Wednesday, April 11, 2012

जानवर

                                                  image courtesy : narnia movie
 
अक्सर शहर के जंगलों में ;
मुझे जानवर नज़र आतें है !
इंसान की शक्ल में ,
घूमते हुए ;
शिकार को ढूंढते हुए ;
और झपटते हुए..
फिर नोचते हुए..
और खाते हुए !

और फिर
एक और शिकार के तलाश में ,
भटकते हुए..!

और क्या कहूँ ,
जो जंगल के जानवर है ;
वो परेशान है !
हैरान है !!
इंसान की भूख को देखकर !!!

मुझसे कह रहे थे..
तुम इंसानों से तो हम जानवर अच्छे !!!

उन जानवरों के सामने ;
मैं निशब्द था ,
क्योंकि ;
मैं भी एक इंसान था !!!

38 comments:

  1. सच बोलती कविता...

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया कटाक्ष............

    सार्थक रचना.
    सादर.

    ReplyDelete
  3. एकदम सच्ची बात कही है सर!


    सादर

    ReplyDelete
  4. वो परेशान है !
    हैरान है !!
    इंसान की भूख को देखकर !!!
    सच कहती हुई ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

    ReplyDelete
  5. ईमेल के द्वारा कमेन्ट : Sumita Keshwa

    जानवर बहुत ही अच्छी रचना है ...आज के माहौल को सार्थक करती हुई झिंझोड़कर रख देने वाली कविता बहुत-बहुत बधाई विजय जी...ब्लाग में कमेंट नहीं जा पा रही है

    ReplyDelete
  6. सत्य को कहती अच्छी रचना

    ReplyDelete
  7. ईमेल के द्वारा कमेन्ट : Dr.M.C. Gupta

    विजय जी,

    कविता अच्छी है.

    आप a poet , a musician , a singer, a photographer, a sculptor, a comic artist, a dancer, a writer, a painter, हैं, यह जान कर खुशी और आश्चर्य है.
    -ख़लिश

    ReplyDelete
    Replies
    1. श्री M.C.Gupta जी ,
      बस ईश्वर का आशीर्वाद है जी कि मैं अपने छोटे से जीवन में इन सब को प्राप्त कर सका की मैं अपने आपको एक simple human ,a dreamer, a poet , a musician , a singer, a photographer, a sculptor, a comic artist, a dancer, a writer, a painter, a giver, a worshiper, a lover, a friend, a teacher, a mentor, a speaker, a thinker, a philosopher and a lifetime student learning from this world कह सकूँ,,,,,,,
      और यात्रा तो अभी जारी है मित्र.

      Delete
  8. मुझसे कह रहे थे..
    तुम इंसानों से तो हम जानवर अच्छे !!!

    ये पंक्तियाँ आप एकदम सही लिखे हैं .... यही आज की हक़ीकत है .... !!

    ReplyDelete
  9. सही कहा आपने!..कई बार इंसान जानवरों से बदतर व्यवहार करते है!...अपना 'मनुष्यत्व' भूल जाते है!....बहुत सुन्दर रचना...आभार!

    कृपया मेरे लिंक पर पधारें....http://arunakapoor.blogspot.in/2012/04/blog-post_09.html

    ReplyDelete
  10. अच्छी कविता है!
    जो जंगल के जानवर है ;
    वो परेशान है !
    हैरान है !!
    इंसान की भूख को देखकर !!!

    मुझसे कह रहे थे..
    तुम इंसानों से तो हम जानवर अच्छे !!!

    ReplyDelete
  11. यथार्थ को बड़ी बेबाकी से उधेड़ती एक बहुत ही सटीक रचना ! शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  12. जानवर का इंसान से संघर्ष जारी है,
    एक अघोषित युद्ध की तैयारी है।

    ReplyDelete
  13. nirantar viksit hoti sabhyata ne manav ko asabhya banaya, uski bhook badha di..... bilkul sahi chitran kiya hai aapne apni rachna mein.
    shubhkamnayen

    ReplyDelete
  14. अच्छी कविता पढ़ पढ़ के ऊब गए हैं... कुछ विवादित टाइप का लिखिए... जिससे लोग निंदा निंदा खेल सकें :)

    ReplyDelete
  15. बहुत सुन्दर रचना.विजय जी,
    मुझे जानवर नज़र आतें है !
    इंसान की शक्ल में ! JAI BHARAT !

    ReplyDelete
  16. कविता मन को छू गयी. जानवर कम सो कम अपनी जाति का शिकार नहीं करते. एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को कतनो में लगा है.
    बधाई.
    अर्चना पैन्यूली

    ReplyDelete
  17. ईमेल के द्वारा कमेन्ट : Anita Bharti

    विजय जी कविता बहुत अच्छी है। अच्छी कविता पढवाने के लिए धन्यवाद।
    अनिता भारती

    ReplyDelete
  18. आपका कलाम शानदार है।
    कम ब्लॉगर हैं जो हिंदी ब्लॉगिंग को अच्छे विचार दे पा रहे हैं।
    वर्ना तो ...
    हिंदी ब्लॉगिंग की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार दिल्ली के ब्लॉगर्स

    ReplyDelete
  19. VIJAY JI , BAHUT DINON KE BAAD EK ACHCHHEE KAVITA PADHNE KO
    MILEE HAI . BADHAAEE AUR SHUBH KAMNAAYEN .

    ReplyDelete
  20. मेरे मन की गहराई में भी
    एक जानवर छिपा हैं
    जो मर जाना चाहता हैं ,
    पर ये दुनिया उसे बार बार
    जीवित कर देती हैं ,
    वो जानवर जीवित रहते हुए
    सच बोलना चाहता हैं ,
    पर बार बार उसे झूठ बोलने पर
    मजबूर किया जाता हैं
    वो इंसानों से प्यार करना चाहता हैं
    पर बार बार उसे नफरत के लिए
    उकसाया जाता हैं
    जो दोस्त हैं ,
    वो पीठ के पीछे निंदा करते हैं
    और मुहँ पर दोस्ती का दम भरते हैं
    इसी बात से ये जानवर बार बार
    कुछ कटु शब्दों की भाषा बोलता हैं
    हां मेरे भीतर भी एक जानवर बसता हैं
    जो सिर्फ अपनों के लिए सोचता हैं

    सही कहाँ आपने ....हम इंसानों से
    जानवर अच्छे हैं ....कम से कम
    वो झूठ बोलके .निंदा करके
    दिल को नहीं दुखाते ,
    वो अपनी जात के बन कर ,तो रहते हैं
    हम इंसान ही ...बार बार
    अपने कहें से भी पलट जाते हैं
    ठीक उस थाली के बेंगान कि तरह
    जिसका कोई वजूद नहीं होता .....
    हां हम सब जानवर ही तो हैं .............||
    अनु

    ReplyDelete
  21. सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी .....

    ReplyDelete
  22. जानवर जंगलों के बजाय शहरों में ज्यादा हैं. जंगल में जानवर कम हो रहे हैं पर शहर में बढ़ रहे है दिन प्रतिदिन.

    सुंदर रचना.

    ReplyDelete
  23. We are full of greed and dishonesty. No wonder animals feel better than us.

    Profound work Sir.

    ReplyDelete
  24. ईमेल के द्वारा कमेन्ट :lata_seth20@yahoo.co.in

    एक नंगा सच

    lata

    ReplyDelete
  25. ईमेल के द्वारा कमेन्ट : puneet pandey

    good poem. sir !

    ReplyDelete
  26. आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.in/2012/04/847.html
    चर्चा - 847:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

    ReplyDelete
  27. ईमेल के द्वारा कमेन्ट :kavita Gupta

    bahut khub ati sundar

    ReplyDelete
  28. sach hai ab jaanwar garvaanwit honge apne jaanwar hone par, kyonki hum insaan jaanwar bhi na ban paaye. jaanwar kamse kam apni jaati par ghaat nahi lagaate. bahut achchhi rachna, badhai.

    ReplyDelete
  29. ईमेल के द्वारा कमेन्ट :

    प्रिय विजय कुमार जी ,
    आपकी कविता बहुत अच्छी लगी. पढ़ते हुए मुझे " अज्ञेय " की " सांप " शीर्षक कविता की याद आ गई . दोनों कविताओं का मूल स्वर एक ही है. आज मनुष्य पशुओं से भी गया गुज़रा हो गया है. आपकी संवेदनशीलता के लिए आपका अभिनन्दन
    सस्नेह - रवीन्द्र अग्निहोत्री

    ReplyDelete
  30. ईमेल के द्वारा कमेन्ट :

    विजय जी
    आपकी कविता अच्छी लगी इसी तरह लिखते रहेँ।
    सादर
    सँतोष श्रीवास्तव्

    ReplyDelete
  31. ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
    bhai shri Vijayji,
    Nmaskar,
    sach kaha aapne sabhy kahlane wale shahar main janwaron
    ki koi kami nahi. achi hai kavita.chitr ka chayan bhi...

    '' saleeke se jeene ki hum umeed hi karte rah gaye,
    tahzeeb odhe log bhi beadab nikle....


    Regards,
    Shilpa

    ReplyDelete
  32. बिल्कुल सच्ची बात...बधाई...।

    ReplyDelete

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...