दोस्तों ,
नमस्कार और आप सभी को जीवन की अनेकानेक शुभकामनाएँ.
दोस्तों , आज आप लोगो के सम्मुख न तो मैं अपनी कविता लेकर आया हूँ और न ही कहानी . आज मैं; आपकी , मेरी और हम सभी की बात करना चाहता हूँ . हम सभी में एक बात कॉमन है और वो है ब्लॉगिंग. आज मैं उसी ब्लोगिंग की बात करूँगा , जिसने हम सभी को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ रखा है . और आज हम सब ने मिलकर उसी ब्लोगिंग को सिर्फ एक लड़ने का अखाड़ा बना रखा है .
कुछ बरस पहले कुन्नू सिंह नाम के एक बच्चे ने कहा था कि ब्लोगिंग एक महामारी है .और तब हम सभी ने इस बात को बहुत पसंद किया था . वो दौर ही अलग था. वो दुनिया ही अलग थी . सभी एक दूसरे के ब्लोग्स को देखते थे , कमेन्ट करते थे और नए नए दोस्त बनाते थे . तब के बने हुए दोस्त , अब तक बने हुए है . दुनिया में किसी और तरीके से इतने बेहतर दोस्त नहीं बनाए जा सकते है . इस तंग दुनिया में ब्लोगिंग का ये योगदान हमेशा ही याद रखा जायेंगा .
लेकिन आज ब्लोगिंग की वो प्यारी सी महामारी एक बहुत बड़ा अखाड़ा बन कर रह गया है . हम ,अपना ज्यादा वक्त इसमें लगाते है कि दूसरे ने क्या लिखा . जबकि हमने ये सोचना चाहिए कि हम क्या लिख रहे है .आज की ब्लोगिंग कितनी बदल गयी है . रचनात्मकता के बदले में आपस में बैर पैदा हो रहा है . हम ने हिंदी ब्लोगिंग को क्या से क्या बना दिया .
आज का दौर अब कुछ ऐसा बन गया है कि अगर कोई लेखिका व्यस्क कविता लिखती है तो उस पर हल्ला मच जाता है . कोई अच्छा लिखने वाला बंदा एक व्यस्क कहानी लिखता है तो उसे अश्लील और सामाजिकता का पाठ पढाया जाता है . कोई लेखिका यदि अपने ब्लॉग पर controlled visitors चाहती है तो उस पर हल्ला हो जाता है . किसी को चिकनी चमेली बोला जा रहा है , किसी को लोमड़ी बोला जा रहा है . किसी को चमचा बोला जा रहा है . ग्रुप ब्लॉग को personal preference में रख दिया गया है , जिसे चाहो रखो , जिसे चाहो हटा दो . किसी को गाली दी जा रही है . कोई मारपीट पर अमादा है . कोई बन्दा अगर किसी पुरूस्कार की बाते कर रहा है , तो उस पर ही सवाल जवाब उठाये जा रहे है . उसकी मेहनत को दरकिनार कर दिया जाता है .कही किसी दुसरे के पोस्ट पर प्रवचन दिए जा रहे है . कोई moral policing पर उतारू है . लोग अपने पोस्ट में खुद के बारे में लिखने से ज्यादा दूसरो के बारे में लिख रहे है . और अगर किसी ने मनभावन कमेन्ट नहीं दिया तो उसे हटा दिया जाता है .भले ही वो कमेट अपनी बात की सत्यता को साबित करने के लिए दिया गया हो . चारो तरफ मचे इस दुखद शोर में अच्छा लिखने वालो की गति खराब हो गयी है ...मतलब ये कि जिस मकसद से हिंदी ब्लोगिंग शुरू हुई , वो मकसद अब मिटटी में मिल गया है . और ये सब हो रहा सिर्फ चंद ब्लोग्गेर्स की वजह से , जिन्होंने हिंदी ब्लोगिंग के इस सुखद तालाब को खराब कर दिया . बहुत दिल को दुखता है कि जो कल तक दोस्त थे अब एक दुसरे का चेहरा भी नहीं देखना चाहते.
अब हाल ये है कि मुझे दुष्यंत कुमार का एक शेर याद आ रहा है :
लोग हाथो में लिए बैठे है अपने पिंजरे ,
आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो .
मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता हूँ , क्योंकि इससे कोई फायदा नहीं है . नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता है , जिन्होंने दुसरो को अपनी बातो से दुःख दिया है , अपने अहंकार के कारण; वो अपना नाम जानते है और जिन्होंने इनसे दुःख पाया है वो भी खुले आम एक सार्वजनिक मंच पर , वो भी अपना नाम जानते है ..... और ये सबकुछ सिर्फ और सिर्फ कुछ हिंदी ब्लोगेर्स ही करते है .
दोस्तों ; यहाँ सवाल नाम का नहीं है , सवाल नीयत का है . सवाल attitude का है . सवाल identity crisis का है. सवाल सिर्फ एक नकली अधिपत्य का है .. एक दमित मानसिकता का है . एक दुसरो को ब्लोगिंग जैसे एक पब्लिक प्लेटफोर्म पर नीचा दिखाने का है . सवाल सिर्फ और सिर्फ दंभ का है .और यूँ ही बेवजह फसाद करने का है .. न खुद शांत रहो और न ही दुसरो को शांत रहने दो . ये क्या है .. हम खुद के सामने और अपने ईश्वर के सामने क्या साबित करने जा रहे है .
क्या कभी कोई सोचता है कि What exactly went wrong in Hindi blog-world. हम में से किसी ने इस विषय पर soul searching नहीं किया .बात बहुत सीधी सी है . हम में से कुछ लोग ऊपर बैठकर judgment करने लगे . दुसरो के लिखावट और तौर तरीको पर और उनके पोस्ट्स में मौजूद विषयो पर अपना निर्णय देने लगे . वो ये भूल गए कि ब्लोगिंग का बहुत सीधा सा मकसद ये ही था और ये है है कि जिसके मन में जो आये वो लिखो . अपनी creativity को एक प्लेटफोर्म दो . अपने भीतर के व्यक्ति को दुनिया की दुखो से निजात दो . कुछ लिखो , कुछ artwork करो , कुछ फोटो पब्लिश करो . कुछ हंसो . कुछ बेहतर बनो , कुछ ज्ञान की गंगा बहाओ . और उन दिनों ये सब बहुत अच्छे से होता था और आज भी होता है. उन दिनों सभी खुश रहते थे , सिवाय कुछ हलकी झड़पो के अलावा . लेकिन आज तो हिंदी ब्लोगिंग बाकायदा अखाड़ा बन गया है . लिखने के नाम पर बस दोषारोपण ही किया जा रहा है . और ये सिर्फ हिंदी ब्लोगिंग में ही हो रहा है . किसी और भाषा में ये नहीं होता है .. क्यों हम ऐसे हो गए है . जिनके साथ मिल कर हँसते थे , अब उनसे लड़ने के बहाने ढूंढें जाते है . हम कहाँ से कहाँ आ गए . हिंदी ब्लोगिंग का जो हाल बना हुआ है आजकल उसे देखकर सिर्फ दुःख ही होता है.... क्या करने चले थे और क्या हो रहा है ..सिर्फ कांव कांव मच रही है ..... कम से कम हम अंग्रेजी ब्लोगेर्स के मैनर्स को तो देखे ....सारे झमेले में न हिंदी बच रही है और न ही ब्लोगिंग ... हम लोगो ने अब हिंदी ब्लॉगजगत को समाज का ही extension बना लिया है ...बस सिर्फ शोर ही बचा है .
अब चूँकि हिंदी ब्लोगिंग हिंदी भाषा से जुड़ा हुआ है और हिंदी भाषा हिंदी साहित्य से . तो इसका एक और पहलु भी देखे . नए लेखन के नाम पर काफी कुछ लिखा जाता है अब चूँकि ये सब कुछ प्रिंट मीडिया में ज्यादा लिखा जाता है , इसलिए सिर्फ एक ही हद तक हल्ला होता है . और उस सब की reach limited होती है . लेकिन ब्लॉग तो एक पब्लिक प्लेटफोर्म है. यहाँ तो हमें एकजुट होकर हिंदी ब्लोगिंग को आगे बढ़ाना चाहिए . लेकिन मैंने देखा है कि सिर्फ हिंदी ब्लोगिंग में ही एका नहीं है . खूब लड़ते -झगड़ते है . यहाँ ब्लॉगजगत में हम so called हिंदी साहित्य के ठेकेदार तुरत फब्तियां कसते है . कहने का मतलब ये है सारी दुनिया में भाषा के उपयोग पर सही और गलत का फैसला और बेहतर तरीके से होता है , सिर्फ हिंदी और उर्दू को छोड़कर . यहाँ हम भड़क जाते है . चिल्लाने लगते है ..और हिंदी ब्लॉगजगत में ये सबसे ज्यादा होता है .
और ये भी देखिये कि जो कुछ भी सोचा जा रहा है या कहा जा रहा है या लिखा जा रहा है , वो क्या हम सभी क्या सोचते नहीं , या कहते नहीं या करते नहीं . मतलब हम अपने चहरे पर चेहरे लगाते जाए . लेकिन दुसरो के साथ अलग व्यवहार करे. ये तो दोहरी मानसिकता हुई. और सबसे बड़ा प्रश्न ये है की , ये अधिकार हमें दिया किसने कि हम दुसरो पर उंगली उठाये .
और जो बात मुझे सबसे ज्यादा दुःख देती है वो ये है की यहाँ हिंदी ब्लॉगजगत में व्यक्ति विशेष को ज्यादा प्रताड़ित किया जाता है . न कि उसके लेखन को . प्रिंट मीडिया में व्यक्ति को कोई ज्यादा कुछ नहीं कहता है . उसकी creativity / writing पर लोग ज्यादा चर्चा करते है . लेकिन यहाँ कुछ हिंदी ब्लोगेर्स ने सारे अधिकार अपने हाथ ले रखे है . ये गलत है ; यारो सिर्फ दो दिन की ज़िन्दगी है .... किस किस से लड़ेंगे ..ज़िन्दगी से तो लड़ ही रहे है ....क्या खुदा को मुंह नहीं दिखाना है ? ज़रा रुको , ठहरो ,सोचो और फिर लिखो ...प्यार और दोस्ती की नेमते बांटो . यही रजा है उस बनाने वाले की जिसने हमें बनाया और जिसके ज़ेरेसाया हम आज ब्लॉग्गिंग भी कर पा रहे है ...
बहुत समय पहले मैं राजेन्द्र यादव जी से मिला था . मैंने उनसे पुछा था कि आजकल के साहित्यकार अपने साहित्य में गालियों का उपयोग क्यों करते है . चाहे वो पंकज बिष्ट हो या चाहे मनोज रूपड़ा या दया पवार ! तो उन्होंने बहुत अच्छे से मुझे समझाया कि साहित्य समाज का दर्पण है , जो यहाँ होता है, लेखक उसे अपने लेखन में उतारता है . और कभी कभी ये expression लेखक के आंतरिक outburst का नतीजा होती है . तो दोस्तों . क्या हमें ये अधिकार है कि हम दुसरो के लेखन पर ऊँगली उठाये , उसे भला बुरा कहे . नहीं दोस्तों नहीं . हम अपने आपको कब तक स्वंयभू ठेकेदार मानेंगे तथाकथित हिंदी साहित्य के . सारी समस्या इस बात की है कि हम अपने अहंकार को अपने पर लाद कर हिंदी साहित्य के शीर्ष सिंहासन पर बैठना चाहते है . और साथ ही दूसरों के लेखन में अच्छा बुरा ढूँढना चाहते है ..लेकिन याद रहे कि प्रभु ईशा ने भी यही कहा है कि पहला पत्थर वो मारे जिसने पाप न किया हो .
नहीं दोस्तों , ऐसा नहीं होना चाहिए .. हर आने वाली पीढ़ी अपनी पिछले पीढ़ी को देखती है उनसे कुछ सीखना चाहती है और हम उन्हें क्या दे रहे है . और ये हम सभी का कर्त्तव्य है कि हम एक मिसाल पेश करे अपने आने वाली पीढ़ी के लिए.
हमें ये सोचना है की हमने ये सब करके क्या खोया है क्योंकि सिवाय मन की झूठी ख़ुशी के अलावा हमने कुछ भी नहीं पाया है .
आज एक सोच की जरुरत है . एक नए आयाम की जरुरत है . हम पहले इंसान बने , फिर दोस्त बने और अंत में अपने कर्म के लिए ब्लॉगर बने . लेकिन आज हम सिर्फ ब्लॉगर बनकर रह गए है . न ही दोस्त रहे और जब दोस्त नहीं रहे तो इंसान भी नहीं रहे. जीवन क्षणभंगुर है . तो क्या हम दुसरो के दिलो में अपने लिए वैमनस्य छोड़ जायेंगे. और फिर हमें ये सोचना है कि , इस सारी प्रक्रिया में हमारी खुद की creativity ही मर गयी है . जो अच्छी कविता ,कहानी , व्यंग्य , आलेख और लेख लिखते थे वो अब सिर्फ दुसरो के लिए पोस्ट लिखते है . [उदाहरण के लिए , एक अच्छी कविता लिखने के बदले में पहली बार मैं ये लेख लिख रहा हूँ . जिसे पढ़कर कुछ ज्ञानी कहेंगे, जिसे हिंदी लिखना नहीं आता , वो हमें ज्ञान दे रहा है :):):) ] कहाँ जा रहे है हम ..सोचिये . पिछले सालो में हमने क्या सीखा है वो भूल गए है , और दुसरो की कैसे आलोचना करे ,और वो भी हिंदी में . अब तो सिर्फ ये ही याद रह गया है . और हम यही कर रहे है .
दोस्तों.. Its high time that we all should wake up and make a new great platform of हिंदी bloggers . आईये , सारे झगडे झंझटो को पीछे छोड़े और एक बेहतर हिंदी ब्लोगिंग की ओर अग्रसर हो जाए. आईये कुछ बेहतर करे.. कि अब कोई मलाल नहीं रहे .किसी को कोई दुःख न पहुंचे , अपनत्व बांटे . प्यार बांटे . खुश रहे और खुश रखे .यही जीवन है .
अंत में मैं अमृता प्रीतम की एक बात को यहाँ रखना चाहता हूँ , जो उन्होंने मुझसे अपनी एकमात्र मुलाकात में कही थी . मैं बहुत बरस पहले दिल्ली गया था उनसे और इमरोज से मिलने . बहुत देर बैठा , बहुत सी बाते हुई . उन्होंने अपने हस्ताक्षर दिए अपनी कुछ किताबो पर जो मेरे लिए एक धरोहर है . उन दिनों मैं सिर्फ पढता था , लिखता नहीं था. बहुत सी बाते हुई , मैंने कहा उनसे कि अब मैं लिखना शुरू करना चाहता हूँ . कविताओ से शुरू करना चाहता हूँ , आपका आशीर्वाद चाहिए . एक बात उन्होंने कही , जो मेरे दिलो दिमाग में बस गयी ... उन्होंने कहा कि विजय, लेखन की सारी दुनिया में मसला सिर्फ और सिर्फ प्यार और व्यापार का ही है कि कौन अक्षरों को प्यार करते है और कौन इनका व्यापार करते है .. और एक लेखक को इस बात का बहुत ध्यान रखना चाहिए .
तो , आज आप सभी ब्लोगर्स से मैं विनम्र विनती करूँगा कि आईये , अक्षरों से प्रेम करे न कि उनकी सहायता से एक दुसरे पर वार करे. और शायद आज ही के इस दिन के लिए पाकिस्थान के एक शायर मजहर -उल - इस्लाम ने कभी लिखा था :
ऐ खुदा ! अदीबो के कहानियो और कलमो में
सच्चाई , अमन और मोहब्बत उतार !
ऐ खुदा ! लालटेन की रौशनी में लिखी हुई
इस दुआ को कबूल कर !
ऐ खुदा ! अदीबो के कहानियो और कलमो में
सच्चाई , अमन और मोहब्बत उतार !
ऐ खुदा ! लालटेन की रौशनी में लिखी हुई
इस दुआ को कबूल कर !
आईये दोस्तों , हम अपनी कलम में सिर्फ दोस्ती और प्यार का रंग भरे और एक बेहतर और मजबूत और अपनत्व से भरी हुई हिंदी ब्लॉगिंग को भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के हर कोने में जहाँ भी हिंदी पढ़ी, बोली और लिखी जाती है ,स्थापित करे.
इसी के साथ मैं अपने हिंदी ब्लॉगजगत की बेहतरी के लिए प्रार्थना करता हूँ . और दुष्यंत कुमार के एक खूबसूरत शेर के साथ आप सभी से विदा लेता हूँ.
"सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए !!
अमीन
आप सभी का
विजय
विजय जी मैं आपसे सहमत नहीं...मुझे ब्लॉग्गिंग में पांच वर्ष हो गए है और मैं अपने ब्लॉग पर नियमित रूप से लिखता आ रहा हूँ...मुझे अभी इस बात का अहसास नहीं हुआ के ब्लॉग जगत में गन्दगी फ़ैल रही है...मेरी मित्र संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है...ये आपके देखने का नजरिया है यदि आप गन्दगी देखेंगे तो आप को गन्दगी ही नज़र आएगी और अच्छाई पर नज़र रखेंगे तो अच्छाई...गिलास आधा भरा है या खाली ये आपकी सोच पर है...बजाय दूसरों की बातों से या कमेंट्स से दुखी होने के अच्छा है के हम पहले अपने आप को सुधारें दुसरे क्या कर रहे हैं उसकी फ़िक्र में दुबले न हों...ब्लॉग भी इस समाज और जीवन का हिस्सा है जो कुछ अच्छा बुरा समाज में होता है वो ही ब्लॉग में नज़र आता है इस पर अधिक दुखी या आश्चर्यचकित होने की जरूरत नहीं है..
ReplyDeleteगुलाब के साथ कांटे प्रकृति का नियम है. खुश रहें.
नीरज
नीरज जी , मैं आपके कमेन्ट से सहमत नहीं ...आप अपने ब्लॉग पर लिख रहे है , ,मैं अपने ब्लॉग पर लिख रहा हूँ . न आप गन्दगी फैला रहे है और न ही मैं गन्दगी फैला रहा हूँ .. जहाँ तक मेरे देखने का नजरिया है , वो अपनी जगह दुरस्त है सर जी . मैंने वही लिखा है जो मैंने पिछले दिनों देखा है . और ये बाते जो हो रही है , या हुई है , सब जानते है . मैं इस माहौल को और बढने नहीं देने की एक कोशिश कर रहा हूँ. और मैंने clearly लिखा है कि , हम बेहतर लिखे न कि इन सब में पढ़े . मुझे कोई कुछ नहीं कहता है और न ही मैं किसी को कुछ कहता हूँ .. लेकिन एक दोस्ताना माहौल रहे , यही कामना है .. अपनी तबियत का ख्याल रखे .धन्यवाद.
Deleteapne shabdo me sirf pyaar ka rang hi bharo na ki kisi par vaar ka
ReplyDeleteअंजना जी , आप सही कह रही है कि अपने शब्दों में सिर्फ प्यार का ही रंग भरा जाना चाहिए न कि वार का . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteकहाँ क्या क्या देखते रहते हो और लिखते रहते हो भाई..पूछा भी तो करो कि क्य़ा सच में?? :)
ReplyDeleteसमीर जी .. बस जो देखा उसी पर लिखा जी .. आप तो जानते ही है .. मुझे इन सब से कुछ लेना देना नहीं .लेकिन माहौल खुशनुमा रहे , यही मेरी कोशिश है . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteलीजिये...मैंने आपसे अ सहमती जताई और आपने मुझसे...हो गया न विवाद शुरू...ये तो हम दोनों के बीच एक गहरी समझ है वर्ना भाई साहब इस बात पर तीर कमान चल सकते थे...ऐसे ही बात बढ़ते बढ़ते बढ़ जाती है...कोई दूसरा इस बात का बतंगड़ बना कर पोस्ट भी ठेल सकता है...खैर..ये सब तो चलता है...आप जहाँ रहे जैसे रहें खुश रहें.
ReplyDeleteनीरज
नीरज जी , आप मेरे गुरुदेव है . और मैं आपका चेला. हम में सिर्फ संवाद की ही गुन्जायिश है , विवाद की नहीं .. कुछ विचार में मतभेद हो सकते है . लेकिन मेरा स्थान , तो आपके चरणों में ही है सर .
Deleteधन्यवाद और आभार आपका .
ऐसी बातें लिख कर आप मुझे लज्जित न किया करें विजय भाई...आपका स्थान मेरे दिल में है और हमेशा दिल में ही रहेगा...आप जानते हैं, मुझे जो अच्छा लगता है वो और जो बुरा लगता है वो भी आपको कह देता हूँ केवल इसलिए क्यूँ के मुझे मालूम है आप मेरी बातों को अन्यथा नहीं लेंगे...स्नेह बनाये रखिये...आज की दुनिया में इसकी बहुत जरूरत है :-))
Deleteनीरज
विजयजी मैं आपकी बातसे पूरी तरह सहमत हूँ .....आप स्वयं देखिये ...की आपको किसीको बुरा भला कहकर ज्यादा सुख मिलता है ..या प्रशंसा करके....निश्चय ही बुराई मन में Negativity को जगह देती है ....और वह आत्मा संतोष नहीं मिलती जो किसीको सराहने से मिलता है ...और किसी वजह से नहीं ...तो अपने लिए ही .....positivity पैदा की जाये .....क्यों है न ..!!!
ReplyDeleteसारस जी , आप सही कह रही है .. हमें सिर्फ अपने लिये positivity पैडा करनी चाहिए . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteआप काफी सटीक तरीके से एक जरूरी मुद्दा उठाया है ... यह मानना कि सब कुछ ठीक है ... कहीं कुछ गड़बड़ नहीं है ... सच से नज़रें चुराना होगा ... या यह कहें कि सब कुछ जानते हुये भी हम अनजान बने रहने चाहते है !
ReplyDeleteआप से सहमत हूँ कि "यह सूरत बदलनी चाहिए" ...
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - यह अंदर की बात है ... ब्लॉग बुलेटिन
Deleteशुक्रिया शिवम जी . बस एक कोशिश की है कि ये सूरत बदलनी चाहिए .
Deleteधन्यवाद और आभार आपका .
"सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ,
ReplyDeleteमेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए !!…………शायद इन पंक्तियों के बाद कुछ कहने की जरूरत ही नही रही………सच से मूँह मोडा नही जा सकता ………अगर समाज मे गन्दगी होगी तो उसे साफ़ करने की जरूरत होती है तो ये ब्लोगजगत भी तो एक समाज का ही दूसरा आईना है फिर इससे कैसे मूँह मोडा जा सकता है…………आपने सभी पहलुओं को कवर किया है और सच ही कहा है बेशक होना तो ये ही चाहिये कि सब सिर्फ़ अपने लेखन पर ध्यान दें मगर आदतें नही बदलतीं तो दखल अन्दाज़ी होगी ही फिर भी आपने स्वस्थ और उपयोगी संदेश दिया है यदि सभी ऐसा ही सोचने और करने लगें तो हिन्दी साहित्य के इतिहास मे ब्लोगिंग अपना परचम जरूर लहरायेगी।
वंदना जी , बस यही कोशिश की है ... यदि सब ऐसे ही सोचे तो एक बेहतर ब्लोगिंग संभव है .
Deleteधन्यवाद और आभार आपका .
उस गली से गुजरना ही क्यों बार बार
ReplyDeleteजहाँ महामारी फैली हो, गंदगी हो?
पाबला जी , नहीं गुजरेंगे अब कभी उस गली ... !
Deleteधन्यवाद और आभार आपका .
विजय जी, यहाँ मैं आपकी बात से सिर्फ अंशतः सहमत हूँ. हम ब्लॉग के जरिये एक दुसरे से जुड़े हुए है. और आपके ही कथन के अनुसार दोस्त भी है. तो मेरे ख्याल से दोस्तों के बीच आलोचना तो होनी ही चाहिए. जब तक हम एक-दुसरे के बारे में नहीं लिखेंगे, नहीं कहेंगे, नहीं समझायेंगे तब तक शायद ये ब्लॉग जगत अपने आज के स्तर से ऊपर नहीं उठ सकेगा. अगर हम किसी के ब्लॉग पे उसके किसी पोस्ट पे जाकर कमेन्ट करते है, उस पोस्ट की तारीफ़ करते है तो विरोध भी तो हम ही करेंगे. किसी भी बात की सराहना और आलोचना एक सिक्के के दो पहलु की तरह ही होते है. हाँ इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि विरोध उस पोस्ट का, उस विचार का होना चाहिए न कि व्यक्ति का. व्यक्तिवाद से उठकर हमें अपनी बात कहनी चाहिए. हम ब्लॉग जगत से जुड़े है तो कहीं न कहीं अंशतः ही सही साहित्य से भी जुड़े है और किसी भी साहित्यकार को अपशब्दों का इस्तेमाल शोभा नहीं देता. हमें अपनी मर्यादा में रह कर अपनी बात रखने का पूरा अधिकार पर किसी भी व्यक्ति विशेष पर अमर्यादित टिप्पणी का अधिकार नहीं है...
ReplyDeleteआपका आलेख अच्छा लगा. नपे-तुले शब्दों में एक सटीक चर्चा...
अभिषेक जी , एक दोस्त की हैसियत से यदि हम एक दूसरे का अच्छा बुरा नहीं सोचेंगे तो कौन सोचेंगा . लेकिन , व्यक्ति को कुछ कहने से सब कुछ सही नहीं हो जाता है . हाँ , हम उसके लेखन को कहे. बस. यही आरजू है .
Deleteधन्यवाद और आभार आपका .
सबसे पहले तो प्रिंट साहित्य और ब्लॉगिंग में अन्तर को समझना पडेगा। प्रिंट साहित्य में रचना पर ही समीक्षा होती है, यदि लेखक की आलोचना हो तब भी तकरार बडा रूप नहीं लेती। किन्तु ब्लॉगिंग एक तो जो मन करे लिखने का माध्यम है, उसमें भी व्यक्तिगत लिखा भी जाता है, टिप्पणीयों के माध्यम से साक्षात सम्वाद होता है तो वहां वाद-विवाद को अवसर तो मिलेगा ही।
ReplyDeleteजब आप व्यक्तिगत रूप से अपने विचार प्रस्तुत करते है, विचार जो अच्छे या बुरे कैसे भी हो सकते है, अगर सुविधा है तो बुरे विचारों का प्रतिकार तो होगा ही। ब्लॉगिंग में अधिकतर लेखन व्यक्तिगत सा ही होता है। फिर चर्चा का आधार भी व्यक्तिगत हो जाय इसमें क्या आश्चर्य। प्रत्येक विचार पर मात्र प्रसंशा ही होगी तो सुधार व विकास के अवसर ही समाप्त हो जाएंगे। ब्लॉगिंग में सभी का अपना अपना ब्लॉग है तो सभी को मनमर्जी लिखने का अधिकार है, ऐसे में सम्भावनाएं कुंठा निकालने की भी सम्भव है। और कोई एक जब कुंठा से निजात चाहता है तो अन्यत्र कहीं प्रभावित होना भी सम्भावित है। और प्रतिकार भी सम्भव है। अतः मेरा मानना है इन सभी आरोह अवरोह के बीच रहना ही पडेगा। कभी निष्प्रभावी तो कभी संतुलन बनाना ही संघर्ष होगा।
सुज्ञ जी , आपकी बाते बहुत ही संयमित और सोचनीय है , लेकिन हमें व्यग्तिगत आरोपों से बचना होंगा . तभी एक बेहतरी की संभावना होंगी .
Deleteधन्यवाद और आभार आपका .
सूरत बदलनी चाहिए ... ये तो ठीक है पर जितना ज्यादा इस विषय पर बहस होगी उतनी ही गन्दगी बाहर आयगी ... अगर सभी इस मुद्दे कों छोड़ दें तो जादा अच्छा होगा ... मेरा ऐसा मानना है ...
ReplyDeleteदिगंबर जी ,
Deleteमैं आपसे सहमत हूँ . धन्यवाद और आभार आपका .
विजय जी ...पहले तो आप इस लेख को लिखने के लिए बधाई स्वीकार करें ........ब्लॉग जगत में रहते हुए ....आपने ऐसे वक्त में ये मुद्दा उठाया....ऐसा करना हर किसी के बस में नहीं हैं ...गंदगी के ढेर को देख कर आँखे बंद करके कन्नी काट कर निकल जाना ...ये बहुत आम बात हैं .......पर उस गन्दगी को अपने हाथो से उठा कर एक साइड में रखना ...ताकि किसी और को उसकी बदबू ना आए ...ऐसा कोई कोई ही कर सकता हैं ....हाथ बचा कर और आँखे बंद करके चलने वाले तो बहुत मिल जाएंगे ...पर अपने कर्म को करने वाले कम ही मिलंगे ....ब्लॉग जगत में रहते हुए ....इस वक्त हो रही गतिविधियों को ऐसे लिखना हिम्मत का काम हैं ...आपकी लेखनी को सलाम ....
ReplyDeleteशुक्रिया अनु . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteआज की गतिविधियों को यूँ इस तरह ..इतने अच्छे तरीके से लिखना ...वाह बहुत खूब ..वो भी ऐसे वक्त जब ब्लॉग जगत में खूब हलचल मची हुई हैं ...
ReplyDeleteएक बार और से शुक्रिया .. बस मन में आया तो लिख दिया , आखिरकार मैं भी इसी ब्लॉगजगत का एक हिस्सा हूँ. धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteआपने सही फरमाया विजय जी!...यहाँ आज कल ऐसा ही हो रहा है!...लेकिन एक बार ब्लॉगिंग की गंगा मैली हो जाने के बाद, उसकी साफ़-सफाई कब और कैसे होगी?...ये तो राम ही जाने!
ReplyDeleteअरुणा जी ,
Deleteआप सही कह रही हो . राम ही को अब सबके मन में ये शुद्धि का विचार रोपित करना है . धन्यवाद और आभार आपका .
sahmat...
ReplyDeleteशुक्रिया मुकेश जी
Deleteधन्यवाद और आभार आपका .
बहुत सारगर्भित और विचारणीय आलेख...
ReplyDeleteशुक्रिया कैलाश जी ,
Deleteधन्यवाद और आभार आपका .
ब्लोगिंग ने प्रतिस्पर्दा का माहौल बना रखा है|जहाँ एक और लेखकों से जुडाव हो रहा है वहीँ नयी से नयी जानकारी भी प्राप्त हो रही है|रचनात्मक लेखन छूटता जा रहा है|
ReplyDeleteमुकेश जी आप सच कह रहे है और मैंने भी इसी बात को उठाया है कि रचनात्मक लेखन से पीछा छूट रहा है . इसे बेहतर करने की आवाश्यकता है आज .
Deleteबड़ी खतरनाक जगह है भाई , ये ब्लागिंग की दुनिया | हम तो बेख़ौफ़ यूं ही लिखे चले जा रहे थे | अब चौराहों पर लाल , हरी बत्ती देख लिया करेंगे |
ReplyDeleteनहीं अमित भाई ..ब्लोगिंग खतरनाक जगह नहीं है , ये बहुत प्यारी जगह है और बहुत कुछ सीखने को मिलता है , बस कहीं कहीं ये मुश्किल है . शायद अब ठीक हो .. अमीन . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteसार्थक भी लिखा जायेगा और सूरत भी बदलेगी...अच्छे दिन आयेंगे।
ReplyDeleteप्रवीण भाई , बस अमीन ही कहूँगा और चाहूँगा दिल से कि ऐसा ही हो .. धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteविजय साहब सारगर्भित लेख के लिए बधाई
ReplyDeleteलेख से स्पष्ट हैं की आप शशक्त लेखाकार होने के साथ साथ सुधि पाठक भी हैं जो बहुतों के विक्षोभ को शब्दों की कसौटी दे रहे हैं ..प्रशंशनीय हैं
ब्लोगिंग का दायरा भी समालोचनाओं से बाहर नहीं हैं.. पर विमर्श स्वस्थ हो तो ....दम्भित नहीं
हरिश जी ; शुक्रिया आपका . बस एक सोच थी , जो मन में थी और आप सभी के सामने रखा है . उम्मीद है कि अच्छे दिन फिर से आयेंगे. धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteब्लॉगिंग तो ऐसी ही है ऐसी ही रहेगी। जो जैसे हैं, वैसे ही रहेंगे। छोटे बच्चे को सुधारा जा सकता है, पढ़े लिखे प्रौढ़ को नहीं। वह जैसा है वैसा ही रहेगा।
ReplyDeleteएक बात बताऊँ सर जी...मैं भी चार-पाँच साल से यहाँ हूँ..मुझे कभी कोई परेशानी नहीं हुई। मस्त ब्लॉगिंग करता हूँ..किसी ने कमेंट गंदा किया तो मिटा देता हूँ, अपने ब्लॉग पर गंदा लिखा तो फूट लेता हूँ। मेरा विश्वास है कि मेरे ब्लॉग पर गंदगी करने वाला खुद ही गंदा कहलाने लगेगा सो कमेंट का विकल्प भी खुला रखता हूँ।
देवेन्द्र जी , आपसे सहमत हूँ. मुझे भी कभी कोई परेशानी नहीं हुई है .. मैंने जो कुछ भी लिखा है वो मेरी परेशानी नहीं है .. मुझे कभी कोई कुछ नहीं कहता . लोग प्यार करते है मुझसे . लेकिन , मैंने सोचा कि एक जो बात माहौल में है उस पर चर्चा करू. शायद कुछ बेहतरी बने. धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteहाँ मित्र विजय..
ReplyDeleteयह वाला लिंक सही है..पहले वाला गलत था..
शुक्रिया मनु भाई . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteआपने बहुत सही बात उठाई है...... हम सबका ध्येय शुद्ध ब्लागिंग होना चाहिए न की इनकी उनकी टांग खिचाई.
ReplyDeleteबिलकुल उपेन्द्र जी , मैं यही चाह रहा हूँ . एक बेहतर दुनिया के लिये ये जरुरी है . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteहिंदी ब्लॉग लेखन की सबसे बड़ी कमी हैं लिंक ना देना और केवल इशारों में बात करना . इस के चलते आम पाठक बात / मुद्दा / परेशानी / बहस और विवाद को समझ नहीं पाता हैं
ReplyDeleteजब तक खुल कर लिंक के साथ विरोध दर्ज नहीं होगा क़ोई बदलाव संभव हैं ही नहीं
पोस्ट अधूरी हैं क्युकी लिंक नहीं हैं , जो लोग केवल कविता , कहानी और किस्सागोई के लिये ब्लॉग पढते हैं वो उन ब्लॉग पर जाते ही नहीं हैं जहां अनाप शनाप लिखा जाता हैं .
सुधार चाहिये तो विरोध का स्वर बदलिए
सब कुछ खुल कर कहिये ताकि आप के आम पाठक आप की बात को समझ सके
रचना जी , मैंने जान भूझ्कर लिंक नहीं दिए. जो बात मैंने कही है , वो करीब हर किसी जागरूक ब्लॉगर को पता है . मेरी चाहत और कोशिश इस पोस्ट के जरिये यही है कि , बस एक बेहतर भाईचारा बने रहे ब्लॉगजगत में और हिंदी लेखन की बेहतरी हो . दोस्ती बने . मिलजुलकर रहे . यही मेरी कामना है . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteविचारनीय एवं गंभीर आलेख
ReplyDeleteशुक्रिया अरुण जी , धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteसबको प्यार की भावना के साथ लिखा गया, बहुत प्यारा लेख ...
ReplyDeleteकिसी कवि की रचना देखूं !
दर्द उभरता , दिखता है !
प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
क्लेश हर जगह मिलता है !
क्या शिक्षा विद्वानों को दूं ,टिप्पणियों में, रोते गीत !
निज रचनाएं ,दर्पण मन का, दर्द समझते मेरे गीत !
अपना दर्द किसे दिखलाते ?
सब हंसकर आनंद उठाते !
दर्द, वहीँ जाकर के बोलो ,
भूले जिनको,कसम उठाके !
स्वाभिमान का नाम न देना,बस अभिमान सिखाती रीत ,
अपना दर्द, उजागर करते , मूरख बनते मेरे गीत !
एक अच्छे लेख के लिए आभार आपका !
शुक्रिया सतीश जी , आपकी कविता ने मेरे लेख के extension का काम किया है .. शुक्रिया सर . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteबहुत यथार्थमय स्थिति को प्रदर्शित करती लाजवाब पोस्ट!! इस जानकारी के लिए आपका तहे-दिल से शुक्रिया!!
ReplyDeleteहमारी ओर से हार्दिक बधाई/धन्यवाद/शुभकामनाएं!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
सारिका जी , शुक्रिया आपकी आमद के लिये और पसंद के लिये . धन्यवाद और आभार आपका .
DeleteNice.
ReplyDeleteशुक्रिया अनवर भाई . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteजिन्हें चिंता है सुख शान्ति भरे आनन्दप्रद जीवन मूल्यों की
ReplyDeleteउन्हें आगे आना ही चाहिए, जो पैलाते है द्वेष और आक्रमकता उन सूलों को निकाल बाहर करना ही चाहिए!!
निरामिष: शाकाहार संकल्प और पर्यावरण संरक्षण (पर्यावरण दिवस पर विशेष)
शुक्रिया सर . मेरी भी कामना यही है कि एक बेहतर मंच उपलब्द हो . धन्यवाद और आभार आपका .
Deletenice
ReplyDeleteश्हुक्रिया सुमन जी . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteहम तो एक बात जानते है अपना लिखो और मस्त रहो बेशक कोई पढ़े या नहीं पढ़े|
ReplyDeleteकिसी का लिखा बढ़िया या काम का लगे तो पढ़ो नहीं आगे बढ़ो हमारा तो ब्लोगिंग में यही मूलमंत्र है !!
रतन जी , आप से सहमत और मैं भी यही करता हूँ , बस एक सोच थी , जो बाँट रहा हूँ आप सभी से . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteआपने इस आलेख के ज़रिए समकालीन ब्लॉग-जगत-साहित्य पर अच्छा प्रकाश डाला है। ठीक ही कहा है यादव जी के हवाले से कि साहित्य समाज का दपर्ण है। साहित्य समाज का दर्पण है, पर यदि दर्पण मटमैला है तो व्यक्ति या समाज का क्या दोष? साहित्यकार निष्पक्ष रूप से सही लेखन करें तो समाज भी उस साहित्य को अपनाएगा, प्रतिबिम्ब भी साफ-सुथर नजर आएगा।
ReplyDeleteतीन साल से ब्लॉगिंग कर रहा हूं। तीन ब्लॉग्स पर कुल मिलाकर २००० पोस्ट तो लिख ही दिए हैं। न किसी को कुछ इधर-उधर की कहा, न किसी ने सुनाया या किसी से सुना।
हां मैंने नियम बना लिया है, जो बे-वजह उन्माद फैलाने का काम करते हैं, या अश्लील भाषा का उपयोग करते हैं वहां जाना बंद कर देता हूं। विरोध करने का यह मेरा तरीक़ा है।
उम्मीद हमने नहीं हारी है। कम से कम यहां साहित्य जगत और छपाई जगत से कम गंदगी मुझे लगती है। वहां के अखाड़े से तो यहां लाख भला है।
मनोज जी आपसे सहमत हूँ . मैं भी वही करता हूँ , जो आप करते है .. बस एक उम्मीद है बेहतरी की. धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteफिल्म 'देशप्रेमी' का गाना याद दिला दिया आपकी इस पोस्ट ने,
ReplyDelete'नफ़रत की लाठी तोडो,........'
संजय जी ,
Deleteमैं भी वही कह रहा हूँ .. कि नफरत की लाठी तोडो , दिल से नाता जोड़ो ...मेरे ब्लोग्प्रेमियो.
रतन भाई से सहमत हैं हम भी.... लेकिन काफी बातें आपकी भी सही हैं.... कुछ एक पाठकों ने भी सही लिखा है... :-)
ReplyDeleteखैर गलत सही तो चलता रहेगा... ब्लोगिंग में अन्य विश्व की तरह अच्छे-बुरे, नरम-गरम, गुस्से-प्यार वाले... गंभीर-मस्त... सब तरह के लोग हैं... और जब सब तरह के लोग एक ही परिवार में हो तो बर्तन थोड़े-बहुत खनकते भी हैं...
फिर भी कोशिश तो यही होनी चाहिए कि नफरतें खत्म हो और प्यार बढे... और इस दिशा में आपका प्रयास एक अच्छी कोशिश है... शुभकामनाएँ!
शाहनवाज़ जी .. बस प्यार बना रहे और क्या चाहिए इस छोटी सी जिंदगी में .. धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteशुक्रिया सर . धन्यवाद और आभार आपका .
ReplyDeleteआपने एक मुद्दा उठाया और खूब जमकर लिखा है.
ReplyDeleteमुझे लगता है कि लिखने-पढ़ने के साथ-साथ कहा-सुनी भी थोड़ी-बहुत चलती ही रहेगी. यह समुद्र मंथन टाइप है. आपने मंथन शुरू कर दिया है और तमाम ब्लॉगर आपसे सहमत हैं तो इसमें से कभी न कभी अमृत निकलेगा ही. वैसे मेरा विचार है कि सम्मेलनों और पुरस्कारों से यह कहा-सुनी भी रुक जायेगी कभी न कभी.
आपने लिंक नहीं दिया और यह बताया कि एक जागरूक ब्लॉगर को सब पता है. अब पता लगाने के लिए पहले मुझे जागरूक ब्लॉगर बनना पड़ेगा.
शिव भैय्या , नमस्कार
Deleteकैसे है आप. आप भी न खूब मजाक करते है . सर , आप मुझसे भी पहले से है . आप सब जानते है .. लेकिन अगर नहीं जानते तो फिट बहुत ही अच्छा है . मन की शान्ति मिलती है ..अगर इन गलियों से नहीं गुजरे.. जैसे कि पाबला जी ने कहा है .. आपकी और हमारी दुनिया इनसे परे है जी .
आपका आमद का धन्यवाद .