FROZEN MOMENTS OF LOVE AND LIFE
फिर एक दिन
बहुत बरस हुए ,
एक दिन
मैं तेरी गली आया था ,
और,
फिर अपना घर भूल गया !!!
उस एक दिन से आज तलक
मुझे अपना घर याद नही …..
वो तेरा मुझे कनखियों से देखना
नज़रें नीची करना , और
दबी हँसी के साथ भाग जाना
और फिर पलट कर मुझे देखना !!
बहुत से दिन यूँ ही गुजर गए.....
तेरा दही की कटोरी
दोनों हाथों में लेते जाना ,और
वो तेरा सफ़ेद दुपट्टा
बड़ी दूर तलक लहराते जाना !!
बहुत से दिन यूँ ही गुजर गए.....
तेरा ,अपने घर की छत पर
कपड़े सुखाना और
उन कपड़ो के बीच से
मुस्कराते हुए मुझे देखते जाना !!
बहुत से दिन यूँ ही गुजर गए.....
वो बरगद का पुराना पेड़
गवाह है ,अब तलक ,
कि,
मैं तेरी गली आया था ,
और,
फिर अपना घर भूल गया !!!
फिर एक दिन
हम मिले , बहुत सी बातें की
और फिर ;
तुमने मेरा नाम पुछा
जो मैंने अपना नाम बताया
तो
तुम खामोश हो गई ...
बहुत बरस बाद मुझे पता चला
कि
तुमने मुझसे जो बातें की थी
बहुत बरस हुए ,
एक दिन
मैं तेरी गली आया था ,
और,
फिर अपना घर भूल गया !!!
उस एक दिन से आज तलक
मुझे अपना घर याद नही …..
वो तेरा मुझे कनखियों से देखना
नज़रें नीची करना , और
दबी हँसी के साथ भाग जाना
और फिर पलट कर मुझे देखना !!
बहुत से दिन यूँ ही गुजर गए.....
तेरा दही की कटोरी
दोनों हाथों में लेते जाना ,और
वो तेरा सफ़ेद दुपट्टा
बड़ी दूर तलक लहराते जाना !!
बहुत से दिन यूँ ही गुजर गए.....
तेरा ,अपने घर की छत पर
कपड़े सुखाना और
उन कपड़ो के बीच से
मुस्कराते हुए मुझे देखते जाना !!
बहुत से दिन यूँ ही गुजर गए.....
वो बरगद का पुराना पेड़
गवाह है ,अब तलक ,
कि,
मैं तेरी गली आया था ,
और,
फिर अपना घर भूल गया !!!
फिर एक दिन
हम मिले , बहुत सी बातें की
और फिर ;
तुमने मेरा नाम पुछा
जो मैंने अपना नाम बताया
तो
तुम खामोश हो गई ...
बहुत बरस बाद मुझे पता चला
कि
तुमने मुझसे जो बातें की थी
वो
तुम्हारे आखरी अल्फाज़ थे....
तुम खामोश ही रही और
खामोशी के साथ ही जुदा हो गई...
फिर एक दिन
तुमने मुझे एक कागज़ दिया ..
उसमे लिखा था ..
आप और हो , मैं और हूँ ..
खुदा कि खातिर हमें भूल जाईये ...
फिर उसी दिन ,
मैंने वो शहर छोड़ दिया ...
फिर एक दिन
बहुत बरसों के बाद
मैं उसी गली में आया था ...
किसी ने बताया कि
कुछ दिन पहले उस गली से तेरा ज़नाजा गुजरा था..
किसी ने कहा , मेरी याद में तुम पागल हो गई थी..
और उसी खामोशी से इस जहाँ से जुदा हो गई....
जैसे मुझसे जुदा हुई थी...
फिर एक दिन,
लोगों ने कहा कि
मैं बावरा हो गया हूँ...
न तू नज़र आती है ..
न तेरा दुपट्टा
न तेरा कपड़े सुखाना
न तेरी दही की कटोरी
न तेरा मुझे देखना
न तेरा मुस्कराना
मैं सच में बावरा हो गया हूँ..
फिर एक दिन ,
आज मैं
तेरी गली के बरगद के नीचे बैठकर
सोच रहा हूँ..
कि एक दिन
मैं तेरी गली आया था ,
और,
फिर अपना घर भूल गया !!!
तुम्हारे आखरी अल्फाज़ थे....
तुम खामोश ही रही और
खामोशी के साथ ही जुदा हो गई...
फिर एक दिन
तुमने मुझे एक कागज़ दिया ..
उसमे लिखा था ..
आप और हो , मैं और हूँ ..
खुदा कि खातिर हमें भूल जाईये ...
फिर उसी दिन ,
मैंने वो शहर छोड़ दिया ...
फिर एक दिन
बहुत बरसों के बाद
मैं उसी गली में आया था ...
किसी ने बताया कि
कुछ दिन पहले उस गली से तेरा ज़नाजा गुजरा था..
किसी ने कहा , मेरी याद में तुम पागल हो गई थी..
और उसी खामोशी से इस जहाँ से जुदा हो गई....
जैसे मुझसे जुदा हुई थी...
फिर एक दिन,
लोगों ने कहा कि
मैं बावरा हो गया हूँ...
न तू नज़र आती है ..
न तेरा दुपट्टा
न तेरा कपड़े सुखाना
न तेरी दही की कटोरी
न तेरा मुझे देखना
न तेरा मुस्कराना
मैं सच में बावरा हो गया हूँ..
फिर एक दिन ,
आज मैं
तेरी गली के बरगद के नीचे बैठकर
सोच रहा हूँ..
कि एक दिन
मैं तेरी गली आया था ,
और,
फिर अपना घर भूल गया !!!
कुछ दिन पहले उस गली से तेरा ज़नाजा गुजरा था..
ReplyDeleteकिसी ने कहा , मेरी याद में तुम पागल हो गई थी..
और उसी खामोशी से इस जहाँ से जुदा हो गई....
जैसे मुझसे जुदा हुई थी...
" oh very painful expressions....."
Regards
क्या कहूँ विजय जी अभी तो शब्द ढूढने पडेगे। पर जब कहूँगा तो शायद बहुत कुछ कहूँगा.........
ReplyDeletelagta hai barson se dabe dard ko aaj shabd mil gaye........pyar hota hi aisa hai jahan dono hi pagal hote hain..........dard ki parakashtha jahan khatm hoti hai wahin pyar hota hai............bahut badhiya
ReplyDeleteसुंदर लगी
ReplyDeleteसुन्दर भावना से ओत-प्रोत!
ReplyDeleteबर्फ़ वाले विजेट के लिए तकनीक दृष्टा ब्लॉग देखें।
---मेरे पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें | चाँद, बादल और शाम | तकनीक दृष्टा/Tech Prevue | आनंद बक्षी | तख़लीक़-ए-नज़र
वाह बहुत खूब. आपके ब्लॉग पर आने पर हर बार एक नया अनुभव होता है. आपकी लेखनी यूँ ही जादू बिखेरती रहे.
ReplyDeleteबेहतरीन!!
ReplyDeleteआपको पढ़कर आनन्द आया.
बहुत दिलकश रचना...प्यार की त्रासदी बयां करती हुई...उदास कर दिया आप की रचना ने...
ReplyDeleteनीरज
tumhare chuee ka rang chootega tumhare chhooe se hi kabhi kahin.......
ReplyDeleteaccha likha hai..
Liked the way you've managed to create a sublime rhythm with words. The same words written by someone else may not have had such a heavenly existence.
ReplyDeleteDo visit my site and comment:
http://www.passey.info
हाथ में दारू की बोतल है या नहीं! :(:(:(
ReplyDeletewah vijay bhai
ReplyDeletebahut khoob, puri ki puri rachna hi jase ehsaas aur zazbaat ke dhaage mein piroyi gayi ho. itni gehri aur zajbaati.
thanks for sharing this.
regards
Manuj Mehta
www.merakamra.blogspot.com
बढ़िया है भाई ! आप आकंठ प्रेम में डूबे हैं.
ReplyDeleteसुन्दर और प्रेमभावप्रद प्रस्तुति, आभार
ReplyDeleteएक मीठी से तस्कीं देती बेहद खुबसूरत कविता ... सुबह सुबह जैसे एक ठंडी हवा मीठी सी धुप को छू कर आई हो..
ReplyDeleteबहोत ही खुबसूरत ढेरो बधाई आपको साहब..
अर्श
bahut umda rachana
ReplyDeleteगज़ब क्या बात है, :)
ReplyDeleteहमें शुरूआती पंक्तियों में हमारी ही प्रेम-कहानी याद आ गई.
लाजवाब...प्रेम की गहरी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteशानदार!!
ReplyDeletebahut hi khubsurati se aapne alfaajon ko piroya hai...maja aa gaya.
ReplyDeleteALOK SINGH "SAHIL"
भावपूर्ण रचना है। मैं तो कुछ पल के लिए फंतासी में चलते हुए आगे बढ़ गया था। कुछ पुरानी बातें भी इस कविता ने याद करा दी, जो दर्द और कुछ हसीन पल के गवाह थे। वैसे मैंने ऐसे कम लोग ही देखे हैं, जो आज के दौर में कविता लिखते हैं और लोगों को कुछ एहसास भी कराते हैं। आपकी तारीफ करने के लायक तो मैं नहीं हूं, क्योंकि मैं अपने आप को उस स्तर का आदमी नहीं समझता कि मैं आपकी तारीफ कर सकूं, लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि कभी आपसे मिला, तो आपके हाथ ज़रूर चूम लूंगा।
ReplyDeleteशायद एक बैठक में लिखी गयी है...तभी निरंतरता बनी हुई है....भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteअद्भुत सुंदर रचना है.
ReplyDeleteप्रेम में सबकुछ भुला दिया. आह...उदासी है.
भाव पूर्ण कविता है vijay जी............शब्द नही मिलते कुछ कहने को
ReplyDeleteVery Touching !
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना । लिखते रहिये ---।
ReplyDeleteWah bandhuwar wah.......
ReplyDeleteवाह! विजय कुमार सपत्ति जी, प्रेम की अजस्त्र धारा कब से बह रही है आपके अतर्मन में? मैं शरमा जाता हूँ! मुझे सीखा दें प्रेम कविता लिखना। आज तक नहीं लिख पाया हूँ यह अपनी ट्रेजडी है।
ReplyDeletevijay ji
ReplyDeleteyahan prem hai ..magar apki rachna me kuch kame esi lagi is baar mujhe...
meien jab bhi apko pada laga meien jee liya..magar is baar sirf laga jaise likhne ke liye likha aur padne ke liye meien pad liya..
aapki rachna hamesha mujhe chhooti hai magar is bar yaisa na ho ska...ek do jagah wo prayas hua hai magar kamjor saa...
ek achi rachna jo ki aksar hoti hai apki kalam s enikali rachna ke intzaar mein...sakhi
VIJAY JEE ,AAPKEE KAVITA KO KAEE
ReplyDeleteBAAR PADH CHUKAA HOON.KYA BHAVABHI-
VYAKTI HAI!SUNDER,ATI SUNDER RACHNA
HAI.MEREE HAARDIK BADHAAEE SVEEKAR
KAREN.SHUBH KAMNAYEN
विजय जी
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण और दर्द भरी कविता है लेकिन सच पूछो तो शब्द ही नहीं हैं मेरे पास अदभूत
बहुत खूब लिखा है. ऐसी कवितायेँ कईयों का दिल धड़का देती हैं, पढ़ते पढ़ते वे अपने वक्त में पहुँच जाते हैं.
ReplyDeleteशनदार लिखा है आपने.
WWaaaaahhhhhhh !!!
ReplyDeleteक्यों गए थे उनकी गली
ReplyDeleteकि जनाजा निकालकर ही बाहर निकले
न जाते उनकी गली
तो कम से डोली तो जाती उनकी.