बहुत दिनों से ये चाह रहा था ;
कि, अपना अफसाना लिखूं...
और मेरा अफसाना भी क्या है
कुछ तेरे जैसा है , कुछ उसके जैसा है
दुनिया की भीड़ में भटकता हुआ
ज़िन्दगी के जंगल में खोया हुआ
किसी बच्चे की हंसी में मुस्कराता हुआ
और अपनी उदासी को समेटता हुआ
एक अदद इंसान की रूह में फंसा हुआ
अपने आप को तलाशता हुआ !
बस ऐसा ही कुछ मेरा अफसाना है ;
इसी अफ़साने से ही तो मेरी कविता जन्मती है !!
कहीं अगर मैं मिलूं तुम्हे तो मुझे पहचान लोंगे ना ?