दोस्तों , मैं अपनी ये नज़्म दुनिया के तमाम शायर ,कवि और गीतकारों को नज़र करता हूँ. After all , जीना तो कोई इनसे सीखें !
" शायर "
सुबह से शाम , और शाम से सुबह ;
ज़िन्दगी यूँ ही बेमानी है दोस्तों ....
किसी अनजान सपने में ,
एक जोगी ने कहा था ;
कि, एक नज़्म लिखो तो कुछ साँसे उधार मिल जायेंगी ...
शायर हूँ मैं ;
और जिंदा हूँ मैं !!!
आसमान के फरिश्तों ;
जरा झुक के देखो तो मुझे....
मुझ जैसा शायर सुना न होंगा ,
मुझ जैसा इंसान देखा न होंगा ...
खुदा मेरे ;
ये साँसे और कितने देर तलक चलेंगी !!
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता
घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...
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फूल,चाय और बारिश का पानी बहुत दिनों के बाद , हम मिले... हमें मिलना ही था , प्रारब्ध का लेखा ही कुछ ऐसा था . मिलना , जुदा होना औ...
ये शायर अमर है
ReplyDeleteसांसों को अपनी शब्दों का नाम देदो
क़यामत को इस कलम की पयाम देदो
तेरा क्या बिगड़ पायेगा कोई
मौत को तुम अब मोहब्बत का काम देदो :)
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
आप
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑
सब कुछ हो गया और कुछ भी नही !! इस पर क्लिक कीजिए
आभार...अक्षय-मन
Good one . Congrats.
ReplyDeleteएक नही कई कवितायें पढी...क्षमा करें...कविता जब तक आम दर्द के साथ ना जुङे...तब तक आत्मालाप या आत्म-निवेदन जैसी ही रहती है...आपसे जुङी महिलाओं को बहुत अच्छी लगेगी...और क्या कहूँ...और हाँ, सबकी तरह आपको अपने ब्लाग पर आने का निमन्त्रण नहीं दूँगा...आप बोर हो सकते हैं...उम्मेद साधक
ReplyDeleteसच कहा आपने ये नज्में ही तो हमारी संगी ,साथी और हमसफर हैं...जो ताउम्र हमें जीना सिखलाती रहती हैं...
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