स्केच मैंने बनायी हुई है .
मेरी ज़िन्दगी के दश्त,
बड़े वीराने है !
दर्द की तन्हाईयाँ ,
उगती है
मेरी शाखों पर नर्म लबों की जगह.......!!
तेरे ख्यालों के साये
उल्टे लटके ,
मुझे क़त्ल करतें है ;
हर सुबह और हर शाम .......!!
किसी दरवेश का श्राप हूँ मैं !!
अक्सर शफ़क शाम के
सन्नाटों में यादों के दिये ;
जला लेती हूँ मैं ...
लम्हा लम्हा साँस लेती हूँ मैं
किसी अपने के तस्सवुर में जीती हूँ मैं ..
सदियाँ गुजर गयी है ...
मेरे ख्वाब ,मेरे ख्याल न बन सके...
जिस्म के अहसास ,बुत बन कर रह गये.
रूह की आवाज न बन सके...
मैं मरीजे- उल्फत बन गई हूँ
वीरानों की खामोशियों में ;
किसी साये की आहट का इन्तजार है ...
एक आखरी आस उठी है ;
मन में दफअतन आज....
कोई भटका हुआ मुसाफिर ही आ जाये....
मेरी दरख्तों को थाम ले....
अल्लाह का रहम हो ;
तो मैं भी किसी की नज़र बनूँ
अल्लाह का रहम हो ;
तो मैं भी किसी की हीर बनूँ......
[ शब्दों के अर्थ : दश्त : जंगल // शफ़क : डूबते हुए सूरज की रोशनी // दफअतन : अचानक ]
दर्द की तन्हाईयाँ ,
ReplyDeleteउगती है
मेरी शाखों पर नर्म लबों की जगह.......!!
आह! देखो तो ज़रा
लबों का लहू ही
उनकी ताज़पोशी करता है
तेरे ख्यालों के साये
उल्टे लटके ,
मुझे क़त्ल करतें है ;
हर सुबह और हर शाम .......!!
किसी दरवेश का श्राप हूँ मैं !!
क्यूंकि श्रापित रूहें ही उल्टी लटका करती हैं
सब के दिल में पलते हैं अरमान कुछ ऐसे ही...........
ReplyDeleteमगर सब यूँ व्यक्त नहीं कर पाते.....इतनी खूबसूरती से....
शब्दों के साथ रेखाओं से भी प्यारी अभिव्यक्ति.....
सादर
अनु
सादगी सी चाह ... गहरा एहसास लिए मन में उतर गई ये रचना विजय जी .... लाजवाब ...
ReplyDeletecomment by email :
ReplyDeleteअच्छी कविता है , विशेषकर यह पंक्तियाँ
सदियाँ गुजर गयी है ...
मेरे ख्वाब ,मेरे ख्याल न बन सके...
जिस्म के अहसास ,बुत बन कर रह गये.
रूह की आवाज न बन सके...
बधाई
Dr. Prem Janmejai
dard ko lekar aapne bahut khubsurat kavita ko shabd diye hain,badhai.
ReplyDeleteएक आखरी आस उठी है,
ReplyDeleteमन में दफनत आज...भावपूर्ण अभिव्यक्ति|
वाह!ऐसे ही ख्वाब आने दो,हकीकत भी बन जायेंगे |
ReplyDeletevijay , nice expressions as always
ReplyDeleteसदियाँ गुजर गयी है ...
ReplyDeleteमेरे ख्वाब ,मेरे ख्याल न बन सके...
जिस्म के अहसास ,बुत बन कर रह गये.
रूह की आवाज न बन सके..
.....बहुत मर्मस्पर्शी...रचना के भाव अंतस को छू जाते हैं....बहुत सुन्दर भावमयी रचना...
बहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
बहुत बढिया लिखा है...
ReplyDeleteअल्लाह का रहम हो ;
तो मैं भी किसी की नज़र बनूँ
अल्लाह का रहम हो ;
तो मैं भी किसी की हीर बनूँ......
भावों से ओतप्रोत कविता को आपने अपने स्केच में ढालने का अच्छा -खासा प्रयत्न किया है |
ReplyDeleterachna avum tasveer dono achhe hain.
ReplyDeleteshubhkamnayen
दर्द भरी दास्तां!...अति सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखा है...
ReplyDeleteAchhi rachna
ReplyDeleteबैठी हूँ अब तलक सांझ के होते अंधेरों में
ReplyDeleteअभी रात की गहराई तो बाकी हैं
जल रही हैं बाती इस दीए की
पूरी लौं तक जलना अभी बाकि हैं ||.......अनु
EK AUR KHOOBSOORAT KAVITA KE LIYE AAPKO BADHAAEE .
ReplyDeleteअभी फेस बुक पर भी पढ़ी- बहुत गहरी रचना है...बहुत बधाई. चित्र भी जबरदस्त!!
ReplyDeleteरेखांकन के साथ शब्दों की घड़ाई
ReplyDeleteउम्दा शिल्पकृति सी लगी है भाई
आभार
आस रहेगी शेष,
ReplyDeleteमान लो,
सुधरेगा परिवेश।
"तेरे ख्यालों के साये
ReplyDeleteउल्टे लटके ,
मुझे क़त्ल करतें है ;
हर सुबह और हर शाम .......!!
किसी दरवेश का श्राप हूँ मैं !!"
कितना दर्द है इस अभिव्यक्ति में ! आह! बेहतरीन!
मेरे ब्लॉग का link - www.sushilashivran.blogspot.in
आपका इंतज़ार है मेरे ब्लॉग पर !
अल्लाह का रहम हो ;
ReplyDeleteतो मैं भी किसी की हीर बनूँ......
बेशक. बहुत सुंदर नज़्म.
AK SUNDER BHAWPOORAN ABHIVYAKTI.
ReplyDeleteदिल को छु लेनेवाले अहसास है..
ReplyDeleteगहरी भावनाए है इस रचना में..
बहुत खूब..
बहुत सुन्दर रचना...
अल्लाह करम तो करता ही है ..हम ही आँखे मींचे होते है .. क्या कहूँ..इसके आगे..निशब्द..
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