Monday, February 2, 2009
मेहर
दोस्तों, किसी भी स्त्री के लिए “तलाक” , उसकी ज़िन्दगी का सबसे भयानक शब्द है .. चाहे फिर वो कोई भी जाति या धर्म की हो ; तलाक दिए जाने के बाद स्त्री के मन की पीड़ा को मैंने इस नज़्म में उकेरने की कोशिश की है. मैंने इस कविता के लिए मुस्लिम समाज का परिवेश लिया है ... मैंने मेहर को background में लिया है .. [ मेहर = मुस्लिम धर्म में ,निकाह के वक्त , दुल्हन के साथ एक राशि दी जाती है ,जिसे मेहर कहते है और ऐसा कहा जाता है की , तलाक के वक्त ,सिर्फ़ मेहर के साथ पत्नी को वापस भेज दिया जाता है ] कविता में मैंने भावनाओं को जगह दी है; धर्म से न जोड़ते हुए सिर्फ़ स्त्री की पीड़ा को समाजियेंगा. ..उम्मीद है की आपको सदा की तरह मेरी ये नज़्म भी पसंद आएँगी ... मेरी ये नज़्म ,उन मजबूर लेकिन बहादूर महिलाओं के लिए है . मैं उन्हें सलाम करता हूँ और अपने ईश्वर से ये दुआ करता हूँ की ; प्रभु उनकी जिंदगियों के बेहतर बनाए..
मेहर
मेरे शौहर , तलाक बोल कर
आज आपने मुझे तलाक दे दिया !
अपने शौहर होने का ये धर्म भी
आज आपने पूरा कर दिया !
आज आप कह रहे हो की ,
मैंने तुम्हे तलाक दिया है ,
अपनी मेहर को लेकर चले जा....
इस घर से निकल जा....
लेकिन उन बरसो का क्या मोल है ;
जो मेरे थे, लेकिन मैंने आपके नाम कर दिए ...
उसे क्या आप इस मेहर से तोल पाओंगे ....
जो मैंने आपके साथ दिन गुजारे ,
उन दिनों में जो मोहब्बत मैंने आपसे की
उन दिनों की मोहब्बत का क्या मोल है ...
और वो जो आपके मुश्किलों में
हर पल मैं आपके साथ थी ,
उस अहसास का क्या मोल है ..
और ज़िन्दगी के हर सुख दुःख में ;
मैं आपका हमसाया बनी ,
उस सफर का क्या मोल है ...
आज आप कह रहे हो की ,
मैंने तुम्हे तलाक दिया है ,
अपनी मेहर को लेकर चले जा....
मेरी मेहर के साथ ,
मेरी जवानी ,
मेरी मोहब्बत
मेरे अहसास ,
क्या इन्हे भी लौटा सकोंगे आप ?
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
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lekin un barson kaa kya mol jo mere the------bahut hi marmik aur sunder abhivyakti hai
ReplyDeleteगुलज़ार की नज़्म..."मेरा कुछ सामन तुम्हारे पास पड़ा है...." याद आ गयी...आपने बहुत सही सवाल उठाये हैं...इनका जवाब किसी के पास नहीं है...किसी को अपना बनाना मुश्किल होता है और छोड़ना आसान...लेकिन अगर तलक देने वाले को उसकी पत्नी द्वारा उसके साथ बिताये दिन, मोहब्बत और खुशियों का एहसास होता वो ऐसा कदम ही क्यूँ उठता...हमारा एहम हमें अँधा कर देता है और हम इस तरह का पीड़ा दायक निर्णय लेकर ना केवल दूसरी बल्कि अपनी भी ज़िन्दगी बरबाद कर देते हैं...तलाक़ देने वाला और लेने वाला दोनों ही इस से पैदा हुई पीड़ा को सहते हैं...
ReplyDeleteआप ने बहुत संवेदनशील विषय पर अपनी कलम बहुत सूझ बूझ से चलाई है...आप को साधुवाद.
नीरज
मेरी मेहर के साथ ,
ReplyDeleteमेरी जवानी ,
मेरी मोहब्बत
मेरे अहसास ,
क्या इन्हे भी लौटा सकोंगे आप ?
" रिश्ते बिखरते हुए कितने दर्द और सवालों से भरे होते हैं.....एक एक शब्द यही कह रहा है....मैहर की रकम लौटा दी जायेगी....मगर जिन्दगी के उन पलो का हिसाब कैसे होगा जो साथ बीते हैं.....नही हो सकता कोई हिसाब किताब नही हो सकता....ये प्रश्न तो अनुतरित ही जायेगा ..."
Regards
kya kahun.........kahne ko kuch bacha hai kya?ek aurat ka dard jo usne ta-umra saha jisko chaha uske liye aur phir ek din talak shabd rupi tamacha uske moonh par mar diya jata hai .....us dard ke ahsaas ko wo hi samaajh sakti hai........isse bada apman aur isse bada dard shayad zindagi mein koi nhi.
ReplyDeleteus dard ko har koi mehsoos bhi to nhi kar sakta kyunki agar kar sakta to aisa zulm na karta ........ye bhavnaon ki abhivyakti aapne bahut khoob prastut ki hai.
विजय जी
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील, मार्मिक रचना, समाज के कुछ नियम ऐसे क्यूँ हैं, आज तक वो क्यूँ नही बदल सके.................शायद समय ही उसका जवाब दे सकता है
मैं आपका हमसाया बनी ,
ReplyDeleteउस सफर का क्या मोल है ...
मार्मिक अभिव्यक्ति. बहुत प्यारी कविता.
भावभीनी रचना.. इन शब्दों का मर्म इनके भुगत भोगी ही जान सकते हैं..कहने को तो शब्द हैं मगर एक तलवार हैं जो एक परिवार के टुकडे टुकडे कर देते हैं
ReplyDeleteवो सब इस नज्म के माफिक
ReplyDeleteअनमोल है, बेमोल है, बेतोल है
मत तोल उसे
जहर बस घोल दिया है
इसके साथ अमृत का
क्या जोड़ है
भाव सभी बेतोल हैं।
बहुत सुंदर रचना है .... इस पुरूष प्रधान युग में महिलाओं के साथ होनेवाली नाइंसाफी को सही चित्रित किया गया है......निश्चित तौर पर मलहलाओं के मन में यही प्रश्न उपस्थित होते होंगे।
ReplyDeleteबहुत ही संवेदन शील कविता है जो बहुत से सवाल दिल में पैदा करती है ....आपका लिखा अच्छा लगता है
ReplyDeletehmmm badha ajeeb rivaz hai
ReplyDeletehalaki hindu dharm mein bhi talak to hote hi hai
dard se guzarna hai , koi bhi rishta ho toote to dard deta hai
phir ye to samrpan hai alag hona dukh hi dega
bahut samvedansheel vishay hai
आपकी संवेदनशीलता को नमन.....बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने...
ReplyDeleteएक संवेदनशील, मार्मिक रचना लिखी है आपने। एक स्त्री के लिए तलाक शब्द कितना दर्दनाक और भयानक होता है उसे आपने शब्दों में बखूबी बयान किया है।
ReplyDeleteमेरी मेहर के साथ ,
मेरी जवानी ,
मेरी मोहब्बत
मेरे अहसास ,
क्या इन्हे भी लौटा सकोंगे आप ?
बहुत ही उम्दा लिखा है आपने।
दिल को छू गई यह कविता!
ReplyDeleteमेरी मेहर के साथ,
मेरी जवानी,
मेरी मोहब्बत
मेरे अहसास,
क्या इन्हें भी लौटा सकोगे?
विजय जी, इतनी सुंदर कविता के लिए बधाई।
BAS ITNAA HEE KAHUNGAA-KAVITA
ReplyDeleteMEIN AAYE SABHEE SAWAALON KAA
KOEE UTTAR NAHIN.AURAT AB BHEE
ASHAAY HAI BKAUL MAHAKAVI MAITHLEE
SHARAN GUPT-ABLAA JEEVAN HAYE
TUMHAAREE YAHEE KAHAANEE----
जिस पे बीते वही जाने -आपने पीडा को शब्द दे दीये
ReplyDelete- लावण्या
marmik abhivyakti.
ReplyDeletegahari soch hai.
समझ सकती हूँ ये विचार आपके मून में क्यों आया ...! चलिए आपके मध्यम से ही सही shbad मुखर तो हुए ...! पर ऐसे रिश्ते जो बोझ बन कर ढोए जायें उससे अच्छा है उन्हें अलग कर दिया जाए....!
ReplyDeleteबहुत ही संवेदन शील कविता...
ReplyDeleteमेरी मेहर के साथ.......
ReplyDeleteमेरी जवानी..
मेरी मोह्बात ..मेरे अहसास........
आखिरी लाइनों में क्या उकेरा है पीड़ा को..........
लाजवाब.............
विजय जी नमस्कार,
ReplyDeleteबहोत ही अद्भुत रचना लिखी है आपने बहोत ही शानदार है ये इतनी बढ़िया रचना कमाल का लिखा है आपने ढेरो बधाई आपको...
अर्श
jb aadarneey Neeraj ji ne aapki iss
ReplyDeleterachna ki Gulzaarji ki rachna ke sath tulnaa karte hue tippnee de di hai, to uske baad bhalaa meri kya bisaat ki koi shabd likh sakooN
baaqi sb comments bhi khud darshaate hain k rachna stareey hai.....
badhaaaaaeeeeee. . . .
---MUFLIS---
इस रचना को पहले भी पढ़ा था आज फिर पढ़ा .इस सन्दर्भ में मेरी कविता की ये पंक्तियाँ उपयुक्त हैं -हर तरफ बस प्रश्न हैं उत्तर नहीं है कोई |
ReplyDeleteसंबंधों के हर हिस्से में कुछ अनुत्तरित प्रश्न रहते हैं जिनके जवाब किसी के पास नहीं होते .
बहुत बढ़िया रचना है बधाई .
पता नहीं क्यों ये रचना दिल के बहुत करीब लगती है। न जाने कितनी बार पढ़ चुका हूँ, फिर भी बार बार पढ़ता हूँ। आज इसको पढ़ा क्योंकि रिश्ते का एक रूप पुरस्कार के रूप में दिखा। प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार जो किसी ख्यात संस्था ने दिया था और लेने वाला अपनी दिलकश दुल्हन की तरह उसे सीने से लगाए फूला नहीं समाया। उसकी नुमाइश में कोई कसर बाकी नहीं रखी। फिर कई बरसों के बाद उसके लिए वही पुरस्कार बेमतलब हो गया। उसने सम्मान राशि को मेहर की तरह मुँह पे मार कर कहा.. जाओ मेरे घर से...... लगा आपका हर शब्द यहाँ पूरी तरह से सच हो गया। बस औरत की जगह पुरस्कार दिमाग में रखकर पढ़िये, वही दृश्य नज़र आयेगा जो तलाक के बाद होता है।
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