सूरज चढ़ता था और उतरता था....
चाँद चढ़ता था और उतरता था....
जिंदगी कहीं भी रुक नही पा रही थी,
वक्त के निशान पीछे छुठे जा रहे थे ,
लेकिन मैं वहीं खड़ा हूं ...
जहाँ तुमने मुझे छोडा था....
बहुत बरस हुए ;
तुझे ,
चाँद चढ़ता था और उतरता था....
जिंदगी कहीं भी रुक नही पा रही थी,
वक्त के निशान पीछे छुठे जा रहे थे ,
लेकिन मैं वहीं खड़ा हूं ...
जहाँ तुमने मुझे छोडा था....
बहुत बरस हुए ;
तुझे ,
मुझे भुलाए हुये !
मेरे घर का कुछ हिस्सा अब ढ़ह गया है !!
मुहल्ले के बच्चे अब जवान हो गए है ,
बरगद का वह पेड़ ,
जिस पर तेरा मेरा नाम लिखा था
शहर वालों ने काट दिया है !!!
जिनके साथ मैं जिया ,वह मर चुके है
मैं भी चंद रोजों में मरने वाला हूं
पर,
मेरे दिल का घोंसला ,
जो तेरे लिए मैंने बनाया था,
अब भी तेरी राह देखता है.....
मेरे घर का कुछ हिस्सा अब ढ़ह गया है !!
मुहल्ले के बच्चे अब जवान हो गए है ,
बरगद का वह पेड़ ,
जिस पर तेरा मेरा नाम लिखा था
शहर वालों ने काट दिया है !!!
जिनके साथ मैं जिया ,वह मर चुके है
मैं भी चंद रोजों में मरने वाला हूं
पर,
मेरे दिल का घोंसला ,
जो तेरे लिए मैंने बनाया था,
अब भी तेरी राह देखता है.....
हर एक शब्द नि:शब्द करता हुआ ...बहुत ही सुन्दर ।
ReplyDeleteभावों को बेहद संजीदगी से पिरोया है……………हर शब्द खुद बोल रहा है……………सुन्दर अभिव्यक्ति हमेशा की तरह्।
ReplyDeleteAap stabdh kar dete hain!Behad sundar!
ReplyDeleteदिल के गोंसले में यादों के पंछी।
ReplyDeleteप्रेम की अदभुद अनुभूति कराती कविता.. सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ....प्रेम भावना का सच्चा एहसास
ReplyDeleteअति सुन्दर............
ReplyDeleteप्रेम की बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजिनके साथ मैं जिया ,वह मर चुके है
ReplyDeleteमैं भी चंद रोजों में मरने वाला हूं
.....??
... ??
.... ????
हमको वफा की उनसे है उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है।--ग़ालिब
ReplyDeleteरूह से रूह तक जाने वाली खोबसूरत एहसास और दिलकश भाव लिए ... लाजवाब रचना है विजय जी ... प्रेम में अक्सर ऐसा होता है ...
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........
ReplyDeletehttp://saaransh-ek-ant.blogspot.com/
इसी को कहते हैं अभिव्यक्ति और कविता भी... जो बात दिल तक पहूँचे !
ReplyDeleteउत्तम्
ReplyDeleteजिनके साथ मैं जिया ,वह मर चुके है
ReplyDeleteमैं भी चंद रोजों में मरने वाला हूं...
????????????????
कोई लाख चाहे अपनी लिखी मौत से पहले नहीं मर सकता जनाब .....
मेरे दिल का घोंसला ,
जो तेरे लिए मैंने बनाया था,
अब भी तेरी राह देखता है.....
घोसला अभी भी सही सलामत है विजय जी .....????
संवेदनशील rachna .....!!
बड़ी ही संजीदा अभिव्यक्ित पढ़वाने के लिए आभार
ReplyDeleteकाल-भ्रन्श है, बात स्वयं के संदर्भ में है अतः था, थी, थे के स्थान पर...है..हैं होना चाहिये अर्थात ...खडा हूं से तादाम्य...
ReplyDelete--- सामान्य वर्णनात्मक, अभिधात्मक कविता है...
आदमी का मन कितना भी भारी या मायूस क्यों न हो,आपकी रचना पढ़ आदमी मुंह लटकाए बैठा न ही रह सकता....
ReplyDeleteगजब का लिख देते हैं आप विजय जी...
कभी लिखना छोड़ने की न सोचियेगा...अइसे ही सदा लिखते रहिएगा...
मेरे दिल का घोंसला ,
ReplyDeleteजो तेरे लिए मैंने बनाया था,
अब भी तेरी राह देखता है....
बहुत अच्छी रचना है...भावुक कर देने वाली.
proper expression of emotions...
ReplyDeleteभई हमारा तो कुछ भी साबूत नहीं बचा। आपका घोंसला बचा हुआ है, औऱ राह तक रहा है गनीमत है। आशा कितनी निर्मोही हो जाती है न कई बार। इंतजार से बाज ही नहीं आने देती। सारे निशान मिट जाएंगे एक दिन, फिर भी आशा बनी रहेगी।
ReplyDeleteसुंदर कविता की कोशिश काफी हद तक कामयाब।
विजय जी
ReplyDeleteनमस्कार !
......प्रेम की बेहतरीन अभिव्यक्ति
बरगद का वह पेड़ , जिस पर नाम था हमारा
ReplyDeleteउसे शहरवालों ने कटवा दिया ....
पर नाम आज भी जिंदा है
घोंसले में इंतज़ार जो है
स्वागत के लिये तैयार हैं हम सर जी
ReplyDeleteयहॉं तो अभी गुँजाईश है एक शायर के साथ तो ऐसा हुआ कि:
ReplyDeleteमरने के बाद भी मेरी ऑंखें खुली रहीं
आदत पड़ी हुई थी उन्हें इंतज़ार की।
बहुत अच्छी लगी कविता। बधाई।
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना के लिए बधाई!
ReplyDeleteआह ! इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति ... सही कहा राह देखते-देखते हम किसी और सफ़र पर निकल जातें हैं . आपकी हर रचना क्यों रुकने पर विवश कर देती है .क्या कहूँ ? अच्छा लगा ....बस
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