Friday, November 26, 2010

एक नज़्म : सूफी फकीरों के नाम



















एक नज़्म : सूफी फकीरों  के नाम

कोई पूछे की
मैं हूँ कौन
लोग कहते है की बावरा हूँ तेरी मोहब्बत में
लोग कहते है की आवारा फिरता हूँ तेरी मोहब्बत में
लोग कहते है की जुनूने साये में रहता हूँ तेरी मोहब्बत में ;
सच कहता हूँ की
क़यामत आये और मैं  तुझसे मिल जाऊं
तुझमे मिल जाऊं

एक बार एक पर्वत पर गया
लोगो ने कहा था की तू है वहां
पर तू तो नहीं था
एक बार एक नदी में ढूँढा तुझे
लोगो ने कहा था की तू है वहां
पर तू तो नहीं था
एक समंदर ने मुझे बुलाया ,
लोगो ने कहा था की तू है वहां
पर तू तो नहीं था
एक झरने में देखना चाह तुझे
लोगो ने कहा था की तू है वहां
पर तू तो नहीं था

फिर ,एक दिन एक ख्वाब में
अपने दिल में झाँका
लोगो ने कहा था की तू है वहां
और तू था वहां

जाने कहाँ कहाँ भटक आया हूँ
मदिर देखे
मस्जिद देखे
गिरजाघर भी गया
और ढूँढा  तुझे गुरूद्वारे में
पंडितो से मिला,
मौलवियों से मिला
कोई  तुझे जानता न था
कोई तुझे पहचानता नहीं था

अब थक गया हूँ मैं
मुझे अपने पास बुला ले

फकीरी का आलम है मुझ पर
तू दरवेश बन कर मुझ से मिल जा
इश्क का जादू है मुझ पर
तू हुस्न बन कर मुझ से मिल जा
ज़िन्दगी के सजदे किये जा रहा हूँ
तू मसीहा बन कर मुझ से मिल जा

तेरा मुरीद हूँ
मेरा खुदा बन कर मुझ से मिल जा

तारो से कहा की तुझे मेरा सलाम कहे
चाँद से कहा की तुझ तक मेरा सजदा पहुंचा दे
सूरज से कहा की मेरे दियो की रौशनी की तुझे झलक दिखला दे
पर किसी ने शायद मुझ पर ये करम मेहर नहीं किया
अब तेरी मेहर चाहिए मौला

मेरे महबूब मुझे अब तो मिल जा
मेरे जिस्म से मेरी रूह को आज़ाद कर दे
मुझसे मेरा सब कुछ छीन ले
कर दे राख मुझको
एक ही आरजू है अब मेरी
की मुझको , खुद से मिला दे तू
अपने में समां ले तू
अपना बना ले तू
मैं तुझमे और तू मुझमे
तभी मुझे सकून मिलेंगा .







18 comments:

  1. जिस दिन साक्षात्कार हो जायेगा
    फिर द्वैत का परदा हट जायेगा
    और खुदा खुद से अलग
    नज़र नही आयेगा
    या कहो
    तू ही खुदा बन जायेगा

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    1. ज़मी देखता हूँ , ये आसमा देखता हूँ,
      तेरे करम से ही ये जहाँ देखता हूँ

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  2. कस्तूरी तलाश पूरी होगी
    शुभकामनाएँ

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  3. एक अच्छी यात्रा किसी खास तलाश की ......

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  4. विजय जी , मैं सिर्फ इसलिए प्रतिक्रिया नहीं देता कि कोई मेरे ब्लॉग पर आकर प्रतिक्रिया दे गया ! लेकिन नए ब्लोगों को जानने के उत्सुकता हमेशा रहती है ! आपके ब्लॉग पर पहली बार आया और सच कह रहा हूँ बहुत अच्छा लगा !

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  5. एक ही आरजू है अब मेरी
    कि मुझको खुद से मिला दे तू

    वाह..वाह,
    बहुत सुंदरता से आपने अपने भीतर के सूफियाना भावनाओं को कोमल शब्दों से सजाया है।

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  6. ईश्वर को पाने की अदम्य इच्छा जो मनुष्य में युग के आरंभ से रही है वही झलकती है आप के इस कविता में। वह सब में है और कहीं नही इस बात को कितनी खूबसूरती से पिरोया है आपने । उत्तम रचना ।

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  7. वाह...खूब कही कविता..बढ़िया कविता के लिए बधाई

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  8. नज़्म अच्छी लगी। मेरा एक शेर है-

    क्या ढूँढ़ता फिरे है तू जंगल पहाड़ में,
    इक नूर अपने दिल के ही अंदर तलाश कर।

    देवमणि पाण्डेय, मुम्बई

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  9. यही तो है सच्ची आस्था, इश्वर में।

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  10. एक सुन्दर ब्लॉग...शायद एक बार पहले भी आ चुका हूँ यहाँ! आपका चिंतन-लोक अच्छा है!

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  11. बेहतरीन अभिव्यक्ति...................

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  12. अस्तित्व में घुल मिल जाने की सूफियानी व्यग्रता।

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  13. 'फिर ,एक दिन एक ख्वाब में
    अपने दिल में झाँका
    लोगो ने कहा था की तू है वहां
    और तू था वहां ''

    bahut achcha likha hai aapne .. aur ye panktiya best hai.. ekdum sachchi. aur sabhi dhrmo ki kahi baaton ko ek alag hi andaaz me pesh kiya hai aapne.

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  14. हर सफ़र की मंजिल यही होती है चाहे हम कोई भी रास्ता क्यों न पकड़ लें . उत्कृष्ट ....

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  15. रस्ते अलग अलग हैं ...ठिकाना तो एक है..बहुत सुन्दर विजय जी..

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