दोस्तों , इस ब्लॉग जगत ने मुझे कई सारे मित्र दिये है , जिनमे से एक है दिल्ली के श्री मनु जी . मैंने आज की कविता मनु जी को dedicate किया है . पिछली बार मैंने अर्श जी पर एक कविता लिखी थी , जो की मैंने कलकत्ता में लिखी थी , और incidently ये कविता भी मैंने मनु जी के लिए कलकत्ता में ही लिखी .. लगता है कलकत्ता के तरफ के मौसम बड़े आशिकाना है ..मोहब्बत के बादल वही ज्यादा बरसते नज़र आतें है ... कविता के साथ मेरा बनाया हुआ एक sketch भी है .... उम्मीद है की हमेशा की तरह आपका स्नेह और प्यार मिलेंगा ....
यादें / MEMORIES
आज ;
मैंने एक पुराना ,
मेरा अपना संदूक खोला ;
तो उसमे मौजूद तेरे प्यार की खुशबु
तेरी यादो के संग , मेरे कमरे को महका गयी .....
सबसे ऊपर है एक दुपट्टा ;
जो की तेरे घर की छ्त से ,
उड़कर मेरे आँगन आ गिरा था ,
कई बरस पहले की ये बात है ...
अब उसका रंग साफ़ नज़र नहीं आता है
मेरे आंसुओं ने कई बार उसे धो दिया है ..!
फिर तुम्हारी दी हुई सात चूडियाँ है ;
याद है तुम्हे ,
इन्हें देते वक़्त ,तुमने कहा था
ये मेरे सात फेरे है ,
जो मैं तेरे संग अगले जनम लूंगी ,
अगले सात जन्मों के लिए ...!
मैं ;
अक्सर उन चूडियों में मेरी ठहरी हुई ज़िन्दगी देखता हूँ ...!
और ये एक तेरा दिया हुआ रुमाल है ,
जिस पर तूने मेरा नाम काढा था ;
और ये क्या है …..
एक बाल है लम्बा सा , तुम्हारा ....
इस रुमाल में लिपटा हुआ ...
याद है , ये मैंने मेरी छाती पर पाया था ,उस दिन;
जिस दिन ,हमने जिस्म की आग से खुद को जलाया था !
तुम कह रही थी ,तुम मेरी ही रहोंगी ...
तुम कितनी झूठी थी !
और तेरे ख़त है ....
और मेरे ख़त भी , जो मैंने तुम्हे लिखे थे
और तुमने मुझे लौटा दिए थे...
ये कहकर कि ..
ये मेरी अमानत है ,किसी अगले जनम ,
मैं तेरे संग बाचुंगी !!
सबसे अंत में तेरी एक तस्वीर है ,
जिसके पीछे तुमने
मेरा नाम लिखा है
और लिखा है कि, तुम्हारे लिए !
सिर्फ तस्वीर ही बची रह गयी है ..
तुम नहीं .....
और भी बहुत कुछ है ..
जो किसी और को दिखाई नहीं देते है ...
तेरी कसमे और तेरे वादे..
तेरी और सिर्फ तेरी ही बातें ;
तेरी ठहरी हुई साँसे..
तेरा उदास मन ....
तेरी बिदाई ......................
बस हर तरफ सिर्फ तू ही तू है ....
और कहीं कहीं शायद मैं भी हूँ ...
तेरी यादों में खोया हुआ ...!
मैं क्या करूँ ..
अक्सर अपने कमरे में
ये संदूक खोल लेता हूँ , तेरी चीजो को छूता हूँ
और बहुत देर तक रोता हूँ !
कौन कहता है कि ;
यादे पूरानी होती है ..!!!
विजय जी ,
ReplyDeleteसमझ नहीं आ रहा है के किन शब्दों में आपका शुक्रिया अदा करून,,,
जिस आपाधापी और मारा मारी के युग में लोग खुद के बारे में सोच भी नहीं पाते आपने मेरे बारे में कविता ही
लिख दी अपना अमूल्य
समय निकाल कर,,ये शायद मेरा पहला कमेंट हो,,,एक कमेंट और भी दूंगा,,,
पहले इस कविता में से अपने वजूद को सही से तलाश लू,,,,,,,,,,,,,
आपका दोबारा से धन्यवाद,,,,
Aisa yaadon ka mausam chala
ReplyDeleteBhoolta hi nahin Dil mera...Bas yaadein reh jaati hain Kuchh chhoti
Chhoti Baatein reh jaati hain...
एक बाल है लम्बा सा , तुम्हारा ....
ReplyDeleteइस रुमाल में लिपटा हुआ ...
याद है , ये मैंने मेरी छाती पर पाया था ,उस दिन;
जिस दिन ,हमने जिस्म की आग से खुद को जलाया था !
माफ़ी चाहूंगा विजय जी,
बस ऐसा कोई पल मेरी जिंदगी में कभी नहीं आया,,,,,,
या तो शायद इन लाइनों में अपने किसी और को जोड़ लिया है,,
ये मेरे लिए थोडा सा असुव्ज्धाजनक है,,,,क्यूंकि मैंने इसे अपने जीवन में कभी भी नहीं आने दिया,,,, औरों के प्रेम में और मनु के प्रेम में शायद यही फर्क है,,,
शायद इसी वजह सेप्रेम शब्द तन को नहीं भीतर मन को छूता है,,,
कृपया इसे गलत ना समझें,,,,
आपका शुक्रिया,,,,
कविता बेहद खूबसूरत बन पड़ी है,,,,
manu ji ,
ReplyDeleteany poetry is a collection of thoughts . thoughts ka amplification kisi bhi had tak ja sakta hai ..ye kavita prem aur virah se bhari hui hai .. isme wo saare elements ko add kiya gaya hai ,jo ki prem me shamil hoten hai ..
kavita maine aapko dedicate ki hai .. aapke jeevan par nahi likhi hai ... ye ek general premkatha hai ....
aap ise personalised na karen..
WAAH VIJAY JI KAMAAL KAR DIYA AAPNE TO MANU JI PE VISHESH YE KAVITA TO KHUB RAHI HAR LAFJ JAISE TARAS KAR LIKHI GAI HO... WESE MANU JI BHI EK TARASI HUI CHIJ HI HAI BAHOT HI SUNDAR BHAAV AUR UTNE HI KHUBSURATI SE PRASTUTI KE SAATH PESH KIYA HAI AAPNE IS KAVITA KO KHAS KAR YE LINE AKSAR UN CHUDIYON ME MAIN APNI THAHARI ZINDAGI DEKHTA HUN ...JHAKJHOR KE RAKH DIYA ... KAMAAL KE SHABDON KA SRIJAN HAI... DHERO BADHAAEE SAHIB.. AISE HI BANE RAHE AUR LIKHTE RAHE...
ReplyDeleteARSH
apki kavita ke sath sath apka manuji ka aur arsh ji ka vartalaap bhi bahut achha laga
ReplyDeletesunder marmik bhav bahut badhai
ReplyDeleteoh,,,,,,,!!!!!
ReplyDeleteasal mein main padhte padhte kahin kho gayaa thaa ,,,,
mujhe waastaw mein apni hi lagne lagi thi,,,isiliye man mein ye waham aa gayaa thaa,,,
सच प्यार के हर रुप को आप बहुत ही सुन्दर शब्दों से बयान कर देते है। लगता है आप प्यार को बहुत गहराई से महसूस करते है। और आज तो सच कमाल कर दिया "यादें" लिख कर। प्यार की यादें हर किसी की जिदंग़ी में होती है। और आप उन यादों को खूबसूरत शब्दों से सजा देते है। अद्भुत है आज का लिखा। और हाँ आज स्कैच भी बेहतरीन है।
ReplyDeleteमनु जी , बस .... यही चाहिए था मुझे .. कविता ने आपके दिल को छु लिया .. मेरा लिखा सार्थक हो गया .. जब मैंने इसे लिखा था .. अंत ने बहुत उदास कर दिया था .. मेरे लिए तो हर कविता ही एक प्रसव पीढा की तरह होती है .. तब कहीं जाकर ये कविता जन्म लेती है .... और ये कविता तो बस आपके नाम है .. मोहब्बत के नाम है .. आशिकों के नाम है ...और क्या कहूँ.. एक बार फिर मैं पढ़ लूं ,मेरी ही लिखी हुई कविता .....हर बार कुछ होने लगता है मनु जी ....
ReplyDeleteमनु जी के लिए आपकी ये कविता प्यार के हर क्षण हर पडाव कोमलता विश्वास दुःख से परिपूर्ण है .....भावनाए जैसे बिना रुके बहती जा ही है.....
ReplyDeleteRegards
लौटाए हुए प्रेम खत
ReplyDeleteलोटा भर रहे होंगे
उन्हें कहां उलीचा
संदूक में सिर्फ
यह गुनाह है
उन्हें दिल में
रखना था छिपाकर।
और हम तो समझते रहे
कि मनु नाम पुरुष का है
पर हम गलतफहमी में रहे
यह आज पता चला है।
क्या करें हम
पर तब आप क्या करेंगे
जब आपको पता चलेगा
कि हम पुरुष नहीं
हम भी एक महिला हैं।
फिर तुम्हारी दी हुई सात चूडियाँ है ;
ReplyDeleteयाद है तुम्हे ,
इन्हें देते वक़्त ,तुमने कहा था
ये मेरे सात फेरे है ,
जो मैं तेरे संग अगले जनम लूंगी ,
विजय जी
बहुत ही भावनात्मक, सुन्दर एह्साह से भरी, कोमल, दिल के करीब से गुज़र गयी आपकी कविता, भीनी भीनी खुशबू की महक आती है इस के हर छंद से
हा,,,,हा,,,हा,,,हा,,,,
ReplyDeleteपत्नी ने तो बेलन ही ढूँढना शुरू कर दिया था , कविता पढ़कर,,,फिर हमने जब अपना सफाई वाला कमेंट और आपकी टिपण्णी दिखाई तब कही जाकर श्रीमती जी शांत हुई,,,
ये होता है कविता लिखना के इंसान हकीकत में और कविता में फर्क ही ना महसूस कर सके,,,बस उसमें खो जाए,,,और उसी दुनिया में पहुँच जाए,,
इस से बेहतर शब्द और नहीं हैं मेरे पास बयान करने के लिए,,,बाकी अविनाश जी ने भी कितनी तारीफ़ लिखी है कविता की तो कम से कम है ही,,,( हमारी तारीफ़ है या नहीं पता नहीं ),,
चलिए एक शे'र कह दूं,,,,,
निगाहों से नहीं होता जुदा वो सादा पैराहन,
हरेक पल हर घडी बल खाता दामन पास होता है,
ये अहले दिल की महफ़िल है कभी वीरां नहीं होती,
के जिस दम तू नहीं होता, तेरा अहसास होता है
vijay ji,
ReplyDeleteये अहले दिल की महफ़िल है कभी वीरां नहीं होती,
के जिस दम तू नहीं होता, तेरा अहसास होता है
manu ji se sher udhar le liya hai kyonki jitne comments aaye hain un sabako mila ke bhi aapke ahsas ki gaharai ko nahi paya ja sakata sachmuh yaden kabhi purani nahi hotiaur na hi perm hi kabhi basi hota hai is abhivyakati ke liye badhai
वाह बहुत सुन्दर लिखा है।
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव है आपकी इस रचना के ...प्रेम का रूप अच्छा लगा ..कई बार भाव यूँ ही कविता के रूप में ख्याल के रूप में ढल जाते हैं और सुन्दर रचना का रूप दे जाते हैं ..अच्छी लगी आपकी यह रचना
ReplyDeleteविरह वेदना को बहुत अच्छे शब्द दिए हैं आपने...किसी की बेवफाई को कोसा भी है...लेकिन बेवफाई का कारण नहीं बताया... एक शेर है:
ReplyDeleteकुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी
यूँ कोई बेवफा नहीं होता
गुलज़ार साहेब का मशहूर गीत..."मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है...." याद आ गया...
नीरज
बेहतरीन रचना लिखी है आपने
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
ये अहले दिल की महफ़िल है कभी वीरां नहीं होती,
ReplyDeleteके जिस दम तू नहीं होता, तेरा अहसास होता है
ab iss se zyada khoobsurat comment
aur kayaa karooN iss kavita ke liye
aapke be-baak lehje ko aur uss par ki gayi tippaniyoN ko bhi salaam karta hooN.
---MUFLIS---
yaadein yaadein hoti hain...............unhein shabdon mein achcha bandha hai.
ReplyDeleteWah kya khoob likha hai apne,
ReplyDeleteHamesha ki tarah.....
apke "Purane sandook" ko padhkar mujhe apni "Purani Kavita" yaad aa gayi....
Kitna accha lagat hai jab milta hai,
Is itni badi si duniya main ek sa hi sochne wala....
...yakeen nahi hota na?
Khudh hi dekh lijiye:
http://darpansah.blogspot.com/2009/01/blog-post_7293.html
Padh ke batana kya apko bhi yahi laga?
waise manta hoon apsa utkrisht lehja nahi hai meri kavita main Par soch dekhkar hatprabh hoon !!
मेरी संदूक से चलकर तेरी संदूक तक आई
ReplyDeleteहमारी पाक उल्फत थी, यहाँ ठहरी जो रुसवाई.....
प्रिय दर्पण,
ReplyDeleteअभी कुछ देर पहले ही मुफलिस जी से बात हो रही थी .. उन्होंने आपकी बड़ी तारीफ की और कहा की ऐसी ही एक कविता दर्पण ने लिखा है उसे जरुर पढना ; वो कविता बहुत अच्छी है . मैं actually tour पर जा रहा था.. और packing कर रहा था . Feb - March के महीने बड़े ही व्यस्त होतें है .. मैं सोच ही रहा था की कल पढू या आज , की आपका comment आ गया .
मैंने आपकी कविता पढ़ी , और वाकई ये बहुत अच्छी है .. मैंने तो सिर्फ प्रेम पर composition किया है , पर आपने तो पूरे जीवन चरित्र को compose किया है . वाह भाई वाह . मान गए उस्ताद, मेरा सलाम कबूल करें अपने लेखन के लिए ......मैं तो कुछ भी नहीं आपके लेखन के सामने ...
मैं ये कविता शायद 17 march को लिखी थी कलकत्ता में ..वहां मेरे होटल के जीने के नीचे एक संदूक था.. उसे देखकर ये लिखा था ..मनु जी को सोचकर इसे compose किया था .[ in fact कविता में मैं भी कहीं छुपा हुआ हूँ ] और उन्हें dedicate किया है .. अभी recently मैंने शायद पूजा जी के ब्लॉग पर भी इसी तरह की कविता पढ़ी थी .
हर तरफ पुरानी यादो के दिए जल रहे है !!!!!
लेकिन ये भी एक सुखद बात है की एक ही तरह का विचार और सोच अलग अलग कवी को कुछ लिखने की प्रेरणा दे गए है .. लेकिन आपकी कविता तो पूरा जीवन चित्र को प्रस्तुत करती है .. मेरी दिल से बधाई स्वीकार करें..
मैं तो अभी नया नया कवी बना हूँ .. आप जितना अच्छा तो लिख नहीं पाता हूँ .. फिर भी कोशिश जारी है .. की emotions को शब्दों का जामा पहनाया जाएं.. देखते है ..ये सफ़र कहाँ तक चलता है.....आप सबका आशीर्वाद रहे ...बस यही प्रार्थना है ....
बहुत सुंदर कविता, विजय जी, भावों और अनुभूति को बहुत ही सुंदर शब्दों का रूप दिया है
ReplyDeleteबहुत ही उन्दा लिखा है आपने !
ReplyDeletebhai
ReplyDeleteab tak padhi aapki kavitaon me mujhe yah sabse achchi lagi.
badhai
Awesome
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