Monday, November 17, 2008

झील

आज शाम सोचा ;
कि ,
तुम्हे एक झील दिखा लाऊं ...
पता नही तुमने उसे देखा है कि नही..
देवताओं ने उसे एक नाम दिया है….

उसे जिंदगी की झील कहते है...

बुजुर्ग ,अक्सर आलाव के पास बैठकर,
सर्द रातों में बतातें है कि',
वह दुनिया कि सबसे गहरी झील है
उसमे जो डूबा ,
फिर वह उभर कर नही आ पाया .

उसे जिंदगी की झील कहते है...

आज शाम ,
जब मैं तुम्हे ,अपने संग ,
उस झील के पास लेकर गया ,
तो तुम काँप रही थी ,
डर रही थी;
सहम कर सिसक रही थी.
क्योंकि ;
तुम्हे डर था; कहीं मैं...
तुम्हे उस झील में डुबो न दूँ .

पर ऐसा नही हुआ ..

मैंने तुम्हे उस झील में ;
चाँद सितारों को दिखाया ;
मोहब्बत करने वालों को दिखाया;
उनकी पाक मोहब्बत को दिखाया ;

तुमने बहुत देर तक,
उस झील में ,
अपना प्रतिबिम्ब तलाशा ,

तुम ढूंढ रही थी..
कि
शायद मैं भी दिखूं..
तुम्हारे संग,
पर
ईश्वर ने मुझे छला…

मैं क्या.. मेरी परछाई भी ,
झील में नही थी ..तुम्हारे संग !!!

तुम रोने लगी ....
तुम्हारे आंसू , बूँद बूँद
खून बनकर झील में गिरते गए ..
फिर झील का गन्दा और जहरीला पानी साफ होते गया..
क्योंकि अक्सर जिंदगी की झीलें ..
गन्दी और जहरीली होती है ..

फिर, तुमने
मुझे आँखे भर कर देखा...
मुझे अपनी बांहों में समेटा ...
मेरे माथे को चूमा..
और झील में छलांग लगा दी ...
तुम उसमें डूबकर मर गयी .

और मैं...
मैं जिंदा रह गया ,
तुम्हारी यादों के अवशेष लेकर,
तुम्हारे न मिले शव की राख ;
अपने मन पर मलकर
मैं जिंदा रह गया.

मैं युगों तक जीवित रहूंगा
और तुम्हे आश्चर्य होंगा पर ,
मैं तुम्हे अब भी
अपनी आत्मा की झील में
सदा देखते रहता हूँ..

और हमेशा देखते रहूंगा..
इस युग से अनंत तक ..
अनंत से आदि तक ..
आदि से अंत तक..
देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...

3 comments:

  1. kya likhte hain aap...........
    soye hue ehesaason ko jaga diya aapne.....

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  2. माशा अल्‍लाह... बेमिसाल...! अदभुत अभिव्‍यक्‍ति...! मेरी ओर से सौ में से सौ अंक।मैं तो इस
    झील की गहराई में डूब गई हूँ । बहुत- बहुत बधाई...

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  3. jheel ki gahrayi ko kya khoob aanka hai aapne,is jheel mein doobte to sabhi hain magar jo aapne kiya wo har kisi ke baski bat nhi

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