Saturday, November 20, 2010

राह



सूरज चढ़ता  था और उतरता था....
चाँद चढ़ता था और उतरता था....
जिंदगी कहीं भी रुक नही पा रही थी,
वक्त के निशान पीछे छुठे जा रहे थे ,
लेकिन मैं वहीं खड़ा हूं ...
जहाँ तुमने मुझे छोडा था....
बहुत बरस हुए ;
तुझे ,  
मुझे भुलाए हुये !

मेरे घर का कुछ हिस्सा अब ढ़ह गया है !!
मुहल्ले के बच्चे अब जवान हो गए है ,
बरगद का वह पेड़ ,
जिस पर तेरा मेरा नाम लिखा था
शहर वालों ने काट दिया है !!!

जिनके साथ मैं जिया ,वह मर चुके है
मैं भी चंद रोजों में मरने वाला हूं
पर,
मेरे दिल का घोंसला ,
जो तेरे लिए मैंने बनाया था,
अब भी तेरी राह देखता है.....



28 comments:

  1. हर एक शब्‍द नि:शब्‍द करता हुआ ...बहुत ही सुन्‍दर ।

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  2. भावों को बेहद संजीदगी से पिरोया है……………हर शब्द खुद बोल रहा है……………सुन्दर अभिव्यक्ति हमेशा की तरह्।

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  3. Aap stabdh kar dete hain!Behad sundar!

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  4. दिल के गोंसले में यादों के पंछी।

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  5. प्रेम की अदभुद अनुभूति कराती कविता.. सुन्दर !

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  6. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ....प्रेम भावना का सच्चा एहसास

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  7. प्रेम की बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  8. जिनके साथ मैं जिया ,वह मर चुके है
    मैं भी चंद रोजों में मरने वाला हूं

    .....??
    ... ??
    .... ????

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  9. हमको वफा की उनसे है उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है।--ग़ालिब

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  10. रूह से रूह तक जाने वाली खोबसूरत एहसास और दिलकश भाव लिए ... लाजवाब रचना है विजय जी ... प्रेम में अक्सर ऐसा होता है ...

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  11. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........
    http://saaransh-ek-ant.blogspot.com/

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  12. इसी को कहते हैं अभिव्यक्ति और कविता भी... जो बात दिल तक पहूँचे !

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  13. जिनके साथ मैं जिया ,वह मर चुके है
    मैं भी चंद रोजों में मरने वाला हूं...
    ????????????????
    कोई लाख चाहे अपनी लिखी मौत से पहले नहीं मर सकता जनाब .....

    मेरे दिल का घोंसला ,
    जो तेरे लिए मैंने बनाया था,
    अब भी तेरी राह देखता है.....

    घोसला अभी भी सही सलामत है विजय जी .....????

    संवेदनशील rachna .....!!

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  14. बड़ी ही संजीदा अभि‍व्‍यक्‍ि‍त पढ़वाने के लि‍ए आभार

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  15. काल-भ्रन्श है, बात स्वयं के संदर्भ में है अतः था, थी, थे के स्थान पर...है..हैं होना चाहिये अर्थात ...खडा हूं से तादाम्य...

    --- सामान्य वर्णनात्मक, अभिधात्मक कविता है...

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  16. आदमी का मन कितना भी भारी या मायूस क्यों न हो,आपकी रचना पढ़ आदमी मुंह लटकाए बैठा न ही रह सकता....
    गजब का लिख देते हैं आप विजय जी...

    कभी लिखना छोड़ने की न सोचियेगा...अइसे ही सदा लिखते रहिएगा...

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  17. मेरे दिल का घोंसला ,
    जो तेरे लिए मैंने बनाया था,
    अब भी तेरी राह देखता है....

    बहुत अच्छी रचना है...भावुक कर देने वाली.

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  18. भई हमारा तो कुछ भी साबूत नहीं बचा। आपका घोंसला बचा हुआ है, औऱ राह तक रहा है गनीमत है। आशा कितनी निर्मोही हो जाती है न कई बार। इंतजार से बाज ही नहीं आने देती। सारे निशान मिट जाएंगे एक दिन, फिर भी आशा बनी रहेगी।

    सुंदर कविता की कोशिश काफी हद तक कामयाब।

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  19. विजय जी
    नमस्कार !
    ......प्रेम की बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  20. बरगद का वह पेड़ , जिस पर नाम था हमारा
    उसे शहरवालों ने कटवा दिया ....
    पर नाम आज भी जिंदा है
    घोंसले में इंतज़ार जो है

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  21. स्वागत के लिये तैयार हैं हम सर जी

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  22. यहॉं तो अभी गुँजाईश है एक शायर के साथ तो ऐसा हुआ कि:

    मरने के बाद भी मेरी ऑंखें खुली रहीं
    आदत पड़ी हुई थी उन्‍हें इंतज़ार की।

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  23. बहुत अच्छी लगी कविता। बधाई।

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  24. संवेदनशील रचना के लिए बधाई!

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  25. आह ! इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति ... सही कहा राह देखते-देखते हम किसी और सफ़र पर निकल जातें हैं . आपकी हर रचना क्यों रुकने पर विवश कर देती है .क्या कहूँ ? अच्छा लगा ....बस

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