भाग एक :
हे बाला [ श्री भूपेन हजारिका अक्सर north -east की लडकियों को बाला कहते थे. ] ; तो हे बाला , हमें माफ़ करना , क्योंकि इस बार हम तुम्हारे लिये किसी कृष्ण को इस बार धरती पर अवतरित नहीं कर सके. actually कृष्ण भी हम से डर गए है . उनका कहना है कि वो दैत्य से लड़ सकते है , देवताओं से लड़ सकते है .जानवरों से लड़ सकते है ; लेकिन इस आदमी का क्या करे ......!!! तो वो जान गए है कि हम आदमी इस जगत के सबसे बुरी कौम में से है . न हमारा नाश होंगा और न ही हम आदमियों का नाश होने देंगे. कृष्ण चाहते थे कि वहां कोई आदमी कृष्ण बन जाए . लेकिन वो भूल गए , धोखे में आ गए . वहां हर कोई सिर्फ और सिर्फ आदमी ही था . और हर कोई सिर्फ दुशाशन ही बनना चाहता था . कोई भी कृष्ण नहीं बनना चाहता था. In fact अब कृष्ण outdated हो गए है . वहां उन लडको में सिर्फ आदमी ही था . वहां जो भीड़ खड़ी होकर तमाशा देख रही थी ,. वो भी आदमियों से ही भरी हुई थी . तो हे बाला हमें माफ़ करना . क्योंकि हम आदमी बस गोश्त को ही देखते है , हमें उस गोश्त में हमारी बेटी या हमारी बहन या हमारी कोई अपनी ही सगी औरत नज़र नहीं आती है .
भाग दो :
दोष किसका है : मीडिया का जो कि आये दिन अपने चैनेल्स पर दुनिया की गंदगी परोसकर युवाओ के मन को उकसाती है . या इस सुचना क्रांति का जिसका का दुरूपयोग होता है और युवा मन बहकते रहता है . या हमारे गुम होते संस्कारों का , जो हमें स्त्रियों का आदर करना सिखाते थे. या हम माता -पिता का जो कि अपने बच्चो को ठीक शिक्षा नहीं दे पा रहे है . या युवाओ का जो अब स्त्रियों को सिर्फ एक भोग की वस्तु ही समझ रहे है . टीवी में आये दिन वो सारे विज्ञापन क्या युवाओ को और उनके मन को नहीं उकसाते होंगे. फिल्मो में औरतो का चरित्र जिस तरह से जिन कपड़ो में दर्शाया जा रहा है . क्या वो इन युवा पीढ़ी को इस अपराध के लिये नहीं उकसाते होंगे ? कहाँ गलत हो रहा है . किस बात की कुंठा है. और फिर तन का महत्व इस तरह से कैसे हमारे युवाओ के मन में गलत घर बना रहा है . क्या माता-पिता का दोष इन युवाओ से कम नहीं ? क्यों उन्होंने इतनी छूट दे रखी है . कुछ तो गलत हो रहा है , हमारी सम्पूर्ण सोच में . और अब हम सभी को ; एक मज़बूत सोच और rethinking की जरुरत है .
भाग तीन :
तो बाला , हमें इससे क्या लेना देना कि अब सारा जीवन तुम्हारे मन में हम आदमियों को लेकर किस तरह की सोच उभरे. कि तुम सोचो कि आदमी से बेहतर तो जानवर ही होते होंगे . हमे इससे क्या लेना देना कि तुम्हारे घरवालो पर इस बात का क्या असर होंगा . हमें इससे क्या लेना देना कि तुम्हारी माँ कितने आंसू रोयेंगी . हमें इससे भी क्या लेना देना कि तुम्हारे पिता या भाई को हम आदमी और हम आदमियों की कुछ औरते पीठ पीछे ये कहा करेंगी , कि ये उस लड़की के पिता है या भाई है . हमें इस बात से क्या लेना देना , कि अगर तुम्हारी कोई छोटी बहन हो तो हम आदमी उसे भी easily available ही समझेंगे .इससे क्या लेना देना कि अब तुम्हारी ज़िन्दगी नरक बन गयी है .और जीवन भर , अपने मरने तक तुम इस घटना को नहीं भुला पाओंगी. हमें इससे क्या लेना देना कि अब इस ज़िन्दगी में कोई भी पुरुष अगर तुम्हे प्रेम से भी छुए तो तुम सिहर सिहर जाओंगी . और अंत में हमें इससे क्या लेना देना कि तुम ये सब कुछ सहन नहीं कर पाओ और आत्महत्या ही कर लो . हमें क्या करना है बेटी . हम आदमी है . ये हमारा ही समाज है .
भाग चार :
तो बाला , हमें इससे क्या लेना देना कि अब सारा जीवन तुम्हारे मन में हम आदमियों को लेकर किस तरह की सोच उभरे. कि तुम सोचो कि आदमी से बेहतर तो जानवर ही होते होंगे . हमे इससे क्या लेना देना कि तुम्हारे घरवालो पर इस बात का क्या असर होंगा . हमें इससे क्या लेना देना कि तुम्हारी माँ कितने आंसू रोयेंगी . हमें इससे भी क्या लेना देना कि तुम्हारे पिता या भाई को हम आदमी और हम आदमियों की कुछ औरते पीठ पीछे ये कहा करेंगी , कि ये उस लड़की के पिता है या भाई है . हमें इस बात से क्या लेना देना , कि अगर तुम्हारी कोई छोटी बहन हो तो हम आदमी उसे भी easily available ही समझेंगे .इससे क्या लेना देना कि अब तुम्हारी ज़िन्दगी नरक बन गयी है .और जीवन भर , अपने मरने तक तुम इस घटना को नहीं भुला पाओंगी. हमें इससे क्या लेना देना कि अब इस ज़िन्दगी में कोई भी पुरुष अगर तुम्हे प्रेम से भी छुए तो तुम सिहर सिहर जाओंगी . और अंत में हमें इससे क्या लेना देना कि तुम ये सब कुछ सहन नहीं कर पाओ और आत्महत्या ही कर लो . हमें क्या करना है बेटी . हम आदमी है . ये हमारा ही समाज है .
भाग चार :
अब चंद आदमी ये कहेंगे कि उस लड़की को इतनी रात को उस पब में क्या करना था. क्या ये उस लड़की की गलती नहीं है . अब चंद आदमी ये भी कहेंगे कि आजकल लडकियां भी तो कम नहीं है . अब चंद आदमी ये भी कहेंगे कि उस लड़की ने proactive ड्रेस पहन रखी थी . लडकिया अपने ड्रेस से और अपनी बातो से लडको को [? ] [ आदमियों को ] उकसाने का कार्य करती है .अब चंद आदमी ये कहेंगे कि उस लड़की के माँ बाप को समझ नहीं है क्या जो इतनी रात को उसे पब भेज रहे है . वो भी ११ वी पढने वाली लड़की को . अब चंद आदमी ये भी कहेंगे कि उस लड़की का चरित्र भी ठीक नहीं होंगा . अब चंद आदमी ये कहेंगे कि देश सिर्फ ऐसी लडकियों और औरतो की वजह से ही ख़राब होते जा रहा है . मतलब ये कि ये चंद आदमी पूरी तरह से सारा दोष उस लड़की पर ही डाल देंगे . ये चंद आदमी ये भी नहीं सोचेंगे कि north -east हमारे देश के सबसे अडवांस states है और वहां पर ज्यादा gender biased घटनाएं नहीं होती है .. [ except जब हमारी so called सेना के चंद जवान आदमी वहाँ की औरतो का जब तब दोहन करते रहते है ] . और अब ये चंद आदमी इस देश में तय करेंगे कि औरते ख़राब होती है .
भाग पांच :
तो हे बाला , हम सब का क्या . हम थोड़ा लिखना पढना जानते है तो इसीलिए हम थोड़ा लिख कर पढ़कर बोल कर अपना गुस्सा जाहिर करते है . दरअसल उस तरह के लिखने पढने वाले अब नहीं रह गए है कि जिनके कहे से क्रान्ति आ जाती थी और न ही उनकी बातो को सुनकर जोश में कुछ करने वाले बन्दे रह गए है . तुम तो ये समझ लो कि हम सबका खून ठंडा हो चला है . और और एक तरह से नपुंसक ही है . हाँ , हमें दुःख है कि तुम्हारे साथ ये हुआ. ये तुम्हारे साथ तो क्या , किसी के भी साथ नहीं होना था. हमें दुःख है कि आदमी नाम से तुम्हारा परिचय इस तरह से हुआ है . लेकिन हाँ , हम ये भी कहना चाहते है कि सारे आदमी ख़राब भी नहीं होते. क्योंकि जिस पत्रकार ने ये सब हम तक ये सब बात पहुंचाई , वो भी एक भला आदमी ही है . बस तुम इतनी सी बात को याद रखो कि बेटी , ये बाते भी एक आदमी ही लिख रहा है . ईश्वर तुम्हे मन की शान्ति दे. हाँ एक बात और , मुझे ये तो पता नहीं कि ये समाज कब बदलेंगा , लेकिन मैं आज एक बात तुमसे और सारी औरतो से कहना चाहता हूं , कि " अबला तेरी यही कहानी, आँचल में दूध , और आँखों में पानी" वाली स्त्रियों का ज़माना नहीं रहा . समाज ऐसे ही घृणित जानवरों से भरा पड़ा है . इनसे तुम्हे खुद ही लड़ना होंगा. तो खुद को तैयार करो और इतने सक्षम बनो कि हर मुसीबत का तुम सामना कर सको. और हाँ , ईश्वर से ये भी प्रार्थना है कि जीवन में कोई आदमी तुम्हे ऐसा जरुर दे , जो कि तुम्हारे मन से आदमी के नाम से जो डर बैठ गया होंगा ; वो उसे ख़त्म करे , उसे जड़ से निकाल दे. आमीन !!
भाग छह :
ब्रह्मपुत्र की लहरों को सबसे ज्यादा गुस्सेल और उफनती कहा गया है . आज ब्रम्हपुत्र जरुर रो रही होंगी कि वो एक नदी है और उसी की धरती पर ऐसा एक बच्ची के साथ ऐसा घृणित कार्य हुआ. हे ब्रम्हपुत्र , मैं सारे आदमियों की तरफ से तुमसे माफ़ी मांगता हूं. इतना ही मेरे बस में है !!! और बस में ये भी है कि मैं एक कोशिश करूँ कि अपने आस पास के समाज को दोबारा ऐसा करने से रोकूँ. और बस में ये भी है कि मैं अपने बच्चो को और वो दुसरे सारे बच्चो को बताऊँ कि औरत एक माँ भी होती है और उन्हें जन्म देने वाली भी एक औरत ही है . और मेरे बस में ये भी है कि मैं उन सभी को औरत की इज्जत करना सिखाऊ. हे ब्रम्हपुत्र मुझे इतनी शक्ति जरुर देना कि मैं ये कर सकूँ.
भाग सात : एक कविता
भाग पांच :
तो हे बाला , हम सब का क्या . हम थोड़ा लिखना पढना जानते है तो इसीलिए हम थोड़ा लिख कर पढ़कर बोल कर अपना गुस्सा जाहिर करते है . दरअसल उस तरह के लिखने पढने वाले अब नहीं रह गए है कि जिनके कहे से क्रान्ति आ जाती थी और न ही उनकी बातो को सुनकर जोश में कुछ करने वाले बन्दे रह गए है . तुम तो ये समझ लो कि हम सबका खून ठंडा हो चला है . और और एक तरह से नपुंसक ही है . हाँ , हमें दुःख है कि तुम्हारे साथ ये हुआ. ये तुम्हारे साथ तो क्या , किसी के भी साथ नहीं होना था. हमें दुःख है कि आदमी नाम से तुम्हारा परिचय इस तरह से हुआ है . लेकिन हाँ , हम ये भी कहना चाहते है कि सारे आदमी ख़राब भी नहीं होते. क्योंकि जिस पत्रकार ने ये सब हम तक ये सब बात पहुंचाई , वो भी एक भला आदमी ही है . बस तुम इतनी सी बात को याद रखो कि बेटी , ये बाते भी एक आदमी ही लिख रहा है . ईश्वर तुम्हे मन की शान्ति दे. हाँ एक बात और , मुझे ये तो पता नहीं कि ये समाज कब बदलेंगा , लेकिन मैं आज एक बात तुमसे और सारी औरतो से कहना चाहता हूं , कि " अबला तेरी यही कहानी, आँचल में दूध , और आँखों में पानी" वाली स्त्रियों का ज़माना नहीं रहा . समाज ऐसे ही घृणित जानवरों से भरा पड़ा है . इनसे तुम्हे खुद ही लड़ना होंगा. तो खुद को तैयार करो और इतने सक्षम बनो कि हर मुसीबत का तुम सामना कर सको. और हाँ , ईश्वर से ये भी प्रार्थना है कि जीवन में कोई आदमी तुम्हे ऐसा जरुर दे , जो कि तुम्हारे मन से आदमी के नाम से जो डर बैठ गया होंगा ; वो उसे ख़त्म करे , उसे जड़ से निकाल दे. आमीन !!
भाग छह :
ब्रह्मपुत्र की लहरों को सबसे ज्यादा गुस्सेल और उफनती कहा गया है . आज ब्रम्हपुत्र जरुर रो रही होंगी कि वो एक नदी है और उसी की धरती पर ऐसा एक बच्ची के साथ ऐसा घृणित कार्य हुआ. हे ब्रम्हपुत्र , मैं सारे आदमियों की तरफ से तुमसे माफ़ी मांगता हूं. इतना ही मेरे बस में है !!! और बस में ये भी है कि मैं एक कोशिश करूँ कि अपने आस पास के समाज को दोबारा ऐसा करने से रोकूँ. और बस में ये भी है कि मैं अपने बच्चो को और वो दुसरे सारे बच्चो को बताऊँ कि औरत एक माँ भी होती है और उन्हें जन्म देने वाली भी एक औरत ही है . और मेरे बस में ये भी है कि मैं उन सभी को औरत की इज्जत करना सिखाऊ. हे ब्रम्हपुत्र मुझे इतनी शक्ति जरुर देना कि मैं ये कर सकूँ.
भाग सात : एक कविता
: दुनिया की उन तमाम औरतो के नाम , उन आदमियों की तरफ से जो ये सोचते है कि उन औरतो का वतन उनके जिस्म से ज्यादा नहीं होता है :
:::::जानवर::::
अक्सर शहर के जंगलों में ;
मुझे जानवर नज़र आतें है !
आदमी की शक्ल में ,
घूमते हुए ;
शिकार को ढूंढते हुए ;
और झपटते हुए..
फिर नोचते हुए..
और खाते हुए !
और फिर
एक और शिकार के तलाश में ,
भटकते हुए..!
और क्या कहूँ ,
जो जंगल के जानवर है ;
वो परेशान है !
हैरान है !!
आदमी की भूख को देखकर !!!
मुझसे कह रहे थे..
तुम आदमियों से तो हम जानवर अच्छे !!!
उन जानवरों के सामने ;
मैं निशब्द था ,
क्योंकि ;
मैं भी एक आदमी था !!!
मुझे जानवर नज़र आतें है !
आदमी की शक्ल में ,
घूमते हुए ;
शिकार को ढूंढते हुए ;
और झपटते हुए..
फिर नोचते हुए..
और खाते हुए !
और फिर
एक और शिकार के तलाश में ,
भटकते हुए..!
और क्या कहूँ ,
जो जंगल के जानवर है ;
वो परेशान है !
हैरान है !!
आदमी की भूख को देखकर !!!
मुझसे कह रहे थे..
तुम आदमियों से तो हम जानवर अच्छे !!!
उन जानवरों के सामने ;
मैं निशब्द था ,
क्योंकि ;
मैं भी एक आदमी था !!!
निशब्द कर दिया आपकी इस पोस्ट ने ....काश वो जानवर इस को पढ़ पाते ....तो खुद ही जा कर मौत को गले लगा लेते(जानवर को भी पाल कर इंसान बनाया जा सकता हैं ...वो भी वफादार होता हैं ....पर ये जानवर कभी नहीं सुधर सकते ) ...शर्मनाक घटना पर लिखा गया सार्थक लेख ....
ReplyDeleteSamajh me nahee aata kya kahun? Barson se stree ko asahay dekh uskee izzat lootne kee parampara hai.....Mahabharat me gar Draupadi bharee sabha me nirwastr kee ja sakti to aam aurat kee kya bisat hai?
ReplyDeletekshamaJuly 14, 2012 12:39 PM
ReplyDeleteSamajh me nahee aata kya kahun? Barson se stree ko asahay dekh uskee izzat lootne kee parampara hai.....Mahabharat me gar Draupadi bharee sabha me nirwastr kee ja sakti to aam aurat kee kya bisat hai?
just added the post to google plus
ReplyDeleteदोस्तों ; रिपोर्टर को लेकर मैं भी असंजस में था. थोड़ी छानबीन की तो पता चला कि वहां पर करीब ५० से ज्यादा लोग थे और इस बात का विरोध करने वाले सिर्फ ४-५ . उसमे ये रिपोर्टर भी था. और उन लोगो ने उसकी चलने नहीं दी तो उसने अपने ही तारीखे से इसे शूट किया. और बात हम तक पहुंची . नहीं तो पता नहीं क्या अनर्थ हो जाता. उसने पुलिस को फोन किया था. जो करीब २०-३० मिनट बाद पहुंची . मुझे दुःख सिर्फ वहां की भीड़ को लेकर है . हम क्या बन कर रह गये है .ये कैसा समाज हम अपने बच्चो को दे रहे है .
ReplyDeleteशायद ऐसी पोस्ट्स ही आदमी के भीतर की इंसानियत जगा सकें....
ReplyDeleteउन्हें पशुता से दूर कर सकें...
दुखद है....
सादर
अनु
निशब्द .......
ReplyDeleteविजय जी,
ReplyDeleteये आज का आलेख जिस तरह से किश्तों में विषयों के अनुरुप आपने लिखा है बहुत ही अच्छा लगा. ये सारे मुद्दे हमें ही सोचने होंगे लेकिन कौन सोचेगा? आपके सारे मुद्दे सही हें . आज की भटकती हुई युवा पीढ़ी को ही क्यों दोष दें? आज के पुरुष की श्रेणी में आने वाले भी इस प्रवृत्ति से अलग नहीं है. और पढ़े लिखे और बुद्धिजीवी लोगों की बात भी हम यहाँ उठा सकते हें. कोई भी क्लू मिलने दीजिये वे धज्जियाँ उड़ाने में पीछे नहीं रहते हें. उस बाला के लिए जीवन एक बोझ नहीं बनेगा. अभी भी इस समाज में ऐसे युवा हें जो इस तरह सताई हुई लड़कियों का हाथ थाम लेते हें. मेरी यही दुआ है कि कोई समझदार युवा उसे मिले और इस तथाकथित समाज जो लड़कियों को सिर्फ और सिर्फ एक भोग्या के रूप में देखता है उसका सही उत्तर मिलना चाहिए.
आपके एक सुझाव से मैं भी सहमत हूँ कि अब लड़कियों को आत्मरक्षा के लिए तैयार करना होगा , इस बात को मैं पहले भी कई बार लिख चुकी हूँ कि लड़कियों को स्कूल स्तर से ही आत्मरक्षा के लिए मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दिया जन आवश्यक है और ये अनिवार्य होना चाहिए. उनकी बढाती संभावनाओं के लिए हम उन्हें डिब्बे में बंद कर नहीं रख सकते हें . वे आगे बढ़ रही हें और आसमान छूने जा रही हें तो फिर किसी को उड़ाने की छूट दें और किसी को डर से घर में कैद कर लें. नहीं हमारी शिक्षा और अभिभावकों दोनों को ही मिलकर इस विषय में गंभीरता से सोच कर निर्णय लेना होगा. अभिभावक अपने स्तर से ये प्रशिक्षण दिला रहे हें लेकिन हर अभिभावक इसके लिए सक्षम नहीं है इस लिए अगर स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल होगा तो सभी इससे प्रशिक्षित होकर आत्मरक्षा में समर्थ होंगी.
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ReplyDeleteMahesh Rajani ·
Guwahati ki ghatana sachmuch sharmnak hai aur sochne par vivsh karati hai ki kya humlog sachmuch sabhya Hai?
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ReplyDeleteNaini Grover ·
ब्रह्मपुत्र ही नहीं आज तो सारी सृष्टि ही रो रही है..मानवता रो रही है.. शर्म आती है ऐसे समाज में रहने से जो मूक मुर्दा बना देखता रहा.. आज एक लड़की नहीं समाज नंगा हुआ है.. जिस रिपोर्टर ने वह वीडियो बनाया सबसे पहले सज़ा उसको हो.. क्यूँ नहीं बचाया उसने उनके साथ तो कैमरा मैन भी होते हैं ना.. लानत है उस पर भी और देखने वालों पर भी..
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ReplyDeleteJyotsna Sharma
aapakee panktiyon ke ek ek shabd mein wo dard aur glaani dikhtee hai ...jo mere mn mei hai ...iss ghatnaa ko lekar
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ReplyDeleteShail Tyagi Bezaar ·
Har maamle me behtar hain jaanvar is tathakathit insaan se
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ReplyDeletePunam Sinha ·
"अब चंद आदमी ये भी कहेंगे कि उस लड़की ने proactive ड्रेस पहन रखी थी . लडकिया अपने ड्रेस से और अपनी बातो से लडको को [? ] [ आदमियों को ] उकसाने का कार्य करती है ......"विजय जी आपकी समीक्षा या लेख बहुत सही है....जितने भी लांछन हैं सब महिलाओं के हिस्से में ही क्यूँ जाते हैं..जब आजकल के पहनावे में ही क्रांतिकारी परिवर्तन आया है...चाहे वो लड़कों का हो या लड़कियों का...फिर सारा दोष लड़कियों पर ही क्यूँ जाता है...लड़के भी तो provoctive dress पहनने लगे हैं..लो वेस्ट जीन्स....जो इतनी नीचे होती है कि जरा सा हाथ लगाएं तो नीचे आ गिरेगी...लेकिन कोई लड़की भरे बाज़ार में हाथ लगा कर नहीं खींचती ...जहाँ तक provocation बात आती है...तो वो किसी की नज़र में होता है...और अगर देखा जाए तो हर घर में अपनी ही मां,बहन,बेटी भी ये अवसर रोजाना ही बड़े आराम से दे देती हैं..तब तो वो आदमी कभी भी प्रोवोक नहीं होता....बाहर में ये नजरिया बदल जाता है...क्यूँ कि उसका कोई भावनात्मक सम्बन्ध नहीं होता उस इंसान से और वो एक भोग्या वस्तु नज़र आने लगे....ऐसे लड़कों को उन्हीं की बहन के साथ एक कमरे में वैसी ही ड्रेस पहना कर बंद कर दिया जाए...फिर देखा जाए की उनकी ये भावना कहाँ जाती है...!!
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ReplyDeleteRohit Tambaskar
आप का लेख प्रभावशाली है जो कई बिन्दुओं पर केंद्रित है, ये सामाजिक समस्या है इसका हल होना बहुत ज़रूरी है
और क्या कहूँ ,
जो जंगल के जानवर है ;
वो परेशान है !
हैरान है !!
आदमी की भूख को देखकर
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ReplyDeleteNirmal Kothari
सारे घटनाक्रम और सामाजिक मानसिक वस्तुस्थिति पर आपके जोश और पीड़ा से भरे मगर संतुलित उदगार झकझोरने वाले हैं !
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ReplyDeleteSheela Dongre
विजय जी ..५ भागो मे विभाजित आपके विचारों से रूबरू होने का मौक़ा मीला, कम से
कम आपने स्थिति के हर पहलू को उजागर करने की कोशिस की | हमारे देश की ये
त्रासदी ही रही है कि याहां स्वयं को सुसंस्कृत कहने वाले लोगो का खून नहीं
खौलता | क्यों की विरोध जताना आक्रमक होना सुसंस्कृत लोगो का काम नहीं है |
सुसंस्कृत लोगो का कम है मूक-बधिर बन कर सुसंस्कृति का चोला सम्भाले रखना..!
काश की इस स्थिति को हम बदल सके...!!!
sachchi ek sharmnaak ghatna par bahut sarthak rachna... bahut hi dil sse aapne likha hai... pure ghatnakram pe apki najar thi....
ReplyDeleteham to yahi kahenge, kab aisee ghatnayon se nijat milegi???
हृदय विदारक
ReplyDeleteइन लोगों को जानवर कह कर संबोधित भी नही कर सकते
आखिर जानवरों की भी इज्जत होती है
आदमी ही जानवर क्यो?
ReplyDeleteक्या कभी ईन्सान बनेगा ?
क्या पता ऐसे आदमी अपने घर में ही अपनी माँ-बहन-बेटी का गोश्त खाते हों.. किसी का अब क्या भरोसा...?
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बड़ी ही भावपूर्ण रचना, निशब्द कर दिया..
ReplyDeleteऔर अब ये चंद आदमी इस देश में तय करेंगे कि औरते ख़राब होती है .
ReplyDeletebahut hi achha lekh likha hai har pehlu par gaur karta hua.
shubhkamnayen
उन जानवरों के सामने ;
ReplyDeleteमैं निशब्द था ,
क्योंकि ;
मैं भी एक आदमी था !!!
मै भी निशब्द हूँ ……॥
Lataspeaks:
ReplyDeleteKash har aadmi aisa sochta to yah na hota.kam se kam bheedh men hi kuch aadmi aisi soch wale hote to sharm ko sharminda na hona padhta.
बहुत दर्दनाक ..विजय जी आये दिन अब बस ऐसी ही बारदात देखने को मिलती है ..सच कहा अब इंसान इंसान नहीं रहा वो जानवर से भी बदतर हों गया है ...और ठीक कहा आपने कि अंत में सारा दोष लड़की पर दल दिया जाता है ..हमारा पुरुष प्रधान समाज ऐसा ही है ..आज कि सदी में भी सोच नहीं बदली ...
ReplyDeleteFB comment :
ReplyDeleteविक्रम सिंह 'सूर्यवंशी'
यह बहुत ही ह्रदय विदारक घटना थी | मैं सिर्फ इतना ही कहूँगा कि इन सब शैतानी हरकतों के लिए हमारी शिक्षा प्रणाली ही जिम्मेदार है... क्योंकि पहले सभी स्कूलों में नैतिक शिक्षा की किताब पढ़ाई जाती थी और विद्यार्थियों को उत्तम और आदर्श चरित्र का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया जाता था, परिणाम स्वरुप नवयुवक भी (अक्सर) कोई कुकृत्य करने से डरते थे. अब CBSE Board ने नैतिक शिक्षा का पाठ्यक्रम ही समाप्त कर दिया है |जिन नवयुवकों को घर में या स्कूल में नैतिक शिक्षा का ज्ञान नहीं मिला वे सिर्फ 'Eat, drink and be merry' ही सीख पाए हैं...|
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ReplyDeleteSwrda Saxena
Muje b bht gussa aur ashanti h us ghatna se. Dosh hmari shiksha pddhati ka h. Jo amir-garib, ooch-neech, jaat-paat, shreshth-nimn ka bhed mitane ki bajaay bdhaati h. Aur MORAL VALUES ka to koi lena dena hi nhi educatn me. Agar h bi to sirf ratne k liye. Koi sikhata h kya? Aurto ka smman krna koi sikhata h kya? Dusro ki help krna koi sikhata h kya? Samanta ka vyavhar..aur b bht sare mudde h.
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ReplyDeleteSiya Sachdev
अक्सर शहर के जंगलों में ;
मुझे जानवर नज़र आतें है !
आदमी की शक्ल में ,
घूमते हुए ;
शिकार को ढूंढते हुए ;
और झपटते हुए..
फिर नोचते हुए..
और खाते हुए !
और फिर
एक और शिकार के तलाश में ,
भटकते हुए..!
और क्या कहूँ ,
जो जंगल के जानवर है ;
वो परेशान है !
हैरान है !!
आदमी की भूख को देखकर !!!
मुझसे कह रहे थे..
तुम आदमियों से तो हम जानवर अच्छे !!!
उन जानवरों के सामने ;
मैं निशब्द था ,
क्योंकि ;
मैं भी एक आदमी था !!!....बहुत ही खुबसूरत शब्दों से लिखित आपकी मन को झकझोर जाने वाली ये अनमोल रचना पढ़कर मन में यहीं ख्याल आया काश इतनी संवेदना होती हर इन्सां में ..तो आज किसी बेटी की आबरू ना लुटती आभारी हूँ आपकी ...इस अनमोल रचना और उस मर्म स्पर्शी लेख के लिए नमन आपकी अनमोल लेखनी को
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ReplyDeleteVivek Khanna
speechless.... ;_(
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ReplyDeleteNeena Shail Bhatnagar :( मैं उसके दुःख में उसके साथ हूँ
हर दृष्टि से आपने सार्थक विश्लेषण किया है .... बहुत अच्छी और झकझोर देने वाली प्रभावी प्रस्तुति
ReplyDeleteइस घटना ने स्तब्द्ध करके रख दिया है,,,,,और अब यह रचना....
ReplyDeleteबहुत दर्दनाक और शर्मनाक घटना है..
ReplyDeleteक्या कहे...कब बदलेगा समाज...
क्यूँ नहीं समझते ये लोग की उनके
घर भी माँ - बहन, बेटी है
सार्थक लेख के साथ सार्थक बहस जो जारी है !!
ReplyDeleteघटना रात की नहीं बल्कि शाम साढ़े आठ बजे की है. फिर अगर रात की भी हो तो लड़की पर ऊँगली उठाना बहुत आसान है कि वह रात में वहाँ क्या कर रही थी. यही प्रश्न लड़कों से भी तो पूंछा जा सकता है कि वह वहाँ क्या किसी लड़की के आने का इन्तेज़ार कर रहे थे जिससे वह सब मिलकर अपनी मर्दानगी दिखा सके.
ReplyDeleteaapka yeh lekh bahut se swaalon ko uthata hai tatha sochne ko majboor bhee karta hai,shayad ham logon kii khamoshii hii in ghatnaon ko ghatit hone ke liye protsahit kar jaati hai.bas sharminda hone ke sivay kuchh nahi karte hain.pata nahi yeh kisne kahaa tha ki jahaan narii kii pujaa hoti hai,vahaan devtaon kaa vaas hota hai.
ReplyDeleteआज तो हम माफी के भी हकदार नहीं...
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ReplyDeleteNeelu Neelam
sach behadd hi shrmsaar kar dene waala dukhad haadsa..:(
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ReplyDeleteKabeer Up
विजय जी मेरा अपना नजरिया है की जबसे यह कारपोरेट घराना देश चला रहा है | और इसकी ही यह देन है की हमारे समाज में ऐसी घिनौनी हरकते होती रहेंगी | इन कारपोरेट घरानों का मुख्य कार्य ही यह है की आम आदमी को इतना कमजोर कर दो की इसके पास आत्म सम्मान , आत्म बल बचा ही ना रहे | इसके पीछे इस साजिश में हमारे मीडिया के बड़े घराने भी खड़े है क्योकि यह इन खबरों को ही बेच रहे है | वैसे भी पूरा मीडिया जगत इन बड़े कारपोरेट घरानों के पास ही है | ये पत्रकारों को मैनेज करते है जो चाहते है वो लिखवाते है और ये लोग भी वही करते है जो इनके आका चाहते है |
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ReplyDeletePraveen Arya
बहुत ही सार्थक लेख एवं सामयिक कविता के लिए साधुवाद
Vijay Ji....Dil ko phir se chhoo liya aapane....bahut hi marmik rachana aur kavita...agar aap jaisa sab log soche to ek din likhawat se bhi kranti aayegi aur samaj ka kalyaan hoga...aameen...
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ReplyDeleteSonroopa Vishal
ऐसे घाव पूरी मानवता को जीवन भर का दर्द दे जाते हैं .....
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ReplyDeleteSanjay Verma
Bahut sahi aur marmik chitran kiya hai aapne is ghatana ka......
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ReplyDeleteATUL :
सच में ये बहूत ही शर्मनाक घटना है ,नहीं होना चाहिए था .हर टी वी चैनल पर अपने आप को तथाकथित बुद्धिजीवी कहने वाले लोग इस घटना की एक सिरे से निंदा कर रहे हैं और उन मनचलों को फांसी तक की सलाह दे रहे हैं.लेकिन कोई भी दुसरे पहलू पर बात नहीं कर रहा है .कोई ये जानने की कोशिश नहीं कर रहा है कि समाज में आज लड़कों की ऐसी मानसिकता क्यों बनती जा रही है .क्या खुद लड़कियां नारी जाति को चाँद रुपयों के लिए सस्ता नहीं बना रही हैं ?क्या मीडिया इसके लिए दोषी नहीं है.ऐसे घटिया और निम्न स्तर के विज्ञापन दिखाए जाते हैं कि परिवार के साथ बैठ कर टी वी देकने में शर्म आती है कि पता नहीं कब ऐसा विज्ञापन आ जाये .तुरंत चैनल बदलना पड़ता है लेकिन क्या बच्चे इतने बेवक़ूफ़ हैं क्या वो भी समझते हैं .क्या करें मजबूरी है .उन विज्ञापनों में भी तो लड़कियां ही ऐसे दृश्य पेश पेश कर रही हैं .इस पर महिला आयोग कुछ नहीं कहता .तब लड़कियों की आजादी की दुहाई दी जाती है .अच्छी बात है सबको अपने अपने ढंग से जीने का हक है लेकिन हर आजादी की अपनी सीमायें होती है .और अगर सीमा तय करते हैं तो आप तालिबानी कहलाते हैं .मर्दों के इस्तेमाल की चीजों का विज्ञापन यहाँ तक की बनियान और अंडरवेअर का विज्ञापन भी भोंडे ढंग से लार्कियाँ करती नज़र आयेंगी.देख कर तो यही लगता है की वास्तव में लड़कियां भोग्य की वस्तु बनती जा रही हैं .नंगापन दिखाएंगी तो मनचलों का मन तो बहकेगा ही .दोषी तो है कोई और पर भोगना पड़ता है दूसरी मासूम लड़कियों को .एक कोई है पूनम पाण्डेय जिसको बात बात पर सिर्फ नंगा होने की ही सूझती है और इसमें अपनी शान समझती है .एक है शर्लिन जो प्ले बॉय नामक पत्रिका के मेन पेज पर अपनी नंगी तस्वीर छपवा कर ऐसा दिखा रही है कि उसने दुनिया जीत ली है .अब ऐसी ऐसी न्यूज़ पढ़ कर लड़के क्या सोचेंगे ?यही ना कि लार्कियों को नंगा होने में मज़ा आता है .एक है सन्नी लेओन नंगी फिल्मों में घटिया काम करने वाली ले आये टी वी पर .मीडिया ने उसे ऐसा प्रोमोट किया जैसे वो कोई बहुत बड़ी अदाकारा है .एक कदम आगे जा कर महेश भट्ट जैसे इंसान ने उसे ले कर एक निम्न स्तर की फिल्म बना डाली और उस नग्नता से भरपूर इस फिल्म को प्रोमोट तो ऐसे कर रहा है जैसे उसने एक बहुत ही उम्दा किस्म की कोई धाँसू फिल्म बनाई है .अब ऐसी फिल्म देख कर लड़कों खास कर प्रथम पंक्ती में बैठ कर देखने वालों के दिलोदिमाग पर क्या असर होगा .तो भैया जब समाज का स्तर गिर रहा है लड़कियां अपना सस्ता रूप शान से परोस रही हों तो ऐसी घटनाएँ देश के किसी न किसी कोनें में तो होती ही रहेंगी .तो कड़ी से कड़ी सजा तो उन लड़कों और ऐसी हरकत करने वाले हर किसी को मिलनी ही चाहिए लेकिन तमाम उन लोगों को जो नंगापन परोस कर बल मन को बहकते हैं उन्हें तो उस से भी कड़ी सजा मिलनी चाहिए.
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ReplyDeleteKirtivardhan Agarwal
fashion parast mahilaon ke saath mahila aayog gaya hai five star hotal me baithkar kha peekar aish karane aur jaanch karane,ab sab thik ho jayega
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ReplyDeleteYogendra Tripathi ·
man ki pida anshuo ka rup le hi leti hai. atisamvedanshil,,,,,,,,
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ReplyDeleteNarendra Hingonia ·
she was begging on her knees but nobody pitied her , kitna badal gaya insan -- dekh tere insan ki halat kya ho gai bhagwaan .. hell .
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ReplyDeleteNupur Ray Dutta ·
sir apne sab thik likha but dont write about tht bloody reporter jike karon ye ghtna ghti ye gatna wo reportes ne apne channel ki trp borhane ki liye khud bona ke ek choti si ladki ka ye dosa kiya us reportes ne 45 minitues tak video recording na korke ladki ko bachne kun nehi aya . ye sare homare desh ki politics hai ghin ate hai jisme homare jasi aurto ka ye dosha hote hai
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ReplyDeleteAnil Khamparia ·
sharm se lal hua karte the, sharm se kale parh gaye chehre.
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ReplyDeleteRavi Thakur Shuryvansh ·
unhe to desh aur sanskriti ka drohi ghoshit karke desh nikaal diyaa jaanaa chaahiye
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ReplyDeleteमुरारी लाल पारीक ·
aise wyaktiyon ko goli maar deni chahiye...lanat hai wahan maujud logonko
काम गंदे सोंच घटिया
ReplyDeleteकृत्य सब शैतान के ,
क्या बनाया ,सोंच के
इंसान को भगवान् ने
फिर भी चेहरे पर कोई, आती नहीं शर्मिंदगी !
क्योंकि अपने आपको, हम मानते इंसान हैं !
comment on vicharvimarsh :
ReplyDeleteआदरणीय विजय जी,
आपकी कलम को, नारी के प्रति आपकी सम्मान भावना और गहरी सोच को, आपके संवेदनशील ह्रदय को, आपकी निश्छल अभिव्यक्ति को, आपकी चिंतनशीलता को, आपके तरह-तरह के अनुमान को, आपकी विनम्रता और कोमल भावों को सलाम ...!
आपके उद्गारों के लिए, आपकी जितनी भी सराहना की जाए कम है !
इस दुखद वाकये का सुखद पहलू यह है कि इस घटना से सारा देश आंदोलित हुआ, महिला आयोग और आसाम सरकार सक्रिय हो उठी... ! जिससे वे एक दर्जन दैत्य शीघ्रता से पकडे गए और उनके चेहरे सारी दुनिया की नज़र में आए (शायद एक की खोज जारी है) !
हम अपराधियों को मात्र धिक्कारने में ही नहीं वरन, पूरी तरह दण्डित करने में विश्वास करते हैं जिससे वे भी उस दर्द से गुज़रे, जो उन्होंने किसी को दिया ! हम यह देख कर आश्वस्त है की उन ज़ालिम अपराधियों को बकायदा सज़ा देने की तैयारी हो रही है ! हमारा सोचना है कि सज़ा के बाद उनकी काउंसलिंग होनी चाहिए, जिससे उन्हें दिल की गहराईयों से अपने अपराध का, अमानुषिक
गलती का एहसास हो और वे आने वाले समय में अच्छे इंसान बने ! क्योंकि अपराधी कई बार बहुत अच्छे इंसान बनते देखे गए हैं ! सारी युवा पीढ़ी को शिद्दत से ऐसी घटनाओं से अपने को आंकना चाहिए ! लडके-लडकियाँ सभी को समझदारी से माध्यम मार्ग अपनाना चाहिए ! 'अति सर्वत्र वर्जयेत....! 'हँसाना, गाना, नाचना, उत्सव मनाना सब होना चाहिए लेकिन होश खोए बिना ..........! साथ ही बच्चों के
माता-पिता को भी किसी न किसी तरह बच्चों को समय - समय पर उनके शुभ चिन्तक होने के नाते; हिदायते देते रहना चाहिए ! ऐसा करना समाज हित और देश हित में अपेक्षित है ! यह एक Team Work है , मात्र समाज सेवी संगठनॉ, पुलिस , महिला आयोग या सरकार के दखल देने से इच्छित परिणाम मिलने वाले नहीं - ऐसे में, जो सुधार सामने आएगे, वे कुछ समय के लिए यानी अस्थायी होंगे ! सबको
अपने अपने स्तर पर एकजुट होना पडेगा - तभी युवा पीढ़ी सधेगी ! सुधार शब्द भूल कर, हमें उन्हें साधने की कोशिश करनी चाहिए !
विजय जी आपके लिखे को पुन: नमन !
सादर,
दीप्ति
comment by email :
ReplyDeleteKuldeep Kumar
Thanks Vijay ji
Great .. bahut dard bhara rachna hai ... kya mei iss rachna ko publish
kar sakta hu
Bhojpuri Panchayat magazine mei...
Thanks
Sincerely yours,
Kuldeep
Media Club Of India
comment by email :
ReplyDeleteNarender Kumar Verma
We r also deeply pained with this kind of ugly behaviour we should fight for giving punishment to these criminals n. k verma
इन्सानियत के लिये डूब मरने वाली इन शर्मनाक घटनाओं पर अफसोस किया जारहा है यही नियामत लग रही है अब तो ।
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ReplyDeleteShikha Gupta
आपके उद्दगार पढ़े और मन में यही विचार आया कि आपकी तरह सोच रखने वालों की संख्या इतनी बढ़े कि फिर आदमी को अपने आदमी होने पर शर्मिंदा ना होना पड़े .
comment on Kaavyadhaara :
ReplyDeleteविजय भाई!
आपकी इस प्रस्तुति को divynarmada में स्थान दे रहा हूँ. आपकी संवेदनापूर्ण कलम को नमन.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
comment on kaavydhara :
ReplyDeleteआदरणीय विजय जी.
आपने गजब का लिखा है. आप आज से मेरे श्रदेय बन गए. गुवाहाटी की घटना से मैं बहुत विचलित और 'आदमी' के खिलाफ क्रोध से भरा था, मैं तो उन १२ लडको को ऐसा दण्डित करना चाहता हूँ कि उनका ह्रदय परिवर्तन हो जाए और उनके साथ उनके जैसी उच्छृंखल युवा पीढ़ी का भी . चिड़िया सी वो लड़की किस तरह उन गीद्धों द्वारा घसीटी जा रही थी - जब सोचता हूँ मेरी आँखे भर आती हैं
आपकी लेखनी को नमन !
सादर,
कनु
comment on vicharvimarsh :
ReplyDeleteआ० विजय कुमार सप्पाती जी , तथा मान्यवर अन्य सदस्य ,
गुवाहाटी की घटना पर आपके संवेदनशील और प्रभावशाली उदगार
सराहनीय हैं | मैं समझता हूँ कि सारा दोष आदमी का नारी के प्रति विकृत
विचारधारा का है जिस पर कोई प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा है | नारी
की स्वछंदता का लाभ और उपयोग स्थानीय समाज के मनोविज्ञान पर भी
निर्भर करता है | इस घटना को मैं भी टीवी पर देखता रहा हूँ कि किस प्रकार
वहाँ उपस्थित भीड़ मूक दर्शक रही | टीवी चैनेल ने इस घटना की VDO बना
कर दर्शको को आकृष्ट करने वाला कुत्सित दृश्य फिल्माया | पकडे गये अपराधियों
के चहरे किसी लफंगे से साफ़ नज़र आये | समय यदि मैं गलती नहीं कर रहा तो
रात ग्यारह बजे किसी पब के सामने का है जिससे वह लडकी निकलकर वापस
जा रही थी | आसाम या सभी पूर्वोत्तर प्रदेशों के समाज में नारी के प्रति आदर भाव
व सम्मान है | बल्कि उससे मिले मणिपुर आदि को तो नारी प्रधान देश कहा जाता है |
इस परिदृश्य की समग्रता में कुछ विचारणीय प्रश्न मेरे मन में उठ खड़े हुए हैं जिनका
कोई विश्वस्त और समुचित उत्तर मुझे नहीं मिल रहा है मैं वे प्रश्न उनसे पैदा हुए
निष्कर्ष आप और मंच के गंभीर चिंतकों के समक्ष रख कर समाधान पाने की आशा
करता हूँ |
१- रात ग्यारवीं क्लास की छात्रा का बदनाम पब में अकेले आना जाना और रात 11
बजे अकेली बाहर निकलना क्या उसके आचरण पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता ? छात्रा
के मातापिता गार्जियन को लडकी के अकेले पब आने जाने का पाता था क्या और
क्या इस पर उनकी रजामंदी थी ?
२- शायद उस छात्रा का पहलीबार पब जाने का वाकया नहीं | वह अक्सर जाती होगी और
अराजक तत्वों की उस पर नज़र रही होगी तभी सबकी मिलीभागति से यह घटना सोचे समझे
ढंग से की गई होगी |
3- किसी चैनेल के छायाकार का वहाँ उपस्थित होना और उस लड़की को नायिका बना कर
दृश्य दोहराते शूटिंग के समान फिल्माने का कार्य उपस्थित भीड़ के साथ करना तथा लडकी
की इस दृश्यांकन की अनुमति कुछ अलग कहानी कहते हैं |
४ - इस बीच पुलिस अवश्य वहाँ पहुँच चुकी होगी आपराधियो को पकड़ने के बजाय उसका भी
मूक दर्शक बना रहना औएर चुचाप शूटिंग देखना गले नहीं उतरता |
यह पूरी घटना अनेक प्रश्न उठा रही है | कुछ कड़े कदम उठाये गये हैं अपराधी पकडे गये हैं
SHRC भी हरकत में है और पूरी घटना पर तफ्तीश भी की जारही है | जब तक उक्त प्रश्नों का
समाधान न हो तबतक कामख्या नगरी कि पवित्र ब्रम्हपुत्र को रुलाना मेरी समझ से जल्दबाजी है |
कोरी भावुकता वश समस्त पुरुष समाज को नपुंसक या दोषी मान लेना शायद जल्द- बाजी होगी |
कमल
ghatna par me kafi kuch kah chuki hai so ab kuch kahna nahi chahti..sharmnaak hai ye bas itna kahungi.
ReplyDeleteaapki ye kaviuta facebook par padhi thi aur aaj blog par padhkar aur bhi jyada hrudayasparshi lagi...
शुक्रिया विजय जी ...
ReplyDeleteइस विषय पर कलम उठाने के लिए ......!!
शुक्रिया विजय जी ...
ReplyDeleteइस विषय पर कलम उठाने के लिए ......!!
विजय कुमार जी,
ReplyDeleteसाभार धन्यावाद कि आपने अपना बहुमूल्य समय देकर,मेरी प्रस्तुति
’ संसार--- से साभार’ कुछ सूत्र जो ओशो द्वारा प्रतपादित किये गये
पर आपकी सशक्त टिप्पणी के लिये.
’गोहाटी की ्बाला---’पर आपने जो अपने हृदय की पीडा को पिया है,
आत्मसात किया है,मैं भी इस पीडा में शामिल हूं.
अब,हमें सोचना ही होगा कि आखिर क्यों ये विकृतियां हमारे चरित्र में
घर कर रहीं है?
उत्तर एक-दूसरे के दृष्टिकोंण में नहीं मिलेगा केवल दोषारोपण ही होंगे.
कभी-कभी मैं ओशो की विचार-गंगा में डुबकी लगाने की कोशिश कर लेती हूं.
उनकी बहुचर्चित एंव बहुआलोचित पुस्तक ’सम्भोग से समाधि तक’ पढी.जैसा सुन रखा
था उसके विपरीत पाया.
जीवन के सत्य के इतने करीब कि आंखे खुल जांय. वो जाना जो अब तक जाना न था.
ओशो—किसी भी सत्य को ढका नहीं जा सकता. मानवीय आस्तित्व केवल आत्मा ही नहीं है
शरीर भी है.अतः हमें दोनों ही सत्य को स्वीकार करना चाहिये.(हो सकता है उनके विचारों को
उन्ही के शब्दों न कह पाई हूं)
अब,एक ओर खाप जैसी समाजिक व्यवस्थाएं अपने वर्चस्व के झंडे को फ़हरा रहीं हैं जहां हम १८वी सदी
में जीने को बाध्य हैं-प्रेम जो इस सृष्टि का बीज है उसे धूल-धूसिर कर रहें हैं-दूसरी ओर २० हजार किलो मीटर
दूर की संस्कृति के पीछे आंख मूंदे भागे जा रहें हैं.
वास्तव में.हम भ्रमित अवस्था में जी रहें है—सो ऐसी विकृतियां जन्म ले रहीं है अपने भीवत्स रूप में.
अंत में, ओशो के विचारों से सहमत हूं—आस्तिव में कुछ भी बदसूरत नहीं है और हमें कोई हक नहीं
बनता इस खूबसूरती को बदसूरत करने का.( विचार ओशो के हैं शब्द मेरे)
अपनी प्रितक्रिया विलंब से पाई,क्षमा करें.
aap ne ek chtr ubhaaraa hai jo her ek ko prbhaavita kare.
ReplyDeletevinnie
बधाई स्वीकार करे और आपका आभार !
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लोग्स पर आपका स्वागत है . आईये और अपनी बहुमूल्य राय से हमें अनुग्रहित करे.
कविताओ के मन से
कहानियो के मन से
बस यूँ ही