Tuesday, December 2, 2008
माँ
आज गाँव से एक तार आया है !
लिखा है कि ,
माँ गुजर गई........!!
इन तीन शब्दों ने मेरे अंधे कदमो की ,
दौड़ को रोक लिया है !
और मैं इस बड़े से शहर में
अपने छोटे से घर की
खिड़की से बाहर झाँक रहा हूँ
और सोच रहा हूँ ...
मैंने अपनी ही दुनिया में जिलावतन हो गया हूँ ....!!!
ये वही कदमो की दौड़ थी ,
जिन्होंने मेरे गाँव को छोड़कर
शहर की भीड़ में खो जाने की शुरुवात की ...
बड़े बरसो की बात है ..
माँ ने बहुत रोका था ..
कहा था मत जईयो शहर मा
मैं कैसे रहूंगी तेरे बिना ..
पर मैं नही माना ..
रात को चुल्हे से रोटी उतार कर माँ
अपने आँसुओं की बूंदों से बचाकर
मुझे देती जाती थी ,
और रोती जाती थी.....
मुझे याद नही कि
किसी और ने मुझे
मेरी माँ जैसा खाना खिलाया हो...
मैं गाँव छोड़कर यहाँ आ गया
किसी पराई दुनिया में खो गया.
कौन अपना , कौन पराया
किसी को जान न पाया .
माँ की चिट्ठियाँ आती रही
मैं अपनी दुनिया में गहरे डूबता ही रहा..
मुझे इस दौड़ में
कभी भी , मुझे मेरे इस शहर में ...
न तो मेरे गाँव की नहर मिली
न तो कोई मेरे इंतज़ार में रोता मिला
न किसी ने माँ की तरह कभी खाना खिलाया
न किसी को कभी मेरी कोई परवाह नही हुई.....
शहर की भीड़ में , अक्सर मैं अपने आप को ही ढूंढता हूँ
किसी अपने की तस्वीर की झलक ढूंढता हूँ
और रातों को , जब हर किसी की तलाश ख़तम होती है
तो अपनी माँ के लिए जार जार रोता हूँ ....
अक्सर जब रातों को अकेला सोता था
तब माँ की गोद याद आती थी ..
मेरे आंसू मुझसे कहते थे कि
वापस चल अपने गाँव में
अपनी मां कि गोद में ...
पर मैं अपने अंधे क़दमों की दौड़
को न रोक पाया ...
आज , मैं तनहा हो चुका हूँ
पूरी तरह से..
कोई नही , अब मुझे
कोई चिट्टी लिखने वाला
कोई नही , अब मुझे
प्यार से बुलाने वाला
कोई नही , अब मुझे
अपने हाथों से खाना खिलाने वाला..
मेरी मां क्या मर गई...
मुझे लगा मेरा पूरा गाँव मर गया....
मेरा हर कोई मर गया ..
मैं ही मर गया .....
इतनी बड़ी दुनिया में ; मैं जिलावतन हो गया !!!!!
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संवेदना........
ReplyDeletebahut ghra marm chupa hai....
ReplyDeletewahi sab kyun likhte ho
mann bhavuk ho jata hai.
is dard ko aur kitna nikharoge is kalam se ye kalam bhi to maa jaisi hai.
आपकी कविता मन को छू गयी
ReplyDeleteबहुत ही भावुक, मार्मिक चित्रण
बहुत ही मार्मिक रचना है !!!
ReplyDeletemy best wishs for ths........
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा... आपके लेखन में आपकी सच्चाई महसूस होती है...
ReplyDeleteउम्मीद है आगे भी इसी तरह सच्चा ही लिखते रहेंगे...
शुभकामनायें
----मीत
"maaN ki mamta ka bakhaan koi kr paya hai bhalaa ? Aap ki kavita mei bhaav haiN, laad hai, dulaar hai, aur sb se barhi baat maaN ka aashirwaad hai. Aap badhaaee ke paatr haiN.
ReplyDelete---MUFLIS---
Atyant bhavpurna.
ReplyDeleteकविता दिल को छू लेने वाली है। अपनों से दूर होने का दर्द सालता है
ReplyDeletehttp://gyansindhu.blogspot.com
Maa..!!! jitna likho utna kam hai.. har ek pahelu mai gum hai...fir bhi MAA ki kami hardam hai....
ReplyDeletemaine socha kii iske baare me kyaa likhu .........
ReplyDeletebahut socha or ab bhii soch raha huun .......
par fir samajh me aaya kii sirf naam hii kaafi hai ....
maa..........