अक्सर सोचता हूँ की
उस दिन ही मैंने पहली बार कोई भाषा सीखी थी
जब मैंने तुमसे कहा कि मैंने तुमसे प्यार करता हूँ !
इन तीन शब्दों ने दी ;
एक नयी आजादी से भरी भाषा का जन्म
जिसमे प्रेम से भरी मुक्तता और निकटता का ही स्थान था
और था स्थान उन उस मौन का जिसमे ;
प्रेम से भरे शब्द मुखर हो उठते थे !
और था स्थान उन उस मौन का जिसमे ;
प्रेम से भरे शब्द मुखर हो उठते थे !
इस अनोखी भाषा ने ;
बंधन सारे तोड़ दिए जीवन की गतिशीलता के ,
और दिया एक सहजता का अनुभव .
जिसमे सिर्फ तुम और मैं थे
और जीवन का स्पंदन उभर कर आता था
तेरी आँखों में और मेरे होंठो पर !
तेरी आँखों में और मेरे होंठो पर !
इस भाषा ने हमें दिया , एक नए संसार को रचने का मौका ,
जहाँ तुम और मैं होते थे और हर बार कोई एक नयी जगह .
मैं ; अक्सर तुमसे बाते करते हुए तुम्हे ले जाता था
एक ऐसे बंदरगाह पर
एक ऐसे बंदरगाह पर
जहाँ जहाजों का शोर होता था
लेकिन हमें सुनाई नहीं देता था ;
लेकिन हमें सुनाई नहीं देता था ;
क्योंकि उस वक़्त हम एक दुसरे की आँखों में देख रहे होते थे
और तुम्हे ले जाता था ऐसे भुतहा महल ,
जहाँ ज़रा सी आहट हमें डराने के बदले में
और करीब ले आती थी;
जहाँ ज़रा सी आहट हमें डराने के बदले में
और करीब ले आती थी;
क्योंकि हम हर वक़्त ही एक दुसरे के करीब रहना चाहते थे
और ले जाता था ऐसी जगह ;
जो कभी बनी ही नहीं इस दुनिया में
क्योंकि ऐसी जगह में मन्नते बसती थी
और खुदा की मेहर थी वहां आबाद
और थे कुछ दरवेश मोहब्बत के जो की
हमारी ही बोली बोला करते थे
मोहब्बत की भाषा …!!!
मोहब्बत की भाषा ;
सच बड़ी अनोखी होती है ,
बड़ी देर हुई जानां ;
तेरी आवाज़ में उस भाषा को सुने
एक बार फिर वापस आजा तो
दो बोल बोल लूं तुझसे !!!!
बड़ी देर हुई जानां ;तेरी आवाज़ में उस भाषा को सुने एक बार फिर वापस आजा तो दो बोल बोल लूं तुझसे !!!!
ReplyDeleteमोहब्बत लफ़्ज़ों की कब मोहताज़ हुयी है
ये नगमा तो आंखों से बयाँ होता है
जब दिलबर दूर होकर भी पास होता है
सिर्फ़ इतना ही कहूँगी इस रचना के बारे मे कि
मोहब्बत की भाषा सिर्फ़ मोहब्बत ही समझती है
लफ़्ज़ों मे मोहब्बत कब बंधती है
प्रेम भाषा में कोई बाधा न हो।
ReplyDeletemohabbat ki bhasha ko mukhar karti rachana ek alag jahan me le jaati hai...achchha lag raha hai....bahut achchha....
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (30.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
इन्हीं तारों में से एक तुम भी तो हो
ReplyDeleteपर ...
मुझे उदास देख
क्या कभी खुश हो सकते थे तुम?bhut pyari hai ye bhasha... bhut sunder rachna...
विजय जी पता नहीं क्यों ये 'जानां' शब्द से अब चिढ सी होने लगी है ....
ReplyDeleteआपकी कविताओं में जानां , दरवेश जैसे शब्दों की अधिकता होती है ....
अच्छी नज़्म है ...
पर भाषा की त्रुटियों ने रोचकता जरा कम कर दी ....
kavita shaandaar hai
ReplyDeletepahli bar aapki kavita padh rahi hoon
ReplyDeletebhaavnaaon ki achchi abhivyakti hai.ek khoobsurat prastuti.
हरकीरात जी ,
ReplyDelete"जानां" मेरे कविताओ की नायिका है , आपको उनसे चिदने की कोई जरुरत नहीं है .
जहाँ तक मुझे समझता है की "जानां" और "दरवेश" जैसे शब्दों पर किसी का भी copyright नहीं है , मुझे जहाँ लगता है की , इन और इन जैसे दुसरे सारे poetic शब्दों का प्रयोग करना चाहिए , मैं करता हूँ,
हाँ, भाषा की त्रुटियों के लिए मैं प्रयास कर रहा हूँ की ये और न हो . आपने नज़्म को पसंद किया , इसके लिए आपका धन्यवाद.
विजय