Tuesday, November 11, 2008
राह
सूरज चड़ता था और उतरता था....
चाँद चड़ता था और उतरता था....
जिंदगी कहीं भी रुक नही पा रही थी,
वक्त के निशान पीछे छुठे जा रहे थे ,
लेकिन मैं वहीं खड़ा था....
जहाँ तुमने मुझे छोडा था....
बहुत बरस हुए ,तुझे ; मुझे भुलाए हुये !
मेरे घर का कुछ हिस्सा अब ढ़ह गया है !!
मुहल्ले के बच्चे अब जवान हो गए है ,
बरगद का वह पेड़ ,जिस पर तेरा मेरा नाम लिखा था
शहर वालों ने काट दिया है !!!
जिनके साथ मैं जिया ,वह मर चुके है
मैं भी चंद रोजों में मरने वाला हूं
पर,
मेरे दिल का घोंसला ,जो तेरे लिए मैंने बनाया था,
अब भी तेरी राह देखता है.....
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
-
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
-
मिलना मुझे तुम उस क्षितिझ पर जहाँ सूरज डूब रहा हो लाल रंग में जहाँ नीली नदी बह रही हो चुपचाप और मैं आऊँ निशिगंधा के सफ़ेद खुशबु के साथ और त...
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
ReplyDeleteविजय जी, बहोत अच्छा लिखते हैं आप। कवितायें दिल को छूती हैं। बधाई...
ReplyDeletesirjee ye poem mujhe aapki specially bahut pasand aayi hai ..........isme gajab ka flow hai .............
ReplyDelete