Thursday, March 19, 2009
बर्फ के रिश्ते / FROZEN RELATIONS
अक्सर सोचता हूँ ,
रिश्ते क्यों जम जातें है ;
बर्फ की तरह !!!
एक ऐसी बर्फ ..
जो पिघलने से इनकार कर दे...
एक ऐसी बर्फ ..
जो सोचने पर मजबूर कर दे..
एक ऐसी बर्फ...
जो जीवन को पत्थर बना दे......
इन रिश्तों की उष्णता ,
दर्द की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ,
जीवन की आग में जलकर ;
बर्फ बन जाती है ......
और अक्सर हमें शूल की तरह चुभते है
और भीतर ही भीतर जमते जाते है ये रिश्तें..
फिर ; अचानक ही एक दिन ;
हम !
हमारे रिश्तों को देखते है
किसी पाषाण शिला
की तरह बर्फ में जमे हुए......
ये रिश्ते ताकते है ;
हमारी और !
और हमसे पूछते है ,
एक मौन प्रश्न ...
ये जनम क्या यूँ ही बीतेंगा !
हमारी जमी हुई उष्णता कब पिगलेंगी !
हम निशब्द होते है
इन रिश्तों के प्रश्नों पर
और अपनी जीवन को जटिलता पर ....
रिश्तों की बर्फ जमी हुई रहती है ..
और यूँ लगता है जैसे एक एक पल ;
एक एक युग की
उदासी और इन्तजार को प्रदर्शित करता है !!
लेकिन ;
इन रिश्तों की
जमी हुई बर्फ में
ये आंसू कैसे तैरते है .......
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
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I guess this happens with everybody, It is very easy to build new relationships but it is very tough to maintain them.. "Never try to maintain relations in your life, Just try to maintain life in all your relations"
ReplyDeleteइन रिश्तों की उष्णता ,
ReplyDeleteदर्द की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ,
जीवन की आग में जलकर ;
बर्फ के टुकड़े बन जाते है ...
" these lines are core feelings of this poetry....i really liked them...."
Regards
सबसे पहले मुबारक सुशील जी को,
ReplyDeletemassege पढ़ते ही हम से पहले कमेंट चिपका दिया,,,
और दूसरी बधाई विजय जी को,,,,
क्या शानदार कविता लिखी है,,,मुझे तो शब्द ही नहीं मिल रहे हैं बयान करने के लिए,,,,बाकी रात को वापस आकर दोबारा पढूंगा ठीक से ,,,,,यदि कुछ और अछे शब्द निकले तो फिर कमेंट दूंगा,,,
वाकई शानदार कमाल्ल्ल..................
ye lo ,
ReplyDeleteham to teesre namber par aa gaye,,,,,
aapko bhi badhaai ho sema ji,,,,
bahut bdhiya kavita hai aur shushil ji ki bat bhi bahut sahi hai
ReplyDelete"Never try to maintain relations in your life, Just try to maintain life in all your relations"
jami hui barf ke neeche kahi fir bhi kuch tarlata hoti hai .
bhut gahara ahsas, bahut sundar.badhai
BAHOT KHUB LIKHA HAI AAPNE... AGAR MUJHE HAK HAI TO AAJ TAK KI JO MAINE PADHI HAI USME BISHISHT HAI YE KAVITA AAPKI...BAHOT HI UMDA LIKHA HAI AAPNE..RISHTE KE BAARE ME .. BADI BADHIYA SANGYA DIYA HAI .. GAJAB TARIKE SE AAPNE PARIBHASHIT KIYA HAI RISHTE KO.. DHERO BADHAAEE SAHIB...
ReplyDeleteARSH
बेहतरीन रचना! बधाई.
ReplyDeleteबर्फ को भावों का रूप देकर
ReplyDeleteलगता है कि किसी दिन आप
कविता में जमा दोगे सूप को भी
फिर करोगे इंतजार पिघलाने के लिए
उस धूप का, जो बादलों में लुकन छिपी
रही होगी खेल, बर्फ से भावों का मेल
बहुत पसंद आया, बाहर तो निकाला
बर्फ को फ्रिज की जेल से।
जब रिश्तों का संबंध मन से जुडा न होकर भौतिक सुखों तक सीमित होता है तो संबंधो की ऊष्णता समाप्त होने लगती है और धीरे धीरे वह पाषाण हिमखण्ड बन जाते हैं
ReplyDeleteसुन्दर रचना पढवाने के लिये आभार
ये रिश्ते ताकते है ;
ReplyDeleteहमारी और !
और हमसे पूछते है ,
एक मौन प्रश्न ...
ये जनम क्या यूँ ही बीतेंगा !
हमारी जमी हुई उष्णता कब पिगलेंगी !
विजय जी
रिश्ते तो होते ही ऐसे हैं.....
कभी गर्म, कबी नर्म, कभी बर्फ की तरह सख्त....
पर रिश्तों के बिना कोई जीवन भी तो नहीं...
बहुत सुन्दर है आपकी रचना
इन रिश्तों की उष्णता ,
ReplyDeleteदर्द की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ,
जीवन की आग में जलकर ;
बर्फ के टुकड़े बन जाते है ...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति... बहुत-बहुत बधाई...
ये रिश्ते ताकते है ;
ReplyDeleteहमारी और !
और हमसे पूछते है ,
एक मौन प्रश्न ...
ये जनम क्या यूँ ही बीतेंगा !
हमारी जमी हुई उष्णता कब पिगलेंगी !
बढ़िया लगी यह रचना आपकी ..बहुत सुन्दर भाव हैं इस में . एक कठोर सत्य छिपा है आपकी लिखी इन पंक्तियों में ..
gahre bhav.............sundar prastuti
ReplyDeleteजो रिश्ते रूहानी होते हैं उन पर कभी बर्फ नहीं जमती...अगर रिश्तों पर बर्फ जमनी शुरू हो तो उसकी पड़ताल करनी चाहिए....तुंरत...फिर कोई रिश्ता अपनी उष्णता नहीं खोयेगा...
ReplyDeleteरचना में लिंग भेद कहीं कहीं खटकता है जैसे...
इन रिश्तों की उष्णता ,
दर्द की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ,
जीवन की आग में जलकर ;
बर्फ के टुकड़े बन जाते है
इसे मेरे ख्याल से यूँ लिखना चाहिए था:
इन रिश्तों की उष्णता ,
दर्द की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ,
जीवन की आग में जलकर ;
बर्फ के टुकड़े बन जाती है
मैं विशेषग्य नहीं हूँ इसलिए आशा है आप मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगे...
नीरज
बहुत पसँद आयी आपकी ये कविता भी
ReplyDelete- लावण्या
आदरणीय नीरज जी ,आपने सही मार्गदर्शन दिया है ,
ReplyDeleteमैंने उन पंक्तियों को बदलकर कुछ इस तरह लिखा है की ,भाषा भी ठीक हो जाए और भाव भी न बदले ..
पहले ये इस तरह थी ..
इन रिश्तों की उष्णता ,
दर्द की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ,
जीवन की आग में जलकर ;
बर्फ के टुकड़े बन जाते है
अब ये इस तरह होंगी ..
इन रिश्तों की उष्णता ,
दर्द की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ,
जीवन की आग में जलकर ;
बर्फ बन जाती है ......
आपके सुझाव के लिए मैं आपका आभारी हूँ , इसी तरह अपना स्नेह और आशीर्वाद बनाये रखें ...
आपका
विजय
कभी कभी सोचता हूँ कि ये रिश्तें इतनी उलझन भरे क्यों होते है। अभी एक रिश्ते की आग से तप कर आ रहा हूँ। समझ नही आता ये सुलझते क्यों नहीं। आपकी रचना पढी तो ये भी यही बात कह रही है। खैर हमेशा की तरह आपने ये भी अच्छा लिखा है।
ReplyDeleteये रिश्ते ताकते है ;
हमारी और !
और हमसे पूछते है ,
एक मौन प्रश्न ...
ये जनम क्या यूँ ही बीतेंगा !
हमारी जमी हुई उष्णता कब पिगलेंगी !
बेहतरीन।
बहुत सुंदर रचना ... सही कहा ... रिश्तों में बर्फ जम जाते हैं ... पहले थोडे दूर के रिश्तों में देखे जाते थे ... अब काफी नजदीक आते जा रहे हैं।
ReplyDeleteसुन्दर रचना....
ReplyDeleteरिश्तों की उष्णता बनाए रखने की जरूरत है | प्रेम.सहिष्णुता,सहयोग और आदर जैसी भावनाओं की उष्णता इस बर्फ को जरूर पिघला देगी |
ReplyDeleterishtoN ki garimaa ko byaan karne ki achhi koshish ki gyi hai
ReplyDeletebhaav paksh mei aapka nazariya jhalaktaa hai
aur ye bahut achha lagaa...
"hum nishabd hote haiN in rishtoN ke prashno par..."
dar-asl rishtoN ko nibhaane ke liye rishtoN ka mahatva samajhnaa
bahut zroori hota hai.
yahaaN kuchh virodhaabhaas jaisa kuchh khataktaa hai...
ये रिश्ते ताकते है ;
हमारी और !
और हमसे पूछते है ,
एक मौन प्रश्न ...
ये जनम क्या यूँ ही बीतेंगा !
हमारी जमी हुई उष्णता कब पिगलेंगी...
khair kul milaa kar prayaas achha hai...aur Gurujan ke marg-darshan ke baad to nikhaar aaya hi hai.
badhaaee
---MUFLIS---
इन रिश्तों की उष्णता ,
ReplyDeleteदर्द की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ,
जीवन की आग में जलकर ;
बर्फ के टुकड़े बन जाते है
sach kaha hai, ek waqt par aakar rishte braf ban jate hain
aur hum khud ko inmein dhoondte hain.
bahut achi dilko choone wali kavita hai.
nira
मैं आपकी नई पाठक हूं आपकी ये कविता बहुत अच्छी लगी सचमुच रिश्ते बर्फ की तरह ही होते हैं समयानुसार अपना स्वरूप बदलते रहते हैं कभी पत्थर के समान कठोर कभी बादल के समान तरूणाई लिए तो कभी पानी की तरह निर्मल............
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