बड़ी देर से भटक रहा था पनाह की खातिर ;
कि तुम मिली !
सोचता हूँ कि ;
तुम्हारी आंखो में अपने आंसू डाल दूं...
तुम्हारी गोद में अपना थका हुआ जिस्म डाल दूं....
तुम्हारी रूह से अपनी रूह मिला दूं....
पहले किसी फ़कीर से जानो तो जरा ...
कि ,
तुम्हारी किस्मत की धुंध में मेरा साया है कि नही !!!!
बहुत अच्छी कविता है...
ReplyDeleteखूबसूरत :D
ReplyDeletebahot hi badhiya kavita ... lekhani ka asim kripa hai aap pe ... bahot khub likha hai aapne dhero badhai aapko...
ReplyDeletesirjee
ReplyDeletelast line me kyaa gajab keh gaye aap ............
is se jyaada main kuch nahii kehna chahta .........kisi kavita ko samjhanaa matlab kii usme kuch choot gaya hai ....
isme kuch chutaa nahii hai .....