Thursday, January 22, 2009

मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला


दोस्तों , एक सूफियाना कलाम लिखा है . बड़े दिल से लिखा है . उम्मीद है की आप इसे हमेशा की तरह पसंद करेंगे......किस्सा कुछ ऐसा है कि ; मैंने पिछले शनिवार की रात " रूहानियत" के द्वारा आयोजित एक सूफी कार्यक्रम देखने गया था.. बस सूफी का कुछ रंग चढ़ गया , फिर मेरे दोस्त श्री मुफलिस जी ने भी मुझसे कहा कि इस बार सूफियाना कलाम लिखा जाए .....और फिर हमेशा की तरह , खुदा ने ये नज़्म दे दी ... मैंने उसका शुक्रिया अदा किया और अब आपकी नज़र में , ये पेशेखिदमत है .. ..आपका प्यार दीजियेगा इस कविता को ......

मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला

मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला

जब हर कोई मेरा साथ छोड़ दे ,
दुनिया के भीड़ में तन्हा छोड़ दे
तब ज़िन्दगी की तन्हाइयों में
एक तेरा ही तो साया ;
मेरे साथ होता है मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला

मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला

प्रीत ; अब मुझे किसी से न रही
कोई अपना ,कोई पराया न रहा
हर सुबह ,हर शाम
बस एक तेरा ही नाम
अब मेरे होठों पर है मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला

मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला

मेरी दुनिया में ,अब मेरा मन नही लगता
यहाँ की बातों में कोई दिल नही बसता
सुना है तेरी दुनिया में बड़े जादू होतें है
तेरी दुनिया में चाहत की नदिया बहती है
मुझे भी अपनी दुनिया में बुला ले ,मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला

मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला

मुझे अब ; किसी से कोई शिकवा नही ,
अपना - पराया , सब कुछ छोड़ यही ;
व्यथित हृदय के साथ , तेरे दर पर आया हूँ ,
दोनों हाथों की झोली फैलाये हुए हूँ
मेरी झोली अपने प्यार से भर दे मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला

मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला !
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला !!

मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला !!!

39 comments:

  1. बहुत बढ़िया लगी आपकी यह सूफी रचना विजय जी

    प्रीत ; अब मुझे किसी से न रही
    कोई अपना ,कोई पराया न रहा
    हर सुबह ,हर शाम
    बस एक तेरा ही नाम
    अब मेरे होठों पर है मेरे मौला
    मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला

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  2. बहुत अच्छा लिखा है क्यों कि दिल की भावना है

    ---आपका हार्दिक स्वागत है
    चाँद, बादल और शाम

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  3. jab man kahin na lage aur uske rang mein rang jayenge to hamara jeevan wahin safal ho jayega..........khuda se ki gayi prarthna ka har lafz yahi kah raha hai.........prem rang hota hi aisa hai jab chadhta hai to uske rang mein doob jata hai insan phir do nhi rahte , sab ek rang ho jata hai.khuda ke prem ki masti mein doobne wale ko phir kisi aur rang ki jaroorat nhi rahti...........bahut badhiya

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  4. एक नया अदांज, एक नया अहसास।
    जब हर कोई मेरा साथ छोड़ दे ,
    दुनिया के भीड़ में तन्हा छोड़ दे
    तब ज़िन्दगी की तन्हाइयों में
    एक तेरा ही तो साया ;
    मेरे साथ होता है मेरे मौला
    मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला

    अद्भुत लिखा है जी। वाह वाह ....। एक यही तो है जो पास ना होते हुए भी पास रहता है।

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  5. वाह विजय जी सूफी रचना बहुत बढिया लगी आपकी बारम्‍बार बधाई स्‍वीकार करें

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  6. जब हर कोई मेरा साथ छोड़ दे ,
    दुनिया के भीड़ में तन्हा छोड़ दे
    तब ज़िन्दगी की तन्हाइयों में
    एक तेरा ही तो साया ;
    मेरे साथ होता है मेरे मौला
    " सुंदर अभिव्यक्ति....और शायद ये पंक्तियाँ जीवन के सफर का सच भी बयाँ करती है...."एक तेरा ही तो साया है..."

    Regards

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  7. विजय जी क्या बात लिखी है आपने पुरी तरह से संगीतमय कविता लिखा है आपने बेहद उम्दा गुनगुनाने का मन कर रहा है..

    ढेरो बधाई आपको
    अर्श

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  8. अंत में सभी को उसके रंग में ही रंगना है विजयजी
    सुंदर कलाम

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  9. नितांत सुन्दर रचना............
    सचमुच एक उसी का तो सहारा है..........

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  10. vijay ji,kamaal likha hai...
    IRSHAD!
    ALOK SINGH "SAHIL"

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  11. sundar bhaav........
    baakee duniya ka rang kaanchaa,
    ek uska hi rang hai saancha.

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  12. नमस्कार विजय जी, वैसे तो इसके पहले भी आपके ब्लॉग पर आया था लेकिन टिप्पणी पहली बार ही है और इसका कारण आपकी यह रचना है । भई वाह, मजा आ गया सूफियाने कलाम को पढ़कर....

    मुझे अब ; किसी से कोई शिकवा नही ,
    अपना - पराया , सब कुछ छोड़ यही ;
    व्यतीत ह्रदय के साथ , तेरे दर पर आया हूँ ,
    दोनों हाथों की झोली फैलाये हुए हूँ
    मेरी झोली अपने प्यार से भर दे मेरे मौला
    मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला

    हृदय के स्थान पर ह्रदय हो गया है। अस्तु, आगे और भी मोतियों के दर्शन होंगे, ऐसी आशा के साथ,

    मणि दिवाकर.

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  13. har panktiyon me ek marm hai,
    gahre ehsaas hain,
    jivan ka saargarbhit satya hai.......
    maulaa hi sabkuch hai

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  14. वाह जी वाह क्या खूब लिखा है। मज़ा आ गया ---ईश्वर आप की कलम में ऐसे ही तेज़ बरकरार रखे।

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  15. वाकई सूफिअना कलाम है आनंद आगया पढ़ कर ,मेरी बधाइयाँ ,धन्यवाद ,स्नेह .
    सुंदर ब्लॉग भी ,लेखन भी /
    डॉ. भूपेन्द्र रेवा म.प

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  16. वाकई सूफिअना कलाम है आनंद आगया पढ़ कर ,मेरी बधाइयाँ ,धन्यवाद ,स्नेह .
    सुंदर ब्लॉग भी ,लेखन भी /
    डॉ. भूपेन्द्र रेवा म.प

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  17. Respected Vijaya Ji,
    Bahut achchha likha hai apne ye soofiyana kalam.badhai.

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  18. विजय साहब ये सूफ़ियाना क़लाम निस्बत है बस ज़रा अल्फ़ाज़ उर्दुआना और हो जाएँ तो क्या कहना। आपने बहुत ख़ूब कोशिश की और अल्ला तआला आपको उनकी मोहब्बत बख़्श दे। क्या कहना ! अहा!

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  19. bahut khoob shayad urdu ke alfaazon ka istemaal jyada hota to aur maza aata
    daad kabool karein

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  20. mujhe ab kisi se koi shikva nhi
    apna praya sb kuchh chhor yhi
    vyathit hriday ke sath tere dr pr
    aaya hooN, dono hath jholi phailaye hooN.....

    waah waah !!
    ye hua na rang !!
    apne mitr Vijay ko iss sufiaana
    rang mei parh kr mn dravit ho utha
    sach poochho to aaj alfaaz ki kami
    mehsoos ho rahi hai...
    prem, viyog, anuraag, upaasna,
    prarthna...in sb ka bahot hi sundar mel aur sangam jb mn ki gehraaii se upajtaa hai to iss tarah ki nayaab rachna ka janam hota hai.....
    jyoN jyoN parhte jao mn chaitanya sa hota jata hai...ek dhooni.si
    mehsoos hoti hai...
    bahot bahot bahot bahot........
    badhaaaaaeeeeeee .
    ---MUFLIS---

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  21. wah wah, bahut khoob janab
    bahut hi shaandaar shabd rachna

    regards
    Manuj Mehta

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  22. main bhi to tere rang men rangne laga..o mere maula....kya nasha mujhpe chadhne laga...o mere maula...!!satpathi jee ko dhanyvaad rab ji kee yaad dilaane liye........!!

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  23. आपकी विजय निश्चित है दिख रही
    सूफी गीतों की सुरक्षित फी कितनी
    या दिल लगाना खुदा से ताजिंदगी
    है इसका मूल्‍य मेरे तेरे सबके मौला
    बहा सबके दिलों में प्‍यार का गोला

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  24. सुभान अल्लाह विजय जी...बहुत खूब...दिल की गहराईयों से लिखा सूफी कलाम है ये आपका...बधाई...हाँ एक जगह आपने व्यातीत लिखा है जबकि सही शब्द व्यथित होना चाहिए...व्यथित याने दुखी...आहत...
    एक अच्छा इंसान ही अच्छा कलाम लिख सकता है ...आप ने सिद्ध कर दिया.
    नीरज

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  25. मौला आपकी दुआ कबूल करे......!!

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  26. वाह विजय जी,
    ये आज आपको नए रंग में रंगा देख कर दिल बाग़ बाग़ हो गया..
    मगर अपने पुराने अंदाज़ में भी लौटना उस का भी अपना ही मजा है.......

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  27. प्रीत ; अब मुझे किसी से न रही
    कोई अपना ,कोई पराया न रहा
    हर सुबह ,हर शाम
    बस एक तेरा ही नाम
    अब मेरे होठों पर है मेरे मौला
    मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला

    -आपकी यह सूफी रचना बहुत बढिया लगी

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  28. बहुत खुबसूरत है...
    आपका मौला....

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  29. सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!
    -----------------------------------
    60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!

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  30. प्रिय बन्धु ,यदि आप आदेशित न करते तो एक बहुत बडे लाभ से बंचित रह जाता यह मेरा सौभाग्य था कि आज मैंने अपना ईमेल खता चेक किया /
    मीरा ने भी श्याम से अपने ही रंग में रंग दे की प्रार्थना की /अन्य भक्तो ने भी कमोबेश ऐसी ही कामना करते हुए प्रार्थनाए , कवितायें लिखी है /सांसारिक लोग जब साथ छोड़ देते हैं तो एक मात्र सहारा उसी पाक परवरदिगार का ही रहता है /सांसारिक लोगो के वारे में तो ये कि ""सुख के सब साथी दुःख में न कोय "दुःख और तन्हाई में एकमात्र उसी का सहारा रहता है /जब उससे लगन लग जाती है तो किसी से भी प्रीत नही रहती ""मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे ,जैसे उड़ जहाज को पंछी फिर जहाज पे आवे ,जेहि मधुकर अम्बुज रस चाख्यो ,क्यों करील फल खावे "आपने अत्यधिक सुंदर रचना लिखी है

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  31. बहुत सुंदर रचना लगी, बेहतरीन..बहुत अच्छी रचना..

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  32. वाह विजय जी,
    एक बढ़िया कलाम।

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  33. पहली बार आपकी कविता का रसास्वादन हुआ , बहुत अच्छा लगा .
    आपकी कलम का सूफी अंदाज़ बहुत भाया . नई कविताओं के इंतज़ार के साथ बहुत बधाई.
    दीपक कुमार भानरे
    deep-007.blogspot.com

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  34. दिल तक की अनुभूति

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