हमने कुछ बनी बनाई रस्मो को निभाया ;
और सोच लिया कि
अब तुम मेरी औरत हो और मैं तुम्हारा मर्द !!
और सोच लिया कि
अब तुम मेरी औरत हो और मैं तुम्हारा मर्द !!
लेकिन बीतते हुए समय ने जिंदगी को ;
सिर्फ टुकड़ा टुकड़ा किया .
तुमने वक्त को ज़िन्दगी के रूप में देखना चाहा
मैंने तेरी उम्र को एक जिंदगी में बसाना चाहा .
कुछ ऐसी ही सदियों से चली आ रही बातो ने ;
हमें एक दुसरे से , और दूर किया ....!!!
प्रेम और अधिपत्य ,
आज्ञा और अहंकार ,
संवाद और तर्क-वितर्क ;
इन सब वजह और बेवजह की बातो में ;
मैं और तुम सिर्फ मर्द और औरत ही बनते गये
इंसान भी न बन सके अंत में ...!!!
कुछ इसी तरह से ज़िन्दगी के दिन ,
तन्हाईयो की रातो में ढले ;
और फिर तनहा रात उदास दिन बनकर उगे .
फिर उगते हुए सूरज के साथ ,
चलते हुए चाँद के साथ ,
और टूटते हुए तारों के साथ ;
हमारी चाहते बनी और टूटती गयी
और आज हम अलग हो गये है ..
बड़ी कोशिश की जानां ;
मैंने भी और तुने भी ,
लेकिन ....
न मैं तेरा पूरा मर्द बन सका
और न तू मेरी पूरी औरत !!
खुदा भी कभी कभी अजीब से शगल किया करता है ..!!
है न जानां !!
मर्द औरत को साथ रहने के लिए स्वनिर्मित आचार सहिंता की आवश्यकता होती है, जिसे दोनो मान्यता दें और सम्मान करें।
ReplyDeleteजि़न्दगी का सच्चा विमर्श करती विचारपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई...
ReplyDeleteयही नियति कहलाती है…………मर्द और औरत एक दूसरे के पूरक होकर भी विपरीत ध्रुव सा जीवन गुजारते हैं।
ReplyDeleteक्या बात है..सारा निचोर ही है इस रचना में जीवन का...बहुत सुंदर।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
Vijay jee,kabhi-kabhi kuchh kavita kavita na rah kar ek nanga yatharth bankar manas-patal par ankit ho jata hai... aapki yah rachana aisi hi hai...bahut achchhi abhivyakti...shubhkamna...
ReplyDeleteप्रेम और अधिपत्य ,आज्ञा और अहंकार ,संवाद और तर्क-वितर्क ;इन सब वजह और बेवजह की बातो में ;मैं और तुम सिर्फ मर्द और औरत ही बनते गये इंसान भी न बन सके अंत में ...!!!....
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक सोच..मर्द और औरत जब तक अपने अहम् को भूल कर एक दूसरे में समाहित नहीं होंगे तब तक यही होता रहेगा और इंसान बनने का सपना कभी भी बिखर जायेगा..बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..आभार
marmik nishchhal abhivyakti .sharahniy
ReplyDeletecomment recd by Ms. Gita Pandit on Facebook. :
ReplyDeleteGita Pandit जितनी मिठास इस रिश्ते के बनने में होती है उससे कंही अधिक टूटन और पीड़ा इस रिश्ते के टूटने पर होती है... बहुत सुंदर शब्दों में आपने इसे उकेरा है...आभार.....ब्लॉग पर कमेन्ट नहीं हो पा रहा है..जाने क्यूँ....आप मेरे नाम से इसे कोपी पेस्ट कर दें....
बड़ी कोशिश की जानां ;
ReplyDeleteमैंने भी और तुने भी ,
लेकिन ....
न मैं तेरा पूरा मर्द बन सका
और न तू मेरी पूरी औरत !!
खुदा भी कभी कभी अजीब से शगल किया करता है ..!!
है न जानां !!
sahi likha hai aapne...hum kabhi kabhi jitna nivhane ki koshish karte ai riste utne hi uljhe hue najar ane lagte hai...kisi ki sirf aurat or kisi ka sirf mard banne se jyada acchha to ye hai ki sirf ek insaan banke unke bhabnao ko samjhe..riste itne najuk bante ja rahe hai ki nibhane se pehle ab dus baar sochna par raha hai...bahut achhi kabita...
pyar bantte rishton ko kabhi kabhi pyar nahi mil pata hai jimmedari aur halat unhe banne par majbur kar dete hain....
ReplyDeleteमैं और तुम सिर्फ मर्द और औरत ही बनते गये इंसान भी न बन सके अंत में ...
न मैं तेरा पूरा मर्द बन सका और न तू मेरी पूरी औरत !!!......
mujhe yahan bas dono batain kuch alag lagi...
baki sab bahut accha likha hai
सच्चाई कहती खूबसूरत और विचारोत्तेजक रचना
ReplyDeletegahan chintan ki bhavpoorn rachna.
ReplyDeleteपूरक होते हुए भी अधूरे क्यों...
ReplyDeleteप्रभावी रचना...बधाई..
bhut gahan cintan hai apki rachna...
ReplyDeleteमर्द और औरत के रिश्ते को
ReplyDeleteबहुत ही बारीक़ी से शब्दों का लिबास दिया है
आपकी सोच आपकी दार्शनिकता
और आपकी काव्य कुशलता
सभी कुछ स्वयं ही ज़ाहिर हो रहा है .
अभिवादन .
मंजिलों के पहले ही मोड़ खींच लेते हैं।
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