Saturday, April 30, 2011

तुम्हे कैसे भूलू



बहुत देर से कोशिश कर रहा हूँ कि ,
तुझे भुला सकूँ,
लेकिन तुम निकल आती हो बाहर मेरे किताबो के पन्नो से
और निकल आती हो अक्सर मेरे बिस्तर से भी ;
और देख रहा हूँ कि  भगवान की मूर्ती में भी तुम हो.

थक कर चारो ओर निगाह घूमाता हूँ ;
तो देखता हूँ तुम्हे मेरी दीवारों पर टंगे हुए
और देखता हूँ ,
मेरे ख्यालो के साथ साथ  जिस्म पर भी तुम्हारा अक्स है !
थक कर अब  बैठ  गया हूँ मैं  !

तुम्हे भुलाना कुछ मुश्किल हो रहा है जानां; 
तुम हो मेरी तमाम यादो में .

तुम हो उन सारे सडको पर जिस पर हम साथ साथ चले
और हो उन कमरों में भी जहाँ हमने साथ साथ सांस ली थी
उन सडको को  , उन कमरों को  ,
और उन शहरो की परछाईयों  को देखता हूँ मैं ;
अपने वजूद में हमेशा के लिए समाये हुए....
तुम न ज़िन्दगी में हो और न ही ज़िन्दगी से बाहर हो
मैं सोचता हों तुम्हे कैसे भूलू....

हर दिन बस ;
कुछ ऐसे ही काट लेता हूँ
तुम्हे भूलने की कोशिश करना
और इसी  बहाने तुम्हे और याद करना ..

उम्र के कटती  हुई  तारीखों में ;
कुछ इसी तरह तुम्हे कुछ देर  और  याद कर लेता हूँ जानां....!!!



12 comments:

  1. भावों की सुखद अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  2. vijay bhaai del ke andar kaa haal to sch men yhi he jiskaa aapne chitran kr dikhanae kaa saahs kiyaa hai bhtrin rchnaa ke liyen bdhaai ho . akhtar khan akela kota rasjthan

    ReplyDelete
  3. vijay bahi ji
    bahut bahut badhai man ke jajbaato ko badi hi khoob surati v sajta ke sath batan kiya hai aapne
    bahit hi bhav pravan prastuti.
    sadar naman
    poonam
    aapne mere blog par apni kavita ---parayon ka ghar ---ka jikr kiya hai .par vo aapke kis blog par hai mujhe mila hi nahi .
    kripya baatne ka kasht karen
    poonam

    ReplyDelete
  4. उम्र के कटती हुई तारीखों में ;कुछ इसी तरह तुम्हे कुछ देर और याद कर लेता हूँ जानां....!!!

    कहाँ संभव होता है यादों को भुलाना...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

    ReplyDelete
  5. किसी को भुलना इतना आसान नही होता। सुन्दर रचना।

    ReplyDelete
  6. क्या बात है...बहा ले गये भावों के साथ.. बहुत उम्दा!!

    ReplyDelete
  7. भू्लें तो उसे जिसे याद किया जाये
    जो सांसों संग महकता हो उसे कोई कैसे भूले
    कभी सांसें भी भूली जाती हैं

    अब इसके बाद क्या कहूँ?

    ReplyDelete
  8. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (2-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  9. हर दिन बस ; कुछ ऐसे ही काट लेता हूँ तुम्हे भूलने की कोशिश करना और इसी बहाने तुम्हे और याद करना ..
    उम्र के कटती हुई तारीखों में ;कुछ इसी तरह तुम्हे कुछ देर और याद कर लेता हूँ जानां....!!!
    yaade mitaye nahi mitti ,bahut hi khoobsurat rachna hai ,komal bhavo ki

    ReplyDelete
  10. मन की बात कह दी आपने....बेजोड़ ! बधाई आपको !

    ReplyDelete
  11. वाह,विजय भाई,आप भी दिल की कलम से ही लिखते हैं.
    बहुत सुन्दर रचना.

    ReplyDelete
  12. क्या भावगंगा बहाई है विजय जी बहुत ही सुंदर ।

    ReplyDelete

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...