Tuesday, June 26, 2012

परायों के घर


कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई;
सपनो की आंखो से देखा तो,
तुम थी .....!!!

मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,
उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था,
मैंने तुम्हारे लिये ;
एक उम्र भर के लिये ...!

आज कही खो गई थी,
वक्त के धूल भरे रास्तों में ;
शायद उन्ही रास्तों में ;
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो .......!!

लेकिन ;
क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं ;
कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते........!!!

Friday, June 15, 2012

सलीब


कंधो से अब खून बहना बंद हो गया है ...
आँखों से अब सूखे आंसू गिर रहे है..
मुंह से अब आहे - कराहे नही निकलती है..!

बहुत सी सलीबें लटका रखी है मैंने यारों ;
इस दुनिया में जीना आसान नही है ..!!!

हँसता हूँ मैं ,
कि..
ये सारी सलीबें ;
सिर्फ़ सुबह से शाम और
फिर शाम से सुबह तक के
सफर के लिए है ...

सुना है , सदियों पहले किसी
देवता ने भी सलीब लटकाया था..
दुनियावालों को उस देवता की सलीब ,
आज भी दिखती है ...

मैं देवता तो नही बनना चाहता..,
पर ;
कोई मेरी सलीब भी तो देखे....
कोई मेरी सलीब पर भी तो रोये.....

Monday, June 11, 2012

इंतजार


                                                          स्केच मैंने बनायी हुई है .



मेरी ज़िन्दगी के दश्त,
बड़े वीराने है !

दर्द की तन्हाईयाँ ,
उगती है
मेरी शाखों पर नर्म लबों की जगह.......!!

तेरे ख्यालों के साये
उल्टे लटके ,
मुझे क़त्ल करतें है ;
हर सुबह और हर शाम .......!!

किसी दरवेश का श्राप हूँ मैं !!

अक्सर शफ़क शाम के
सन्नाटों में यादों के दिये ;
जला लेती हूँ मैं ...

लम्हा लम्हा साँस लेती हूँ मैं
किसी अपने के तस्सवुर में जीती हूँ मैं ..

सदियाँ गुजर गयी है ...
मेरे ख्वाब ,मेरे ख्याल न बन सके...
जिस्म के अहसास ,बुत बन कर रह गये.
रूह की आवाज न बन सके...

मैं मरीजे- उल्फत बन गई हूँ
वीरानों की खामोशियों में ;
किसी साये की आहट का इन्तजार है ...

एक आखरी आस उठी है ;
मन में दफअतन आज....
कोई भटका हुआ मुसाफिर ही आ जाये....
मेरी दरख्तों को थाम ले....

अल्लाह का रहम हो ;
तो मैं भी किसी की नज़र बनूँ
अल्लाह का रहम हो ;
तो मैं भी किसी की हीर बनूँ......


[ शब्दों के अर्थ  :
दश्त : जंगल // शफ़क : डूबते हुए सूरज की रोशनी // दफअतन : अचानक ]


Monday, June 4, 2012

ब्लॉगिंग और हिंदी ब्लॉगर्स

 
दोस्तों ,
नमस्कार और आप सभी को जीवन की अनेकानेक शुभकामनाएँ.

दोस्तों , आज आप लोगो के सम्मुख न तो  मैं अपनी कविता लेकर आया हूँ और न ही कहानी . आज मैं;  आपकी , मेरी और हम सभी की बात करना चाहता हूँ . हम सभी में एक बात कॉमन है और वो है ब्लॉगिंग. आज मैं उसी ब्लोगिंग की बात करूँगा , जिसने हम सभी को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ रखा है . और आज हम सब ने मिलकर उसी ब्लोगिंग को सिर्फ एक लड़ने का अखाड़ा बना रखा है .

कुछ  बरस  पहले  कुन्नू सिंह नाम के एक बच्चे ने कहा था कि ब्लोगिंग एक महामारी है .और तब हम सभी ने इस बात को बहुत पसंद किया था . वो दौर ही अलग था. वो दुनिया ही अलग थी . सभी एक दूसरे के ब्लोग्स को देखते थे , कमेन्ट  करते थे और नए नए दोस्त बनाते थे . तब के बने हुए दोस्त , अब तक बने हुए है . दुनिया में किसी और तरीके से इतने बेहतर दोस्त नहीं बनाए जा सकते है . इस तंग दुनिया में ब्लोगिंग का ये योगदान हमेशा ही याद रखा जायेंगा .

लेकिन आज ब्लोगिंग की वो प्यारी सी  महामारी  एक बहुत बड़ा अखाड़ा बन कर रह गया है . हम ,अपना ज्यादा वक्त इसमें लगाते है कि दूसरे ने क्या लिखा . जबकि हमने ये सोचना चाहिए कि हम क्या लिख रहे है .आज की ब्लोगिंग कितनी बदल गयी है . रचनात्मकता के बदले में आपस में बैर पैदा हो रहा है . हम ने हिंदी ब्लोगिंग को क्या से क्या बना दिया .

आज का दौर अब कुछ ऐसा बन गया है कि अगर कोई लेखिका व्यस्क कविता लिखती है तो उस पर हल्ला मच जाता है . कोई अच्छा लिखने वाला बंदा एक व्यस्क कहानी लिखता है तो उसे अश्लील और सामाजिकता का पाठ पढाया जाता है . कोई लेखिका यदि अपने ब्लॉग पर controlled visitors चाहती है तो उस पर हल्ला हो जाता है . किसी को चिकनी चमेली बोला जा रहा है , किसी को लोमड़ी बोला जा रहा है . किसी को चमचा बोला जा रहा है . ग्रुप ब्लॉग को personal preference में रख दिया गया है , जिसे चाहो रखो , जिसे चाहो हटा दो . किसी को गाली दी जा रही है . कोई मारपीट पर अमादा  है . कोई बन्दा अगर किसी  पुरूस्कार की बाते कर रहा है , तो उस पर ही सवाल जवाब उठाये जा रहे है  . उसकी मेहनत को दरकिनार कर दिया जाता है .कही किसी दुसरे के पोस्ट पर प्रवचन दिए जा रहे है . कोई moral policing पर उतारू है . लोग अपने पोस्ट में खुद के बारे में लिखने से ज्यादा दूसरो के बारे में लिख रहे है . और अगर किसी ने मनभावन कमेन्ट नहीं दिया तो उसे हटा दिया जाता है .भले ही वो कमेट अपनी बात की सत्यता को साबित करने के लिए दिया गया हो . चारो तरफ मचे इस दुखद शोर में अच्छा लिखने वालो की गति खराब हो गयी है ...मतलब ये कि जिस मकसद से हिंदी ब्लोगिंग शुरू हुई , वो मकसद अब मिटटी में मिल गया है . और ये सब हो रहा सिर्फ चंद ब्लोग्गेर्स की वजह से , जिन्होंने हिंदी ब्लोगिंग के इस सुखद तालाब को खराब कर दिया . बहुत दिल को दुखता है कि  जो कल तक दोस्त थे अब एक दुसरे का चेहरा भी नहीं देखना चाहते.

अब हाल ये है कि मुझे दुष्यंत कुमार का एक शेर याद आ रहा है :
लोग हाथो  में लिए बैठे है अपने पिंजरे ,
आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो .

मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता हूँ , क्योंकि इससे कोई फायदा नहीं है . नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता है , जिन्होंने दुसरो को अपनी बातो से दुःख दिया है , अपने अहंकार के कारण;  वो अपना नाम जानते है  और जिन्होंने इनसे दुःख पाया है वो भी खुले आम एक सार्वजनिक मंच पर , वो भी अपना नाम जानते है ..... और ये सबकुछ सिर्फ और सिर्फ  कुछ हिंदी ब्लोगेर्स ही करते है .

दोस्तों  ; यहाँ सवाल नाम का नहीं है , सवाल नीयत का है . सवाल attitude का है . सवाल identity crisis का है.  सवाल सिर्फ एक नकली अधिपत्य का है .. एक दमित मानसिकता का है . एक  दुसरो को ब्लोगिंग जैसे  एक पब्लिक प्लेटफोर्म पर नीचा दिखाने का है . सवाल सिर्फ और सिर्फ दंभ का है .और यूँ ही बेवजह फसाद करने का है .. न खुद शांत रहो और न ही दुसरो को शांत रहने दो . ये क्या है .. हम खुद के सामने  और अपने ईश्वर के सामने क्या साबित करने जा रहे है .

क्या  कभी कोई सोचता है कि  What exactly went wrong in Hindi blog-world. हम में से किसी ने इस विषय पर soul searching नहीं किया .बात बहुत सीधी सी है . हम में से कुछ लोग ऊपर बैठकर judgment करने लगे . दुसरो के लिखावट  और तौर तरीको  पर और उनके पोस्ट्स में मौजूद विषयो पर  अपना निर्णय देने लगे . वो ये भूल गए कि ब्लोगिंग का बहुत सीधा सा मकसद ये ही था और ये है है कि  जिसके मन में जो आये वो लिखो . अपनी creativity को एक प्लेटफोर्म दो . अपने भीतर के व्यक्ति को दुनिया की दुखो से निजात दो . कुछ लिखो , कुछ artwork   करो , कुछ फोटो पब्लिश करो  . कुछ हंसो . कुछ बेहतर बनो , कुछ ज्ञान की गंगा बहाओ . और उन दिनों ये सब बहुत अच्छे से होता था और आज भी होता है. उन दिनों सभी खुश रहते थे , सिवाय कुछ हलकी झड़पो के अलावा . लेकिन आज तो हिंदी ब्लोगिंग बाकायदा अखाड़ा बन गया है . लिखने के नाम पर बस दोषारोपण ही किया जा रहा है . और ये सिर्फ हिंदी ब्लोगिंग में ही हो रहा है . किसी और भाषा में ये नहीं होता है .. क्यों हम ऐसे हो गए है . जिनके साथ मिल कर हँसते थे , अब उनसे लड़ने  के बहाने ढूंढें जाते है . हम कहाँ से कहाँ आ गए . हिंदी ब्लोगिंग  का जो हाल बना हुआ है आजकल उसे देखकर सिर्फ दुःख ही होता है.... क्या करने चले थे और क्या हो रहा है ..सिर्फ कांव कांव मच रही है ..... कम से कम हम अंग्रेजी ब्लोगेर्स के मैनर्स को तो देखे ....सारे झमेले में न हिंदी बच रही है और न ही ब्लोगिंग  ... हम  लोगो ने अब हिंदी ब्लॉगजगत को समाज का ही extension बना लिया है ...बस सिर्फ शोर ही बचा है . 

अब चूँकि हिंदी ब्लोगिंग हिंदी भाषा से जुड़ा हुआ है और  हिंदी भाषा हिंदी साहित्य से . तो इसका एक और पहलु भी देखे . नए लेखन के  नाम पर काफी कुछ लिखा जाता है अब चूँकि ये सब कुछ प्रिंट मीडिया में ज्यादा लिखा जाता है  , इसलिए सिर्फ एक ही हद तक हल्ला होता है . और उस सब की reach limited होती है . लेकिन ब्लॉग तो एक पब्लिक प्लेटफोर्म है. यहाँ तो हमें एकजुट होकर हिंदी ब्लोगिंग को आगे बढ़ाना चाहिए . लेकिन  मैंने देखा है कि सिर्फ हिंदी ब्लोगिंग में ही एका नहीं है . खूब लड़ते -झगड़ते है . यहाँ ब्लॉगजगत में हम so called हिंदी साहित्य के ठेकेदार तुरत फब्तियां कसते है . कहने का मतलब ये है सारी दुनिया में भाषा के उपयोग पर सही और गलत का फैसला और बेहतर तरीके से होता है , सिर्फ हिंदी और उर्दू को छोड़कर . यहाँ हम भड़क जाते है . चिल्लाने लगते है ..और हिंदी ब्लॉगजगत में ये सबसे ज्यादा होता है .

और ये भी देखिये कि  जो कुछ भी सोचा जा रहा है या कहा जा रहा है या लिखा जा रहा है , वो क्या हम सभी क्या सोचते नहीं , या कहते नहीं या करते नहीं . मतलब हम अपने चहरे पर चेहरे लगाते जाए . लेकिन दुसरो के साथ अलग व्यवहार करे. ये तो दोहरी मानसिकता हुई.  और सबसे बड़ा प्रश्न ये है की , ये अधिकार हमें दिया किसने कि हम दुसरो पर उंगली उठाये .

और  जो बात मुझे सबसे ज्यादा दुःख देती है वो ये है की यहाँ हिंदी ब्लॉगजगत में व्यक्ति विशेष को ज्यादा  प्रताड़ित किया जाता है . न कि उसके लेखन को . प्रिंट मीडिया में व्यक्ति को कोई ज्यादा  कुछ नहीं कहता है . उसकी creativity / writing  पर लोग ज्यादा चर्चा करते है . लेकिन   यहाँ कुछ हिंदी ब्लोगेर्स ने सारे अधिकार अपने हाथ ले रखे है . ये गलत है ;  यारो सिर्फ दो दिन की ज़िन्दगी है .... किस किस से लड़ेंगे ..ज़िन्दगी से तो लड़ ही रहे है ....क्या खुदा को मुंह नहीं दिखाना है ? ज़रा रुको , ठहरो ,सोचो और फिर लिखो ...प्यार और दोस्ती की नेमते बांटो . यही रजा है उस बनाने वाले की जिसने हमें बनाया और जिसके ज़ेरेसाया हम आज ब्लॉग्गिंग भी कर पा रहे है ...

बहुत समय पहले मैं राजेन्द्र यादव जी से मिला था . मैंने उनसे पुछा था कि आजकल के साहित्यकार अपने साहित्य में गालियों का उपयोग क्यों करते है . चाहे वो पंकज बिष्ट हो या चाहे मनोज रूपड़ा या दया पवार ! तो उन्होंने बहुत अच्छे से मुझे समझाया कि साहित्य समाज का दर्पण है , जो यहाँ होता है, लेखक उसे अपने लेखन में उतारता है . और कभी कभी ये expression लेखक के आंतरिक outburst का नतीजा होती है . तो दोस्तों . क्या हमें ये अधिकार है कि हम दुसरो के लेखन पर ऊँगली उठाये , उसे भला बुरा कहे . नहीं दोस्तों नहीं . हम अपने आपको कब तक स्वंयभू  ठेकेदार मानेंगे तथाकथित हिंदी साहित्य के . सारी समस्या इस बात की है कि हम अपने अहंकार को अपने पर लाद कर हिंदी  साहित्य के शीर्ष सिंहासन पर बैठना चाहते है . और साथ ही दूसरों के लेखन में अच्छा बुरा ढूँढना चाहते है ..लेकिन याद रहे कि प्रभु ईशा ने भी यही कहा  है कि पहला पत्थर वो मारे जिसने पाप  न किया हो .

नहीं दोस्तों , ऐसा नहीं होना चाहिए .. हर  आने वाली पीढ़ी अपनी पिछले पीढ़ी को देखती  है उनसे  कुछ सीखना चाहती है और हम उन्हें क्या दे रहे है . और ये हम सभी  का कर्त्तव्य है कि हम एक मिसाल पेश करे अपने आने वाली पीढ़ी  के लिए.

हमें ये सोचना है की हमने ये सब करके क्या  खोया है क्योंकि सिवाय मन की झूठी ख़ुशी के अलावा हमने कुछ भी नहीं पाया है .

आज एक सोच की जरुरत है . एक नए आयाम की जरुरत है . हम पहले इंसान बने , फिर दोस्त बने और अंत में अपने कर्म के लिए ब्लॉगर बने . लेकिन आज हम सिर्फ ब्लॉगर बनकर रह गए है . न ही दोस्त रहे और जब दोस्त नहीं रहे तो इंसान भी नहीं रहे. जीवन क्षणभंगुर है . तो क्या हम दुसरो के दिलो में अपने लिए  वैमनस्य छोड़ जायेंगे. और फिर हमें ये सोचना है कि , इस सारी प्रक्रिया में हमारी खुद की creativity ही मर गयी है . जो अच्छी कविता ,कहानी , व्यंग्य , आलेख  और लेख लिखते थे वो अब सिर्फ दुसरो के लिए पोस्ट लिखते है . [उदाहरण के लिए , एक अच्छी   कविता लिखने के बदले में पहली बार मैं  ये  लेख लिख रहा हूँ . जिसे पढ़कर कुछ ज्ञानी कहेंगे, जिसे हिंदी लिखना नहीं आता , वो हमें ज्ञान दे रहा है  :):):) ] कहाँ जा रहे है हम ..सोचिये . पिछले सालो में हमने क्या सीखा है वो भूल गए है , और दुसरो की कैसे आलोचना करे ,और वो भी हिंदी में . अब तो  सिर्फ  ये ही याद रह  गया है . और हम यही  कर रहे है .

दोस्तों..  Its high time that we all should wake up and make a new great platform of हिंदी bloggers . आईये , सारे झगडे झंझटो को पीछे छोड़े और एक बेहतर हिंदी ब्लोगिंग  की ओर अग्रसर हो जाए. आईये कुछ बेहतर करे.. कि अब कोई मलाल नहीं रहे .किसी को कोई दुःख न पहुंचे , अपनत्व बांटे . प्यार बांटे . खुश रहे और खुश रखे .यही जीवन है .

अंत में मैं अमृता प्रीतम की एक बात को यहाँ रखना चाहता हूँ , जो उन्होंने मुझसे अपनी एकमात्र मुलाकात में कही थी . मैं बहुत बरस पहले दिल्ली गया था उनसे और इमरोज से मिलने . बहुत देर बैठा , बहुत सी बाते हुई . उन्होंने अपने हस्ताक्षर दिए अपनी कुछ किताबो पर जो मेरे लिए एक धरोहर  है . उन दिनों मैं सिर्फ पढता था , लिखता नहीं था. बहुत सी बाते हुई , मैंने कहा उनसे कि अब मैं लिखना शुरू करना चाहता हूँ . कविताओ से शुरू करना चाहता हूँ , आपका आशीर्वाद चाहिए  . एक बात उन्होंने कही , जो मेरे दिलो दिमाग में बस गयी ... उन्होंने कहा कि विजय, लेखन  की  सारी  दुनिया  में मसला सिर्फ और सिर्फ प्यार और व्यापार का ही है कि कौन अक्षरों को प्यार करते है और कौन इनका व्यापार करते है .. और एक लेखक को  इस बात का बहुत  ध्यान रखना चाहिए .

तो  , आज आप सभी ब्लोगर्स से मैं विनम्र विनती करूँगा कि आईये , अक्षरों से प्रेम करे न कि उनकी सहायता से एक दुसरे पर वार करे.  और शायद आज ही के इस दिन के लिए पाकिस्थान के एक शायर मजहर -उल - इस्लाम  ने कभी लिखा था :

ऐ खुदा ! अदीबो के कहानियो और कलमो में

सच्चाई
, अमन और मोहब्बत उतार !
ऐ खुदा ! लालटेन की रौशनी में लिखी हुई

इस दुआ को कबूल कर
  !
आईये दोस्तों , हम अपनी कलम में सिर्फ दोस्ती और प्यार का रंग भरे और एक बेहतर और मजबूत और अपनत्व से भरी हुई हिंदी ब्लॉगिंग को भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के हर कोने में जहाँ भी हिंदी पढ़ी, बोली और लिखी जाती है ,स्थापित करे. 

इसी के साथ मैं अपने हिंदी ब्लॉगजगत की बेहतरी के लिए प्रार्थना करता हूँ . और दुष्यंत कुमार के एक खूबसूरत शेर के साथ आप सभी से विदा लेता हूँ.

"सिर्फ हंगामा खड़ा करना  मेरा मकसद नहीं ,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए !!

अमीन
आप सभी का
विजय

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...