Tuesday, March 31, 2009

अपना अफसाना


बहुत दिनों से ये चाह रहा था ;
कि, अपना अफसाना लिखूं...

और मेरा अफसाना भी क्या है
कुछ तेरे जैसा है , कुछ उसके जैसा है

दुनिया की भीड़ में भटकता हुआ
ज़िन्दगी के जंगल में खोया हुआ
किसी बच्चे की हंसी में मुस्कराता हुआ
और अपनी उदासी को समेटता हुआ
एक अदद इंसान की रूह में फंसा हुआ
अपने आप को तलाशता हुआ !

बस ऐसा ही कुछ मेरा अफसाना है ;
इसी अफ़साने से ही तो मेरी कविता जन्मती है !!

कहीं अगर मैं मिलूं तुम्हे तो मुझे पहचान लोंगे ना ?


Monday, March 30, 2009

यादें / MEMORIES

दोस्तों , इस ब्लॉग जगत ने मुझे कई सारे मित्र दिये है , जिनमे से एक है दिल्ली के श्री मनु जी . मैंने आज की कविता मनु जी को dedicate किया है . पिछली बार मैंने अर्श जी पर एक कविता लिखी थी , जो की मैंने कलकत्ता में लिखी थी , और incidently ये कविता भी मैंने मनु जी के लिए कलकत्ता में ही लिखी .. लगता है कलकत्ता के तरफ के मौसम बड़े आशिकाना है ..मोहब्बत के बादल वही ज्यादा बरसते नज़र आतें है ... कविता के साथ मेरा बनाया हुआ एक sketch भी है .... उम्मीद है की हमेशा की तरह आपका स्नेह और प्यार मिलेंगा ....


यादें / MEMORIES

आज ;
मैंने एक पुराना ,
मेरा अपना संदूक खोला ;
तो उसमे मौजूद तेरे प्यार की खुशबु
तेरी यादो के संग , मेरे कमरे को महका गयी .....

सबसे ऊपर है एक दुपट्टा ;
जो की तेरे घर की छ्त से ,
उड़कर मेरे आँगन आ गिरा था ,
कई बरस पहले की ये बात है ...
अब उसका रंग साफ़ नज़र नहीं आता है
मेरे आंसुओं ने कई बार उसे धो दिया है ..!

फिर तुम्हारी दी हुई सात चूडियाँ है ;
याद है तुम्हे ,
इन्हें देते वक़्त ,तुमने कहा था
ये मेरे सात फेरे है ,
जो मैं तेरे संग अगले जनम लूंगी ,
अगले सात जन्मों के लिए ...!
मैं ;
अक्सर उन चूडियों में मेरी ठहरी हुई ज़िन्दगी देखता हूँ ...!

और ये एक तेरा दिया हुआ रुमाल है ,
जिस पर तूने मेरा नाम काढा था ;
और ये क्या है …..
एक बाल है लम्बा सा , तुम्हारा ....
इस रुमाल में लिपटा हुआ ...
याद है , ये मैंने मेरी छाती पर पाया था ,उस दिन;
जिस दिन ,हमने जिस्म की आग से खुद को जलाया था !
तुम कह रही थी ,तुम मेरी ही रहोंगी ...
तुम कितनी झूठी थी !

और तेरे ख़त है ....
और मेरे ख़त भी , जो मैंने तुम्हे लिखे थे
और तुमने मुझे लौटा दिए थे...
ये कहकर कि ..
ये मेरी अमानत है ,किसी अगले जनम ,
मैं तेरे संग बाचुंगी !!

सबसे अंत में तेरी एक तस्वीर है ,
जिसके पीछे तुमने
मेरा नाम लिखा है
और लिखा है कि, तुम्हारे लिए !
सिर्फ तस्वीर ही बची रह गयी है ..
तुम नहीं .....

और भी बहुत कुछ है ..
जो किसी और को दिखाई नहीं देते है ...
तेरी कसमे और तेरे वादे..
तेरी और सिर्फ तेरी ही बातें ;
तेरी ठहरी हुई साँसे..
तेरा उदास मन ....
तेरी बिदाई ......................
बस हर तरफ सिर्फ तू ही तू है ....
और कहीं कहीं शायद मैं भी हूँ ...
तेरी यादों में खोया हुआ ...!

मैं क्या करूँ ..
अक्सर अपने कमरे में
ये संदूक खोल लेता हूँ , तेरी चीजो को छूता हूँ
और बहुत देर तक रोता हूँ !

कौन कहता है कि ;
यादे पूरानी होती है ..!!!

Monday, March 23, 2009

बिटिया


दोस्तों ; मेरे दो बच्चे है . मेरी बेटी मधुरिमा [ हनी ] ;12 बरस की है और मेरा बेटा तुषार [ वासु ] ; 7 बरस का है ! बच्चे तो मुझे बहुत प्यारे है और in fact ; मुझे सारे ही बच्चो से बहुत प्यार है ..पता नहीं , मुझे बच्चो में हमेशा ही भगवान दिखाई देते है .. बच्चो पर कविता लिखना मुझे हमेशा ही अच्छा लगता है ! मैंने बच्चो पर बहुत कुछ लिखा है .. Recently मैंने सुशील जी की बेटी नैना और नीरज जी की पोती मिष्टी पर भी कवितायेँ लिखी है ! [ अगर किसी मित्र को अपने छोटे बच्चे पर कोई कविता लिखवाना है तो मुझे कहियेगा , मैं जरुर लिख दूंगा ]...ये कविता मैंने मेरी बेटी के लिए लिखा है, लेकिन ये दुनिया की हर बेटी के लिए है ...बेटी है तो घर में खुशियाँ है ..ये बेटी ही बाद में पत्नी , बहु, माँ, सास, नानी ,दादी बनती है और हर घर की दुनिया का एक guiding light बनती है ...हनी मेरे जीवन में बहुत महत्त्व रखती है ..मैंने हमेशा से चाहा था की मुझे पहले बेटी की प्राप्ति हो ..और तो और मैंने उसके जनम के पहले उसका नाम भी रखा दिया था ..हनी !..मेरी निजी जीवन में हनी का बहुत बड़ा महत्व है she is everything to me ! ये कविता ,एक पिता की छोटी सी भेंट है अपनी बेटी के लिए .......उसके बहुत से प्यार के बदले में... बेटियाँ तो बस सब कुछ होती है .. ! और हाँ ये कविता आपकी बेटियों के लिए भी है .. मेरा सलाम है दुनिया की सारी बेटियों को !!!




बिटिया

हनी , तुझे मैंने पल पल बढ़ते देखा है !
पर तू आज भी मेरी छोटी सी बिटिया है !!

आज तू बारह बरस की है ;
लेकिन वो छोटी सी मेरी लड़की ....
मुझे अब भी याद है !!!

वही जो मेरे कंधो पर बैठकर ,
चाकलेट खरीदने ;
सड़क पार जाती थी !

वही ,जो मेरे बड़ी सी उंगली को ,
अपने छोटे से हाथ में लेकर ;
ठुमकती हुई स्कूल जाती थी !

और वो भी जो रातों को मेरे छाती पर ;
लेटकर मुझे टुकर टुकर देखती थी !

और वो भी ,
जो चुपके से गमलों की मिटटी खाती थी !

और वो भी जो माँ की मार खाकर ,
मेरे पास रोते हुए आती थी ;
शिकायत का पिटारा लेकर !

और तेरी छोटी छोटी पायल ;
छम छम करते हुए तेरे छोटे छोटे पैर !!!

और वो तेरी छोटी छोटी उंगुलियों में शक्कर के दाने !
और क्या क्या ......
तेरा सारा बचपन बस अभी है , अभी नही है !!!

आज तू बारह बरस की है ;
लेकिन वो छोटी सी मेरी लड़की ....
मुझे अब भी याद है !

वो सारी लोरियां ,मुझे याद है ,
जो मैंने तेरे लिए लिखी थी ;
और तुझे गा गा कर सुनाता था , सुलाता था !

और वो अक्सर घर के दरवाजे पर खड़े होकर ,
तेरे स्कूल से आने की राह देखना ;
मुझे अब भी याद आता है !

और वो तुझे देवताओ की तरह सजाना ,
कृष्ण के बाद मैंने सिर्फ़ तुझे सजाया है ;
और हमेशा तुझे बड़ी सुन्दर पाया है !

तुझे मैंने हमेशा चाँद समझा है ….
पूर्णिमा का चाँद !!!

आज तू बारह बरस की है ,
और ,वो छोटी सी मेरी लड़की ;
अब बड़ी हो रही है !

एक दिन वो छोटी सी लड़की बड़ी हो जाएँगी ;
बाबुल का घर छोड़कर ,पिया के घर जाएँगी !!!

फिर मैं दरवाजे पर खड़ा हो कर ,
तेरी राह देखूंगा ;
तेरे बिना , मेरी होली कैसी , मेरी दिवाली कैसी !
तेरे बिना ; मेरा दशहरा कैसा ,मेरी ईद कैसी !

तू जब जाए ; तो एक वादा करती जाना ;
हर जनम मेरी बेटी बन कर मेरे घर आना ….

मेरी छोटी सी बिटिया ,
तू कल भी थी ,
आज भी है ,
कल भी रहेंगी ….
लेकिन तेरे बैगर मेरी ईद नही मनेगी ..
क्योंकि मेरे ईद का तू चाँद है !!!

Thursday, March 19, 2009

बर्फ के रिश्ते / FROZEN RELATIONS


अक्सर सोचता हूँ ,
रिश्ते क्यों जम जातें है ;
बर्फ की तरह !!!

एक ऐसी बर्फ ..
जो पिघलने से इनकार कर दे...
एक ऐसी बर्फ ..
जो सोचने पर मजबूर कर दे..
एक ऐसी बर्फ...
जो जीवन को पत्थर बना दे......

इन रिश्तों की उष्णता ,
दर्द की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ,
जीवन की आग में जलकर ;
बर्फ बन जाती है ......

और अक्सर हमें शूल की तरह चुभते है
और भीतर ही भीतर जमते जाते है ये रिश्तें..
फिर ; अचानक ही एक दिन ;
हम !
हमारे रिश्तों को देखते है
किसी पाषाण शिला
की तरह बर्फ में जमे हुए......

ये रिश्ते ताकते है ;
हमारी और !
और हमसे पूछते है ,
एक मौन प्रश्न ...
ये जनम क्या यूँ ही बीतेंगा !
हमारी जमी हुई उष्णता कब पिगलेंगी !

हम निशब्द होते है
इन रिश्तों के प्रश्नों पर
और अपनी जीवन को जटिलता पर ....

रिश्तों की बर्फ जमी हुई रहती है ..
और यूँ लगता है जैसे एक एक पल ;
एक एक युग की
उदासी और इन्तजार को प्रदर्शित करता है !!

लेकिन ;
इन रिश्तों की
जमी हुई बर्फ में
ये आंसू कैसे तैरते है .......

Monday, March 16, 2009

देह


देह के परिभाषा
को सोचता हूँ ;
मैं झुठला दूं !

देह की एक गंध ,
मन के ऊपर छायी हुई है !!

मन के ऊपर परत दर परत
जमती जा रही है ;
देह ….
एक देह ,
फिर एक देह ;
और फिर एक और देह !!!

देह की भाषा ने
मन के मौन को कहीं
जीवित ही म्रत्युदंड दे दिया है !

जीवन के इस दौड़ में ;
देह ही अब बचा रहा है
मन कहीं खो सा गया है !
मन की भाषा ;
अब देह की परिभाषा में
अपना परिचय ढूंढ रही है !!

देह की वासना
सर्वोपरि हो चुकी है
और
अपना अधिकार जमा चुकी है
मानव मन पर !!!

देह की अभिलाषा ,
देह की झूठन ,
देह की तड़प ,
देह की उत्तेजना ,
देह की लालसा ,
देह की बातें ,
देह के दिन और देह की ही रातें !

देह अब अभिशप्त हो चुकी है
इस से दुर्गन्ध आ रही है !
ये सिर्फ अब इंसान की देह बनकर रह गयी है :
मेरा परमात्मा , इसे छोड़कर जा चूका है !!

फिर भी घोर आश्चर्य है !!!
मैं जिंदा हूँ !!!


Thursday, March 12, 2009

जानवर


अक्सर शहर के जंगलों में ;
मुझे जानवर नज़र आतें है !
इंसान की शक्ल में ,
घूमते हुए ;
शिकार को ढूंढते हुए ;
और झपटते हुए..
फिर नोचते हुए..
और खाते हुए !

और फिर
एक और शिकार के तलाश में ,
भटकते हुए..!

और क्या कहूँ ,
जो जंगल के जानवर है ;
वो परेशान है !
हैरान है !!
इंसान की भूख को देखकर !!!

मुझसे कह रहे थे..
तुम इंसानों से तो हम जानवर अच्छे !!!

उन जानवरों के सामने ;
मैं निशब्द था ,
क्योंकि ;
मैं भी एक इंसान था !!!

Monday, March 9, 2009

नज़्म


बड़ी देर हो गई है ,
कागज़ हाथ में लिए हुए !

सोच रहा हूँ ,
कि कोई नज़्म लिखूं !

पर शब्द कहीं खो गए है ,
जज्बात कहीं उलझ गए है ,
हाथों की उंगलियाँ हार सी गई है ;

क्या लिखु .... कैसे लिखु ...

सोचता हूँ ,
या तो ;
सिर्फ “खुदा” लिख दूं !
या फिर ;
सिर्फ “मोहब्बत” लिख दूं !

इन दोनों से बेहतर भला
कोई और नज़्म क्या होंगी...!!!

Friday, March 6, 2009

प्रियतमा


कौन हो तुम प्रियतमा ;
कहो की , तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

क्या रजनीगंधा के फूलों की हो सुगंध !
या फिर आकाश के मेघो की हो उड़ान !
या फिर हो पहली बरखा की सोंधी खुशबु !
या फिर मेरे हृदय की हो धड़कन !

कौन हो तुम प्रियतमा ;
कहो की , तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

रजनीगंधा के फूलों की बनकर सुगंध ,
मेरे सम्पूर्णता मे समाई हो तुम ;
अपने आपको ; मैं तेरी खुशबू मे ढुंढु ;
मेरे अंतर्मन की देवी हो तुम !!
कहो की , तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

आकाश के मेघो की उड़ान हो तुम ,
उमड़ उमड़ कर दिल पर छा जाती हो तुम
उमंग भरे वसंत का उत्सव बनकर प्रिये
हृदय के आँगन को सजाती हो तुम !!
कहो की , तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

तुममे है पहली बरखा की सोंधी खुशबु ,
मन की तपती भूमि पर बरसती हो तुम ,
हवा भी छुकर तुझे ; बहती है मंद मंद;
प्यार का कुवाँरा अहसास हो तुम !!
कहो की , तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

मेरे ह्रदय की धड़कन बनकर मुझे थामा ,
क्या इसलिए की मेरे पास हो तुम ;
या फिर क्योंकि मैं हूँ तुमने मग्न,
कहो न कि, मुझमे समायी हुई हो तुम !!
कहो की , तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

कौन हो तुम प्रियतमा ;
कहो की ,तुम मेरी हो प्रियतमा !!!

Monday, March 2, 2009

रिश्ते की राख़........


बहुत सी तस्वीरे बनाई मैंने
सोचा कि
एक तस्वीर तुम्हारी भी बना लूँ ...

कल रात कोशिश की,
तो ;
जिंदगी के कागज पर एक रिश्ता बन गया !

सुबह हुई तो देखा कि ,
कोई यार तेरा,
उस कागज़ को जला रहा था......

और तुम मेरे इश्क की राख
अपने अजनबी रिश्ते में घोल रही हो .......

सुनो !!!
तुम अगर कभी इश्क की कब्रगाह से गुजरो ,
और ;
वहां किसी कब्र से तुम्हारे नाम की
आह सुनाई दे....

तो समझना;
वहां मैं सोया हूँ , तेरा नाम लेते हुए !!

बस सिर्फ इश्क के नाम पर..
तुम उस रिश्ते कि राख़ मेरे कब्र पर डाल देना ;

जो कभी हम दोनों ने जिया था !!!

बस ...और क्या !!!
मोहब्बत की दुनिया यूँ ही तो ख़त्म की जाती है …….

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...