Monday, December 15, 2008

अलविदा



सोचता हूँ
जिन लम्हों को ;
हमने एक दूसरे के नाम किया है
शायद वही जिंदगी थी !

भले ही वो ख्यालों में हो ,
या फिर अनजान ख्वाबो में ..
या यूँ ही कभी बातें करते हुए ..
या फिर अपने अपने अक्स को ;
एक दूजे में देखते हुए हो ....

पर कुछ पल जो तुने मेरे नाम किये थे...
उनके लिए मैं तेरा शुक्रगुजार हूँ !!

उन्ही लम्हों को ;
मैं अपने वीरान सीने में रख ;
मैं ;
तुझसे ,
अलविदा कहता हूँ ......!!!

अलविदा !!!!!!


15 comments:

  1. बहुत सुन्दर और दिल को छू जाने वाली अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  2. अच्छा लिखा आपने ...बहुत-बहुत बधाई ...

    ReplyDelete
  3. रचना में वेदना के स्वर साफ़ झलक रहे हैं..यादों को कभी अलविदा कहते तो नहीं हैं.

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्‍छी रचना....बहुत बहुत बधाई।

    ReplyDelete
  5. सुन्दर और दिल को छू जाने वाली रचना .बहुत बहुत बधाई.

    ReplyDelete
  6. viran seene ko un lamhon se aabad kiya hai ,virani mein bhi uske sath ka ahsas diya hai.........yaadein alvida kab hoti hain,yaadein to seene mein dafan hoti hain

    ReplyDelete
  7. ye rachna hai ya kuch aur mujhe kuch alag sa lag raha hai pata nahi kyun kuch khalish si,,,,,
    kya hua kahan gaye ho aap???

    ReplyDelete
  8. बार-बार पढ़ने लायक कविता।

    ReplyDelete
  9. वेदना की आवाज आ रही हैं हमें भी कुछ याद दिला रही हैं।
    बहुत अच्छा लिखा है आपने।

    ReplyDelete
  10. waah ! sundar abhivyakti.

    par jo dil ke kareeb hote hain,alvida kah dene se kya man se vida ho pate hain????

    ReplyDelete
  11. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  12. बहुत बढ़िया लिखा है आपने ..वैसे अलविदा क्यों कहे उन्हें जो दिल के करीब हैं

    ReplyDelete
  13. taaze zakhmo ke saamne, halke se bhi safahe palto toh kasak jag uthti hai
    hashr abhi yun hua nahi phir bhi
    jaane kyon hawa si lagti hai

    aap toh humdard hain lekhak mahoday!

    ReplyDelete

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...