Wednesday, February 4, 2009
मेरे लिए
एक दिन जब तुम ;
मेरे द्वार आओंगी प्रिये,
एक अजनबी सुहागन का श्रंगार लिए हुये,
जब तुम मेरे घर आओंगी प्रिये..
तब मैं वो सब कुछ तुम्हे अर्पण कर दूँगा ..
जो मैंने तुम्हारे लिए बचा कर रखा है .....
कुछ बारिश कि बूँदें ... जिसमे हम और तुम भीगें थे...
कुछ ओस की नमी .. जिसका एहसास हमारें पैरों में है...
सर्दियों की गुलाबी धुप.... जिसकी गर्मी हमारें बदन में है...
और इस सब के साथ रखा है ...
कुछ छोटी चिडिया का चहचहाना ,
कुछ सांझ की बेला की रौशनी ,
कुछ फूलों की मदमाती खुशबु ,
कुछ मन्दिर की घंटियों की खनक,
कुछ संगीत की आधी अधूरी धुनें,
कुछ सिसकती हुई सी आवाजे,
कुछ ठहरे हुए से कदम,
कुछ आंसुओं की बूंदे,
कुछ उखड़ी हुई साँसे,
कुछ अधूरे शब्द,
कुछ अहसास,
कुछ खामोशी,
कुछ दर्द !
ये सब कुछ बचाकर रखा है मैंने
सिर्फ़ तुम्हारे लिये !
मुझे पता है ,एक दिन तुम आओंगी
मेरे घर आओंगी ;
लेकिन जब तुम मेरे घर आओंगी
तो ;
एक अजनबी खामोशी के साथ आना ,
थोड़ा ,अपने जुल्फों को खुला रखना ,
अपनी आँखों में नमी रखना ,
लेकिन मेरा नाम न लेना !!!
मैं तुम्हे ये सब कुछ दे दूँगा ,प्रिये
और तुम्हे भीगी आँखों से विदा कर दूँगा
लेकिन जब तुम मेरा घर छोड़ जाओंगी
तो अपनी आत्मा को मेरे पास छोड़ जाना
किसी और जनम के लिये
किसी और प्यार के लिये
हाँ ;
शायद मेरे लिये
हाँ मेरे लिये !!!
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
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सुन्दर काव्यमन है आपका, लेकिन आज कल आप हैं कहाँ, मुलाक़ात हुए ज़माना हो गया!
ReplyDeleteचाँद, बादल और शाम
janmon ki pyas hai jo bujhkar bhi nhi bujhti .........kya khoob kaha aapne........ek khoobsoorat intzaar jahan sath hokar bhi sath nhi hain........sab kuch khokar bhi pass hain ..........har ahsaas ko sanjoya hai aapne.
ReplyDeleteadbhut...... hai aapka dard , aapka intzaar.
कुछ बारिश कि बूँदें ... जिसमे हम और तुम भीगें थे...
ReplyDeleteकुछ ओस की नमी .. जिसका एहसास हमारें पैरों में है...
सर्दियों की गुलाबी धुप.... जिसकी गर्मी हमारें बदन में है...
"" सुंदर भावो और नाजुक सी चाहतो की वादियों मे कुछ एहसास बिखेरती सुंदर रचना.."
Regards
रचना कम संरचना अधिक है
ReplyDeleteभावों में प्रवाह है, वेग है, आवेग है
लगता नहीं कि यह सच है
कल्पना है, ख्वाब अच्छा बुना है
जिस जिसने सुना है
गुमसुम सा बना है
सबकी सच्चाई है
जो आपकी कविता में
गहरे तक उतर आई है।
बहोत ही मासूमियत लिए मखमली अंदाज़ में लिखा है आपने रचना इतनी गहरे और ह्रदय स्पर्शी है बहोत ही उम्दा लिखा है ढेरो बढ़ कुबूल करे साहब....
ReplyDeleteआपका
अर्श
सुकोमल कविता।
ReplyDeleteआप तो "कोमल हृदय सम्राट" है सपत्ति जी। बधाई आपको।
कुछ बारिश कि बूँदें ... जिसमे हम और तुम भीगें थे...
ReplyDeleteकुछ ओस की नमी .. जिसका एहसास हमारें पैरों में है...
सर्दियों की गुलाबी धुप.... जिसकी गर्मी हमारें बदन में है...
प्यार के जज्बात कहना कोई आप से सिखें। कितने सुन्दर भावों में ढाला है इस रचना को। सच दिल को छू गई यह रचना। लगता है कुछ .........।
बेहद खूबसूरत कविता........बस अंत ......लगा छोड़कर जाना नही होता तो.....
ReplyDeleteबेहतरीन रचना विजय जी.............किसी की यादों में भटकती रचना .......बहूत अच्छी लगी
ReplyDeleteविजय जी...क्या कहूँ कमाल किया है आपने...दिल निकाल कर शब्दों में ढाल दिया हो जैसे.... बेहद खूबसूरत नज़्म है...मेरे पास शब्द नहीं हैं प्रशंशा के लिए...वाह...वा...
ReplyDeleteनीरज
मै आपकी कविताये कुछ समय से पढ़ रहा हूँ. भावनाओ में डूबे शब्द छू लेते है.
ReplyDeleteआज इस कविता के बारे में कुछ कहना चाहता हूँ. न जाने मुझे क्यो लगता है की यदि आप इस कविता को
..........
कुछ अधूरे शब्द,
कुछ अहसास,
कुछ खामोशी,
कुछ दर्द !
ये सब कुछ बचाकर रखा है मैंने
सिर्फ़ तुम्हारे लिये !
मुझे पता है ,
एक दिन तुम आओंगी
मेरे घर आओंगी
पर समाप्त कर देते तो कविता अधिक प्रभावशाली हो जाती. एक बार देखियेगा और बताइयेगा.
Hi Vijay,
ReplyDeleteAsusual you create magic with your words. Very beautiful, feels like staright from your heart...
Regards,
Sushil
सुकोमल एहसास लिए भावपूर्ण रचना लिखी है आपने जिस में ख्वाब ख्याल के साथ एक मीठा प्यारा सा प्रेम का बसंती एहसास भी है ..बढ़िया लिखा
ReplyDeleteकुछ छोटी चिडिया का चहचहाना ,
कुछ सांझ की बेला की रौशनी ,
कुछ फूलों की मदमाती खुशबु ,
कुछ मन्दिर की घंटियों की खनक,
कुछ संगीत की आधी अधूरी धुनें,
komaal ehsaas bahut sundar rachana badhai
ReplyDeleteमन की भावनाओं को जब ईमानदारी से बयां किया जाता है, तो एक सुंदर कविता का जन्म होता है। इस सुंदर कविता के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteलेकिन जब तुम मेरा घर छोड़ जाओंगी
ReplyDeleteतो अपनी आत्मा को मेरे पास छोड़ जाना
किसी और जनम के लिये
किसी और प्यार के लिये
आंखों को नम कर देने वाले भाव ...अत्यन्त सुंदर रचना.
यह आशिक मन मेरे अन्दर भी कहीं जीता है. थोड़ा सा रूमानी है और थोड़ा सा नादान भी है. हम और आप बिल्कुल ही अलग हैं पर ये मन तो हमारा एक जैसा ही है.
ReplyDeleteहम दोनों की भावनाएं अत्यन्त ही पवित्र और कोमल हैं.
ये पंक्तियाँ -
" लेकिन जब तुम मेरा घर छोड़ जाओंगी
तो अपनी आत्मा को मेरे पास छोड़ जाना
किसी और जनम के लिये
किसी और प्यार के लिये. "
सच में एक निश्छल और अमर प्रेम की चाह की ओर इशारा करती हैं.
कल्पना-लोक की बहुत ही सुंदर अभ्व्यक्ति,
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत ख्वाब,
और उतना ही रोचक उसका रूपांतर ......
विजय भाई ! आप इस हुनर में बहोत माहिर हैं...
काव्यशैली में पारंगत होना
तो कोई आपसे सीखे....
मेरी तरफ़ से भी बधाई स्वीकार करें . . . . .
---मुफलिस---
wah kitni meethi samarpit kavita hai
ReplyDeletepyaar aisa hi hota hai nishchal bahut achha lagta hai aapko padhna
itna ghara itna komal
सचमुच आपका सृजन मन को छू लेने वाला है। अब तक क्यों आपने इन्हें छिपाकर रखा था। इन्हें प्रकाशन के लिए भेजिए।
ReplyDeleteआपके शहर से प्रकाशित पत्रिका गोलकोण्डा दर्पण तथा मैसूर हिंदी प्रचार परिषद पत्रिका आपकी रचनाएं अवश्य ही प्रकाशित करेगी।
अखिलेश शुक्ल
http://katha-chakra.blogspot.com
शुक्र है विजय जी,
ReplyDeleteसूफियाना छोड़ कर तो वापस आए ....हमें तो टेंशन हो रही रही के ..कही जोगी बन गए तो कौन सुनायगा ये खूबसूरत कहानी.......
वापसी का धन्यवाद...विजय जी....