Friday, November 14, 2008

सपने

सुनो ,
ज़रा फिर से सुनो.

कहीं मेरी आवाज तो नही,

देखो तो ज़रा ,
देखो ,कहीं तुम्हारी गली में मेरा साया तो नही,


दरवाज़ा तो खोलो ,
शायद ,मैंने दरवाज़ा ठ्कठाकाया है..

कैसी ‘पराई’ नींद में खोयी हुई हो तुम,

सारे सपने झूठे नही होते
देखो तो ज़रा…..शायद मैं आया हूँ !!!!

3 comments:

  1. ...aas ka daaman thaame hue ek awaara.si aawaaz...ek aisi aawaaz jo dil se nikal kr seedhe dil tk hi jaati hai, aur palko ke aangan mein kuchh khoobsurat sapne sjaa jati hai, wahee sapne jo hargiz jhoote nahi hote...sachche sapne, sachchi aas ki tarah sachche... aapki iss sachchi kavita ki tarah sachche. ShubhkaamnaaeiN.
    ---MUFLIS---

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