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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
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फूल,चाय और बारिश का पानी बहुत दिनों के बाद , हम मिले... हमें मिलना ही था , प्रारब्ध का लेखा ही कुछ ऐसा था . मिलना , जुदा होना औ...
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रूह की मृगतृष्णा में सन्यासी सा महकता है मन देह की आतुरता में बिना वजह भटकता है मन प्रेम के दो सोपानों में युग के सांस ल...
ये गाना मेरे मझले मामा जी को बहुत पसंद है... वो अक्सर इसे गुनगुनाते हैं...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गीत...
ReplyDeleteहमेशा ही सुनने लायक...
मेरे ब्लॉग पर..
विश्व की १० सबसे खतरनाक सडकें.... ...
आज बहुत दिनो बाद ये गाना सुना………बेहद खूबसूरत है इसके अल्फ़ाज़्…………दिल को छू जाते हैं।
ReplyDeleteसुन्दर गीत है। शुभकामनायें।
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