Thursday, January 8, 2009
The Sounds of Silence/ सन्नाटो की आवाजे
जब हम जुदा हुए थे ..
उस दिन अमावस थी !!
रात भी चुप थी और हम भी चुप थे.....!
एक उम्र भर की खामोशी लिए हुए...!!!
मैंने देखा , तुमने सफ़ेद शर्ट पहनी थी....
जो मैंने तुम्हे ; तुम्हारे जन्मदिन पर दिया था..
और तुम्हारी आँखे लाल थी
मैं जानती थी ,
तुम रात भर सोये नही ...
और रोते रहे थे......
मैं खामोश थी
मेरे चेहरे पर शमशान का सूनापन था .
हम पास बैठे थे और
रात की कालिमा को ;
अपने भीतर समाते हुए देख रहे थे...
तुम मेरी हथेली पर अपनी कांपती उँगलियों से
मेरा नाम लिख रहे थे...
मैंने कहा ,
ये नाम अब दिल पर छप रहा है ..
तुमने अजीब सी हँसी हँसते हुए कहा ,
हाँ; ठीक उसी तरह
जैसे तुमने एक दिन अपने होंठों से ;
मेरी पीठ पर अपना नाम लिखा था ;
और वो नाम अब मेरे दिल पर छपा हुआ है.....
मेरा गला रुंध गया था ,
और आँखों से तेरे नाम के आंसू निकल पड़े थे..
तुम ने कहा , एक आखरी बार वहां चले ,
जहाँ हम पहली बार मिले थे ....
मैंने कहा ,
अब , वहां क्या है...
सिवाए ,हमारी परछाइयों के ..
तुमने हँसते हुए कहा ..
बस ! अब ज़िन्दगी भर उन्ही के साथ तो जीना है ..
हम वहां गए ,
उन सारी मुलाकातों को याद किया और बहुत रोये ....
तुमने कहा ,इस से तो अच्छा था की हम मिले ही न होते ;
मैंने कहा , इसी दर्द को तो जीना है ,
और अपनी कायरता का अहसास करते रहना है..
हम फिर बहुत देर तक खामोश बुत बनकर बैठे रहे थे ...
झींगुरों की आवाज़ , पेड़ से गिरे हुए पत्तो की आवाज़ ,
हमारे पैरो की आवाज़ , हमारे दिलों की धड़कने की आवाज़,
तुम्हारे रोने की आवाज़…. मेरे रोने की आवाज़….
तुम्हारी खामोशी .... रात की खामोशी ....
मिलन की खामोशी ….जुदाई की खामोशी ......
खामोशी की आवाज़ ….
सन्नाटों की आवाज़ ...
पता नही कौन चुप था ; किसकी आवाज़ आ रही थी ..
हम पता नही कब तक साथ चले ,
पता नही किस मोड़ पर हमने एक दुसरे का हाथ छोड़ा
कुछ देर बाद मैंने देखा तो पाया , मैं अकेली थी ...
आज बरसो बाद भी अकेली हूँ !
अक्सर उन सन्नाटो की आवाजें ,
मुझे सारी बिसरी हुई , बिखरी हुई ;
आवाजें याद दिला देती है ..
मैं अब भी उस जगह जाती हूँ कभी कभी ;
और अपनी रूह को तलाश कर , उससे मिलकर आती हूँ…
पर तुम कहीं नज़र नही आतें..
तुम कहाँ हो..........
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
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घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
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मिलना मुझे तुम उस क्षितिझ पर जहाँ सूरज डूब रहा हो लाल रंग में जहाँ नीली नदी बह रही हो चुपचाप और मैं आऊँ निशिगंधा के सफ़ेद खुशबु के साथ और त...
सच बहुत ही अच्छी हैं ये रचना। अद्भुत है यह रचना। एक रौ में बहते चला गया......
ReplyDeleteअद्भुत रचना.........एक साँस में पुरा पढ़ गया..........आपने विरह की व्यथा बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है |
ReplyDeleteदिल को छु गई......आपका बहुत बहुत आभार ......
गजब की रचना,बेहद उम्दा क्या कहूँ ............मैं जाती हूँ और अपने रूह को तलाश कर उससे मिल कर आती हूँ ...........क्या भाव है....गजब लिख दिया आपने तो ढेरो साधुवाद आपको बंधुवर.....
ReplyDeleteअर्श
मैंने देखा , तुमने सफ़ेद शर्ट पहनी थी....
ReplyDeleteजो मैंने तुम्हे ; तुम्हारे जन्मदिन पर दिया था..
और तुम्हारी आँखे लाल थी
गहरे जख्मों को सामने लाती हुयी रचना
पढ़ कर टीस उठती है, बहुत सार्थक लेखन
bhot hi samvedanshil kavita....bhvnaye sochne pr mzboor karti hain...ek acchi rachna k liye ...BDHAI!
ReplyDeletesannate........ek adbhut ahsaas.....jise sunna aur usmein jeena har kisi ka naseeb nahi hota..........khamoshi ke dard ko mehsoos sirf sannaton mein hi kiya ja sakta hai.............ab kahne ko kya bacha hai.........nishabd hun main
ReplyDelete\बहुत ही अच्छा लिखते हैं आप आज ही आपकी अभी सब रचनाएं पढ़ी सब बहुत अच्छी लगी ...कविता का चुना जाना भी बहुत अच्छा लगा इसके लिए आपको बधाई और शुभ कामनाएं
ReplyDeleteतुम्हारे रोने की आवाज़…. मेरे रोने की आवाज़….
ReplyDeleteतुम्हारी खामोशी .... रात की खामोशी ....
मिलन की खामोशी ….जुदाई की खामोशी ......
खामोशी की आवाज़ ….
सन्नाटों की आवाज़ ...
bahut khoobsurati se dil ke jazbaat ukere hain. rachna bahut umda hai.
badhai.
विजय जी
ReplyDeleteअभिवंदन
आपका ब्लॉग देख कर हार्दिक आनंद कि अनुभूति हुई
आपको समझने के लिए मुझ आपके ब्लॉग का अध्ययन करना बाकी है
अभी मैंने आपके ब्लॉग को पहली बार खोला है , प्रथम दृष्टया मैंने आपकी सन्नाटों कि आवाजें,२६/११ के शहीदों का मेरा छोटा सा सलाम, सलीब और विवेकानंद रचनाएं पढ़ी हैं. अत्यंत सुन्दर भाव हैं देश प्रेम , मानवता जैसे विषय निश्चित रूप से आपके लेखन के स्तर को प्रर्दशित करता है.
आपका
- विजय
क्या विजय जी क्या लिखा है आपने सच पूछो तो आंखों में आंसू ही नहीं आए बाकी दिल तो रो ही लिया इतना संवेदनशीलता है आपकी इस कविता में
ReplyDeleteहम वहां गए ,
उन सारी मुलाकातों को याद किया और बहुत रोये ....
तुमने कहा ,इस से तो अच्छा था की हम मिले ही न होते ;
मैंने कहा , इसी दर्द को तो जीना है ,
और अपनी कायरता का अहसास करते रहना है..
ये पंक्तियां क्या नाम दूं कुछ सूझ ही नहीं रहा बस इतना ही कहूंगा कि बेहतरीन रचना History
Dil ko chhu lene wali kavita likhi hai apne.
ReplyDeletebahut hi achhi rachna hai,bhawnaaon ke anchhuye ehsaason se bhar diya hai,jo khaamoshi me bol rahi hai .........
ReplyDeleteमैं अब भी उस जगह जाती हूँ कभी कभी ;
ReplyDeleteऔर अपनी रूह को तलाश कर , उससे मिलकर आती हूँ…
पर तुम कहीं नज़र नही आतें..
अतिसुन्दर प्रस्तुति, साधुवाद !! मेरे ''यदुकुल'' पर आपका स्वागत है....
hmm..nice touch to the feelings of true luv..hum aane wali zindagi se bahut ummeed karte hain..shayad ksi baat ka gham isliye nahi karte..par purana waqt fir aankhon ke saamne aata hai..jab zindagi se ummidein khatam ho jati hai..n hamari zindagi ek iron cage ban jati hai..jahan se ud pana mushkil hota hai..shayad ye mushkilein bhi apne liye hum khud hi banate hain..khud ko hi talashna hamari zindagi ho or fir khud ko kabhi na khona hi hamara objective for life..haina..to shayad kabhi takleef nahi hogi..this is wht i feel out of this poem..nevr miss anything in life or u wil miss everything...
ReplyDeleteमैं खामोश थी
ReplyDeleteमेरे चेहरे पर शमशान का सूनापन था .
हम पास बैठे थे और
रात की कालिमा को ;
अपने भीतर समाते हुए देख रहे थे...
" these lines has just left imapct deep in my heart..............why i dont know.............very tocuhing in other way.."
regards
वाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है. अति सुंदर.
ReplyDeleteहम पास बैठे थे और
ReplyDeleteरात की कालिमा को ;
अपने भीतर समाते हुए देख रहे थे...
तुम मेरी हथेली पर अपनी कांपती उँगलियों से
मेरा नाम लिख रहे थे...
मैंने कहा ,
ये नाम अब दिल पर छप रहा है ..
तुमने अजीब सी हँसी हँसते हुए कहा ,
हाँ; ठीक उसी तरह
जैसे तुमने एक दिन अपने होंठों से ;
मेरी पीठ पर अपना नाम लिखा था ;
और वो नाम अब मेरे दिल पर छपा हुआ है.....
बहुत सुन्दर रचना वाह वाह !
bahut hi achhi rachna jaise ek zindgi ko samne jite hue dekha ho
ReplyDeleteaapke shabad itne ghare hain ki ye kavita nahi sachchai lagi
likhte rahe dost aap kamaal likhte hain
sachhe kavi hai
बहुत दिनों बाद ही आपके ब्लाग पर आयी और आपकी कविताओं का रसास्वादन कर सकी , बहुत अच्छा लिखते हें आप।
ReplyDeleteएक मर्म होता है हर रचना में कहीं गहरा होता है तो कहीं छुप जाता है.....
ReplyDeleteआपकी रचना इतनी गहरी होती है मर्मस्पर्शी होती है की कुछ लिखते ही नही बनता किस लम्हे की बात करूं यहाँ तो हर लम्हा खामोश है....
बस खामोशी में डूबा आपके दिल और आपकी कलम को निहार रहा....
वो लम्हा जो मेरे साथ है इस वक्त मन ही मन कहे रहा है
कि ये वक्त यहीं रुक जाता सब कुछ खामोश हो जाता ये आखें उनमे ये सैलाब क्यूँ उठा ये यहीं ठहर जाता सब कुछ खामोश बस ये लम्हा ये मन आपके दिल और आपकी कलम को यूहीं खामोशी से निहारता रहता...आपका हीरो
अक्षय-मन
vijay ji... ap kavitao me bhavnao ko jis tarah baya krte h... mushkil ho jata hai ye kehna ki apke shabdo ka jadu hai ya phir bhavnae jee uthi hai..
ReplyDeleteShubhkamnae... yuhi kalam chalti rahe
झींगुरों की आवाज़ , पेड़ से गिरे हुए पत्तो की आवाज़ ,
ReplyDeleteहमारे पैरो की आवाज़ , हमारे दिलों की धड़कने की आवाज़,
तुम्हारे रोने की आवाज़…. मेरे रोने की आवाज़….
तुम्हारी खामोशी .... रात की खामोशी ....
मिलन की खामोशी ….जुदाई की खामोशी ......
खामोशी की आवाज़ ….
सन्नाटों की आवाज़ ...
- भावपूर्ण रचना!
"maiN ab bhi uss jagah jati hooN kabhi.kabhi..aur apni rooh ko tlaash kr..."
ReplyDeletemun ki tees, aankhoN ka soonapan,
hotoN ki chuppi,aur halaat ki majboori...in sb ko bahot hi khoobsurat alfaaz ka libaas de dala aapne to...
ab aapke ehsaas ki shiddat ko slaam karooN ya aapki lekhan.kalaa
ko...filhaal...maiN iss waqt bilkul
be.lafz hooN...lekin meri ye khaamoshi aapke liye dheroN.dheroN
mubarakbaad liye hue hai jnaab !!
Aapke kaavya ka asar bilkul diloN tak hi pahunchtaa hai...itne sare comments gwaah haiN .
Badhaaeeeee...!!
---MUFLIS---
bahut hi sundar kavita...thodi lambi lagi..lekin ..pravaah aur prabhaav bana hua tha i sliye padhtee chali gayee.
ReplyDeletekavita mein vedna ke swar khamoshi ki juban ban gayee hai..
वाह!! बहुत शायराना ख्याल!! उम्दा भाव, उत्तम शिल्प. बधाई.
ReplyDeleteनमस्ते विजय जी,
ReplyDeleteआपकी कविताएं पढी, पसंद आई उम्दा अभिव्यक्ति है...
आपने तो रुला दिया सर...बहुत ही बढ़िया लिखा आपने....अभी आँखे नम हैं
ReplyDeletevery sensitive composition...i came here for the first time...aapne kuchh shabdon mein jazbato ko bakhubi utaar diya....bahut sundar
ReplyDeleteआपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,
ReplyDeleteब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
वाह ! इस मार्मिक भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति के लिए क्या कहूँ..............
ReplyDeletebhawanao ka sialab umad gaya dil mein,bahut hi achhi rachana,badhai
ReplyDeleteबत्त्तीसवां मैं हूँ कहने को, सबने तुम्हें सराहा.
ReplyDeleteमैं कैसे नकार दूँ बोलो, प्रिय हूं नहीं पराया.
अत्तीत की नाजुक प्यारी स्मृतियों का दिया हवाला.
कैसे कोई ठुकरा देगा, यह अमृतमय प्याला.
सच बतलाना विजय,प्राप्त क्या होता तारीफ़ों से?
भोगा हुआ यथार्थ झांकता, चिढाता झरोखों से.
जीवन ठहर-ठहर जाता है, उन्हीं पलों में सोचो.
कठोर वास्तविकतायें आँख से ओझल होती सोचो.
प्रेम का है सर्वोच्च स्थान, पर है जीवन के साथ.
संवेदना यदि जाग्रत हो, दो जीवन का साथ.
और किसीकी नहीं, बात निजके असतित्व कीसोचो
समर जीत कर लौटें,फ़िर विरह की चर्चा सोचो.
Jo, jo comment pehle mil chuken hain, jo is rachnaakee gehraayee ko darshate hain, us sabheeko milaake gar ekhee comment kar paatee to kar detee....ek palbhatbhi ruke bina maine pooree rachna padh daalee...mujhe copy karke print out nikaalnaa nahee aataa, ab kisee waqt apne haathse ise kagazpe utaar loongee to aapko aitraaz to nahee hogaa ? Apne kuchh dost-pariwaar waalon ko sunana chahtee hun...sach kaho to mai ispe kiseebhee tarah kee tippanee jo saheeme saarthak ho, karhee nahee paa saktee hun...aur aapki taqreeban har rach nake baareme yahee sach hai...aise alfaazon kee dhanee nahee jo inke saath nyay kar sake...
ReplyDeleteसुँदर गहरे भावोँ की अभिव्यक्ति है
ReplyDeleteइस कविता मेँ दर्द के साथ
सादर,
लावण्या
आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
ReplyDeleteमन को छू लेने वाली अभिव्यक्ति है ये ...आपको बहुत-२ बधाई...
ReplyDeleteभई वाह.. विजय जी, इस बेहतरीन कविता के साथ-साथ २९ दिस वाली पोस्ट के महान कार्य वाकई महान हैं. मजा आ गया महाराज.... एक दिन पव्वा नहीं अद्धा लेकर आप ही के साथ बैठना पड़ेगा... वाह...
ReplyDelete