कुछ सालो का फासला है ,
मेरी और तुम्हारी उम्र में ;
लेकिन , सच तो ये है कि ;
मेरे ह्रदय के धड़कन की उम्र वही है ;
जो तुम्हारी मुस्कराहट की है ,
जो तुम्हारी आँखों में ठहरी चमक की है ,
जो तुम्हारे आगोश की मुक्तता की है ,
जो तुम्हारे बालो के बिखराव की है ;
[ तुम्हारा बालो का तुम्हारे चेहरे पर बिखरना ,मुझे बहुत लुभाता है ],
और ऐसी ही कई सारी बाते, जहाँ आकर तुम्हारी उम्र रुक जाती है ,
सच कहता हूँ , कि मेरी उम्र भी वही हो जाती है .
और फिर अक्सर ये फासले ढह जाते है ;
जब तुम अपने चेहरे को मेरे चहरे के करीब ले आती हो
और मैं तुम्हे अपनी बांहों में समेटता हूँ ,
और तुम्हारे होंठ
मुझसे कहते है कि
हम अभी तो मिले है
और उम्र और ज़िन्दगी के बीच खड़े है
इस पुल पर सिर्फ मैं हूँ और तुम हो ..
और उम्र और ज़िन्दगी के बीच खड़े है
इस पुल पर सिर्फ मैं हूँ और तुम हो ..
फिर सारे फासले बादलो में बह जाते है ..
और रह जाते है ;
सिर्फ मैं और तुम और हमारा निश्चल प्रेम !!!!
इस पुल पर सिर्फ मैं हूँ और तुम हो ..
ReplyDeleteफिर सारे फासले बादलो में बह जाते है ..और रह जाते है ;सिर्फ मैं और तुम और हमारा निश्चल प्रेम !!!!
बेहतरीन..बहुत सुन्दर भावपूर्ण शब्द चित्र..
बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने
ReplyDeleteजहाँ दिल मिल जाते हैं वहाँ फ़ासले रहते ही कहाँ हैं……………वहाँ तो बिना कहे ही एक के मन की बात दूजे तक पहुँच जाती है।
ReplyDeleteये अल्फ़ाज़ बेहद अच्छे लगे………
मेरे ह्रदय के धड़कन की उम्र वही है ;जो तुम्हारी मुस्कराहट की है
एक अलग ख्याल की कविता के लिये बधाई।
बेहद खूबसूरत अहसास...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति..बधाई..
ehsaaso se bhari rachna...very nice...
ReplyDeleteप्यार के पलों को
ReplyDeleteअपनी ही तरह से
सुन्दर सा परिभाषित कर दिया आपने ...
वाह !!
Aapne har baar kee tarah,is baar bhee maun kar diya!
ReplyDeleteawesome...really touches my heart...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजो वस्ल-ए-यार है लिखा तो होके रहेगा
ReplyDeleteउम्रों के फासले कभी क्या रोक सकेंगे
रूहों का वजूद तूफाँ से नहीं मिटता
वो मेहरबां,तो आंधियों मे चराग जलेंगे
Umra ka bandhan shareer k lie hota h dilo k lie nahi... pyari kavita :)
ReplyDeleteधुंध से परे स्पष्ट दीखता प्रेम का आलोक।
ReplyDeleteप्रेम केवल समर्पण देखता है...विजय जी...जहां देह अद्रश्य हो जाती है और रह जाता है केवल प्रेम......
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना के लियें ...
आपको बधाई...
in anubhutiyon me sab kuchh thahar sa jaata hai....bas
ReplyDeletejaha itana pyar ho vaha koi bhi fasla ho kaise sakta hai?? khoobsurat rachana..
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