Monday, January 26, 2009
शब्दयुद्ध : आतंकवाद के विरुद्ध
दोस्तों ; जैसा की मैंने पिछली बार लिखा था , मेरी कविता " शहीद हूँ मैं …" एक poem cum poster , शब्दयुद्ध : आतंकवाद के विरुद्ध -exhibition के लिए select हुई है .
ये exhibition , क्षितिज के द्वारा पुणे में आयोजित की गई थी . श्री संजय भारद्वाज और श्रीमती सुधा भारद्वाज ने अपने अथक प्रयासों द्वारा इस प्रयोजन को सार्थक किया ..इसकी पृष्ठभूमि २६/११ के आतंकी हमले पर है ... हमारे देश में आतंकी हमलो के द्वारा करीब १८००० नागरिक मारे जा चुके है जो की हमारे युद्धों में मारे जाने वाले सैनिको से कहीं ज्यादा है .. आख़िर बेक़सूर नागरिको का दोष क्या है , सिर्फ़ इतना की वो एक ऐसे देश के नागरिक है , जहाँ राजनैतिक स्वार्थ अपनी परमसीमा पर है ... जहाँ हमें आज़ादी की असली कीमत नही मालूम ... जहाँ ,हमारी संवेदानाएं मर चुकी है ...जहाँ ये देश पूरी तरह से banana country बन चुका है ..
मुझे एक कथा याद आती है .. जब पृथ्वीराज चौहान को उनके कवि ने जोश दिलाया था , एक और कथा है , जहाँ कृष्ण , अर्जुन को अपने शब्दों के द्बारा युद्ध के लिए प्रेरित करते है .. Exhibition के opening पर पुणे के police commissioner ने कहा “शब्द और युद्ध permanent है लेकिन आतंक temporary है !” This makes us to wake up to the call of the nation .
मैं ये समझता हूँ की शब्दों के द्वारा ही हम इस सोये हुए और करीब करीब मरे हुए समाज में एक दुसरे युद्ध की भावना ला सकते है , ये युद्ध निश्चित तौर पर एक अच्छे देश के निर्माण के लिए होंगा.. बहुत सी कविताओं ने मेरी आँखें नम कर दी . मैंने ये फैसला किया है की regularly मैं एक रचना देश के ऊपर लिखूं ... घनश्यामदास अग्रवाल जी कहते है की , अगर कवि और लेखक देश को नही जगाने का कार्य करतें है तो उन्हें १०० गुना ज्यादा सज़ा देना चाहिए.. मैं वहां कई साहित्यकारों से मिला .
मैंने अपने तरफ़ से नीरज जी और शमा जी को बुलाया था , उन दोनों ने और राज सिंह जी ने मेरी exhibition में आकर शिरकत की [ मैं उन के मुकाबले कुछ भी नही , फिर भी उन्होंने मान रखा , इसके लिए उनका दिल से आभारी हूँ ] . I will post a separate post on them shortly.
मेरी कविता बहुत पसंद की गई , मुझे इस बात का गर्व है , की संजय जी की देश चेतना में मैं भी शरीक हूँ . I am thankful to them for selecting my poem for this exhibition .
मेरी कविता पर सुमेधा जी ने painting बनाई है , सुमेधा जी , एक बेहतरीन और talented artist है , इनकी painting exhibitions मुंबई और दिल्ली में हो चुकी है .
मैं इस पोस्ट के जरिये ये भी कहना चाहूँगा की अगर कोई इस exhibition को organise करना चाहेंगा तो मुझे बतलाएं .. मैं संजय जी से कहकर इस चेतना को आगे बढ़ाना चाहूँगा ...
जो भी सुधिजन श्री संजय जी को बधाई देना चाहते है वो उनसे [ mobile no : 09890122603 and email : sanjaybhardwaj@hotmail.com ] पर संपर्क कर सकतें है . और जो भी paintings and art work में दिलचस्पी रखते है और सुमेधा जी की paintings खरीदना चाहते है , वो उनसे [ mobile no : 09860312093 and email : sumedha.umale@gmail.com ] पर संपर्क कर सकतें है.
मैं अपनी कविता और सुमेधा जी की painting और कुछ exhibition के photographs दे रहा हूँ ....
दोस्तों , मेरी ये नज़्म , उन सारे शहीदों को मेरी श्रद्दांजलि है , जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर , मुंबई को आतंक से मुक्त कराया. मैं उन सब को शत- शत बार नमन करता हूँ. उनकी कुर्बानी हमारे लिए है .
शहीद हूँ मैं .....
मेरे देशवाशियों
जब कभी आप खुलकर हंसोंगे ,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी नही हँसेंगे...
जब आप शाम को अपने
घर लौटें ,और अपने अपनों को
इन्तजार करते हुए देखे,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी भी मेरा इन्तजार नही करेंगे..
जब आप अपने घर के साथ खाना खाएं
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी भी मेरे साथ खा नही पायेंगे.
जब आप अपने बच्चो के साथ खेले ,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
मेरे बच्चों को अब कभी भी मेरी गोद नही मिल पाएंगी !!
जब आप सकून से सोयें
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
वो अब भी मेरे लिए जागते है ...!!
मेरे देशवाशियों ;
शहीद हूँ मैं ,
मुझे भी कभी याद कर लेना ..
आपका परिवार आज जिंदा है ;
क्योंकि ,
नही हूँ...आज मैं !!!!!
शहीद हूँ मैं …………..!!!!
[ Painting made by Ms. Sumedha on my poem ]
[ one of the poster at the exhibition ]
[ one of the poster at the exhibition ]
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
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घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
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मिलना मुझे तुम उस क्षितिझ पर जहाँ सूरज डूब रहा हो लाल रंग में जहाँ नीली नदी बह रही हो चुपचाप और मैं आऊँ निशिगंधा के सफ़ेद खुशबु के साथ और त...
बधाई !
ReplyDeleteViJAYAJI REALLY THIS IS INSPIRATING POEM..AND PAINTINGS RELATED TO THIS POEM ARE MAIKNG THIS POEM ALIVE..AUR KYA KAHANA AAPNE TO PURI YAADE TAJA KAR DI HAI
ReplyDeleteVIJAY JEE,BAHUT KHOOB,SUMEDHA JEE
ReplyDeleteKEE PAINTING AUR AAPKEE KAVITA BHEE.AAP DONO KO BAHUT BADHAAEE.
आपको बहुत बहुत बधाई। कविता बहुत अच्छी है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
आप हम सभी का प्रतिनिध्त्व करते हुए लिखते रहेँ ..बहुत शुभकामनाओँ सहित
ReplyDelete- लावण्या
बहुत बधाई-बेहतरीन कविता.
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
विजय जी,
ReplyDeleteअआपकी कविता पहले भी पढ़ी थी ...मगर इस पोस्टर के साथ मिलकर तो बस ....गज़ब ही धा दिया आपने.....शानदार कविता...लाजवाब पेंटिंग के साथ...कब कब मिलता है ऐसा देखना ..
आप को और सुमेधा को मेरी शुभकामनायें ...
मनु...
आप तो अमर हुए हैं खींचशब्द मित्र
ReplyDeleteशब्द याद रखेंगे सदा बना बना चित्र
आतंकवाद का सदा करने के लिए नाश
करतूतों की पाक का करो समूल विनाश
युद्ध पाकिस्तान के विरुद्ध गर लड़ा जाए
भविष्य में लड़ने की नौबत ही न आए
कविता आपकी सच्ची हैं चित्र भी सच्चे
हर देश प्रेमी को लग रहे हैं देखो अच्छे
सच कहूँ इस प्रदर्शनी को देखना एक रोमांचक अनुभव था. ऐसा अभूतपूर्व आयोजन मैंने पहले कभी नहीं देखा...भारद्वाज दंपत्ति को नमन है जिन्होंने इस सपने को देखा और साकार किया...प्रदर्शनी के दौरान भारद्वाज दंपत्ति, विजय जी, सुमेधा जी राज जी और शमा जी से मिलना एक ऐसा अनुभव रहा जिसे भुलाना असंभव है...ये प्रदर्शनी देश के हर गावं शहर में आयोजित करने का अभियान चलाया जाना चाहिए...धन्यवाद विजयजी को जिनके प्रयत्न से मैं इस प्रदर्शनी को देख और विलक्षण व्यक्तियों से मिल पाया...
ReplyDeleteनीरज
भाई विजय जी
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट ने हमें लन्दन में रहते हुए भी पुणे की उस प्रदर्शनी में ला खड़ा किया जहां आतंकवाद के विरुद्ध शब्दयुद्ध सुनाई व दिखाई दे रहा था। एक लम्बे अर्से से हिन्दी कविता में भ्रष्टाचार, मज़दूर, किसान और बाज़ारवाद छाए हुए हैं। देश-प्रेम एवं सेना के जवानों के बारे में कुछ नहीं लिखा जाता। कवि प्रदीप ने हमें कहा था कि जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुर्बानी। आपने हमें सीधे शहीदों के दिल से जोड़ दिया है। शहीद सीधे हमसे मुख़ातिब है। मित्र नीरज गोस्वामी का चित्र पोस्ट करके आपने मुझे निजि तौर पर इस प्रदर्शनी के और नज़दीक ला दिया। धन्यवाद और बधाई।
तेजेन्द्र शर्मा, महासचिव - कथा यू.के., लन्दन
आपको बहुत बहुत बधाई और मेरा सलाम उन वीरों को
ReplyDeleteVijay ji aap khusnaseeb hain aapki kavita rastraheet k kam aayi....!
ReplyDeleteaap ko aap ki laikhni kai liye kahan suraj ko roshni dikhana jaisi hai hai sach bahut khub ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कहा आपने विजय जी ..बहुत बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteaapko badhai or subhkamnaye!
ReplyDeleteAapko badhai aur sundar vichaar aur bhaavpoorn kavita hetu sadhuwaad.
ReplyDeleteविजय जी, सुबह से नेट की काफी आँखमिचोली चल रही थी। हम इन जाँबाज सैनिकों और सिपाहियों की बदौलत ही तो सुरक्षित हैं। " शहीद हूँ मैं " सच आपने फिर से भावुक कर दिया। सच में आपने अद्भुत लिखा है।
ReplyDeleteमेरे देशवाशियों ;
शहीद हूँ मैं ,
मुझे भी कभी याद कर लेना ..
आपका परिवार आज जिंदा है ;
क्योंकि ,
नही हूँ...आज मैं !!!!!
शहीद हूँ मैं …………..!!!!
और उस पर सुमेधा जी का एक अच्छा सुन्दर बहुत कुछ कहता एक पोस्टर। इन्होने काफी मेहनत करके यह बनाया है। सच काश मैं भी वहाँ होता तो साक्षात देख पाता। और साथ ही इस exhibition को आयोजित करने वाले संजय जी और सुधा जी का भी शुक्रिया और वो बधाई के पात्र है। एक अच्छा सार्थक कदम। आप सभी को फिर से दिल से शुक्रिया और शहीदों को सलाम। ना जाने क्यों दो लाईन याद आ रही है।
कबिरा जब हम पैदा हुए, जग हँसा, हम रोए।
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे, जग रोए॥
aapki kavita rashtriya str pr sraahi gyi, exhibition mei chuni gyi, bahot se logon duara parhi gyi, is se sirf aapka hi nahi, hm sb ka sr garv se ooncha ho gya hai
ReplyDeletemere paas shabd nahi hain jis se k
khul kr tareef kr sakoon...
mubarakbaad.....!!
---MUFLIS---
bahut bahut badhai sir ji.......
ReplyDeletebahut hi khubsurat kavita
ALOK SINGH "SAHIL"
इस कविता के लिए पुनः साधुवाद.
ReplyDeleteKshama prarthi hun ki zara derse comment de rahee hun...par ye kewal aupcharikta hai....aapse mujhatib ho, pradarshani ke dauran aur pehlebhee ye rachnaa mujhe ekdamse dilko chhoonewaalee lagee thee...apnee sadgee liye, aankhen nam kar gayee...in sab shaheedonko qareebse dekha tha, jana pechana tha...deshke behtareen afsar the...hame garv hai, unhen khonekaa dard hai....
ReplyDeleteAap mere gareebkhanepe aaye iskaa behad shukriya...bada achha samay beetaa, aagebhi zaroor aate rahiye, sahpariwaar aayiye aur hamarehi gharpe rehiye, ye meree khushqismatee samjhungee mai...!
Anek shubhkamnayen !
aapkaa lekhan aur poster dono aankhe kholne laayak hain ataaknkbaad ke khilaaf kalam ayr koonchee kee aapkee jang mai ham aapke saath hain.
ReplyDeleteladte rahen.
ReplyDeletehttp://hariprasadsharma.blogspot.com/
congratulations !!
ReplyDeletekeep up the good work.
Dear Mr. Vijay
ReplyDeleteShabd YUddha: Atankvad ke Viruddha
is not a poem, It is the Voice of Heart which represents the Millions of Voice of the Country through the Poem. so I just want to use this poem for the display board of my office. as per our telephonic convers I am using your's creation along with name there. thanks for the humble permission and best wishes for the literary Journy.
Aankh nam ho aai..
ReplyDeleteआपने तो लाजवाब काम किया है भाई, आपको जितनी बधाई दी जाये कम होगी, फिर भी बधाई न देकर हौंसला-अफ़ज़ाई करना चाहता हूं। आप आगे बढ़िये, पूरा राष्ट्र आपके साथ है। लाजवाब...
ReplyDeletePriya Vijayji,
ReplyDeletePune aakar SHABDAYUDDH-AATANK KE VIRUDDH me sammilit hone ke liye dhanyawad.Blog par aapne aivam Neerajji ne meri aur Sudhaji ki prashansha me jo kuch likha,use hum dono vinamrata se grahan karte hein.Par saath hee kahna chahoonga ki ye kewal BHARDWAJ DAMPATI ka nahin apitu sare BHARATWASIYON ka aandolan bane.Itihas saakshi hei ki YOGESHWAR SHRIKRISHNA ke shabdon ki shakti ne hare hue ARJUN ko Mahabharat ke Vijeta me badal diya tha.Shabd ki biradari se jude hone ke nate mei aur Sudhaji isi madhyam se lad sakte hein,so lad rahe hein.Hamara vachan hei ki ye YUDDH JARI RAHEGA.Aap sabke sahyog se hum is Pradarshani ko Bharat ke vibbhinn nagron aur Videshon me le jane ki aasha rakhte hein.
Mei Vidhata ki rachana
Vidhan ko chunoutee doonga
Tajkar shareer apna
Shabdon me zinda rahoonga.
DHANYAWAD.
Hi Vijay, Great job!!! The painting and the poem look like identical faces of the same successive coin. Though we all cannot join the army but such writing inspires us and promotes the felling of oneness and patriotism. Thanks for peniing down such beautiful words.
ReplyDeleteAll the very best!!
Sushil
विजय जी नमस्कार,
ReplyDeleteदेर से आने के लिए मुआफी चाहता हूँ ,हलाकि आपकी कविता मैं पहले भी पढ़ा चुका हूँ गज़ब की लिखी है आपने ,ऊपर से सुमेधा जी की पेंटिंग ने तो और भी कमाल किया है ,चित्र प्रदर्शनी और कविता का कहाँ साथ में मज़ा आगया आपको ढेरो बधाई साहब ...
नै ग़ज़ल जल्द ही पेश करूँगा आप सभी के खिदमत में .. आपको अभी ही नेवता दिए जाता हूँ...
आपका
अर्श
Bahut achha vijay ji. bahut bahut shubhkaamnaye.
ReplyDeleteभाई विजय जी, सर्वप्रथम तो आप अपनी कविता के चुनाव एवं इस प्रकार के सार्थक प्रयास हेतु बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeleteसमयाभाव एवं कार्य में अति व्यवस्तता के कारण पिछले कईं दिनों से चिट्ठाजगत पर आने का भी अवसर नहीं मिल सका.साथ ही आपने जो मुझसे अपनी जन्मकुंडली अनुसार जानकारी मांगी थी ,अभी वो भी मैं प्रदान नही कर पाया, इसके लिए मैं क्षमाप्राथी हूं.
आशा करता हूं कि आगामी 1-2 दिन में आपकी जन्मकुन्डली के विषय में आपसे पुन: सम्पर्क संभव होगा.
धन्यवाद.........
विजय जी ये रचना जब पहले पढ़ी थी तब भी बहुत प्रभावशाली लगी थी और आज़ भी उतनी ही प्रभावशाली ...यानि कि जितनी बार पढ़ी जायेगी उसका प्रभाव दिल में गहरे उतरता जायेगा ...चित्र भी वाकई रचना के अनुसार ही है ...जो कविता में और चार चाँद लगा रहा है ...इस प्रोग्राम के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा वास्तव में सराहनीय हैं ...बहुत-बहुत बधाई... यूँ लिखते रहिये...
ReplyDeleteमैंने भी अपने ब्लॉग पर जो रचना पेश की है देशभक्ति की वह दिल्ली में एक पु्स्तक जो देशभक्ति की रचनाओं पर निकली है उसमें प्रकाशित हुई है हांलाकि पुस्तक अभी तक मुझ तक नहीं पहुँची मैं युगांड़ा में जो हूँ समय लगता है यहाँ पुस्तक आने में मुझे इसकी सूचना मेल से आ गई थी काफी पहले पुस्तक कब आयेगी पता नहीं?
जब आप अपने बच्चो के साथ खेले तो मेरे परिवार को याद कर लेना......
ReplyDelete"इन पंक्तियों ने आँखों को नम कर दिया ......आपकी कविता का एक एक शब्द शहीदों के सम्मान मे अर्पित श्रधान्जली है.....इस प्रदर्शनी मे आपका योगदान सरहनीय है...."
Regards
विजय जी सर्वप्रथम आपको बहुत बहुत बधाई। विजय जी आपने कलम उठाकर जो आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध का बिगुल बजाया है वह सराहनीय है। सच में आपने बहुत ही सुंदर कविता लिखी है। आपके देश भक्ति के जज्वे को सलाम। उन तमाम शहीदों को मेरा नमन जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर हमारी रक्षा की है। ऐसा ही कुछ मैंने भी अपने ब्लाग पर लिखा है कभी समय मिले तो नजर दौडाइएगा
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका
http://mohankaman.blogspot.com/
http://mohanbaghola.blogspot.com/
सच तो यह है की मुझे लग रहा है.....की जहाँ हमारे शब्द ख़त्म होते हैं......वहां आपके आपके चित्रों के अर्थ शुरू....चित्र जो-कुछ चुपचाप कह जाते हैं.......शब्द चीख-चीख कर भी नहीं कह पाते............!!आपको आपके मंगलमय भविष्य के लिए मेरी मंगलकामनाएं..........!!
ReplyDeleteजैसे ही मेल मिला झट से इसे पढ़ने आ गया, आजकल समयाभाव बहुत है, प्रदर्शनी की झाँकी बहुत अच्छी लगी!
ReplyDeleteसबसे पहले इसके लिए बधाई..भोपाल में क्यों नहीं इस प्र्दशनी को लेकर आते
ReplyDeleteRespected Vijay ji,
ReplyDeleteapkee kavita aur postar ...dono hee hamare deshvasiyon ko achchha sandesh dene vale hain.badhai.
बधाई आपकी कविता और संकल्प दोनों के लिये । फ्रदर्शनी का विवरण नीरज जी के ब्लॉग पर पठ कर यहाँ आई । अफसोस की इतने भाव प्रवण कवि को इतनी देर से पढा ।
ReplyDeletebahut bahut badhayi dost
ReplyDeletevijay ji
ReplyDeleteaaj maine neeraj ji ke blog par ye aadmi marta kyun nhi hai ........padha aur wahin hatyaron ke parti aur aapki rachna ke bare mein usnke viachar jane .........kya ab bhi mere shabd mayane rakhte hain jab itni badi hasti ne aapko naman kiya ho.
vaise aapki kavita par to main pahle hi comment kar chuki hun aur aapki deshbhakti ki bhavna ko naman karti hun.
aapne logo ko jagane ka jo beeda uthaya hai uske liye aapko bahut bahut badhayi.
har koi aapki jaisi soch rakhe aur desh ke bare mein soche to hamara desh vishwa ka sabse sabhya aur pragatisheel desh ho .
hamein aise hi ek doosre se judna hoga aur aatank ko khatm karne ke liye apni taraf se aise hi prayas karne honge jisse ek baar phir se manavta sharmsaar na ho.
aapki kavita aur chitra jo bhi dekhe unke bare mein kuch bhi kehna atishyokti hogi.
aapke aur sumedha ji ke prayason ke liye aapko aur unko bahut bahut badhayi aur naman.
mitra vijay ji aap sabhi log jinhone yah pradarshni aayojit ki badhai ke patra hain.sumedha ji ki penting aur aapki kavita dono ne man ko chhu liya badhai. aapne meri kahaniyo me ruchi darshai thi link bhej rahi hun
ReplyDeletehttp://seemarani.blogspot.com/2009/01/blog-post_31.html
padh kar batayen kaisi hai.
बहुत अच्छा लेख...
ReplyDeleteविजयजी, मैं आपकी हर पोस्ट को मनोयोगपूर्वक पढ़ता हूँ। आपकी हर कविता समय और समाज से जुड़ी नजर आती है। 'शब्दयुद्ध:आतंक के विरुद्ध' एक संवेदनशील कविता है और प्रिय सुमेधा द्वारा बनी गई पेंटिंग एक शहीद के अपनी जमीन से जुड़े होने और देश के हित में उसी में दफन हो जाने की पूरी तरह व्याख्या करती है। यह बेहद संतोष की बात है कि देश का हर नागरिक अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुरूप आतंकवाद का विरोध कर रहा है। इस विषय पर पोस्टर-प्रदर्शनी का आयोजन करने और उसमें शामिल होने वाले हर व्यक्ति को मेरा नमन व बधाई!
ReplyDeleteदेर से टिप्पणी के लिए क्षमा चाहता हूं। बहुत ही संवेदनशील और प्रेरणात्मक कविता है। आपकी लेखनी को सलाम! सुमेधा जी की पेन्टिंग ने सोने पर सुहागे का काम कर दिया।
ReplyDeleteआपको, सुमेधा जी और के आयोजक संजय जी और सुधा जी का धन्वाद एवं बधाई।