बहुत देर से कोशिश कर रहा हूँ कि ,
तुझे भुला सकूँ,
लेकिन तुम निकल आती हो बाहर मेरे किताबो के पन्नो से
और निकल आती हो अक्सर मेरे बिस्तर से भी ;
और देख रहा हूँ कि भगवान की मूर्ती में भी तुम हो.
थक कर चारो ओर निगाह घूमाता हूँ ;
तो देखता हूँ तुम्हे मेरी दीवारों पर टंगे हुए
और देखता हूँ ,
मेरे ख्यालो के साथ साथ जिस्म पर भी तुम्हारा अक्स है !
थक कर अब बैठ गया हूँ मैं !
तुम्हे भुलाना कुछ मुश्किल हो रहा है जानां;
तुम हो मेरी तमाम यादो में .
तुम हो उन सारे सडको पर जिस पर हम साथ साथ चले
और हो उन कमरों में भी जहाँ हमने साथ साथ सांस ली थी
उन सडको को , उन कमरों को ,
और उन शहरो की परछाईयों को देखता हूँ मैं ;
अपने वजूद में हमेशा के लिए समाये हुए....
तुम न ज़िन्दगी में हो और न ही ज़िन्दगी से बाहर हो
मैं सोचता हों तुम्हे कैसे भूलू....
हर दिन बस ;
कुछ ऐसे ही काट लेता हूँ
तुम्हे भूलने की कोशिश करना
और इसी बहाने तुम्हे और याद करना ..
उम्र के कटती हुई तारीखों में ;
कुछ इसी तरह तुम्हे कुछ देर और याद कर लेता हूँ जानां....!!!