Friday, February 6, 2009

नाम


दोस्तों , कल रात एक अजीब सी बात हुई .. मैं अपने किसी project के लिये PPT बना रहा था ... मुझे mobile पर एक call आयी , call दिल्ली से था , एक लड़की ने बात की , उसने कहा की वो मेरी कवितायें पढ़ती है , और हमेशा रोती है ; मैंने उसे counselling करते हुए समझाया कि poems are basically collective work of fact and fiction और कविता पढने के थोडी देर बाद normalcy को adopt कर लेना चाहिए. थोडी देर बाद उसने कहा कि मैं उस पर एक कविता लिखूं .. .. मैंने कहा कि, कहिये ; क्या कहना है , मैं कविता लिख दूँगा .. उसने थोड़ा रुक कर कहा ,कि , वो एक call-girl है ..और मुझसे बोली कि मैं उस पर और उस जैसी और औरतों पर एक नज़्म लिखूं.. मैंने उसका नाम पुछा , उसने नही बताया ..और फ़ोन cut कर दिया .... .. मैंने उस नम्बर पर call back किया , वो एक PCO -टेलीफोन बूथ का नम्बर था .. identity नही मिल पायी ….

मेरा कभी इन सबसे पाला नही पड़ा था , सुना जरुर था . मैंने सोचा और एक छोटी सी नज़्म लिखी .. आपको पक्का प्रभावित करेंगी .. ...

मैं अपनी ये नज़्म , उन सभी लड़कियों को नज़र करता हूँ .. और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ ; की उन्हें मुक्ति दे..

नाम

उस बंद कमरे में ;
मैंने उस से पुछा ,
तुम्हारा नाम क्या है ..

उसने कहा कि ,
नाम में क्या रखा है ,
मैं जिस्म हूँ !

यहाँ सब जिस्म के लिये आते है ,
और जिस्म से मिलकर जाते है '
नाम से कोई नही मिलता !

और सच कहूँ तो मैं अपना नाम भी भूल गई हूँ ,
इस जिस्म की दुनिया में अपनी पहचान भूल गई हूँ ..

रोज़ सुबह जब आइना देखती हूँ ..
अपने आपको नया नाम देती हूँ ..

फिर वो रुक कर बोली ..
आप जैसे ही किसी जिस्म ने मुझे यहाँ छोड़ा ,
आप जैसे ही कुछ जिस्म रोज़ सुबह शाम आते है
और मेरे पुराने नाम से मेरा जिस्म ले जाते है
और फिर मुझे एक नया नाम दे जाते है ....

फिर वो मेरा हाथ पकड़ कर बोली ,
आप क्या चाहते हो नाम या जिस्म ..
मैंने बड़ी उदासी से उसे देखा और कहा
कोई तुम्हे एक नाम दे दे ,यही एक ख्वाईश है

मैं वेश्यालय की सीढियां उतरते हुए सोच रहा था ..
कई सदियां पहले एक अहिल्या हुई थी ,
उसको उसका राम मिल गया था ....
जिसने उसका उद्धार किया था !!!

इस नाम को सिर्फ़ जिस्म मिलते है ......
क्या इसे भी कभी ;
कोई राम मिलेंगा !!!!

31 comments:

  1. रावणों में राम
    नहीं मिल सकता
    राम ने भी पहन
    लिए हैं मुखौटे
    वे भी दिखते हैं
    अब रावण ही
    राम बनेंगे रहेंगे
    तो लूट लिए जाएंगे
    असली रावण द्वारा
    कूट दिए जाएंगे।

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  2. behad umda lekhan,bahot hi shandar,meri aankhe nam ho gai bas iski shuruyaat me hi ,itni badi gaaliyan aur galiyan dono basti hai apne desh me abhi bhi jahan log apna naam bhul jaate hai aur naam ki talash me rahate hai ... kab koi fir RAM janm lenge is dharati pe inka udhar karne keliye .... bahot hi gahari baat likhi hai vijay ji aapne ... badhai kubul karen aisi lekhan ke liye .... aapki lekhani ko salaam...


    arsh

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  3. पोस्ट मेरे सामने है। पढ़ चुका हूँ। नि:शब्द सा बैठा हूँ। ...............

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  4. Hi Vijay,

    Your words depict the true picture of our society,

    Yeha sab jism ke liye aate hain..
    Aur jism se milke jaate hain..

    Very thought provoking ...

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  5. सुंदर अभिव्यक्ति, मन को झंकृत करते शब्द ....!

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  6. yatharth se ru-b-ru karwa diya


    jismon se bandhe jismon ke rishtey
    rooh ka safar kabhi tay nhi kar pate

    aisa hi kuch maine likha tha aur shayad wo in par thik baithta hai

    kay kahun, dil bojhil ho gaya hai,
    kabhi kabhi sach kitna kadva hota hai ki sahan nhi ho pata.

    bas aur kuch nhi kah sakti,khamosh ho gayi hun.

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  7. जीवन के इस रंग तो भी लिखना इतनी शिद्दत के साथ लिखना, कहीं न कहीं दर्द को छिपाए रचना

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  8. विजय जी बहुत अच्छी कविता के लिए ढेर साडी बधाई. वाकई आपकी कविताओं में दम है. ऐसी कविता जो किसी को रोने पर मजबूर कर दे...वाह.
    आपको शब्द युद्ध ..प्रदर्शनी के लिए भी बधाई.

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  9. मन के भावों को आपने सुन्दर लफ़्जों का जामा पहनाया है..

    कुछ के लिये है मजबूरियां
    कुछ ख्वाहिशों से मजबूर हैं
    कौन बिकता नहीं इस जहां में
    जिस्म की छोडिये.. लोग रूह से भी दूर हैं

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  10. भाई विजय जी

    कविता पढ़ी। जिस लड़की के लिये आपके मन में भाव आए, वह अवश्य इसे पढ़ कर द्रवित हो गई होगी। हर जिस्म चाहता है कि कोई अवतार आ कर उसे उस नर्क से मुक्ति दिलवाए। कविता की बेहतरीन पंक्तियां हैं -

    यहां सब जिस्म के लिये आते हैं
    और जिस्म से मिल कर जाते हैं
    नाम से कोई नहीं मिलता।

    ....... रोज़ सुबह जब आईना देखती हूं
    अपने आप को नया नाम देती हूं।

    शुभकामनाएं

    तेजेन्द्र शर्मा - महासचिव कथा यू.के.
    लन्दन

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  11. वाह बहुत सुन्दर लिखा है।

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  12. बहुत सुंदर लिखा.....उसने सही कहा होगा.....कि वह रो पडती है....आपकी कविताओं को पढकर....यूं ही आपकी लेखनी चलती रहे।

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  13. जीवन के इस बदरंग को आपने अपनी लेखनी में खूब ढाला ..जाने क्या मज़बूरी होती होगी जो यह सब उन्हें अपनाना पड़ता होगा ..आपने बहुत भावपूर्ण लफ्जों में इसको लिखा है

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  14. विजय जी आज जो रचना आपने लिखी है उसे लिख कर किसी भी लेखक को अपनी लेखनी पर नाज हो सकता है...ये यकीनन एक उत्कृष्ट रचना है...आपने शब्द और भाव दोनों का बहुत ही बेहद खूबसूरती से इस्तेमाल किया है...ये एक ऐसा विषय था जिसको लिखते वक्त भावुकता लेखन पर हावी हो सकती थी लेकिन आपने बहुत कुशलता से इसे अति भावुक होने से बचा लिया है...आप जो कहना चाहते थे रचना उसे पाठक तक पहुँचने में कामयाब रही है...मेरी बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें...
    नीरज

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  15. dua hai aisi har ahilya ko ek raam mil jaye.bahut achhe bhav hai kavita ke badhai

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  16. विजय जी, हम चाँद पर पहुँच गए है पर फिर भी कुछ बदरंग तस्वीरें भी बची रह गई है। जिन पर किसी का भी ध्यान नही जाता कभी। एक तस्वीर का जिक्र आपने कर दिया आज। आज पूरे दिन यह घटना याद आती रही। और आपने उनके दुख को एक रचना के माध्यम से लिखा है। सच ये आपकी अब तक की सबसे अच्छी रचनाओं में से एक होगी। शब्दों का चयन बहुत ही सुन्दर ढंग से किया जिससे पूरे भाव निकल के आ रहे है।

    उस बंद कमरे में ;
    मैंने उस से पुछा ,
    तुम्हारा नाम क्या है ..

    उसने कहा कि ,
    नाम में क्या रखा है ,
    मैं जिस्म हूँ !
    यहाँ सब जिस्म के लिये आते है ,
    और जिस्म से मिलकर जाते है '
    नाम से कोई नही मिलता !

    सच। इनका अपना वजूद होते हुए भी अपना कोई वजूद नही होता।

    इस नाम को सिर्फ़ जिस्म मिलते है ......
    क्या इसे भी कभी ;
    कोई राम मिलेंगा !!!!

    नि:शब्द सा क्या कहूँ इस पर। हमने तो मंटो के जरिए ही जाना था इनका दुख दर्द। और आज आपने फिर से रुबरु करा दिया उस दर्द से। दुआ करते है कि राम मिल जाए।

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  17. कल्पना लोक से सीधे ठोस धरातल पर आ कर
    एक अच्छी कृति रच डाली आपने......
    जिंदगी की इस तल्ख़ और नंगी हकीक़त से रूबरू करवा पाने में
    सक्षम है आपकी ये कविता .........
    इस सभ्य समाज में आज भी कई बुराइयां मुखौटे पहने
    हमारी संस्कृति को ख़त्म करने पर हावी हैं .....
    जिस्मों को रूह तो जाने कब से छोड़ कर जा चुकी है
    खैर .....बधाई स्वीकारें .....
    ---मुफलिस---

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  18. क्‍या कहूँ....नि:शब्‍द हूँ...! बस एक लंबी आह है...! बहोत खूबसूरत तरीके से पिरोया है दर्‌द....!

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  19. मुझे समझ नहीं आता कि क्यों मंदिरों में देवी की मूर्तियां रखी हैं? क्यों लोग वैष्णों देवी जैसे तीर्थ स्थलों पर जाते हैं? क्यों लोग नवरात्रों में कन्याओं को खाना खिलाते हैं? और फ़िर क्यों हवस का शिकार बनने वाली ऐसी दुखियारियों के लिए इतंज़ार... हां सिर्फ़ इतंज़ार भी "राम" का करते हैं..।

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  20. विजय जी,
    बहुत ही हिला देने वाली रचना,,,,,,,

    और एक अजीब सी सोच,,,,,,,,,,,,

    की जो कोई एकाध राम जैसा है भी... तो... वो उधर क्यूं जायेगा.......???और गया भी तो.......
    अगर वो राम आलरेडी शादी शुदा हुआ


    तो बेचारा क्या कर लेगा...????

    आप तो खैर मुझे जानते हैं.....पर बाकी लोगो से निवेदन है...की ग़लत ना समझे....

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  21. " read your poetry...it is one of the best poetry of yours....it has touched the soul of mine.....and felt very low and even helpless for her...."

    Regards

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  22. आज ही आपके कविताओं के ब्लॉग से रूबरू हुआ.भाई वाह,बेहद उम्दा किस्म के नज़्म-कार हैं आप.आपकी क़लम वाजिब अहसासों को शिद्दत और नरमी के साथ पिरोने की काबलियत रखती है.अब से मेरी हाज़िरी आप मुस्तकिल पाएंगे.

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  23. Respected Vijaya ji,
    Post padh kar kuchh kshanon ke liye stabdh rah gayee.apne aj ke ek katu yatharth ko ujagar kiya hai.ye himmat jutana har kavi naheen kar sakta.

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  24. आपकी पोस्ट यहाँ भी है……नयी-पुरानी हलचल

    http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/

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  25. एक सच्चाई को उभारा है आपने.
    फिल्म चमेली में भी ऐसा ही कुछ दिखाया गया है.


    सादर

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  26. ऐसी व्यथा पर लिखा है की इस रचना पर बस मनन किया जा सकता है कुछ कहा नहीं जा सकता ..

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  27. असह्य कुरूपता समाज की ... समाज का इतना घिनौना रूप पढ़ कर ..एक बेचैनी सी हो गयी ...helplessness feel कर रही हूँ ...!!हाथ जोड़ कर इश्वर से प्रार्थना कर रही हूँ ..उतना ही मेरे बस में है ...!!
    आभार इस कविता को लिखने के लिए और समाज को एक सोच देने के लिए भी ...!

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  28. एक कड़वी सच्चाई समाज की ...दर्द भरी, सोचने को मजबूर करने वाली रचना ...

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  29. नारी...
    उठो और ख़ुद को संभाल लो
    क्यों किसी राम का इंतजार करती हो
    तू तब भी निष्पाप थी जब पथ्थर में चुनवाई गई
    तू अब भी निर्दोष हे जब सिर्फ़ ज़िस्म बनाई गई
    उठो और खुद को संभाल अब राम न आएगा
    शक्ति हे नाम तेरा क्यों सुध बिसराई हे....
    शक्ति हे नाम...तेरा क्यों..सुध..बिसराई ..

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  30. bhavna ji ,
    aapka bahut bahut shukirya ji
    aapne bahut acchi kavita likh di hai .
    aabhar
    Vijay

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