कभी कभी मैं बुनता हूँ ख्वाब
और फिर चुनता हूँ उन्हें हमेशा ;
अपने जेहन में सहेज कर रखने के लिये;
और फिर चुनता हूँ उन्हें हमेशा ;
अपने जेहन में सहेज कर रखने के लिये;
मैं ख्वाब देखता भी हूँ अक्सर
सोते हुए भी और जागते हुए भी
मेरी आखें उन्हें मेरे मन में उतारती है
और लम्हा लम्हा मैं उन्हें जीता हूँ !
कई ख्वाबो के टुकड़े ;
कई ख्वाबो के टुकड़े ;
मैं अक्सर रख लेता हूँ ;
अपने तकिये के नीचे ,
ताकि ,
तनहा रातो में उठकर उन्हें अपने सीने से लगा सकूँ
और कभी कभी चूम लेता हूँ उन्हें बेतहाशा .
क्योंकि उन टुकडो में मेरी ज़िन्दगी भी बसी हुई है .
ताकि ,
तनहा रातो में उठकर उन्हें अपने सीने से लगा सकूँ
और कभी कभी चूम लेता हूँ उन्हें बेतहाशा .
क्योंकि उन टुकडो में मेरी ज़िन्दगी भी बसी हुई है .
वक़्त कभी घडी की सुईयो के साथ चलता है और
कभी चलता है कलेंडर की तारीखों के साथ
लेकिन मेरे ये ख्वाब अक्सर मेरे लिये ;
जमे हुए लम्हे
बनकर मेरे मन में रह जाते है .
ऐसा ही एक ख्वाब बुना था मैंने तेरे संग
और बुनते हुए मैंने चुने थे उसमे रंग ज़िन्दगी के
फिर वो ख्वाब एक दिन ज़िन्दगी के टुकडो में बदल गया;
मैंने बड़े जतन से उन टुकडो को चुना,
और उनमे अपने बुने हुए ख्वाब के लम्हे देखे ;
और उन्हें सहेज कर रख दिया अपने तकिये के नीचे !
बहुत दिन गुजर गये जानां;
अब भी रातो को उठकर उन ख्वाबो को गले लगता हूँ;
और खामोश दीवारों से तेरा पता पूछता हूँ.....!!!
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (5-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत दिन गुजर गये जानां; अब भी रातो को उठकर उन ख्वाबो को गले लगता हूँ; और खामोश दीवारों से तेरा पता पूछता हूँ.....!!!
ReplyDeleteपूरी कविता की जान हैं ये पंक्तियां…………कभी दिल किया और मन मे कोई विचार आया तो इस पर जरूर लिखूंगी…………बहुत गहरा दर्द समाया है इन पंक्तियों मे।
क्वाबों को सहेज कर रखना है हम सबको, न जाने कब उनका समय आ जाये।
ReplyDeleteमैं ख्वाब देखता भी हूँ अक्सर
ReplyDeleteसोते हुए भी और जागते हुए भी
मेरी आखें उन्हें मेरे मन में उतारती है
और लम्हा लम्हा मैं उन्हें जीता हूँ !bhut hi dard aur bhaavpur abhivaykti hai...
बहुत सुंदर प्रस्तुति, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत दिन गुजर गये जानां;
ReplyDeleteअबभी रातो को उठकर उन ख्वाबो को गले लगता हूँ;
और खामोश दीवारों से तेरा पता पूछता हूँ.....!!!
भावनाओ की कोमल अभिव्यक्ति. बहुत सुंदर लगी यह कविता.
marmik rachana -
ReplyDeleteबहुत दिन गुजर गये जानां;
अब भी रातो को उठकर उन ख्वाबो को गले लगता हूँ;
और खामोश दीवारों से तेरा पता पूछता हूँ.....!!!
mohak samvedanshil srijan .shkriya ji.
komal,sunder ,yadon ke dard se bhari rachna ...!!
ReplyDeleteआपकी कविता वटवृक्ष में पढी, आपका ब्लॉग देखा, बहुत अच्छा लगा , दिल्ली हिन्दी भवन में ब्लॉगर्स सम्मेलन में भी आपकी चर्चा सुनी । बधाई स्वीकारें......
ReplyDeleteबहुत दिन गुजर गये जानां; अब भी रातो को उठकर उन ख्वाबो को गले लगता हूँ; और खामोश दीवारों से तेरा पता पूछता हूँ.....!!!
ReplyDeleteati sunder
rachana
ऐसा ही एक ख्वाब बुना था मैंने तेरे संग
ReplyDeleteऔर बुनते हुए मैंने चुने थे उसमे रंग ज़िन्दगी के फिर वो ख्वाब एक दिन ज़िन्दगी के टुकडो में बदल गया;
मैंने बड़े जतन से उन टुकडो को चुना,
और उनमे अपने बुने हुए ख्वाब के लम्हे देखे ;
और उन्हें सहेज कर रख दिया अपने तकिये के नीचे !
बहुत दिन गुजर गये जानां;
अब भी रातो को उठकर उन ख्वाबो को गले लगता हूँ; और खामोश दीवारों से तेरा पता पूछता हूँ.....!!!
bahut sundar vijay ji....har kafz dilki gahrai se nikla lagta hai...
komal ehsaso ka sunder srijan.
ReplyDeleteप्यारी,मीठी .. कोमल अभिव्यक्ति,
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