एक दिन जब तुम ;
मुझसे मिलने आओंगी प्रिये,
मेरे मन का श्रंगार किये हुये,
तुम मुझसे मिलने आना !!
तब मैं वो सब कुछ तुम्हे अर्पण कर दूँगा ..
जो मैंने तुम्हारे लिए बचा कर रखा है .....
कुछ बारिश की बूँदें ...
जिसमे हम दोनों ने अक्सर भीगना चाहा था
कुछ ओस की नमी ..
जिनके नर्म अहसास हमने अपने बदन पर ओड़ना चाहा था
और इस सब के साथ रखा है ...
कुछ छोटी चिडिया का चहचहाना ,
कुछ सांझ की बेला की रौशनी ,
कुछ फूलों की मदमाती खुशबु ,
कुछ मन्दिर की घंटियों की खनक,
कुछ संगीत की आधी अधूरी धुनें,
कुछ सिसकती हुई सी आवाजे,
कुछ ठहरे हुए से कदम,
कुछ आंसुओं की बूंदे,
कुछ उखड़ी हुई साँसे,
कुछ अधूरे शब्द,
कुछ अहसास,
कुछ खामोशी,
कुछ दर्द !
ये सब कुछ बचाकर रखा है मैंने
सिर्फ़ तुम्हारे लिये प्रिये !
मुझे पता है ,
एक दिन तुम मुझसे मिलने आओंगी ;
लेकिन जब तुम मेरे घर आओंगी
तो ;
एक अजनबी खामोशी के साथ आना ,
थोड़ा , अपनी जुल्फों को खुला रखना ,
अपनी आँखों में थोड़ी नमी रखना ,
लेकिन मेरा नाम न लेना !!!
मैं तुम्हे ये सब कुछ दे दूँगा ,प्रिये
और तुम्हे भीगी आँखों से विदा कर दूँगा
लेकिन जब तुम मुझे छोड़ कर जाओंगी
तो अपनी आत्मा को मेरे पास छोड़ जाना
किसी और जनम के लिये
किसी और प्यार के लिये
हाँ ;
शायद मेरे लिये
हाँ मेरे लिये !!!
मदमाती कविता, खुबसूरत अहसास ,सुंदर भावाभिव्यक्ति..बधाई
ReplyDeletedil ke har bhaav ko apne apni rachna me shabo se piro diya hai.. bhut bhut acchi rachna...
ReplyDeleteवाह पढ़कर आनन्द आ गया।
ReplyDeleteबेहद दर्द भरी है आपकी रचना।
ReplyDeleteदिल का एहसास पन्नो पे उतर आया है .....
ReplyDeleteविजय जी बहुत दिनों से ब्लॉग पे नहीं आये आप....नई कविता लिखी है समय मिलाने पर पढियेगा...
http://sumanmeet.blogspot.com/2011/05/blog-post.html
बहुत खुबसुरत रचना, धन्यवाद
ReplyDeleterachnaa mei dard ka ehsaas bhi hai
ReplyDeletemilan ki pyaas bhi,, usse sb arpan kar paane ki aas bhi ,,
waah ...
kaavya ka bahut sundar tohfaa diyaa aapne apne paathkoN ko... !