यूँ ही कभी अगर दुनिया पूछे तुमसे
की मैं कौन हूँ ..
तो तुम कह देना ..
कोई नहीं है जी ..कोई नहीं ,
बस यूँ ही था कोई
जो जाने अनजाने में
बस गया था दिल में ..
पर वो कोई नहीं है जी ...
एक दोस्त था जो अब भी है ,
जो कभी कभी फ़ोन करके
शहर के मौसम के बारे में पूछता है,
मेरे मन के आसमान पर
उसके नाम के बादल अब भी है ..
पर कोई नहीं है जी ..
कुछ झूठ है इन बातो में
और शायद ,थोडा सा सच भी है
जज्बातों से भरा हुआ वो था
उम्मीदों की जागीर थी उसके पास
पर मैंने ही उसकी राह पर से
अपनी नजरो को हटा दिया
पर कोई नहीं है जी ..
कोई है , जो दूर होकर भी पास है
और जो होकर भी कहीं नहीं है
बस कोई है.." कहाँ हो जानू " ,
क्या ...कौन ..
नहीं नहीं कोई नहीं है जी ...
मेरे संग उसने ख्वाब देखे थे चंद
कुछ रंगीन थे , कुछ सिर्फ नाम ही थे
है कोई जो बेगाना है ,पता नहीं ?
मेरा अपना नहीं ,सच में ?
कोई नहीं है वो जी ....
कोई साथी सा था ..
हमसफ़र बनना चाहता था ,
चंद कदम हम साथ भी चले ..
पर दुनिया की बातो में मैं आ गयी
बस साथ छूट गया
कोई नहीं है जी ....
कोई चेहरा सा रहता है ,
ख्यालो में ...याद का नाम दूं उसे ?
कभी कभी अक्सर अकेले में
आंसू बन कर बहता है
कोई नहीं था जी....
बस यूँ ही
मुझे सपने देखने की आदत है
एक सच्चा सपना गलती से देख लिया था
कोई नहीं है जी , कोई नहीं है ....
मुझे सपने देखने की आदत है
एक सच्चा सपना गलती से देख लिया था
कोई नहीं है जी , कोई नहीं है ....
सच में ...पता नहीं
लेकिन कभी कभी मैं गली के मोड़ तक जाकर आती हूँ
अकेले ही जाती हूँ और अकेले ही आती हूँ ..
कही कोई नहीं है जी ..
लेकिन कभी कभी मैं गली के मोड़ तक जाकर आती हूँ
अकेले ही जाती हूँ और अकेले ही आती हूँ ..
कही कोई नहीं है जी ..
कोई नहीं ...
विजय जी,
ReplyDeleteआपकी कवितायें तो हमेशा ही इंसान को बहा ले जाती हैं और आज आपकी इस कविता के जवाब मे एक कविता आपको समर्पित कर रही हूं …………उम्मीद है पसन्द आयेगी……………॥
कोई तो है
जो रूह बना
लहू बन
रगो मे बहा
फिर कैसे कहूं
कोई नही है
कोई तो है
जो अहसास
जगा गया
अरमानो को
दीप दिखा गया
फिर कैसे कह दूं
कोईनही है
कोई तो है
जो सच कह गया
मगर दिल भी
जला गया
कुछ अपना
दुखा गया
कुछ मेरा
फिर कैसे कह दूं
कोई नही है
कोई तो है
कहीं तो है
मगर अब
ख़्वाब
आकार नहीं लेते
हसरतें जवाँ नहीं होतीं
एक टीस सी उठती है
शायद दर्द बन कर
पल रही है
फिर कैसे कहूं
कोई नहीं है
कोई तो है
जरूर है ............
कोई ना कोई
शायद तुझमे मैं
और मुझमे तू
कहीं तो हैं
बस यूं ही
ReplyDeleteमुझे सपने देखने की आदत है
एक सच्चा सपना गलती से देख लिया था
कोई नहीं है जी, कोई नहीं है...
गहरी संवेदनाओं से परिपूर्ण एक उत्तम कविता।
किसी के न होने से उपजता दर्द ---- बहुत दुख देता है किसी का ज़िन्दगी से चले जाना। मार्मिक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमार्मिक और संवेदनशील प्रस्तुति
ReplyDeleteइस दुनिया में न मै हूँ, न आप हैं, न वो है, न ये है, कोई भी नहीं है।
ReplyDeletekoi to hai vijay ji jiski liye likhana pada ke koi naheen hai .
ReplyDeletebadhai ho ..........achhi kavita hai
कहने को तो सब कुछ हूँ मैं,
ReplyDeleteना चाहूँ तो माया हूँ।
विजय जी ,
ReplyDeleteआपकी कविता और वन्दना जी की कविता एक दूसरे का जवाब हैं | दोनों ही अच्छी लगीं |
इला
ilanaren