पलो में तुम्हे अपने camera में ;
एक immortal तस्वीर की तरह कैद कर लेना ...
सब कुछ किसी और जन्म की बात ही लगती है ..जानां  ..

क्या तुम्हे वो सारे लम्हे याद है ,
जब तुम्हारी साँसे मेरे नाम थी ,
जब तुम्हारी धड़कने भी मेरे नाम थी ,
जब तुम मुझे देखती थी प्यार के अद्बुत क्षणों में ..
जानां.. आज मैं बहुत उदास हूँ.
तुम बहुत याद आ रही  हो ..

जाने ,तुम दुनिया के किस जंगल में खो गयी हो ..
आ जाओ जानां, मुझे तेरा इन्तजार है ....!!!

Tuesday, December 7, 2010

" प्यार "

सुना है कि मुझे कुछ हो गया था...

बहुत दर्द होता था मुझे,
सोचता था, कोई खुदा ;
तुम्हारे नाम का फाहा ही रख दे मेरे दर्द पर…

 
कोई दवा काम ना देती थी…
कोई दुआ असर न करती थी…

 
और फिर मैं मर गया ।

जब मेरी कब्र बन रही थी,
तो;
मैंने पूछा कि मुझे हुआ क्या था।
लोगो ने कहा;
" प्यार "

 

Sunday, December 5, 2010

जबलपुर ब्लॉगर सम्मलेन : एक स्नेह भरा अनुभव



दोस्तोंनमस्कार . 

जबलपुर ब्लॉगर सम्मलेन मेरे लिए मात्र एक सम्मलेन ही नहीं बल्कि और भी बहुत कुछ रहा ..मित्रता और प्रेम और आत्मीयता और स्नेह से भरे हुए दो दिन कैसे गुजरे , पता ही नहीं चल पाया. इसकी शुरुवात हुई , जब मैंने समीर जी से मिलने की इच्छा जाहिर की और फिर जबलपुर जाने का प्रोग्राम बन गया . फिर मुझे पता चला की भाई मैं मुख्य अतिथि हूँ तो मेरे होश उड़ गए क्योंकि , मैं कभी किसी सभा और गोष्टी में नहीं जाता हूँ.. पर समीर जी और दुसरे सारे दोस्तों से मिलने की ललक ने मुझे वहां  पहुंचा दिया . इस सम्मलेन के लिए मैं समीर जी का धन्यवाद दूंगा.

१ दिसम्बर  की शाम को होटल में पहुंचा और वह मेरा स्वागत गिरीश जी और ललित जी ने किया , फिर शाम होते होते बवाल जी विजय जी और समीर जी पहुंचे , फिर महेंद्र जी , संजय जी, प्रेम जी , विवेक जी , राजेश जी पहुंचे और फिर एक दुसरे से परिचय हुआ .. थोड़ी देर में सम्मलेन शुरू हुआ. हम तीनो को [ मुझे , ललित जी और अवदिया जी को  ] सम्मान पत्र दिया गया . मुझे बहुत ख़ुशी हुई . बाद में कई मित्रो से परिचय भी हुआ और फिर हम सबने अपनी अपनी बाते रखी . 

समीर जी एक बात ने मुझे बहुत प्रभावित किया की ,हमें अपना ब्लॉग्गिंग का आचरण अच्छा रखना चाहिए , क्योंकि , भविष्य में यदि हमारे पोते,नाती , हमारे बारे में जाने [ अगर हमने कुछ गलत लिखा है तो ] तो क्या होंगा . 

मैंने भी तीन बाते कही . [१] ब्लॉग्गिंग ,गाँव के चौपाल की तरह होना चाहिए , जहाँ स्वस्थ समाज का निर्माण होता हो , न की पान की दूकान , जहाँ जिसके जी में जो आया बोल दिया . [२] ब्लॉग्गिंग प्रेम, दोस्ती ,भक्ति इत्यादि अच्छे गुणों का extension होना चाहिए न की समाज के बुरे गुणों ,जैसे की ताने देना , छींटा  कशी करना इत्यादि गुणों का extension .. [ ३] ब्लोग्गेर्स में जो प्रेम भाव और भाई चारा रहता है वो काबिले तारीफ है और इस प्रेम को ख़त्म नहीं करना चाहिए .
 
मैंने तो जल्दी से अपनी बाते कह दी , क्योंकि मुझे mike से वैसे भी डर ही लगता है.. सारे मित्रो ने अच्छी अच्छी बाते कही , जो की गिरीश भाई ने अपने ब्लॉग में लिखी है .
 
शाम को मेरी , बवाल जी की , ललित जी , अवदिया जी की मण्डली में गाने का और कव्वाली  का प्रोग्राम पेश किया , याने की कहने वाले भी हम थे और सुनने वाले भी हम  ही थे.. बवाल जी की आवाज का जादू चल गया .. उनकी एक कव्वाली ने मुझे पर ऐसा सूफियाना जादू चलाया  की मैं सूफी नाच , नाचने लगा .

दुसरे दिन ललित जी ने मुझे धर्म पर कई बात सुनाई . मुझे बहुत अच्छा लगा.  अवदिया जी ने हिंदी पर मुझे बहुत कुछ बताया.

हम सभी भेडाघाट  घूमने पहुंचे .. वहां नाव की सैर में हमने फिर गाना गाया . मज़ा आ गया
और फिर बवाल जी ने एक शानदार dish हमे खिलाई -- गक्कड़ भरता और दाल .. वाह वाह ..
 
शाम को विजय जी ने अपनी कुछ रचनाये सुनाई , बहुत आनंद आ गया ; specially  उन्होंने एक इंग्लिश और हिंदी मिक्स रचना सुनाई  ..  

और रात को , मैं और बवाल जी ने अपना समां बाँधा  , कविता, कव्वाली, ब्लॉग्गिंग, गाना ... बस महफ़िल रात तक जमी रही .. सोचिये वो मेरी एक कविता ; समीर जी को देर रात को अपनी आवाज में सुनाये और समीर जी भी जवाब में अपनी एक कविता हमें सुनाये.. वाह वाह .. बवाल जी कि आवाज का मैं ऐसा कायल हुआ की मैंने ज़िन्दगी में पहली बार किसी को अपनी कविताओ की किताब दे दी .. मैं उनसे अपनी कविताओ को सुनना चाहूँगा .
 
सुबह , विजय जी अपनी पत्नी के साथ मुझे एअरपोर्ट छोड़ने आये , मन स्नेह से भर गया ..
 
जबलपुर मेरे लिए वैसे ही बहुत ख़ास है . अपने बहुत सी प्रेम कविताये मैंने यही लिखी है . और अब तो सारे जबलपुरिया ब्लोग्गेर्स ने मुझे अपना लिया है तो मुझे कहने के लिए कुछ नहीं बचता .
मैं इस प्रेम और अपनत्व के लिए सारे मित्रो का धन्यवाद देना चाहूँगा . और बार बार उन सब से मिलना चाहूँगा ..

मुझे समीर जी का soft spoken style . , महेंद्र जी का बोलने का style , गिरीश जी का public speaking , विजय जी का अपनत्व और स्नेह , राजेश जी का कार्टूनिंग , बवाल जी की दिलकश आवाज , तथा दुसरे सारे मित्रो का संग बहुत  याद रहेंगा .

मैं कुछ photos डाल रहा हूँ .. राजेश जी का बनाया हुआ कार्टून भी है .

मैं उन सभी मित्रो को दिल से धन्यवाद देता हूँ और जल्दी से फिर से मिलने की इच्छा रखता हूँ .

 प्रणाम 
























एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...