Thursday, February 19, 2009

एक शाम और एक दिन


एक शाम थी, जब मैं तेरे शहर आया था ;
एक शाम थी, जब मैंने तुम्हे देखा था ;
एक शाम थी, जब मैंने तुझे चाहा था !!

फिर जिंदगी की बहुत सी शामें गुजरी .....
तेरे बिना तेरी याद में ....
अक्सर तन्हाई में ....
पर दिन कभी ख़तम नही होता था !

और अब.....
आज एक शाम है ,
आज तू मेरे शहर आजा,
आज मुझे देख ले..
आज मैं मर गया हूँ….मेरे जनाजे को देख लें ;

आज मेरी आखरी शाम है
अब ये किस्सा ख़तम हुआ ..

उफ़ , कितना बड़ा दिन था जिंदगी का .....

25 comments:

  1. विजय जी,बहुत सुन्दर रचना है।सुन्दर एहसास है।बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete
  2. अच्छा लिखा है आपने

    ReplyDelete
  3. RishtoN kee maut kee kavita hai ye. Dardnaak hota hai rishtoN kee maut ka ehsaas. Physical maut se kahin adhik daraavana. Sunder rachna hai.

    Tejendra Sharma

    ReplyDelete
  4. Behad khoobsoorat rachna...kya kahun...
    Mujhe apna likha ek lekh yaad aa gaya,"The End Of the Day"...
    Par aapki kavita jitnaa sundar nahee...par shayd wahi dard liye hue....
    Qaanono ke tehat kuchh likha hai maine...zaroor padhen....ek satya ghatna..aur uspe adharit ek katha(katha abhi sampadit karni hai...mai out of stn hun)

    ReplyDelete
  5. विजय जी जीवन में आशा की कवितायें लिखा करें..उल्हास की कविता लिखा करें...चाहे जीवन में कोई आशा या उल्हास ना दिखाई दे रहा हो...ये मेरा व्यक्तिगत मत है...मुझे ग़लत ना समझें...बहुत अधिक भावुक होने से जीवन नहीं चलता भाई मेरे...

    नीरज

    ReplyDelete
  6. सटीक टिप्पणी तेजेन्द्र शर्मा जी ने की है। बजाय इसके कि 'तू मेरे लिए मर गया/मर गयी' विजय जी ने 'मैं मर गया' लिखकर प्रेम की पवित्रता और शाश्वतता को जाहिर कर दिया है। सुंदर रचना के लिए मेरी ओर से आपको बधाई।

    ReplyDelete
  7. विजय जी
    सुब्दर रचना है सुंदर भावः हैं

    ReplyDelete
  8. आत्‍मीय प्रेम कोई शिकायत नहीं करता और न ही अधिकार जताता है। केपल गुजारितश ही कर सकता है।
    अच्‍छे भाव हैं।
    हां, आपके ब्‍लाग का रंग विधान, पढने में बाधक अनुभव हुआ।

    ReplyDelete
  9. peer sabkee saanjhee hotee hai...
    mere nayan bheege hain.....

    ReplyDelete
  10. वैसे मैं भी पढते ही नीरज जी वाली बात कहना चाह रहा था पर जब कमेट पढे तो नीरज जी की टिप्पणी पढी। मैं आज ही ऐसी ही प्यारी डाँट खा कर आ रहा हूँ। वैसे लिखी अच्छी है।

    ReplyDelete
  11. आपकी कविता का हमेशा प्रशंसा करता रहा हूँ मगर ये कविता काफी अलग है ,हलाकि अलग भाव है मगर ये मुझे आपकी अन्य kavitawon की तरह वजनी नही लगी इसमे ज़िन्दगी को आपने मारा है सिर्फ़ ... आपकी कविता का ये अलग रूप देख रहा हौं जहाँ कविता ख़ुद मर रही है जो अच्छी बात नही है मेरे हिसाब से ,आप आपने पुराने अंदाज में ही लिखे ..

    आपका
    अर्श

    ReplyDelete
  12. ? ? ? ? ? ? ?
    aisa kyooN kehna padaa.....
    kyooN hui aakhiri shaam....
    ye qissa to kabhi khatm hota hi naheeN......
    jb jeevant hai to phir
    pyaar ki shaam aakhiri nahi ho sakti.....
    khair..! kyonki kavita hai..
    so achhi hai,
    lekin Vijay ki nahi lagti..
    ---MUFLIS---

    ReplyDelete
  13. kavita ke khayaal gahre hai...
    yahan apne khdu ko mara hai mere hisab se kavi khud ko marta hai jab saare dard hadoin ke paar chale jaye hai na???meien sahi smajha kya????

    dard ki intehaa darshati rachna

    ReplyDelete
  14. Zindgi ka gard bhara Ayna un hi samne laya kare, taki koi bhi to isme Apna chehra pehchanne ki koshish karega?

    ..Jari rahe Zindgi ki ye Jung..
    "Sunder Rachna"
    Kotishah Dhanyabad
    Anant Jha

    ReplyDelete
  15. ek shaam aur ek din mein to aapne poori zindagi ji li...........bahut hi gahre bhav hain

    ReplyDelete
  16. arsh ki tippani se me sahmat hu..me aapke blog par aaya thaa behtreen kuchh padne ke liye kyuki iske pahle likhi gai aapki kavitaye sundar lagi thi mujhe magr is baar vo baat nahi he..
    fir bhi ek nya prog he aour is prayog me me to yahi kahunga ki achcha he.

    ReplyDelete
  17. किस्‍सा जिंदगी का
    जिंदगी में खत्‍म नहीं होता
    मरने का डर दिखाते रहिए
    महबूब आप पर मर मिटेगा।

    ReplyDelete
  18. अर्श जी , अमिताभ जी,
    मुझे तो स्टाइल पहले वाला ही लगा लिखने का.....पर ये शायद किसी और ही रिश्ते की मौत की बात कहना चाह रहे हैं.....प्यार के रिश्ते की ना मौत होती है...ना शाम ....वैसे भी मुझे कविताओं की कम समझ है...

    ReplyDelete
  19. कविता अच्छी लगी, लेकिन निराशा अच्छी नहीं लगी.

    ReplyDelete
  20. मित्र ,इतनी उदास कविता ?भाई में तो नीरज जी से सहमत हूँ .फ़िर भी कविता अच्छी है खास तौर पर .....
    आज मेरी आखरी शाम है
    अब ये किस्सा ख़तम हुआ ..

    उफ़ , कितना बड़ा दिन था जिंदगी का ....

    ReplyDelete
  21. really bahut achi kavita hai....
    aapki kaviton me jo dard ubhar ke ata hai usse sabdo me nahi bataya ja sakta........

    ReplyDelete

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...