Thursday, May 17, 2012

ज़िन्दगी, रिश्ते और बर्फ .....!


                                              Image courtesy : Google images


ज़िन्दगी, रिश्ते और बर्फ .....!
अक्सर सोचता हूँ ,
रिश्ते क्यों जम जाते है ;
बर्फ की तरह !!!

एक ऐसी बर्फ ..
जो सोचने पर मजबूर कर दे..
एक ऐसी बर्फ...
जो जीवन को पत्थर बना दे......
एक ऐसी बर्फ ..
जो पिघलने से इनकार कर दे...

इन रिश्तों की उष्णता ,
दर्द की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ,
जीवन की आग में जलकर ;
बर्फ बन जाती है ......

और अक्सर ही हमें शूल की तरह चुभते जाते है 
और भीतर ही भीतर जमते जाते है ये रिश्तें......

फिर ; अचानक ही एक दिन ;
हम !
अपने बनाये रिश्तो को देखते है
किसी पाषाण शिला
की तरह हिमखंड सी बर्फ में जमे हुए......

ये रिश्ते ताकते है ;
हमारी ओर !
और हमसे पूछते है ,
एक मौन प्रश्न ...
ये जन्म क्या यूँ ही बीतेंगा !
हमारी जमी हुई उष्णता कब पिघलेंगी  !

हम निशब्द होते है
अपने ही रिश्तों के अबोध प्रश्नों पर
और अपनी जीवन की जटिलता पर ....

रिश्तों की बर्फ हर पल और ज्यादा जमती जाती है ..
और लगता है जैसे हर बीतता हुआ एक एक पल ;
एक एक युग की उदासी और इन्तजार लिए हुए हो  !!
और हम एक जीवंत मृत्यु  की चादर ओढे ;
एक निश्चित मृत्यु  की प्रतीक्षा करते है..!

लेकिन ;
अक्सर इन रिश्तों की
जमी हुई बर्फ में,
हमें ,अपने ही आंसू ;
तैरते हुए दिखते है .......!!


49 comments:

  1. और हम एक जीवंत मृत्यु की चादर ओढे ;
    एक निश्चित मृत्यु की प्रतीक्षा करते है..!

    यही जीवन का सत्य है ………रिश्ता तो सिर्फ़ एक ही ऐसा है जो चिरंतन है बस वो ही हमेशा साथ रहता है बाकि तो सभी रिश्ते हिमखंड ही हैं

    अक्सर इन रिश्तों की
    जमी हुई बर्फ में,
    हमें ,अपने ही आंसू ;
    तैरते हुए दिखते है .......!!

    हाँ ऐसा ही मिलेगा जब तक हम रिश्तों की चादर को ओढ कर बैठेंगे जिस दिन इस मोह के प्रपंच से बाहर निकलेंगे वहाँ आँसू नही सिर्फ़ और सिर्फ़ मुस्कान दिखेगी वो भी अपनी ही ऊषा की प्रथम किरण सी

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  2. वाह....................

    बिलकुल सच कहा................
    रिश्तों में उष्णता बनाये रखें और ना जमने दी जाये बर्फ की एक पतली परत भी....

    बहुत प्यारी रचना.

    अनु

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  3. विजय जी ,
    बहुत ही मार्मिक कविता है ॥मन को छू गई कहीं भीतर तक ...सोच रही हूँ अपने विद्यार्थियों से इस बार एक अभ्यास करवाऊँ ॥ अपकी आज्ञा आपेक्षित है ॥
    सविनय
    कुमुदिनी

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    1. आदरणीय कुमुदिनी जी ;
      नमस्कार

      मेरी आज्ञा की कोई जरुरत नहीं है मित्र. आपको कविता अच्छी लगी , मेरे लिये यही पुरस्कार है.

      आप ले लीजिए ये कविता .

      आपका बहुत आभार .
      विजय

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  4. अक्सर इन रिश्तों की
    जमी हुई बर्फ में,
    हमें ,अपने ही आंसू ;
    तैरते हुए दिखते है .......!!
    बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  5. बहुत बढ़िया सर!


    सादर

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  6. bahut achha likha hai yun laga apna hi man padh rahi hun.
    likhte rahiye.
    shubhkamnayen

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  7. रिश्ते जब दुःख देते हैं
    तब वो ..
    पत्थर बन जाते हैं
    उन पत्थरों पर फिर बर्फ जमे या
    वक्त की धूल ..
    कोई फर्क नहीं पड़ता

    रिश्ते जब दम तोड़ते हैं
    वो अंतिम साँस नहीं लेते
    वो ता उम्र इस दिल में,
    कटु यादों के रूप में रिसते हैं
    पर बर्फ की मानिद पिघलते नहीं हैं
    अगर कभी ये बर्फ पिघलने लगे तो
    कुछ बोझ कम हो जाए
    इस जीवन से ||...अनु

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  8. ईमेल के द्वारा कमेन्ट :

    आपकी भावों से लद कद कविताओं को पढने के उपरांत मन की ऐसी स्थिति हो जाती है कि , बिलकुल भी समझ नहीं आता कि क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करूँ..एकदम निःशब्दता की स्थिति बन जाती है, या लगता है कि बस बोलती ही जाऊं, बोलती ही जाऊं ..इतना बोलूं कि लगे, अब मनोभाव अभिव्यक्त हुआ...
    ..
    खैर, इतनी गर्मी में इस कविता द्वारा जो बर्फीला अहसास आपने दिया, दिल कूल कूल हो गया..

    ऐसे ही लिखते रहें...
    बहुत बहुत शुभकामनाएं..

    सादर,
    रंजना.

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  9. hmmmm....
    लेकिन ;
    अक्सर इन रिश्तों की
    जमी हुई बर्फ में,
    हमें ,अपने ही आंसू ;
    तैरते हुए दिखते है .......!!

    udaas si hop gayi main padh kar rishton ka katu satya
    par sach se bhagna kaisa hai to hai....

    dil ko chhoo gayi aapki barfeeli rachna

    abhaar

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  10. काश भावों की गतिमयता इस बर्फ को पिघला दे।

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  11. जब आदमी कुछ समय मौन रहकर एकांत में ध्यान करता है तो वह अपनी रूहानी हक़ीक़त को देख लेता है।

    http://sufidarwesh.blogspot.in/2012/05/ruhani-haqiqat.html

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  12. बहुत खूब....
    आपके इस पोस्ट की चर्चा आज रात ९ बजे ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकाशित होगी... धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...
    http://bulletinofblog.blogspot.in/

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  13. बहुत खूब सर ...
    रिश्तों में भावनाओ की उष्णता होनी चाहिए
    नहीं तो उनमे बर्फ पड़ जाती है....
    बहुत बेहतरीन रचना :-)

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  14. अक्सर इन रिश्तों की
    जमी हुई बर्फ में,
    हमें ,अपने ही आंसू ;
    तैरते हुए दिखते है .......!

    .....यही जीवन का कटु सत्य है...बहुत मर्मस्पर्शी रचना...

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  15. एक ऐसी बर्फ ..
    जो पिघलने से इनकार कर दे...


    -कभी तो पिघलेगी ये बरफ...इसी आस में जिये जाते हैं...उम्दा रचना!!

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  16. बहुत सुन्दर कविता

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  17. भावनाओं के समुद्र में सच्चाई का ज्वार !प्रस्तुति बहुत ही अच्छी बन पड़ी है |

    सुधा भार्गव

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  18. रिश्तों के बीच का बर्फीला cold wave बड़ी मुश्किल से थमता है.....
    इसमें जम गया feeling एकबार गर,वो कहाँ आसानी से गलता है !
    रिश्तों की बर्फ बन चुकी उष्णता पिघलने में बड़ा समय लेती है...
    ये पिघलती नहीं आसानी से कभी कभी पूरी जिंदगी बीत जाती है !!
    गुजारिश है मेरे दोस्तों..!
    अपने रिश्तों की गुनगुनी गरमाहट को बना के रखिए....
    कुछ भी हो जाए इन रिश्तों में प्यार बना के रखिए...!
    न जमने दीजिये अपनेपन की गर्मी को ग्लेशियर में.....
    न आने दीजिये किसी बड़ी तकरार को अपने बीच में.....
    न आने दीजिये कभी किसी तीसरे को अपने बीच में.....
    न पसरने दीजिये एक शाश्वत मौन को अपने बीच में...
    अहं के परिंदे को पर भी न मारने दीजिये...!!
    और एक-दूसरे के सम्मान को बना के रखिए....!!

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  19. ईमेल के द्वारा कमेन्ट :

    narendra agrawal :

    Dear Sri VK Ji

    Your poem depicts the depth of "RISHTE" some thing that every one has experienced. A very nice literary piece.

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  20. ईमेल के द्वारा कमेन्ट :

    sheel nigam sheelnigam@yahoo.com

    kavita sundar hai,rishton aur bhavnaon ka sammishran bahut sundar tareeke cse kiya hai,vorodhabhas mein bhi aikatmatta jhalaktee hai.

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  21. comment by email :

    Speechless.
    Yahi sach hai rishton ka

    lata

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  22. comment on FB

    Upasna Siag

    बहुत सुन्दर कविता

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    Replies
    1. मिलने की चाह में दिलबर से इस नीर ने भी कई रूप धरे !
      कभी उड़ के हवा के साथ चला कभी बर्फ़ में ढल के देखा है !!

      Vijay ji aapki kavita pe mujhe apni ye do panktiyan yaad aa gayi

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  23. comment on FB

    Ramaajay Sharma
    bahut sunder bhav

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  24. रिश्तों के दर्शन पर एक अच्छी मार्मिक कविता है। बधाई। एक भाषाई विसंगति की ओर संकेत करना चाहूँगा, आशा है अन्यथा नहीं लेंगे। "हम" के साथ "हमारे" का प्रयोग नहीं होता अपितु "अपने" का प्रयोग होता है। अतः "हम !
    हमारे बनाये रिश्तो को देखते हैं" के स्थान पर होना चाहिए "हम! अपने बनाए रिश्तों को देखते हैं।"

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    Replies
    1. भूपेंद्र जी
      आपके कमेन्ट का शुक्रिया
      और मैं अभी बदलाव करता हूं .
      धन्यवाद और आभार .
      विजय

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  25. comment on FB

    Jai Prakash Gautam

    RISTO KO TAPIS DO EHSASO KI TO BARF BHI PIGHAL JAYEGI...WARNA TO JINDGI ME RISTE BANTE BIGNA AAM BAAT HE..

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  26. रिश्तों के अबोध प्रश्नों पर निशब्द होते है सब ..और बर्फ रूह तक जमाने लगती है..बस थोड़ी सी उष्णता .. फिर पिघल भी तो जाता है सब कुछ..

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  27. विजय जी सुन्दर भावमय अभिव्यक्ति । कामना करता हूँ कि आपकी लेखनी से ऐसे ही रत्न झरते रहें और पाठकों को उनकी चमक में खुद की भावनाएँ समझने का मौका मिलता रहे ।

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  28. comment on FB :

    Xitija Singh

    फिर ; अचानक ही एक दिन ;
    हम !
    हमारे बनाये रिश्तो को देखते है
    किसी पाषाण शिला
    की तरह हिमखंड सी बर्फ में जमे हुए......

    ये रिश्ते ताकते है ;
    हमारी ओर !
    और हमसे पूछते है ,
    एक मौन प्रश्न ...
    ये जन्म क्या यूँ ही बीतेंगा !
    हमारी जमी हुई उष्णता कब पिघलेंगी !... वाह ... क्या बात है ... बेहद खूबसूरत रचना विजय जी ... !!!

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  29. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


    इंडिया दर्पण
    की ओर से आभार।

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  30. ईमेल के द्वारा कमेन्ट :

    Sanjay Habib


    सुन्दर चिंतन... बहुत बढ़िया रचना...
    सादर बधाई.

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  31. अल्प शब्दों में विस्तृत अभिव्यक्ति है ........

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  32. मुझको अपनी कविताओं में भी आपकी उपस्थिति की आशा है .....

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    Replies
    1. जरुर शिवानीजी ,मैं जरुर पढूंगा आपकी कविताओ को .
      धन्यवाद जी .

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  33. बर्फ है कभी तो पिघलेगी.
    पिघलते रिश्ते से टपकती बूँद आंसू बनती है .
    आंसू को न जमने दो
    गर्म आंसू से रिश्तों की परत पिघलती है .

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  34. बहुत अच्छी कविता।

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  35. Very nice post.....
    Aabhar!
    Mere blog pr padhare.

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  36. बहुत बार रिश्तों को बर्फ बनते देखा है, लेकिन पिघलते नहीं देखा कभी । बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  37. अच्छी भावपूर्ण कविता है--परन्तु मेरे विचार से एक विपरीत-भाव-विसंगति है...यथा...निम्न पैरा..
    "इन रिश्तों की उष्णता ,
    दर्द की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ,
    जीवन की आग में जलकर ;
    बर्फ बन जाती है ......"

    --- यदि रिश्तों में उष्णता रहेगी तो न दर्द पराकाष्ठा पर पहुंचेगा न बर्फ ही जमेगी ...वर्फ तभी जमती है जब रिश्तों में उष्णता नहीं रहती....

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  38. अच्छी , यथार्थपरक कविता के लिए मेरी बधाई...।

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  39. Sundar abhivyakti kuchh rishton ke sach ki...

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  40. आपकी कविता में जो रस है
    वो अन्तर्मन् को स्पर्श कर
    आत्मा तक पहुँच गयी।

    पुण्य प्रकाश त्रिपाठी
    एक सोच

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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...