कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई;
सपनो की आंखो से देखा तो,
तुम थी .....!!!
मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,
उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था,
मैंने तुम्हारे लिये ;
एक उम्र भर के लिये ...!
आज कही खो गई थी,
वक्त के धूल भरे रास्तों में ;
शायद उन्ही रास्तों में ;
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो .......!!
लेकिन ;
क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं ;
कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते........!!!
bhut khubsurat panktiya...
ReplyDeleteप्रेम में भी आँखे भींग जाती है.सुन्दर रचना
ReplyDeleteKaun jaane k apna samjha ya paraya>?
ReplyDeleteअंतिम पंक्ति तो मन को चोट कर रही है.... अच्छी रचना.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteparayon ke ghar bheegi aankhon se nahi jate...kya khoob...
ReplyDeleteजब अपना हृदय ही पराया हो जाये तब कहाँ जाये कोई?
ReplyDeleteसही कहा आपने और अपनी बात कहने के इस अंदाज़ को सलाम ......
ReplyDeleteअक्षय-मन
BHAAVPOORN KAVITA KE LIYE BADHAAEE
ReplyDeleteAUR SHUBH KAMNA .
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बेहद खूबसूरत कविता।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता धन्यवाद
ReplyDeleteक्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं ;
ReplyDeleteकि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते........!!!
क्या कहने इन पंक्तियों के ...बहुत गहरे भाव .....आपका आभार
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteपरायों के घर भीगी आँखों से नहीं जाते.
क्या खूब कहा है. बधाई.
परायों के घर भीगी आँखों से नहीं जाते ...
ReplyDeleteबहुत गहरी बात ...
क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं ;
ReplyDeleteकि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते........!!!....
very nice..touching
बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteलेकिन ;
ReplyDeleteक्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं ;
कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते........!!!
दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ..बहुत लाज़वाब रचना..
अंतिम पंक्ति तो मन को चोट कर रही है.... अच्छी रचना.....
ReplyDeleteक्या खूब कहा है, परायों के घर भीगी आँखों से नहीं जाते|बहुत सुन्दर रचना|
ReplyDeletebahut bhavpoorn rachna . badhai .
ReplyDeletewah kya baat hai.
ReplyDeleteसुंदर कविता
ReplyDeletebahut sundar vijay ..antim panktiyan lajwab...
ReplyDeleteपरायों के घे
ReplyDeleteभीगी आँखों से नहीं जाते....... !
प्रेम भाव में भीगे हुए
बहुत ही मन भावन शब्दों का काव्य रूप
हर पढने वाले को
सम्मोहित कर रहा है ...
नज़्म में विजय सप्प्त्ती का जादू खुद बोल रहा है .
बधाई .
बहुत सुंदर सप्पती जी । पर मांगते तो अपनों से ही है न ।
ReplyDeleteआँखों को नाम कर देने वाली अद्भुत पंक्तियाँ हैं.
ReplyDeleteपरायों के घर ...
ReplyDeleteबेहद संवेदनशील रचना, एक भावुक कविह्रदय द्वारा ...
शुभकामनायें !
bahut sunder rachna ....
ReplyDeleteकोमल भावों की बहुत खूबसूरत कविता...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई.
क्या कहूँ कुछ समझ नही आ रहा……………शब्दो ने दामन छोड दिया आज्…………कभी कभी ऐसा होता है कुछ पढकर कि दिल मे उतरता है मगर शब्दो मे बयाँ नही हो पाता और आज ऐसा ही हुआ है।
ReplyDeleteDear Satpatti Ji
ReplyDeleteaapki kavita padkar man ko bahut shukun mila hai