कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई;
सपनो की आंखो से देखा तो,
तुम थी .....!!!
मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,
उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था,
मैंने तुम्हारे लिये ;
एक उम्र भर के लिये ...!
आज कही खो गई थी,
वक्त के धूल भरे रास्तों में ;
शायद उन्ही रास्तों में ;
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो .......!!
लेकिन ;
क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं ;
कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते........!!!
खूबसूरत
ReplyDeletebehtarin ....lajwab ....umda
ReplyDeletereally nice one
ReplyDeleteआह! कितना दर्द है।
ReplyDeleteजो पराया सा हो जाता है ...सही में ...वो पराया कभी नहीं होता...आँखे गीली हो ही जाती है..
ReplyDeleteक्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं ;
ReplyDeleteकि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते........!!!
भावनाओं में बहकर मूल बिंदु से जुदा होना कविता का सुंदर भावपक्ष है. बधाई.
पराये होते हुए भी अपनेपन के एहसास को जीना ही जीवन हैं ....
ReplyDeleteबड़ी ही गहरी बात कही है..
ReplyDeleteलटके हुवे सलीब पर, धड़ की दुर्गति देख ।
ReplyDeleteजीभ धड़ा-धड़ चल रही, अजब भाग्य का लेख ?
अजब भाग्य का लेख , ढूँढ ले रोने वाले ।
बाकी जान-जहान, शीघ्र ना खोने वाले ।
चेहरे की मुस्कान, मगर कातिल की खटके ।
करनी बंद दुकान, मरो झट लटके लटके ।।
आपकी पोस्ट पढी ,मन को भाई ,हमने चर्चाई , आकर देख न सकें आप , हाय इत्ते तो नहीं है हरज़ाई , इसी टीप को क्लिकिये और पहुंचिए आज के बुलेटिन पन्ने पर
ReplyDeleteक्या बात है यार....
ReplyDeleteआनंद आ गया !
dard aur sunder bhaw liye khoobsoorat rachna
ReplyDelete... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा
बहुत बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।