Monday, June 11, 2012

इंतजार


                                                          स्केच मैंने बनायी हुई है .



मेरी ज़िन्दगी के दश्त,
बड़े वीराने है !

दर्द की तन्हाईयाँ ,
उगती है
मेरी शाखों पर नर्म लबों की जगह.......!!

तेरे ख्यालों के साये
उल्टे लटके ,
मुझे क़त्ल करतें है ;
हर सुबह और हर शाम .......!!

किसी दरवेश का श्राप हूँ मैं !!

अक्सर शफ़क शाम के
सन्नाटों में यादों के दिये ;
जला लेती हूँ मैं ...

लम्हा लम्हा साँस लेती हूँ मैं
किसी अपने के तस्सवुर में जीती हूँ मैं ..

सदियाँ गुजर गयी है ...
मेरे ख्वाब ,मेरे ख्याल न बन सके...
जिस्म के अहसास ,बुत बन कर रह गये.
रूह की आवाज न बन सके...

मैं मरीजे- उल्फत बन गई हूँ
वीरानों की खामोशियों में ;
किसी साये की आहट का इन्तजार है ...

एक आखरी आस उठी है ;
मन में दफअतन आज....
कोई भटका हुआ मुसाफिर ही आ जाये....
मेरी दरख्तों को थाम ले....

अल्लाह का रहम हो ;
तो मैं भी किसी की नज़र बनूँ
अल्लाह का रहम हो ;
तो मैं भी किसी की हीर बनूँ......


[ शब्दों के अर्थ  :
दश्त : जंगल // शफ़क : डूबते हुए सूरज की रोशनी // दफअतन : अचानक ]


26 comments:

  1. दर्द की तन्हाईयाँ ,
    उगती है
    मेरी शाखों पर नर्म लबों की जगह.......!!


    आह! देखो तो ज़रा
    लबों का लहू ही
    उनकी ताज़पोशी करता है



    तेरे ख्यालों के साये
    उल्टे लटके ,
    मुझे क़त्ल करतें है ;
    हर सुबह और हर शाम .......!!

    किसी दरवेश का श्राप हूँ मैं !!



    क्यूंकि श्रापित रूहें ही उल्टी लटका करती हैं

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  2. सब के दिल में पलते हैं अरमान कुछ ऐसे ही...........

    मगर सब यूँ व्यक्त नहीं कर पाते.....इतनी खूबसूरती से....
    शब्दों के साथ रेखाओं से भी प्यारी अभिव्यक्ति.....

    सादर
    अनु

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  3. सादगी सी चाह ... गहरा एहसास लिए मन में उतर गई ये रचना विजय जी .... लाजवाब ...

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  4. comment by email :

    अच्छी कविता है , विशेषकर यह पंक्तियाँ
    सदियाँ गुजर गयी है ...
    मेरे ख्वाब ,मेरे ख्याल न बन सके...
    जिस्म के अहसास ,बुत बन कर रह गये.
    रूह की आवाज न बन सके...
    बधाई

    Dr. Prem Janmejai

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  5. dard ko lekar aapne bahut khubsurat kavita ko shabd diye hain,badhai.

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  6. एक आखरी आस उठी है,
    मन में दफनत आज...भावपूर्ण अभिव्यक्ति|

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  7. वाह!ऐसे ही ख्वाब आने दो,हकीकत भी बन जायेंगे |

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  8. vijay , nice expressions as always

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  9. सदियाँ गुजर गयी है ...
    मेरे ख्वाब ,मेरे ख्याल न बन सके...
    जिस्म के अहसास ,बुत बन कर रह गये.
    रूह की आवाज न बन सके..
    .....बहुत मर्मस्पर्शी...रचना के भाव अंतस को छू जाते हैं....बहुत सुन्दर भावमयी रचना...

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  10. बहुत बढ़िया सर!


    सादर

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  11. बहुत बढिया लिखा है...

    अल्लाह का रहम हो ;
    तो मैं भी किसी की नज़र बनूँ
    अल्लाह का रहम हो ;
    तो मैं भी किसी की हीर बनूँ......

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  12. भावों से ओतप्रोत कविता को आपने अपने स्केच में ढालने का अच्छा -खासा प्रयत्न किया है |

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  13. rachna avum tasveer dono achhe hain.

    shubhkamnayen

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  14. दर्द भरी दास्तां!...अति सुन्दर!

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  15. बैठी हूँ अब तलक सांझ के होते अंधेरों में
    अभी रात की गहराई तो बाकी हैं
    जल रही हैं बाती इस दीए की
    पूरी लौं तक जलना अभी बाकि हैं ||.......अनु

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  16. EK AUR KHOOBSOORAT KAVITA KE LIYE AAPKO BADHAAEE .

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  17. अभी फेस बुक पर भी पढ़ी- बहुत गहरी रचना है...बहुत बधाई. चित्र भी जबरदस्त!!

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  18. रेखांकन के साथ शब्दों की घड़ाई
    उम्दा शिल्पकृति सी लगी है भाई

    आभार

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  19. आस रहेगी शेष,
    मान लो,
    सुधरेगा परिवेश।

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  20. "तेरे ख्यालों के साये
    उल्टे लटके ,
    मुझे क़त्ल करतें है ;
    हर सुबह और हर शाम .......!!

    किसी दरवेश का श्राप हूँ मैं !!"
    कितना दर्द है इस अभिव्यक्‍ति में ! आह! बेहतरीन!


    मेरे ब्लॉग का link - www.sushilashivran.blogspot.in

    आपका इंतज़ार है मेरे ब्लॉग पर !

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  21. अल्लाह का रहम हो ;
    तो मैं भी किसी की हीर बनूँ......

    बेशक. बहुत सुंदर नज़्म.

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  22. AK SUNDER BHAWPOORAN ABHIVYAKTI.

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  23. दिल को छु लेनेवाले अहसास है..
    गहरी भावनाए है इस रचना में..
    बहुत खूब..
    बहुत सुन्दर रचना...

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  24. अल्लाह करम तो करता ही है ..हम ही आँखे मींचे होते है .. क्या कहूँ..इसके आगे..निशब्द..

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