Friday, January 16, 2009
मुझे यकीन है ......
तुम कहती हो कि ,
तुम मुझसे प्यार नही करती हो
फिर क्यों तुम,
अक्सर मेरे ख़तों के इंतजार में ,
अपने दरवाज़े पर खड़े होकर ;
अपने खुले हुए गेसुओ में ;
अपनी नाज़ुक उँगलियाँ ,
कुछ बैचेनी से अनजाने में लपेटते हुए
ख़त लाने वाले का इंतजार करती हो ....
तुम कहती हो कि ,
तुम मुझसे प्यार नही करती हो
फिर क्यों तुम,
अक्सर धुंधलाती हुई शामों में
धूल से भरी सडको पर .
बेसब्री से , भरी हुई आँखों में
आंसुओं को थामे , कुछ सिसकते हुए..
हर आते जाते हुए सायो में .
किसी अपने के साये का इंतजार करती हो ....
तुम कहती हो कि ,
तुम मुझसे प्यार नही करती हो
फिर क्यों तुम,
अक्सर मेरी आवाज सुनने को बैचेन रहती हो
दौड़ दौड़ कर ,एक यकीन के साथ
कुछ मेरी यादो के साथ
कुछ अपने मोहब्बत के सायों से लिपटे हुए
मदहोश सी , मेरी आवाज़ सुनने चली आती हो....
तुम कहती हो कि ,
तुम मुझसे प्यार नही करती हो
फिर क्यों तुम,
रातों को जब सारा जहाँ सो जाये
तो, तुम तारो से बातें करती हो
कुछ अपने बारें में ,कुछ मेरे बारें में
कुछ गिले शिकवे , कुछ प्यार
ये सब कुछ ,मेरी नज़मो / ख़तों को पढ़ते हुए
मुझे याद करते हुए , क्यों तकियों को भिगोती हो ...
तुम कहती हो कि ,
तुम मुझसे प्यार नही करती हो
पर मुझे यकीन है कि
तुम मुझे प्यार करती हो......
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तुम कहती हो की तुम मुझसे प्यार नही करती..."
ReplyDelete" बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....ना कहने और करने के बीच चलते द्वंद का सुंदर चित्रण"
Regards
सच मुझे भी यकीन हैं कि ..........। सच बहुत सुन्दर हैं ये प्यार का भाव। प्यार के भावों को पढकर एक सुकून सा मिलता हैं। पता नहीं क्यों? खैर सुबह सुबह प्यार के अहसास से भीगो दिया।
ReplyDeleteआपका यकीन यूँ ही बना रहे मेरी शुभ कामनायेांअपके साथ हैं
ReplyDeleteअद्भुत रचना !
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगा यह
ReplyDeleteरातों को जब सारा जहाँ सो जाये
तो, तुम तारो से बातें करती हो
कुछ अपने बारें में ,कुछ मेरे बारें में
कुछ गिले शिकवे , कुछ प्यार
ये सब कुछ ,मेरी नज़मो / ख़तों को पढ़ते हुए
मुझे याद करते हुए , क्यों तकियों को भिगोती हो
bahut sundar rachna...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना।
ReplyDelete"तुम कहती हो कि ,
ReplyDeleteतुम मुझसे प्यार नही करती हो
पर मुझे यकीन है कि
तुम मुझे प्यार करती हो....."
यही आशा-भाव प्यार को सदैव जिन्दा किये रखता है.
धन्यवाद रचना के लिए.
बहुत सुंदर कविता है.
ReplyDelete'फिर क्यों तुम,
अक्सर मेरे ख़तों के इंतजार में ,
अपने दरवाज़े पर खड़े होकर ;
अपने खुले हुए गेसुओ में ;
अपनी नाज़ुक उँगलियाँ ,
कुछ बैचेनी से अनजाने में लपेटते हुए
ख़त लाने वाले का इंतजार करती हो
--.नारी मन इतनी आसानी से कैसे खुल जाएगा ??
hal-e-dil achcha bayan kiya aapne.........lekin dono ka . apna bhi aur apni mashuka ka bhi.........intzaar ko bahut sahi tarike se abhivyakt kiya hai aapne.
ReplyDeleteतुम कहती हो कि ,
ReplyDeleteतुम मुझसे प्यार नही करती हो
फिर क्यों तुम,
अक्सर मेरी आवाज सुनने को बैचेन रहती हो
दौड़ दौड़ कर ,एक यकीन के साथ
कुछ मेरी यादो के साथ
कुछ अपने मोहब्बत के सायों से लिपटे हुए
मदहोश सी , मेरी आवाज़ सुनने चली आती हो....
बहुत बहुत सुंदर बस आप यूं ही लिखते रहें बिना रूके हमारी सबकी शुभकामनाएं आपके साथ हैं विजय जी
मुझे यकीन है के तुम मुझे प्यार करते हो
ReplyDeleteदवाजे पर खड़े-खड़े मेरा इंतज़ार करते हो
बेसब्री से भरी आँखों में तुम मेरी यादों के साथ
मेरे ही गीत गुम्गुनाते मुझसे कहते हो मैं तुमसे बहुत
प्यार करती हूं तुम भी मुझे प्यार करते हो......
बहुत ही अच्छा लिखा है....
दिल की आवाज़ है दिल तक पहुची है
और दिल की जुबान तो होती पर शब्द नही
एहसास होता और एहसास क्या है वो आप जानते हैं
विजय जी नमस्कार,
ReplyDeleteसबसे पहले तो बहोत बहोत धन्यवाद् आपको की आपने ये एक बेहद ही उम्दा और प्यार से लथपथ कविता मेरे लिया लिखा...जो आपको एयर पोर्ट पे जब आप मेरा ब्लॉग पढ़ रहे थे और आपसे एक खुबसूरत सी लड़की ने आपका लैपटॉप मांगकर मेरे ग़ज़ल को पढ़ा ..ये तो पता नही के आख़िर उसे मेरे ग़ज़ल को पढ़कर उदासी क्यूँ हुई ..इसके भाव कुछ और हो सकते है और वो क्या हो सकता है मैं ये समझ नही सकता ... हो सकता है के मेरी ग़ज़लों में उसकी उम्मीद की पूर्ति नही हुई होगी के फ़िर मैं देखने में इतना अच्छा नही हूँ जैसा वो चाहती थी..
लेकिन आपका इस चीज के लिए मैं कैसे धन्यवाद् करूँ मेरे पास कोई शब्द नही है....बहोत ही उम्दा कविता लिखा है आपने जिसका मैं आभार भी नही कर सकता क्या कहूँ स्तब्ध हूँ ...मैं चाहूँगा के एक बरगी आपसे तस्सली से बात हो ....
बहोत ही बढ़िया भाव डाले है आपने आपको बहोत बहोत बधाई विजय साहब...
आभार
आपका
अर्श
@ अर्श जी , मैं उस moemnt को capture करना चाहता था .. वो लड़की क्यों आपकी ग़ज़ल पढ़कर उदास हुई , मुझे नही पता ,पर ऐसा लगता है की उसे किसी की याद आ गई .. और एक नज़्म के जन्म से बेहतर कोई बात नही हो सकती थी , उस moemnt को capture करने के लिए इसलिए मैंने इस कविता को वहीं सोचा और वहीं PC में टाइप किया , and surprisingly it took only 10 minutes to compose this poem .....
ReplyDeletewell देखा जाए तो ये नज़्म सिर्फ आपके लिए ही नही है , बल्कि ,सारे कवियों के लिए , शायरों के लिए और प्रेमियों के लिए है , हम सब इसमे अपनी भावनाओ को देख सकते है .. और स्त्री-मन की विवशता भी समझ सकते है .. आप सबको मेरी ये नज़्म पसंद आए , बस यही दुआ है ...
@ अल्पना जी आपने सही कहा ..नारी मन के बारें में...
और finally , मुझे personally इसका last para बहुत पसंद है .. नज़्म में प्यार का अहसास बखूबी आया हुआ है ........
और , बस खुदा की मेहर है , आपको पसंद आई ... अच्छी लगी ... मुझे और क्या चाहिए ..
आपका
विजय
हाँ विजय जी वाकई ये तो प्रेम की भाषा है ,हरेक के ज़िन्दगी से जुड़ी हुई बात है ......
ReplyDeleteबस उसके लिए यही कहूँगा के ...
हुस्न-ओ-शबाब कौन थी वो क्यूँ चली गई .
ऐसा भी क्या हुआ था के वो यूँ चली गई ..
ये एक शे'र उसके लिए और उस वक्त के लिए जिसे आपने कैद करा आपने कविता के माध्यम से...
ढेरो बधाई आपको..मेरी नई ग़ज़ल पढ़े...
आभार
अर्श
प्यार की तरह प्यारी कविता
ReplyDelete---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
ऐसी ही तो होती हैँ प्रेम की अनुभूति जिसे आपकी कविता ने बखूबी उभारा है ..
ReplyDeleteइसी तरह लिखते रहीयेगा विजय जी
- लावण्या
बेहतरीन विजय जी बेहतरीन...क्या खूबसूरत अंदाज में आप ने प्यार की परिभाषा और तड़प को बयां किया है..वाह वा...कमाल कर दिया आपने...
ReplyDeleteनीरज
Waah ! Bahut hi sundarta se aapne komal bhavnao ko abhivyakti di hai.Bahut hi sundar rachna.
ReplyDeleteअक्सर मेरे ख़तों के इंतजार में ,
ReplyDeleteअपने दरवाज़े पर खड़े होकर ;
अपने खुले हुए गेसुओ में ;
अपनी नाज़ुक उँगलियाँ ,
कुछ बैचेनी से अनजाने में लपेटते हुए
सुंदर अभिव्यक्ति, सुंदर भाव, अच्छी रचना
vo gaana barbas yad aa gaya .tumhe ho na mujhko to itna yakeen hai......mujhe pyaar tumse nahi hai nahi hai....
ReplyDeletebhavpurn kavita.
हुज़ूर ! बड़े ही रूमानी मूड में आ कर नज़्म कही है आपने तो !
ReplyDeleteप्यार बेशुमार, और इज़हार का इस हद्द तक इज़हार, हर छिपी छिपी बात को पहचान लेने में महारत हासिल है आपको जनाब !
कविता का लहजा बहोत अच्छा है , प्रस्तुति भी जानदार है ,
कविता के पात्र के मन की हर बात समझ में आ रही है इस कविता के माध्यम से ...
मुबारकबाद ............
---मुफलिस---
इंकार में छिपे इंकार को बखूबी कलमबद्ध किया...
ReplyDeleteभावपूर्ण कविता...
अति सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें
ReplyDeleteवास्तव में भावों की अभिव्यक्ति हेतु कविताओं से उत्तम माध्यम तो कोई हो ही नहीं सकता.
खूब लिखें,अच्छा लिखें.
आज कईं दिनों बाद अपने चिट्ठे पर आया तो आपकी टिप्पणी पर निगाह पडी. जहां आपने ज्योतिष से संबधित किसी समस्या समाधान हेतु अपना विवरण दिया है. लेकिन आपने अपने जन्म समय एवं जन्मस्थान का उल्लेख नहीं किया.
अगर आप मुझे अपना पूर्ण विवरण उपलब्ध करा सकें तो भविष्य दर्शन हेतु मेरे लिए ज्यादा सुविधा रहेगी.
धन्यवाद.........
मन के भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति...रोग पालने में अगर सुकून मिलता हो तो हर्ज
ReplyDeleteही क्या है...बधाई!
सर जी,प्यार करना जुदा बात है,और अपने प्यार पर इस कदर यकीं/गुरुर करना बिल्कुल अलहदा बात है...
ReplyDeleteआपका विश्वास ही प्रेम कि नींव है...
तुम कहती हो की तुम मुझसे प्यार नही करती..."
fir bhi aapka vishwas..shubhanallaaah!
ALOK SINGH "SAHIL"